अनमोल वचन 4: Difference between revisions
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* साधारण लोग अपनी हर बुराई का दोषी कि और को ठहराते हैं, अल्पज्ञानी स्वयं को पर ज्ञानी किसी को नहीं। - इपिक्टेतस | * साधारण लोग अपनी हर बुराई का दोषी कि और को ठहराते हैं, अल्पज्ञानी स्वयं को पर ज्ञानी किसी को नहीं। - इपिक्टेतस | ||
* मूर्ख आदमी अपने बड़े से बड़े दोष अनदेखा करता है किन्तु दुसरे के छोटे से छोटे दोष को देखता है। - संस्कृत सूक्ति | * मूर्ख आदमी अपने बड़े से बड़े दोष अनदेखा करता है किन्तु दुसरे के छोटे से छोटे दोष को देखता है। - संस्कृत सूक्ति | ||
==धीरज== | ==धीरज== | ||
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* नीच को देखने और उसकी बातें सुनाने से ही हमारी नीचता का आरम्भ होता है। - कन्फ्युसियास | * नीच को देखने और उसकी बातें सुनाने से ही हमारी नीचता का आरम्भ होता है। - कन्फ्युसियास | ||
==नेकी | ==नेकी== | ||
* नेकी कर दरिया में डाल। - कहावत | * नेकी कर दरिया में डाल। - कहावत | ||
* मधुमक्खियाँ केवल अँधेरे में काम करती है। विचार केवल मौन में काम आते हैं, नेक कार्य भी गुप्त रहकर ही कारगर होते हैं। - कार्लाइल | * मधुमक्खियाँ केवल अँधेरे में काम करती है। विचार केवल मौन में काम आते हैं, नेक कार्य भी गुप्त रहकर ही कारगर होते हैं। - कार्लाइल | ||
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* जिन्हें हम हीन या नीच बनाये रखते है वो भी क्रमशः हमें हेय और दीन बना देता हैं। - टैगोर | * जिन्हें हम हीन या नीच बनाये रखते है वो भी क्रमशः हमें हेय और दीन बना देता हैं। - टैगोर | ||
* गुलामी में रखना इंसान के शान के खिलाफ है, जिस गुलाम को अपनी दशा का मान है और फिर भी जंजीरों को तोड़ने का प्रयास नहीं करता वह पशु से हीन है, अन्तः करण से प्रार्थना करनेवाला कभी गुलामी को बर्दास्त नहीं कर सकता। - महात्मा गाँधी | * गुलामी में रखना इंसान के शान के खिलाफ है, जिस गुलाम को अपनी दशा का मान है और फिर भी जंजीरों को तोड़ने का प्रयास नहीं करता वह पशु से हीन है, अन्तः करण से प्रार्थना करनेवाला कभी गुलामी को बर्दास्त नहीं कर सकता। - महात्मा गाँधी | ||
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==आपकी कीमत Your Value== | ==आपकी कीमत Your Value== | ||
* सिक्के हमेशा आवाज करते हैं मगर नोट हमेशा खामोश रहते हैं। इसलिए, जब आपकी कीमत बढ़े तो शांत रहिये। अपनी हैसियत का शोर मचाने का जिम्मा आपसे कम कीमत वालों के लिए है। | * सिक्के हमेशा आवाज करते हैं मगर नोट हमेशा खामोश रहते हैं। इसलिए, जब आपकी कीमत बढ़े तो शांत रहिये। अपनी हैसियत का शोर मचाने का जिम्मा आपसे कम कीमत वालों के लिए है। | ||
* पैसा आपका दास है अगर आप उसका उपयोग जानते हैं, वह आपका स्वामी है अगर आप उसका उपयोग नहीं जानते है। -होरेस | * पैसा आपका दास है अगर आप उसका उपयोग जानते हैं, वह आपका स्वामी है अगर आप उसका उपयोग नहीं जानते है। - होरेस | ||
==पर्यावरण Environment== | ==पर्यावरण Environment== | ||
Line 659: | Line 645: | ||
* प्रकृति को बुरा-भला न कहो। उसने अपना कर्तव्य पूरा किया, तुम अपना करो। - मिल्टन | * प्रकृति को बुरा-भला न कहो। उसने अपना कर्तव्य पूरा किया, तुम अपना करो। - मिल्टन | ||
* हमारा पर्यावरण हमारे रवैये और अपेक्षाओं का आइना होता है। - अर्ल नाइटेंगल | * हमारा पर्यावरण हमारे रवैये और अपेक्षाओं का आइना होता है। - अर्ल नाइटेंगल | ||
==परिश्रम Hardwork== | ==परिश्रम Hardwork== | ||
* कठोर परिश्रम से मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर सकता है। -चार्वाक | * कठोर परिश्रम से मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर सकता है। - चार्वाक | ||
* न रगड़ के बिना रत्न पर पालिश होती है, न कठिनाइयों के बिना मानव में पूर्णता आती है। -लाओ रसे | * न रगड़ के बिना रत्न पर पालिश होती है, न कठिनाइयों के बिना मानव में पूर्णता आती है। - लाओ रसे | ||
* लक्ष्मी उद्यमी पुरूष के पास ही रहती है। -सुभाषित | * लक्ष्मी उद्यमी पुरूष के पास ही रहती है। - सुभाषित | ||
* संयम और परिश्रम मनुष्य के दो सर्वोत्तम चिकित्सक हैं। | * संयम और परिश्रम मनुष्य के दो सर्वोत्तम चिकित्सक हैं। | ||
* आप कुछ भी कर पाने में सक्षम हैं चाहे वह आपकी सोच हो, आपका जीवन हो या आपके सपने हों, सब सच हो सकते | * आप कुछ भी कर पाने में सक्षम हैं चाहे वह आपकी सोच हो, आपका जीवन हो या आपके सपने हों, सब सच हो सकते हैं। आप जो चाहें वह कर सकते हैं। आप इस अनंत ब्रह्माण्ड की तरह ही अनंत संभावनाओं से परिपूर्ण हैं। - शेड हेल्म्स्तेटर | ||
* आलस्यं हि मनुष्याणाम शरीरस्थो महारिपुह | * आलस्यं हि मनुष्याणाम शरीरस्थो महारिपुह (मनुष्य शरीर का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य हि है)। | ||
मनुष्य शरीर का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य हि है | * परिश्रम करने से ही कार्य सिद्ध होते है, केवल इच्छा करने से नहीं। - हितोपदेश | ||
* मरते दम तक तू अपने पसीने की कमाई की रोटी खाना। - बाइबल | |||
* मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र उसकी दस उंगलियाँ हैं। - राबर्ट कोलियर | |||
* मानव सुख जीवन में है और जीवन परिश्रम में है। - अज्ञात | |||
==महापुरुष Great Soul== | ==महापुरुष Great Soul== | ||
* सज्जन पुरूष बादलों के सामान कुछ देने के लिए ही ग्रहण करते हैं। - कालिदास | * सज्जन पुरूष बादलों के सामान कुछ देने के लिए ही ग्रहण करते हैं। - कालिदास | ||
* महापुरुष इस दुनिया से जाने पर ऐसी ज्योति छोड़ जाते हैं, जो उनके दुनिया से जाने के बाद भी कई युगों तक जगमगाती रहती है। - लांङ्गफेलो | * महापुरुष इस दुनिया से जाने पर ऐसी ज्योति छोड़ जाते हैं, जो उनके दुनिया से जाने के बाद भी कई युगों तक जगमगाती रहती है। - लांङ्गफेलो | ||
* जैसे सूर्य आकाश में छिप कर नहीं रह सकता, वैसे ही मार्ग दिखलाने वाले महापुरुष भी संसार में छिपकर नहीं रह | * जैसे सूर्य आकाश में छिप कर नहीं रह सकता, वैसे ही मार्ग दिखलाने वाले महापुरुष भी संसार में छिपकर नहीं रह सकते। - वेदव्यास (महाभारत, वन पर्व)) | ||
==सत्य Truth== | ==सत्य Truth== | ||
* एक ईश्वर के अलावा सबकुछ असत्य है। - मुण्डक उपनिषद् | * एक ईश्वर के अलावा सबकुछ असत्य है। - मुण्डक उपनिषद् | ||
* ईश्वर प्रत्येक मनुष्य को सच और झूठ में एक को चुनने का अवसर देता है। -इमर्सन | * ईश्वर प्रत्येक मनुष्य को सच और झूठ में एक को चुनने का अवसर देता है। - इमर्सन | ||
==जीनियस Genius== | ==जीनियस Genius== | ||
* यदि आप अपने बच्चे को जीनियस बनाना चाहते हैं तो उसे परियों की कहानियां सुनाइए | * यदि आप अपने बच्चे को जीनियस बनाना चाहते हैं तो उसे परियों की कहानियां सुनाइए, और अगर और अधिक जीनियस बनाना चाहें तो उसे और अधिक परियों की कहानियां सुनाइए। - अल्बर्ट आइन्स्टाइन | ||
==सत्संग Satsang== | ==सत्संग Satsang== | ||
* कबीरा संगत साधु की, हरै और की | * कबीरा संगत साधु की, हरै और की व्याधि। | ||
संगत बुरी असाधु की आठो पहर | संगत बुरी असाधु की आठो पहर उपाधि। - कबीर | ||
==मौन (Maun)== | ==मौन (Maun)== | ||
* वाणी चांदी है तो मौन सोना | * वाणी चांदी है तो मौन सोना है। | ||
* सुनना एक कला है | * सुनना एक कला है, इस कला के लिए कान और ध्यान दोनों चाहिए। | ||
* व्यर्थ सुनने वालों से बचना भी एक कला | * व्यर्थ सुनने वालों से बचना भी एक कला है। | ||
* व्यर्थ की बातों से खुद को बचाना भी एक कला | * व्यर्थ की बातों से खुद को बचाना भी एक कला है। | ||
* बीती बातों को भूलने का सर्वोत्तम तरीका है हमेश नई और रचनात्मक बातें सुनना व सोचना या उसमें रमण | * बीती बातों को भूलने का सर्वोत्तम तरीका है हमेश नई और रचनात्मक बातें सुनना व सोचना या उसमें रमण करना। | ||
* वाणी से सुनने के अलावा हम वक्ता से निकलने वाली अदृश्य तरंगो से भी बहुत कुछ सुनते हैं | * वाणी से सुनने के अलावा हम वक्ता से निकलने वाली अदृश्य तरंगो से भी बहुत कुछ सुनते हैं, यह अधिक प्रभावशाली होता है, इसी को मौन की भाषा कहते हैं। - विजय कुमार सिंह | ||
* मौन से मतलब वाणीविहीन बनना नहीं | * मौन से मतलब वाणीविहीन बनना नहीं हैं। सही समय पर सही बात कहना, बडबोलेपन से बचना भी मौन है। - कानन झिंगन | ||
==धर्म (Dharm) Religion== | ==धर्म (Dharm) Religion== | ||
* जो दृढ राखे धर्म को, नेहि राखे | * जो दृढ राखे धर्म को, नेहि राखे करतार। | ||
* जहाँ धर्म नहीं, वहां विद्या, | * जहाँ धर्म नहीं, वहां विद्या, लक्ष्मी। स्वास्थ्य आदि का भी अभाव होता है। | ||
धर्मरहित स्थिति में बिलकुल शुष्कता होती है, | धर्मरहित स्थिति में बिलकुल शुष्कता होती है, शून्यता होती है। - महात्मा गाँधी | ||
* पर हित सरिस धर्म नहिं | * पर हित सरिस धर्म नहिं भाई। पर-पीड़ा सम नहिं अधमाई। - संत तुलसीदास | ||
* मनुष्य की धार्मिक वृत्ति ही उसकी सुरक्षा करती | * मनुष्य की धार्मिक वृत्ति ही उसकी सुरक्षा करती है। - आचार्य तुलसी | ||
* धर्मो रक्षति रक्षतः अर्थात मनुष्य धर्म की रक्षा करे तो धर्म भी उसकी रक्षा करता | * धर्मो रक्षति रक्षतः अर्थात मनुष्य धर्म की रक्षा करे तो धर्म भी उसकी रक्षा करता है। - महाभारत | ||
* धार्मिक व्यक्ति दुःख को सुख में बदलना जानता | * धार्मिक व्यक्ति दुःख को सुख में बदलना जानता है। - आचार्य तुलसी | ||
* धार्मिक वृत्ति बनाये रखने वाला व्यक्ति कभी दुखी नहीं हो सकता और धार्मिक वृत्ति को खोने वाला कभी सुखी नहीं हो | * धार्मिक वृत्ति बनाये रखने वाला व्यक्ति कभी दुखी नहीं हो सकता और धार्मिक वृत्ति को खोने वाला कभी सुखी नहीं हो सकता। - आचार्य तुलसी | ||
* प्रलोभन और भय का मार्ग बच्चों के लिए उपयोगी हो सकता | * प्रलोभन और भय का मार्ग बच्चों के लिए उपयोगी हो सकता है। लेकिन सच्चे धार्मिक व्यक्ति के दृष्टिकोण में कभी लाभ हानि वाली संकीर्णता नहीं होती। - आचार्य तुलसी | ||
* शांति से बढकर कोई ताप नहीं, संतोष से बढकर कोई सुख नहीं, तृष्णा से बढकर कोई व्याधि नहीं और दया के सामान कोई धर्म नहीं। - चाणक्य | |||
* हर अवसर और हर अवस्था में जो अपना कर्त्तव्य दिखाई दे उसी को धर्म समझ कर पूरा करना चाहिए। - गीता | |||
* धर्म एक भ्रमात्मक सूर्य है जो मनुष्य के गिर्द धूमता रहता है जब तक मनुष्य मनुष्यता के गिर्द नहीं घूमता। - कार्ल मार्क्स | |||
* दो धर्मो का कभी झगड़ा नहीं होता, सब धर्मो का अधर्म से ही झगड़ा होता है। - विनोबा | |||
* धर्म परमेश्वर कि कल्पना कर मनुष्य को दुर्बल बना देता है, उसमे आत्मविश्वास उत्पन्न नहीं होने देता और उसकी स्वतंत्रता का अपरहण करता है। - नरेन्द्र देव | |||
Revision as of 16:07, 10 October 2011
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- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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