शाप और प्रतिज्ञा -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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Revision as of 07:45, 4 October 2012
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20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश शाप और प्रतिज्ञा -आदित्य चौधरी "आपका शाप मुझे तब तक हानि नहीं पहुँचा सकता माते! जब तक कि मैं उसे स्वीकार न कर लूँ। मैं साक्षात् ईश्वर हूँ और आप नश्वर, मृत्युलोक की शरीरधारी स्त्री मात्र, तदैव आपका शाप, द्वापर युग में अवतरित मेरे सोलह अंशों के पूर्णावतार, अर्थात समस्त सोलह कलाओं से युक्त अवतार, 'कृष्ण' को प्रभावित करने में सक्षम नहीं होगा, फिर भी आप निश्चिंत रहें, मेरी कोई आयोजना ऐसी नहीं जिससे मैं अपनी उपस्थिति को एक माँ से श्रेष्ठ स्थापित करने का प्रयत्न करूँ। इसलिए माते! मैं आपके शाप को विनम्रता से स्वीकार करता हूँ। अब यदुकुल वंश का समूल नाश वैसे ही होना अवश्यंभावी है जैसा आपके शाप में संकल्पित है।" गांधारी ने अपने सभी पुत्रों के मारे जाने पर कृष्ण को शाप दिया कि उनके कुल-वंश का समूल नाश हो जाएगा और पौराणिक संदर्भ और मान्यताएँ ऐसा ही कहती हैं कि कालांतर में ऐसा ही हुआ।
इन्हीं प्रतिज्ञाओं के सिलसिले में अर्जुन ने भी एक ऐसी प्रतिज्ञा की जिससे महाभारत युद्ध का परिणाम कौरवों के पक्ष में जा सकता था। अभिमन्यु के अमानवीय वध के उपरांत अर्जुन ने सूर्यास्त से पहले ही जयद्रथ को मारने का संकल्प लिया अन्यथा अपने प्राण त्यागने की प्रतिज्ञा की। पूरा दिन निकल जाने पर भी जब जयद्रथ नहीं मिला तो कृष्ण ने सूर्य को बादलों के पीछे ढक कर रात का आभास करा दिया और अर्जुन की आत्मबलि देखने के लिए जयद्रथ भी आ पहुँचा। कृष्ण ने सूर्य के सामने से बादल हटा दिए और जयद्रथ का वध करके अर्जुन ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। ज़रा सोचिए कि अपनी प्रतिज्ञा न पूरी कर पाने के कारण अर्जुन मारा जाता तो ? महाभारत का परिणाम क्या होता! पुत्र मोह में अर्जुन की प्रतिज्ञा पूरा समीकरण बदल सकती थी। यह प्रतिज्ञा भी स्वार्थ से वशीभूत थी।
ये प्रतिज्ञाएँ क्यों होती थीं ? क्या मानसिकता कार्य करती थी इनके पीछे ? क्या ऐसा नहीं लगता कि जब हमें अपने ऊपर किसी कार्य को कर पाने का विश्वास नहीं होता, तभी प्रतिज्ञा की जाती है। यदि महाभारत के प्रसंगों को ही देखें तो पता चलता है कि कृष्ण ने कोई प्रतिज्ञा नहीं की और एक की भी थी तो वह भी भीष्म ने युद्ध में अस्त्र उठवाकर तुड़वा दी थी। सहज रूप से जीवन जीने वाले कृष्ण को किसी प्रतिज्ञा की आवश्यकता थी भी नहीं। यहाँ तक कि कृष्ण ने जो महाभारत में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की थी वह भी किसी निजी स्वार्थ के चलते नहीं की थी।
प्रतिज्ञा, शपथ, वचन आदि सारी बातें मनुष्य के कमज़ोर पक्ष को उजागर करती हैं। कहीं सुना है कि किसी मां को यह प्रतिज्ञा दिलाई जाती हो कि वह अपने बच्चे को अवश्य पालेगी ? ऐसी कोई प्रतिज्ञा नहीं होती क्योंकि यह प्रकृति की एक सामान्य प्रक्रिया है। वचनों की प्रक्रिया तो मनुष्य निर्मित नियमों को मानने में लागू होती है, जैसे विवाह संस्था, नौकरी, न्यायप्रक्रिया आदि। हिन्दू विवाह में पति पत्नी द्वारा सात वचन निभाने की प्रक्रिया होती है क्योंकि यह उतना अटूट रिश्ता नहीं है जितना माता और संतान का। इसलिए वचन निबाहने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। |
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