Difference between revisions of "मुझे फूल मत मारो -मैथिलीशरण गुप्त"
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होकर मधु के मीत मदन, पटु, तुम कटु गरल न गारो, | होकर मधु के मीत मदन, पटु, तुम कटु गरल न गारो, | ||
मुझे विकलता, तुम्हें विफलता, ठहरो, श्रम परिहारो। | मुझे विकलता, तुम्हें विफलता, ठहरो, श्रम परिहारो। | ||
− | + | नहीं भोगनी यह मैं कोई, जो तुम जाल पसारो, | |
बल हो तो सिन्दूर-बिन्दु यह--यह हरनेत्र निहारो! | बल हो तो सिन्दूर-बिन्दु यह--यह हरनेत्र निहारो! | ||
रूप-दर्प कंदर्प, तुम्हें तो मेरे पति पर वारो, | रूप-दर्प कंदर्प, तुम्हें तो मेरे पति पर वारो, |
Revision as of 13:24, 21 January 2012
chitr:Icon-edit.gif | is lekh ka punarikshan evan sampadan hona avashyak hai. ap isamean sahayata kar sakate haian. "sujhav" |
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mujhe phool mat maro, |
sanbandhit lekh |