भक्तिमार्ग: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 4: Line 4:
#भक्तिमार्ग।  
#भक्तिमार्ग।  


इन मार्गों में [[गीता|भगवद गीता]] भक्तिमार्ग को सर्वोत्तम कहती है। इसका सरल अर्थ यह है कि सच्चे हृदय से संपादित भगवान की भक्ति पुनर्जन्म से उसी प्रकार मोक्ष दिलाती है, जैसे दार्शनिक ज्ञान एवं निष्काम योग दिलाते हैं। गीता <ref>गीता 12.6-7</ref> में [[श्रीकृष्ण]] का कथन है - "मुझ पर आश्रित होकर जो लोग सम्पूर्ण कर्मों को मेरे अर्पण करते हुए मुझ '''परमेश्वर''' को ही अनन्य भाव के साथ ध्यानयोग से निरन्तर चिन्तन करते हुए भजते हैं, मुझमें चित्त लगाने वाले ऐसे भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्यु रूप संसार [[सागर]] से उद्धार कर देता हूँ।"
इन मार्गों में [[गीता|भगवद गीता]] भक्तिमार्ग को सर्वोत्तम कहती है। इसका सरल अर्थ यह है कि सच्चे हृदय से संपादित भगवान की [[भक्ति]] पुनर्जन्म से उसी प्रकार मोक्ष दिलाती है, जैसे दार्शनिक ज्ञान एवं निष्काम योग दिलाते हैं। गीता <ref>गीता 12.6-7</ref> में [[श्रीकृष्ण]] का कथन है - "मुझ पर आश्रित होकर जो लोग सम्पूर्ण कर्मों को मेरे अर्पण करते हुए मुझ '''परमेश्वर''' को ही अनन्य भाव के साथ ध्यानयोग से निरन्तर चिन्तन करते हुए भजते हैं, मुझमें चित्त लगाने वाले ऐसे भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्यु रूप संसार [[सागर]] से उद्धार कर देता हूँ।"


बहुत से अनन्य प्रेमी '''भक्तिमार्गी''' शुष्क मोक्ष चाहते ही नहीं। वे भक्ति करते रहने को मोक्ष से बढ़कर मानते हैं। उनके अनुसार परम मोक्ष के समान परा भक्ति स्वयं फलरूपा है, वह किसी दूसरे फल का साधन नहीं करती है।  
बहुत से अनन्य प्रेमी '''भक्तिमार्गी''' शुष्क मोक्ष चाहते ही नहीं। वे भक्ति करते रहने को मोक्ष से बढ़कर मानते हैं। उनके अनुसार परम मोक्ष के समान परा भक्ति स्वयं फलरूपा है, वह किसी दूसरे फल का साधन नहीं करती है।  
Line 10: Line 10:
{{मुख्य|प्रपत्तिमार्ग}}
{{मुख्य|प्रपत्तिमार्ग}}
*प्रपत्तिमार्ग, भक्तिमार्ग का विकसित रूप है, जिसका प्रादुर्भाव दक्षिण [[भारत]] में 13वीं शताब्दी में हुआ।  
*प्रपत्तिमार्ग, भक्तिमार्ग का विकसित रूप है, जिसका प्रादुर्भाव दक्षिण [[भारत]] में 13वीं शताब्दी में हुआ।  
*[[देवता]] के प्रति क्रियात्मक प्रेम अथवा तल्लीनता को भक्ति कहते हैं, जबकि प्रपत्ति निष्क्रिय सम्पूर्ण आत्मसमर्पण है।  
*[[देवता]] के प्रति क्रियात्मक प्रेम अथवा तल्लीनता को [[भक्ति]] कहते हैं, जबकि प्रपत्ति निष्क्रिय सम्पूर्ण आत्मसमर्पण है।  


{{प्रचार}}
{{प्रचार}}

Revision as of 15:28, 9 May 2011

भक्तिमार्ग सगुण-साकार रूप में भगवान का भजन-पूजन करना होता है। मोक्ष के तीन साधन हैं-

  1. ज्ञानमार्ग
  2. कर्ममार्ग
  3. भक्तिमार्ग।

इन मार्गों में भगवद गीता भक्तिमार्ग को सर्वोत्तम कहती है। इसका सरल अर्थ यह है कि सच्चे हृदय से संपादित भगवान की भक्ति पुनर्जन्म से उसी प्रकार मोक्ष दिलाती है, जैसे दार्शनिक ज्ञान एवं निष्काम योग दिलाते हैं। गीता [1] में श्रीकृष्ण का कथन है - "मुझ पर आश्रित होकर जो लोग सम्पूर्ण कर्मों को मेरे अर्पण करते हुए मुझ परमेश्वर को ही अनन्य भाव के साथ ध्यानयोग से निरन्तर चिन्तन करते हुए भजते हैं, मुझमें चित्त लगाने वाले ऐसे भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्यु रूप संसार सागर से उद्धार कर देता हूँ।"

बहुत से अनन्य प्रेमी भक्तिमार्गी शुष्क मोक्ष चाहते ही नहीं। वे भक्ति करते रहने को मोक्ष से बढ़कर मानते हैं। उनके अनुसार परम मोक्ष के समान परा भक्ति स्वयं फलरूपा है, वह किसी दूसरे फल का साधन नहीं करती है।

प्रपत्तिमार्ग

  • प्रपत्तिमार्ग, भक्तिमार्ग का विकसित रूप है, जिसका प्रादुर्भाव दक्षिण भारत में 13वीं शताब्दी में हुआ।
  • देवता के प्रति क्रियात्मक प्रेम अथवा तल्लीनता को भक्ति कहते हैं, जबकि प्रपत्ति निष्क्रिय सम्पूर्ण आत्मसमर्पण है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गीता 12.6-7

संबंधित लेख