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Revision as of 12:37, 18 February 2012

thumb|250px|नेपाल के विभिन्न दृश्य भारत की उत्तरी सीमा के अंतर्गत पश्चिम में सतलुज नदी से पूर्व में सिक्किम तक लगभग 500 मील फैला हुआ स्वतंत्र राज्य है। इसकी राजधानी काठमांडू है। नेपाल 'पोखरा संस्कृति' और रोमांच का केंद्र भी है। हिमालय की तराई में बसा पोखरा नेपाल का प्रमुख पर्यटक स्थल है। पोखरा नेपाल के मशहूर ट्रैकिंग और रॉफ्टिंग स्थलों की ओर जाने का द्वार है।

इतिहास

  • तीसरी शताब्दी ई. पू. में यह भूभाग अशोक के साम्राज्य का एक अंग था।
  • चौथी शताब्दी ई. में नेपाल राज्य सम्राट समुद्रगुप्त की सार्वभौम सत्ता स्वीकार करता था।
  • सातवीं शताब्दी में इस पर तिब्बत का आधिपत्य हो गया। उपरान्त इस देश में आन्तरिक संघर्षों के कारण अत्यधिक रक्तपात हुआ।
  • ग्यारहवीं शताब्दी में नेपाल में ठाकुरी वंश के राजा राज्य करते थे।
  • इसके बाद जब नेपाल में मल्ल वंश, जिसका सबसे प्रसिद्ध शासक यक्षमल्ल, लगभग 1426 से 1475 ई., था, राज्य कर रहा था।

मिथिला के शासक नान्यदेव ने नेपाल पर अपना नाममात्र की प्रभुता स्थापित कर ली। यक्षमल्ल ने मृत्यु के पूर्व ही राज्य का बंटवारा अपने पुत्रों और पुत्रियों में कर दिया था। इस विभाजन के फलस्वरूप नेपाल, काठमांडू तथा भातगाँव के दो परस्पर प्रतिद्वन्दी राज्यों में बँट गया। इन झगड़ों का लाभ उठाकर पश्चिमी हिमालय के प्रदेशों में बसने वाली गोरखा जाति ने 1768 ई. में नेपाल पर अधिकार कर लिया। शनैः शनैः गोरखाओं ने अपनी सैनिक शक्ति में बुद्धि कर नेपाल को एक शक्तिशाली राज्य बना दिया। 19वीं शताब्दी में उन्होंने अपने राज्य की दक्षिणी सीमा बढ़ाकर ब्रिटिश भारत की उत्तरी सीमा से मिला दी। सीमा सामीप्य के कारण 1814-1815 ई. में नेपाल और अंग्रेज़ों में युद्ध हुआ, इस गोरखा युद्ध के उपरान्त दोनों देशों में 'सुगौली की सन्धि' हुई, जिसके अनुसार नेपाल ने अपने राज्य के कुछ भूभाग ब्रिटिश सरकार को दे दिए।thumb|200px|left|नेपाल का ध्वजसन्धि की एक धारा के अनुसार नेपाल की वैदेशिक नीति भारत की ब्रिटिश सरकार के द्वारा नियंत्रित होती रही। इस प्रकार कुछ प्रतिबन्धों के साथ नेपाल स्वतंत्र देश बना रहा। नेपाल के बहुसंख्यक लोग हिन्दू धर्म के अनुयायी हैं और अल्पसंख्या में बौद्ध धर्म के विकृत रूप के अनुयायी हैं। नेपाल में संस्कृत के बहुत से हस्तलिखित महत्त्वपूर्ण ग्रंथ उपलब्ध हुए हैं। नेपाल के वर्तमान शासक महाराज वीरेन्द्र हैं। उनके पिता स्वर्गीय महाराजा महेन्द्र ने नेपाल में एक नया संविधान प्रचलित किया था।

ग्रन्थों के अनुसार

महाभारत, वनपर्व[1] में नेपाल का उल्लेख कर्ण की दिग्विजय के सम्बन्ध में है। नेपाल देश में जो राजा थे, उन्हें जीत कर वह हिमालय पर्वत से नीचे उतर आया और फिर पूर्व की ओर अग्रसर हुआ। [2] इसके बाद कर्ण की अंग-वंग आदि पर विजय का वर्णन है। इससे ज्ञात होता है, कि प्राचीन काल में भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टियों से नेपाल को भारत का ही एक अंग समझा जाता था। नेपाल नाम भी महाभारत के समय में प्रचलित था। नेपाल में बहुत समय तक अनार्य जातियों का राज्य रहा। मध्ययुग में राजनीतिक सत्ता मेवाड़, राजस्थान के राज्यवंश की एक शाखा के हाथ में आ गई। राजपूतों की यह शाखा मेवाड़ से, मुसलमानों के आक्रमणों से बचने के लिए नेपाल में आकर बस गई थी। इसी क्षत्रिय वंश का राज्य आज तक नेपाल में चला आ रहा है। नेपाल के अनेक स्थान प्राचीन काल से अब तक हिन्दू तथा बौद्धों के पुण्यतीर्थ रहे हैं। लुम्बनी, पशुपतिनाथ आदि स्थान भारतवासियों के लिए भी उतने ही पवित्र हैं, जितने की नेपालियों के लिए हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, वनपर्व 254,7
  2. 'नेपाल विषये ये च राजानस्तानवाजयत् अवतीर्य तथा शैलात् पूर्वा दिशमभिद्रतः'

संबंधित लेख