गढ़कुण्डार: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replace - " सदी " to " सदी ")
 
(4 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
*[[उत्तर प्रदेश]] के [[झाँसी ज़िला|झाँसी ज़िले]] में गढ़कुण्डार के दुर्ग एवं नगर के भग्नावशेष बीहड़ पहाड़ों एवं वनों मे बिखरे पड़े हैं।  
*[[उत्तर प्रदेश]] के [[झाँसी ज़िला|झाँसी ज़िले]] में गढ़कुण्डार के दुर्ग एवं नगर के भग्नावशेष बीहड़ पहाड़ों एवं वनों में बिखरे पड़े हैं।  
*कभी गढ़कुण्डार [[चंदेल वंश|चंदेल]], खंगार एवं बुन्देल राजाओं की राजधानी रहा था।  
*कभी गढ़कुण्डार [[चंदेल वंश|चंदेल]], खंगार एवं बुन्देल राजाओं की राजधानी रहा था।  
*प्राचीन काल में कुण्डार प्रदेश पर गौंडो का राज्य था, जो पाटलिपुत्र के [[मौर्य वंश|मौर्य सम्राटों]] को मंडलेश्वर मानते थे।  
*प्राचीन काल में कुण्डार प्रदेश पर गौंडो का राज्य था, जो पाटलिपुत्र के [[मौर्य वंश|मौर्य सम्राटों]] को मंडलेश्वर मानते थे।  
*परवर्ती काल में परिहास राजाओं ने कुण्डार पर आधिपत्य जमा लिया।  
*परवर्ती काल में परिहास राजाओं ने कुण्डार पर आधिपत्य जमा लिया।  
*आठवीं सदी के अंत में यहाँ चन्देलों का शासन था।
*आठवीं [[सदी]] के अंत में यहाँ चन्देलों का शासन था।
*[[पृथ्वीराज चौहान तृतीय]] का समकालीन चन्देल नरेश परमाल के समय यहाँ का दुर्गपाल शिवा नामक राजपूत था।
*[[पृथ्वीराज चौहान तृतीय]] का समकालीन चन्देल नरेश परमाल के समय यहाँ का दुर्गपाल शिवा नामक राजपूत था।
*1182 ई. में चौहान शासक एवं परमाल के बीच संघर्ष में शिवा मारा गया और चौहान के सैनिक खेतसिंह या खूबसिंह का इस पर अधिकार हो गया। इसने खंगार राज्य क़ी नींव डाली, जो काफ़ी समय तक [[झाँसी]] प्रदेश में राज्य करता रहा। बलबन के शासनकाल में इन पर बुन्देलों ने अधिकार कर लिया।  
*1182 ई. में चौहान शासक एवं परमाल के बीच संघर्ष में शिवा मारा गया और चौहान के सैनिक खेतसिंह या खूबसिंह का इस पर अधिकार हो गया। इसने खंगार राज्य क़ी नींव डाली, जो काफ़ी समय तक [[झाँसी]] प्रदेश में राज्य करता रहा। बलबन के शासनकाल में इन पर बुन्देलों ने अधिकार कर लिया।  
Line 9: Line 9:




{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति
|आधार=आधार1
|आधार=
|प्रारम्भिक=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
|माध्यमिक=
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|पूर्णता=
|शोध=
|शोध=
}}
}}
 
==संबंधित लेख==
{{उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान}}
{{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल}}
[[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:इतिहास कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 10:57, 3 October 2011

  • उत्तर प्रदेश के झाँसी ज़िले में गढ़कुण्डार के दुर्ग एवं नगर के भग्नावशेष बीहड़ पहाड़ों एवं वनों में बिखरे पड़े हैं।
  • कभी गढ़कुण्डार चंदेल, खंगार एवं बुन्देल राजाओं की राजधानी रहा था।
  • प्राचीन काल में कुण्डार प्रदेश पर गौंडो का राज्य था, जो पाटलिपुत्र के मौर्य सम्राटों को मंडलेश्वर मानते थे।
  • परवर्ती काल में परिहास राजाओं ने कुण्डार पर आधिपत्य जमा लिया।
  • आठवीं सदी के अंत में यहाँ चन्देलों का शासन था।
  • पृथ्वीराज चौहान तृतीय का समकालीन चन्देल नरेश परमाल के समय यहाँ का दुर्गपाल शिवा नामक राजपूत था।
  • 1182 ई. में चौहान शासक एवं परमाल के बीच संघर्ष में शिवा मारा गया और चौहान के सैनिक खेतसिंह या खूबसिंह का इस पर अधिकार हो गया। इसने खंगार राज्य क़ी नींव डाली, जो काफ़ी समय तक झाँसी प्रदेश में राज्य करता रहा। बलबन के शासनकाल में इन पर बुन्देलों ने अधिकार कर लिया।
  • कुण्डार 1531 ई. तक बुन्देलों की राजधानी रही, किंतु बाद में बुन्देल नरेश रुद्रप्रताप ने ओरछा बसाकर नई राजधानी बनायी। इसके बाद यह नगर धीरे-धीरे खण्डर में तब्दील हो गया।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख