अल्फ़्रेड पार्क: Difference between revisions

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Revision as of 12:41, 21 July 2013

अल्फ़्रेड पार्क, जिसे अब भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद के नाम पर 'चन्द्रशेखर आज़ाद पार्क' के नाम से जाना जाता है, इलाहाबाद का सबसे बड़ा पार्क है। यह पार्क 133 एकड़ में फैला हुआ है। अल्फ़्रेड पार्क 'भारतीय इतिहास' की कई युगांतरकारी घटनाओं का गवाह रहा है। इसी पार्क में महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। पार्क में उत्तर प्रदेश की सबसे पुरानी और बड़ी जीवन्त गाथिक शैली में बनी पब्लिक लाइब्रेरी भी है, जहाँ पर ब्रिटिश युग के महत्वपूर्ण संसदीय कागज़ात रखे हुए हैं।

इतिहास

अल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद का सबसे बड़ा पार्क है। राजकुमार अल्फ़्रेड ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा के इलाहाबाद आगमन को यादगार बनाने हेतु इसका निर्माण किया गया था। पार्क के अंदर राजा जार्ज पंचम और महारानी विक्टोरिया की विशाल प्रतिमा भी लगाई गई थी। इसमें महारानी विक्टोरिया को समर्पित सफ़ेद रंग के मार्बल की छतरी बनी हुई है। पार्क में अष्टकोणीय बैण्ड स्टैण्ड है, जहाँ अंग्रेज़ सेना का बैण्ड बजाया जाता था। इस बैण्ड स्टैण्ड के इतालियन संगमरमर की बनी स्मारिका के नीचे ही महारानी विक्टोरिया की भव्य मूर्ति थी, जिसे 1957 में हटा दिया गया। अल्फ़्रेड पार्क में उत्तर प्रदेश की सबसे पुरानी और बड़ी जीवन्त गाथिक शैली में बनी पब्लिक लाइब्रेरी भी है, जहाँ पर ब्रिटिश युग के महत्वपूर्ण संसदीय कागज़ात रखे हुए हैं। पार्क के अंदर ही 1931 में इलाहाबाद महापालिका द्वारा स्थापित संग्रहालय भी है। इस संग्रहालय को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1948 में अपनी काफ़ी वस्तुयें भेंट की थीं।

चन्द्रशेखर आज़ाद की शहादत

इस पार्क में ही चन्द्रशेखर आज़ाद ने अंग्रेज़ पुलिस से हुई मुठभेड़ के दौरान शहादत पाई थी। भारत के एक और अन्य प्रसिद्ध क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में चन्द्रशेखर आज़ाद ने 'काकोरी षडयंत्र' (1925) एवं 'साण्डर्स गोलीकांड' (1928) में सक्रिय भूमिका निभाई थी। अल्फ़्रेड पार्क में 1931 में आज़ाद ने रूस की बोल्शेविक क्राँति की तर्ज पर समाजवादी क्राँति का आह्वान किया था। आज़ाद ने भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों के साथ देश की आज़ादी के लिए संगठित हो प्रयास शुरू किए थे।

'काकोरी काण्ड' के बाद जब चन्द्रशेखर आज़ाद 27 फ़रवरी, 1931 को इलाहाबाद के अल्फ़्रेड पार्क में बैठे अपने मित्र सुखदेव राय से मंत्रणा कर रहे थे, तभी उन्हें घेर लिया गया। एक गद्दार देशद्रोही की गुप्त सूचना पर सी.आई.डी. का एस.एस.पी. नॉट बाबर जीप से वहाँ आ पहुँचा। उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में कर्नलगंज थाने से पुलिस भी आ गयी। चन्द्रशेखर आज़ाद ने अपने साथियों को तुरन्त ही वहाँ से निकल जाने को कहा। दोनों ओर से भयंकर गोलीबारी हुई। जब आज़ाद के पास सिर्फ एक गोली रह गयी तो उन्होंने अपने को आजीवन आज़ाद रखने की कसम को निभाते हुये आखिरी गोली अपनी कनपटी पर मार ली और शहीद हो गए। यह घटना हमेशा के 'भारतीय इतिहास' में दर्ज हो गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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