ताज़िया: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) ('thumb|ताज़िया, [[मुहर्रम|मोहर्रम, [[उत्तर प...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 10: | Line 10: | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[https://www.youtube.com/watch?v=_yXhiCNtO10 Karbala Ka Safar by Imam hussain (as) Animation in urdu (यू-ट्यूब विडियो) ] | |||
*[https://www.youtube.com/watch?v=xl6GuDVxwl0 Women mourning - Muharram (यू-ट्यूब विडियो)] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{इस्लाम धर्म}} | {{इस्लाम धर्म}} |
Revision as of 11:32, 17 October 2014
[[चित्र:Muharram-Tazia.jpg|thumb|ताज़िया, मोहर्रम, उत्तर प्रदेश]] ताज़िया इमाम हुसैन के मक़बरे कई अनुकृति है जिसका जुलूस मुहर्रम में निकलता है। ताज़िया बाँस की खपच्चिय़ों पर रंग-बिरंगे काग़ज़, पन्नी आदि चिपका कर बनाया हुआ मक़बरे के आकार का वह मंडप जो मुहर्रम के दिनों में मुसलमान अथवा शिया लोग हज़रत इमाम हुसैन की कब्र के प्रतीक रूप में बनाते है और जिसके आगे बैठकर मातम करते और मासिये पढ़ते हैं। ग्यारहवें दिन जलूस के साथ ले जाकर इसे दफन किया जाता है। ताज़िया हज़रत इमाम हुसैन की याद में बनाए जाते हैं। इस्लाम में कुछ लोग इसकी आलोचना करते हैं लेकिन ये ताज़ियादारी बहुत शान से होती है। हिन्दू भी इसमें हिस्सा लेते है।
धार्मिक मान्यता
680 ई. में पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद के नाती और इस्लाम के चौथे ख़लीफ़ा हज़रत अली के बेटे हज़रत इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताज़िया निकाला जाता है और शोक मनाया जाता है। इमाम हुसैन को यज़ीद की फ़ौज ने करबला (इराक़ में स्थित) के मैदान में 10वीं मुहर्रम को शहीद कर दिया था। उसके बाद से इमाम हुसैन को सच्चाई के रास्ते में क़ुर्बानी का प्रतीक मान लिया गया जिन्होंने सच्चाई के लिए अपने साथ साथ सारे घर की क़ुर्बानी दे दी। उनकी शहादत पर जितना मातम हुआ है और जितने आंसू बहाए गए हैं उतने आंसू किसी एक व्यक्ति के लिए कभी नहीं बहाए गए। ताज़िया निकालने का चलन कब से शुरु हुआ यह पूरे विश्वास और सबूत के साथ नहीं बताया जा सकता है। इतना ज़रूर कहा जाता है कि इस परंपरा की शुरूआत तैमूर लंग के ज़माने (14वीं सदी) में मिलती है लेकिन अज़ादारी का जलूस उससे पहले भी निकलता रहा है। ताज़िए के साथ मातम मनाने के लिए जलूस निकलते हैं और हर जलूस का अपना एक अलम यानी झंडा होता है, एक ही शहर में सैकड़ों की संख्या में ताज़िए निकाले जाते हैं। और एक निश्चित स्थान जिसे करबला कहा जाता है वहाँ पर लोग अपने गाजे-बाजे के साथ हथियार चलाने के हुनर दिखाते हैं।
भारत में ताज़िया
भारत में मोहर्रम का सबसे भव्य जुलूस लखनऊ में निकाला जाता है। उसके आलावा यह भारतीय उपमहाद्वीप के साथ साथ दुनिया भर में मनाया जाता है जिसमें दिल्ली, बग़दाद, कर्बला, नजफ़, लेबनान, कोलकाता, लाहौर, मुल्तान, सूरत, जयपुर और हैदराबाद शामिल हैं। कहा जाता है कि तैमूर ने भारत की इस परंपरा से प्रभावित होकर ताज़िया बनवाया। भारत के इतिहास में हिंदुओं, आदिवासियों, भांडों और तवायफ़ों के अलग अलग ताज़ियों का वर्णन मिलता है। बिहार और उत्तर प्रदेश में कई स्थानों पर हिंदू ताज़िए के प्रति अपना सम्मान प्रकट करते हैं। लखनऊ के बड़े इमामबाड़े का लाटू साक़िन का ताज़िया, हुसैन टेकरी का ताज़िया, रोहड़ी का चार सौ साल पुराना ताज़िया, 52 डंडों का ताज़िया, चालीस मिम्बरों की ज़ियारत और पाकिस्तान के मुल्तान शहर में उस्ताद और शागिर्द के पौने दो सौ साल पुराने ताज़िए दुनिया भर में मशहूर हैं। ताज़िए की बनावट में हिंदू मंदिरों की झलक साफ़ दिखती है, ताज़िया उठाने में आसानी हो इसलिए इसे आम तौर पर बाँस की लकड़ी और काग़ज़ से बनाया जाता है, पहले बड़े ऊंचे ऊंचे ताज़िए बनाए जाते थे लेकिन अब बिजली के तारों से बचाने के लिए छोटे ताज़िए बनाए जाने लगे है।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारत में ताज़िया (हिंदी) बीबीसी हिन्दी। अभिगमन तिथि: 17 अक्टूबर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
- Karbala Ka Safar by Imam hussain (as) Animation in urdu (यू-ट्यूब विडियो)
- Women mourning - Muharram (यू-ट्यूब विडियो)
संबंधित लेख