पंचवटी: Difference between revisions

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'''पंचवटी''' [[नासिक ज़िला]], [[महाराष्ट्र]] में [[गोदावरी नदी]] के निकट स्थित एक प्रसिद्ध पौराणिक स्थान है। यहाँ पर भगवान [[श्रीराम]], [[लक्ष्मण]] और [[सीता]] सहित अपने वनवास काल में काफ़ी दिनों तक रहे थे और यहीं से [[लंका]] के राजा [[रावण]] ने माता सीता का हरण किया था। इसी स्थान पर लक्ष्मण ने [[शूर्पणखा]] के नाक और कान काट लिए थे। यहाँ श्रीराम का बनाया हुआ एक मन्दिर खण्डहर रूप में विद्यमान है। पंचवटी का वर्णन '[[रामचरितमानस]]', 'रामचन्द्रिका', '[[साकेत (महाकाव्य)|साकेत]]', '[[पंचवटी (खण्डकाव्य)|पंचवटी]]' एवं 'साकेत-सन्त' आदि प्राय: सभी रामकथा सम्बन्धी काव्यों में मिलता है।
'''पंचवटी''' [[नासिक ज़िला]], [[महाराष्ट्र]] में [[गोदावरी नदी]] के निकट स्थित एक प्रसिद्ध पौराणिक स्थान है। यहाँ पर भगवान [[श्रीराम]], [[लक्ष्मण]] और [[सीता]] सहित अपने वनवास काल में काफ़ी दिनों तक रहे थे और यहीं से [[लंका]] के राजा [[रावण]] ने माता सीता का हरण किया था। इसी स्थान पर लक्ष्मण ने [[शूर्पणखा]] के नाक और कान काट लिए थे। यहाँ श्रीराम का बनाया हुआ एक मन्दिर खण्डहर रूप में विद्यमान है। पंचवटी का वर्णन '[[रामचरितमानस]]', '[[रामचन्द्रिका]]', '[[साकेत (महाकाव्य)|साकेत]]', '[[पंचवटी (खण्डकाव्य)|पंचवटी]]' एवं 'साकेत-सन्त' आदि प्राय: सभी रामकथा सम्बन्धी काव्यों में मिलता है।
==नामकरण==
==नामकरण==
मरीच का वध पंचवटी के निकट ही मृगव्याधेश्वर में हुआ था। गृघराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। पंचवटी के नामकरण का कारण पंचवटों की उपस्थिति कही जाती है- 'पंचानां वटानां समाहार इति पंचवटी'। ये पंचवट इस प्रकार हैं-
मरीच का वध पंचवटी के निकट ही मृगव्याधेश्वर में हुआ था। गृघराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। पंचवटी के नामकरण का कारण पंचवटों की उपस्थिति कही जाती है- 'पंचानां वटानां समाहार इति पंचवटी'। ये पंचवट इस प्रकार हैं-

Latest revision as of 12:53, 31 March 2015

पंचवटी नासिक ज़िला, महाराष्ट्र में गोदावरी नदी के निकट स्थित एक प्रसिद्ध पौराणिक स्थान है। यहाँ पर भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता सहित अपने वनवास काल में काफ़ी दिनों तक रहे थे और यहीं से लंका के राजा रावण ने माता सीता का हरण किया था। इसी स्थान पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा के नाक और कान काट लिए थे। यहाँ श्रीराम का बनाया हुआ एक मन्दिर खण्डहर रूप में विद्यमान है। पंचवटी का वर्णन 'रामचरितमानस', 'रामचन्द्रिका', 'साकेत', 'पंचवटी' एवं 'साकेत-सन्त' आदि प्राय: सभी रामकथा सम्बन्धी काव्यों में मिलता है।

नामकरण

मरीच का वध पंचवटी के निकट ही मृगव्याधेश्वर में हुआ था। गृघराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। पंचवटी के नामकरण का कारण पंचवटों की उपस्थिति कही जाती है- 'पंचानां वटानां समाहार इति पंचवटी'। ये पंचवट इस प्रकार हैं-

  1. अश्वत्थ
  2. आमलक
  3. वट
  4. विल्ब
  5. अशोक

महाकाव्यों में उल्लेख

वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड[1] में पंचवटी का मनोहर वर्णन है, जिसका एक अंश इस प्रकार है-

'अयं पंचवटी देश: सौम्य पुष्पितकानन:, यथा ख्यातमगस्त्येन मुनिना भावितात्मना। इयं गोदावरी रम्या पुष्पितैस्तरुभिवृंता, हंसकारंडवाकीर्णा चक्रवाकोपशोभिता। नातिन्दूरे चासन्ने मृग यूथ निपीडिता। मयूरनादित रम्या: प्रांशवो बहुकंदरा:, दृश्यन्ते गिरय: सौम्या: फुल्लैस्तरुभिरावृत्ता। सौवर्ण: राजतैस्ताभ्रैर्देशेदेशे तथा शुभे: गवाक्षिता इव भान्ति गजा: परमभक्तिभि:'[2].

उपर्युक्त उद्धरणों से ज्ञात होता है कि पंचवटी गोदावरी नदी के तट पर स्थित थी।

  • कालिदास ने रघुवंश में कई स्थानों पर पंचवटी का वर्णन किया है-

'आनन्दयत्युन्मुखकृष्णसारा दृष्टाचिरात् पंचवटी मनो में[3]

'पंचवट्यां ततोराम: शासनात् कृंभजन्मन: अनषोढस्थितिस्तस्थौ विंध्याद्रिप्रकृताविव'[4]

'अत्रानुगोदं मृगया निवृत्तस्तरंगत्रातेन विनीतखेद: रहस्यदुत्संग निषण्णमूर्धा स्मरामि वानीरगृहेषु सुप्त:'।

  • भवभूति ने उत्तर रामचरित, द्वितीय अंक में पंचवटी का श्रीराम के द्वारा उनकी पूर्व स्मृति जनित उद्वेग के कारण करुणाजनक वर्णन किया है-

'अत्रैव सा पंचवटी यत्र चिरनिवासेन दिविधविस्रम्भातिप्रसंगसाक्षिण: प्रदेशा: प्रिपाया: प्रियसखी च वासंती नाम वन देवता:, 'यस्यां ते दिवसास्तया सह मयानीता यथा स्वेगृहे, यत्संबंध कथा भिरेव सततं दीर्घाभिरास्थीयत। एक: संप्रतिनाशित प्रियतमस्तामेव राम: कथं, पाप: पंचवटी विलोकयतु वा गच्छत्व संभाव्य वा'।

'हे प्रभु परम मनोहर ठाऊं, पावन पंचवटी तेहि नाऊं। दंडक वन पुनीत प्रभु करहू, उप्रशाप मुनिवर के हरहू। चले राम मुनि आयुस पाई, तुरतहि पंचवटी नियराई। गृधराज सों भेंट भई बहुविधि प्रीति दृढ़ाय, गोदावरी समीप प्रभु रहे पर्णगृह छाय'।

पंचवटी जनस्थान या दंडक वन में स्थित थी। पंचवटी या नासिक से गोदावरी का उद्गम स्थान त्र्यंम्बकेश्वर लगभग 20 मील (लगभग 32 कि.मी.) दूर है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड 15
  2. वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड 15, 2-12-13-14-15
  3. 'रघुवंश 13, 34.
  4. रघुवंश 12, 31 (इस श्लोक में वाल्मीकि रामायण अरण्यकांड 15, 12 के समान ही, अगस्त्य ऋषि की आज्ञानुसार श्री राम का पंचवटी में जाकर रहना कहा गया है)।
  5. रघुवंश 13, 35
  6. वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड 3, 48

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