तपती: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 13: | Line 13: | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | |||
{{कथा}} | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
Revision as of 11:14, 24 April 2011
सूर्य की कन्या का नाम तपती था। वह अत्यन्त गुणवती तथा सुन्दरी थी। सूर्य उसके समान कोई वर नहीं खोज पा रहे थे। उन्हीं दिनों ऋक्ष के पुत्र राजा संवरण सूर्य की उपासना कर रहे थे। एक दिन जंगल में शिकार करते समय उनका घोड़ा मारा गया, अत: वे पैदल ही इधर-उधर भटक रहे थे। तभी उन्हें तपती दिखाई पड़ी। तपती के सौन्दर्य पर वे इतने आसक्त हो गये कि मूर्च्छा ने उन्हें घेर लिया। पिता की आज्ञा लिए बिना तपती उनके प्रेम-निवेदन का उत्तर देने को तैयार नहीं थी। मूर्च्छित राजा को उनके मंत्री आदि उठाकर राज्य में ले गये। वे पुन: सूर्य की उपासना में रत हो गए। वसिष्ठ ने सूर्य से जाकर सब कुछ कह सुनाया तथा तपती से संवरण का विवाह हो गया।
विवाहोपरान्त उस युगल ने वहीं पर्वत पर बारह वर्ष तक विहार किया। उनकी अनुपस्थिति में राज्य का कार्यभार मंत्रियों पर था। बारह वर्ष तक इंद्र ने उनके राज्य में एक बूँद पानी भी नहीं बरसाया। अत: दुर्भिक्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई। वसिष्ठ ने अपने तपोबल से उस नगर में वर्षा की तथा प्रवासी संवरण और तपती को नगर में ले आये। इंद्र ने पूर्ववत वर्षा प्रारम्भ कर दी। संवरण तथा तपती ने 'कुरु' को जन्म दिया, जिससे कौरव वंश का सूत्रपात हुआ।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय मिथक कोश पृष्ठ संख्या-118