पिंडोल भारद्वाज: Difference between revisions
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'''पिंडोल भारद्वाज''' [[महात्मा बुद्ध]] के समय 'बुद्ध संघ' का प्रमुख भिक्षु था। वह कई विद्याओं में पारंगत था। पिंडोल | '''पिंडोल भारद्वाज''' [[महात्मा बुद्ध]] के समय 'बुद्ध संघ' का प्रमुख भिक्षु था। वह कई विद्याओं में पारंगत था। पिंडोल भारद्वाज को [[मन्त्र]] शक्ति द्वारा उड़ने की कला भी प्राप्त थी। [[चन्दन]] के एक पात्र को पाने के लिए उसने अपनी मन्त्र शक्ति का प्रदर्शन किया। बुद्ध ने इस प्रकार एक पात्र को प्राप्त करने के लिए पिंडोल द्वारा किये गए मन्त्र प्रदर्शन को अनुचित ठहराया और उसे उसकी ग़लती का एहसास कराया। बाद में बुद्ध ने भिक्षुओं के चमत्कारों पर पूर्णत: रोक लगा दी। | ||
*एक दिन [[राजगृह]] के 'श्रेष्ठी' (प्रतिष्ठित व्यवसायी या महाजन) को चन्दन की बड़ी गाँठ पड़ी मिली। | *एक दिन [[राजगृह]] के 'श्रेष्ठी' (प्रतिष्ठित व्यवसायी या महाजन) को चन्दन की बड़ी गाँठ पड़ी मिली। |
Revision as of 07:11, 16 December 2011
पिंडोल भारद्वाज महात्मा बुद्ध के समय 'बुद्ध संघ' का प्रमुख भिक्षु था। वह कई विद्याओं में पारंगत था। पिंडोल भारद्वाज को मन्त्र शक्ति द्वारा उड़ने की कला भी प्राप्त थी। चन्दन के एक पात्र को पाने के लिए उसने अपनी मन्त्र शक्ति का प्रदर्शन किया। बुद्ध ने इस प्रकार एक पात्र को प्राप्त करने के लिए पिंडोल द्वारा किये गए मन्त्र प्रदर्शन को अनुचित ठहराया और उसे उसकी ग़लती का एहसास कराया। बाद में बुद्ध ने भिक्षुओं के चमत्कारों पर पूर्णत: रोक लगा दी।
- एक दिन राजगृह के 'श्रेष्ठी' (प्रतिष्ठित व्यवसायी या महाजन) को चन्दन की बड़ी गाँठ पड़ी मिली।
- उसने बढ़ई से कहकर एक पात्र बनवाया, और उसे छींके में रखकर बाँस की नोक में अटका दिया।
- फिर एक, दो, तीन बाँस जोड़कर आसमान की ओर बढ़ा दिया और घोषणा करवा दी, कि जो भी इस चन्दन पात्र को ऊपर उड़कर नीचे लाएगा, वह उसे अर्हत् मान लेगा।
- बुद्ध श्रमण पिंडोल भारद्वाज कभी तांत्रिक था, और वह मंत्रशक्ति में पारन्गत होने के कारण उड़ सकता था।
- पिंडोल भारद्वाज से रहा नहीं गया, और वह भीड़ में निकल कर आकाश की ओर उछला और उड़कर चन्दन का पात्र बाँस के छोर से उतारकर ले आया।
- श्रेष्ठी और उपस्थित जन समुदाय ने उसकी जय जयकार की।
- बुद्ध को अब ज्ञात हुआ, तो उन्हें बड़ा दुख हुआ।
- महात्मा बुद्ध ने पिंडोल भिक्षु को फटकार लगाई कि एक मामूली चन्दन के टुकड़े के लिए चमत्कार दिखाने, आकाश में उड़ने, प्रदर्शन करने की क्या आवश्यकता थी?
- पिंडोल ने अपनी ग़लती मान ली, और तभी से बुद्ध ने भिक्षुओं के चमत्कार प्रदर्शन पर रोक लगा दी।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 491 |
- ↑ बुद्ध चरित, 1, 18