वज्रयोगिनी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
Line 4: Line 4:
इस पद्धति का अर्थ है कि किसी व्यक्ति के सामान्य जीवन से ली गई छवियाँ मानव अस्तित्त्व को गहराई से समझने का माध्यम बन जाती हैं, जिसमें ‘उपाय और प्रज्ञा’ एक-दूसरे को बल देती हैं।
इस पद्धति का अर्थ है कि किसी व्यक्ति के सामान्य जीवन से ली गई छवियाँ मानव अस्तित्त्व को गहराई से समझने का माध्यम बन जाती हैं, जिसमें ‘उपाय और प्रज्ञा’ एक-दूसरे को बल देती हैं।
==प्रतिमा में वज्रयोगिनी==
==प्रतिमा में वज्रयोगिनी==
प्रतिमाओं में वज्रयोगिनी सामान्यतः विकराल रूप में दर्शाई जाती हैं, उनके हाथों में कटार और कपाल होते हैं। उनका दायाँ पैर बाहर को खिंचा रहता है और बायाँ पैर थोड़ा सा मुड़ा हुआ (अलिद्ध) रहता है। उनके चारों ओर श्मशान भूमि होती है, जो यह इंगित करती है कि कृत्रिमता को तोड़े-मरोड़े बिना ही समृद्ध संसार व दृष्टि की तुलना में बाह्यजगत मृत है, इसमें कल्पनाओं को तोड़ा नहीं जाता। यद्यपि उन्हें अकेला दिखाया जाता है, परंतु सामान्यतः वे (यब्-युम् ) हेरूका के साथ होती है।
प्रतिमाओं में वज्रयोगिनी सामान्यतः विकराल रूप में दर्शाई जाती हैं, उनके हाथों में कटार और [[कपाल]] होते हैं। उनका दायाँ पैर बाहर को खिंचा रहता है और बायाँ पैर थोड़ा सा मुड़ा हुआ (अलिद्ध) रहता है। उनके चारों ओर श्मशान भूमि होती है, जो यह इंगित करती है कि कृत्रिमता को तोड़े-मरोड़े बिना ही समृद्ध संसार व दृष्टि की तुलना में बाह्यजगत मृत है, इसमें कल्पनाओं को तोड़ा नहीं जाता। यद्यपि उन्हें अकेला दिखाया जाता है, परंतु सामान्यतः वे (यब्-युम् ) हेरूका के साथ होती है।
{{लेख प्रगति  
 
|आधार=
{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक2|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध=}}
|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक2
 
|माध्यमिक=  
|पूर्णता=  
|शोध=
}}
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{बौद्ध धर्म}}
{{बौद्ध धर्म}}

Revision as of 13:04, 4 August 2014

thumb|200px|वज्रयोगिनी
Vajrayogini
वज्रयोगिनी (तांत्रिक बौद्धमत) बोधत्त्व तक पहुँचाने वाली संज्ञानात्मक प्रक्रिया का साकार नारी स्वरूप है। वज्रयान अनुमान की अपेक्षा अनुभूति पर अधिक बल देता है, परंतु यह अनुमानिक दार्शनिक बौद्ध शब्दावली का कल्पनाशील प्रयोग करता है। व्रजयोगिनी को डाकिनी भी कहा गया है।

अर्थ

इस पद्धति का अर्थ है कि किसी व्यक्ति के सामान्य जीवन से ली गई छवियाँ मानव अस्तित्त्व को गहराई से समझने का माध्यम बन जाती हैं, जिसमें ‘उपाय और प्रज्ञा’ एक-दूसरे को बल देती हैं।

प्रतिमा में वज्रयोगिनी

प्रतिमाओं में वज्रयोगिनी सामान्यतः विकराल रूप में दर्शाई जाती हैं, उनके हाथों में कटार और कपाल होते हैं। उनका दायाँ पैर बाहर को खिंचा रहता है और बायाँ पैर थोड़ा सा मुड़ा हुआ (अलिद्ध) रहता है। उनके चारों ओर श्मशान भूमि होती है, जो यह इंगित करती है कि कृत्रिमता को तोड़े-मरोड़े बिना ही समृद्ध संसार व दृष्टि की तुलना में बाह्यजगत मृत है, इसमें कल्पनाओं को तोड़ा नहीं जाता। यद्यपि उन्हें अकेला दिखाया जाता है, परंतु सामान्यतः वे (यब्-युम् ) हेरूका के साथ होती है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख