Difference between revisions of "लाज न आवत दास कहावत -तुलसीदास"
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सकल संग तजि भजत जाहि मुनि, जप तप जाग बनावत। | सकल संग तजि भजत जाहि मुनि, जप तप जाग बनावत। | ||
मो सम मंद महाखल पाँवर, कौन जतन तेहि पावत॥2॥ | मो सम मंद महाखल पाँवर, कौन जतन तेहि पावत॥2॥ | ||
− | हरि निरमल, मल ग्रसित | + | हरि निरमल, मल ग्रसित हृदय, असंजस मोहि जनावत। |
जेहि सर काक बंक बक-सूकर, क्यों मराल तहँ आवत॥3॥ | जेहि सर काक बंक बक-सूकर, क्यों मराल तहँ आवत॥3॥ | ||
जाकी सरन जाइ कोबिद, दारुन त्रयताप बुझावत। | जाकी सरन जाइ कोबिद, दारुन त्रयताप बुझावत। | ||
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हौं तिनसों हरि परम बैर करि तुमसों भलो मनावत॥5॥ | हौं तिनसों हरि परम बैर करि तुमसों भलो मनावत॥5॥ | ||
नाहिन और ठौर मो कहॅं, तातें हठि नातो लावत। | नाहिन और ठौर मो कहॅं, तातें हठि नातो लावत। | ||
− | राखु सरन उदार-चूड़ामनि, तुलसिदास गुन | + | राखु सरन उदार-चूड़ामनि, तुलसिदास गुन गावत॥6॥ |
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Latest revision as of 09:52, 24 February 2017
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laj n avat das kahavat. |
sanbandhit lekh |