गन्ध -वैशेषिक दर्शन: Difference between revisions

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Latest revision as of 12:47, 30 August 2011

महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छ: पदार्थों का निर्देश किया और प्रशस्तपाद प्रभृति भाष्यकारों ने प्राय: कणाद के मन्तव्य का अनुसरण करते हुए पदार्थों का विश्लेषण किया।

गन्ध का स्वरूप

घ्राण इन्द्रिय द्वारा ग्रहण किये जाने योग्य गुण को गन्ध कहते हैं। सुगन्ध और दुर्गन्ध के भेद से यह दो प्रकार का होता है और केवल पृथ्वी में रहता है और अनित्य है। सुगन्ध और दुर्गन्ध गम्य हैं। नैयायिकों ने चित्रगन्ध की सत्ता को भी स्वीकार नहीं किया। जल में गन्ध का जो आभास होता है, वह पृथ्वी के संयोग के कारण संयुक्त समवाय सम्बन्ध से होता है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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