बाँसखेड़ा: Difference between revisions
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इस अभिलेख में हर्ष द्वारा अहिछत्र भुक्ति के अंगदीया विषय के मर्कटसागर नामक गाँव को सभी करों से मुक्त करके दो [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] - बालचन्द्र और भट्टस्वामी को दान देने का उल्लेख है। इस अभिलेख में हर्ष की वंशावली भी दी गयी है, यद्यपि उसके मूलपुरुष पुष्यभूति का इसमें उल्लेख नहीं है। उसमें हर्ष के पूर्वज राजाओं के आराध्य [[देवता|देवों]] और व्यक्तिगत विश्वासों का भी संकेत है। हर्ष के पिता [[प्रभाकरवर्धन]] को इसमें वर्णाश्रम व्यवस्था को स्थिर करने वाला कहा गया है। | इस अभिलेख में हर्ष द्वारा अहिछत्र भुक्ति के अंगदीया विषय के मर्कटसागर नामक गाँव को सभी करों से मुक्त करके दो [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] - बालचन्द्र और भट्टस्वामी को दान देने का उल्लेख है। इस अभिलेख में हर्ष की वंशावली भी दी गयी है, यद्यपि उसके मूलपुरुष पुष्यभूति का इसमें उल्लेख नहीं है। उसमें हर्ष के पूर्वज राजाओं के आराध्य [[देवता|देवों]] और व्यक्तिगत विश्वासों का भी संकेत है। हर्ष के पिता [[प्रभाकरवर्धन]] को इसमें वर्णाश्रम व्यवस्था को स्थिर करने वाला कहा गया है। |
Revision as of 14:10, 6 March 2012
बाँसखेड़ा उत्तर प्रदेश में शाहजहाँपुर से लगभग 25 मील की दूरी पर स्थित है। इस स्थल से महाराज हर्षवर्धन (606 -647 ई.) का ताम्रदानपट्ट लेख सन् 1894 में प्राप्त हुआ। इसका समय 628 ई. है।
इतिहास
इस अभिलेख में हर्ष द्वारा अहिछत्र भुक्ति के अंगदीया विषय के मर्कटसागर नामक गाँव को सभी करों से मुक्त करके दो ब्राह्मणों - बालचन्द्र और भट्टस्वामी को दान देने का उल्लेख है। इस अभिलेख में हर्ष की वंशावली भी दी गयी है, यद्यपि उसके मूलपुरुष पुष्यभूति का इसमें उल्लेख नहीं है। उसमें हर्ष के पूर्वज राजाओं के आराध्य देवों और व्यक्तिगत विश्वासों का भी संकेत है। हर्ष के पिता प्रभाकरवर्धन को इसमें वर्णाश्रम व्यवस्था को स्थिर करने वाला कहा गया है।
प्राचीन अभिलेख
इस अभिलेख की अन्य विशेषता यह है कि इसमें हर्ष के प्रशासन के विभिन्न अंग अधिकारियों के पद एवं दान में दिये गाँवों पर लगने वाले करों आदि का उल्लेख है। इससे हर्ष के प्रशासन एवं आर्थिक मामलों पर प्रकाश पड़ता है। इसमें राज्यवर्धन द्वारा मालवराज देवगुप्त एवं अन्य राजाओं पर विजय का और शशांक का शत्रुगृह (शशांक के घर) में वध का भी उल्लेख है। इस अभिलेख की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इस पर हर्ष के हस्ताक्षरों की अनुलिपि उत्कीर्ण है, जिसका सुन्दर अक्षरों में अंत इस प्रकार है- स्वहस्तो मम महाराजाधिराज श्रीहर्षस्य। इस अभिलेख पर उस स्थान का नामोल्लेख (वर्धमानकोटि) भी है, जिस स्थान से यह जारी किया गया था।
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