शील विमर्श: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "{{बौद्ध दर्शन2}}" to "{{बौद्ध धर्म}}") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "{{बौद्ध दर्शन}}" to "") |
||
Line 15: | Line 15: | ||
{{अठारह बौद्ध निकाय}} | {{अठारह बौद्ध निकाय}} | ||
{{शील विमर्श}} | {{शील विमर्श}} | ||
[[Category:दर्शन कोश]] | [[Category:दर्शन कोश]] | ||
[[Category:बौद्ध दर्शन]] | [[Category:बौद्ध दर्शन]] |
Revision as of 06:46, 17 March 2011
जिन आचरणों के पालन से चित्त में शान्ति का अनुभव होता है, ऐसे सदाचरणों को सदाचार (शील) कहते हैं सामान्यतया आचरणमात्र को शील कहते हैं। चाहे वे अच्छे हों, चाहे बुरे, फिर भी रूढ़ि से सदाचार ही शील कहे जाते हैं किन्तु केवल सदाचार का पालन करना ही शील नहीं है, अपितु बुरे आचरण भी 'शील' (दु:शील) हैं अच्छे और बुरे आचरण करने के मूल में जो उन आचरणों को करने को प्रेरणा देने वाली एक प्रकार की भीतरी शक्ति होती है, उसे चेतना कहते हैं। वह चेतना ही वस्तुत: 'शील' है। इसके अतिरिक्त चैतसिक 'शील' संवरशील और अव्यतिक्रम शील- ये तीन शील और होते हैं-
- चेतना शील
- चैतसिक शील
- संवर शील
- अव्यतिक्रम शील
- चारित्त शील
- वारित्त शील
- नित्य शील
- अष्टाङ्ग शील
- दश शील
- चातुपरिशुद्धि शील