सेवाग्राम आश्रम: Difference between revisions
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यदि कोई वास्तव में गाँधीजी को, उनके [[दर्शन]] को और उनके जीवन को समझना चाहता है तो उसे 'सेवाग्राम आश्रम' | यदि कोई वास्तव में गाँधीजी को, उनके [[दर्शन]] को और उनके जीवन को समझना चाहता है तो उसे 'सेवाग्राम आश्रम' ज़रूर देखना चाहिए। वहाँ अब भी चरखे पर सूत काता जाता है। पारंपरिकता वहाँ जीवन्त है। स्वयं गाँधीजी भी वहाँ जीवन्त हैं। आश्रम देखकर सहसा विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि कोई महान् पुरुष इस सादगी से भी रह सकता है। विश्व के महान् वैज्ञानिक [[अल्बर्ट आइंस्टाइन]] ने भी एक बार गाँधीजी के बारे में कहा था कि- "मैं गाँधी को हमारे युग का एकमात्र सच्चा महापुरुष मानता हूँ। आने वाली पीढ़ियाँ कठिनाई से यह विश्वास कर पाएँगी कि गाँधी जैसा हाड़-माँस का बना व्यक्ति सचमुच इस धरती पर कभी टहलता था।"<ref name="aa"/> | ||
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सेवाग्राम आश्रम
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विवरण | 'सेवाग्राम आश्रम' महाराष्ट्र के वर्धा में स्थित महात्मा गाँधी से सम्बन्धित प्रसिद्ध आश्रम है। गाँधीजी ने 'साबरमती आश्रम' के बाद इसकी स्थापना की थी। |
राज्य | महाराष्ट्र |
ज़िला | वर्धा |
निर्माता | महात्मा गाँधी |
भौगोलिक स्थिति | सेवाग्राम (वर्धा ज़िला, महाराष्ट्र) |
प्रसिद्धि | इस आश्रम में महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़ी कई महत्त्वपूर्ण स्मृतियाँ हैं। |
क्या देखें | आदि निवास, बापू कुटी, बापू दफ्तर, बा कुटी, आखिरी निवास और प्रार्थना भूमि, महादेव कुटी, परचुरे कुटी, रुस्तम भवन आदि। |
संबंधित लेख | महात्मा गाँधी, साबरमती आश्रम, गुजरात, महाराष्ट्र
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अन्य जानकारी | 'सेवाग्राम आश्रम' में कई कुटियाएँ हैं, जहाँ स्वयं गाँधीजी एवं उनके सहयोगी रहा करते थे। सब कुटियाएँ अपने आप में अनोखी हैं और गाँधीजी की तत्कालीन जीवन शैली समेटे हुई हैं। |
बाहरी कड़ियाँ | यह कहा जाता है कि 1930 में जब गाँधीजी ने साबरमती आश्रम से दांडी तक पदयात्रा प्रारंभ की थी, तब उन्होंने शपथ ली थी कि जब तक भारत स्वतंत्र नही हो जाता, वे साबरमती में कदम नही रखेंगे। |
सेवाग्राम आश्रम महाराष्ट्र राज्य के वर्धा ज़िले में स्थित सेवाग्राम नामक गाँव में है। पहले सेवाग्राम गाँव को 'शेगाँव' नाम से जाना जाता था। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने ही इस गाँव का नाम बदलकर सेवाग्राम रखा। सेवाग्राम आश्रम भारत में गाँधीजी द्वारा स्थापित दूसरा महत्वपूर्ण आश्रम है। इससे पूर्व गाँधीजी ने गुजरात में साबरमती आश्रम की स्थापना की थी। ये आश्रम गाँधीजी के रचनात्मक कार्यक्रमों एवं उनके राजनीतिक आंदोलन आदि के संचालन का केंद्र हुआ करते थे। यह वह स्थान है, जहाँ महात्मा गाँधी 13 वर्ष, सन 1936 से 1948 तक रहे। ऐसा विश्वास है कि 1930 में जब गाँधीजी ने साबरमती आश्रम से दांडी तक पदयात्रा प्रारंभ की थी, तब उन्होंने शपथ ली थी कि जब तक भारत स्वतंत्र नही हो जाता, वे साबरमती में कदम नही रखेंगे।
स्थिति तथा प्रसिद्धि
महात्मा गाँधी का गुजरात में स्थित साबरमती आश्रम दुनिया भर में प्रसिद्ध है। लेकिन उतना ही प्रसिद्ध उनका 'सेवाग्राम आश्रम' भी है, जो वर्धा (महाराष्ट्र) में स्थित है। इस आश्रम की विशेषता है कि गाँधीजी ने अपने संध्या काल के अंतिम 12 वर्ष यहीं बिताए थे। वर्धा शहर से 8 कि.मी. की दूरी पर 300 एकड़ की भूमि पर फैला यह आश्रम इतनी आत्मिक शांति देता है, जिसे शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। आश्रम की और भी कई ख़ासियत हैं। गाँधीजी ने यहाँ कई रणनीति बनाईं, कईयों से मिले और बहुतों के जीवन को नई दिशा दी। यहाँ आकर ऐसा लगता है, जैसे किसी मंदिर में पहुँच गए हों। सब कुछ शांत और सौम्य। आश्रम को समझने पर गाँधीजी का व्यक्तित्व भी समझ आ जाता है। यह आश्रम बापू के व्यक्तित्व का दर्पण है। यहाँ आकर ही पता चल जाता है कि हम एक ऐसे महान् शख्स का उठना-बैठना देख-समझ रहे हैं, जिसने भारत की आजादी का नींव रखी।[1]
गाँधीजी का संकल्प
यदि कोई व्यक्ति वास्तव में महात्मा गाँधी को, उनके दर्शन को और उनके जीवन को समझना चाहता है तो उसे 'सेवाग्राम आश्रम' अवश्य देखना चाहिए। यहाँ अब भी चरखे पर सूत काता जाता है। पारंपरिकता यहाँ आज भी जीवन्त है। स्वयं गाँधीजी भी जीवन्त हैं। गाँधीजी के साबरमती से सेवाग्राम पहुँचने की कहानी भी काफ़ी रोचक है। 12 मार्च, 1930 को 'भारतीय इतिहास' में प्रसिद्ध 'नमक सत्याग्रह' के लिए साबरमती आश्रम से अपने 78 साथियों के साथ गाँधीजी 'दांडी मार्च' पर निकले थे। वहाँ से चलते समय उन्होंने संकल्प लिया था कि 'स्वराज्य' लिए बिना आश्रम में नहीं लौटूँगा। 6 अप्रैल, 1930 को गुजरात के दांडी समुद्र तट पर गाँधीजी ने नमक का कानून तोड़ा और 5 मई, 1930 को उन्हें गिरफ्तार कर बिना मुकदमा चलाए यरवदा जेल में डाल दिया गया। 1933 में जेल से रिहा होने के बाद गाँधीजी देशव्यापी हरिजन यात्रा पर निकल गए। स्वराज्य मिला नहीं था, इसलिए वे वापस साबरमती लौट नहीं सकते थे। अतः उन्होंने मध्य भारत के एक गाँव को अपना मुख्यालय बनाने का निश्चय किया। 1934 में जमनालाल बजाज एवं अन्य साथियों के आग्रह से वे वर्धा आए और मगनवाड़ी में रहने लगे। 30 अप्रैल, 1936 को गाँधीजी पहली बार मगनवाड़ी से शेगाँव (अब सेवाग्राम) रहने चले आए। जिस दिन वे शेगाँव आए, उन्होंने वहाँ छोटा-सा भाषण देकर सेवाग्राम में बस जाने का अपना निश्चय गाँव वालों को बताया।
सेवाग्राम नामकरण
आज के सेवाग्राम का नाम शुरू में शेगाँव था। इसी क्षेत्र में नागपुर-भुसावल रेलवे लाइन पर शेगाँव नाम के रेलवे स्टेशन वाला एक बड़ा गाँव होने से गाँधीजी की डाक में बहुत गड़बड़ी होती थी। अतः सुविधा के लिए 1940 में गाँधीजी की इच्छा एवं सलाह से 'शेगाँव' का नाम 'सेवाग्राम' कर दिया गया।[1]
विभिन्न कुटियाएँ
सेवाग्राम आश्रम में कई कुटियाएँ हैं, जहाँ स्वयं गाँधीजी एवं उनके सहयोगी रहा करते थे। यह सब कुटिया अपने आप में अनोखी हैं और गाँधीजी की तत्कालीन जीवन शैली समेटे हुई हैं। उनका विवरण इस प्रकार है-
आदि निवास
यहाँ शुरुआत में गाँधीजी समेत सभी लोग रहा करते थे। तब यही एकमात्र कुटी थी। यहाँ कस्तूरबा और बापू के अलावा प्यारेलाल जी, संत तुकड़ोजी महाराज, ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान के साथ दूसरे आश्रमवासी तथा मेहमान ठहरते थे। गाँधीजी से मिलने आने आने वाले सब नेता भी उनसे यहीं मिलते थे। 'भारत छोड़ो आंदोलन' की प्रथम सभा 1942 को इसी जगह हुई थी। 1940 के 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' की प्राथमिक तैयारी भी इसी जगह हुई थी।
बापू कुटी और बापू दफ्तर
इन दोनों कुटियों में गाँधीजी रहते थे तथा लोगों से मिलते थे। बापू कुटी और बापू दफ्तर बाद में बनी। आज जैसी ये दिखती हैं, पहले इसके मुकाबले यह कहीं अधिक छोटी थीं। बापू दफ्तर वाली कुटी में गाँधीजी लोगों से मंत्रणा करते थे। उनकी मदद करने वाले लोग उनके दाएँ ओर बैठते थे। महादेव भाई या दूसरे मंत्री उनकी बाईं ओर बैठते थे।
बा कुटी
आश्रम में अनेक पुरुषों का रहना तथा आना-जाना होता था। इस वजह से 'बा' (कस्तूरबा गाँधी) की परेशानी को देखते हुए जमनालाल बजाज ने बा की सहमति से उनके लिए एक अलग कुटी बनवा दी। आज वह 'बा कुटी' के नाम से जानी जाती है। thumb|280px|सेवाग्राम आश्रम
आखिरी निवास
यह कुटी जमनालाल बजाज ने स्वयं के रहने के लिए बनवाई थी। लेकिन ऐसा अवसर ना आ सका। यह कुटी अन्य कई मेहमानों के रहने के काम में आती रही।
प्रार्थना भूमि
यह सेवाग्राम आश्रम के बीचों बीच एक बड़ी भूमि है, जो प्रार्थना के लिए काम आती थी। इस पर आज भी प्राथर्ना होती है।
इन कुछ प्रमुख कुटियों और स्थानों के अतिरिक्त भी सेवाग्राम आश्रम में और भी कई महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। इनमें महादेव कुटी, भोजन स्थान, रसोई घर, किशोर निवास, परचुरे कुटी, रुस्तम भवन, नई तालीम परिसर, गौशाला, अंतरराष्ट्रीय छात्रावास, डाकघर, यात्री निवास आदि शामिल हैं।[1]
गाँधी चित्र प्रदर्शनी
आश्रम के पश्चिम में, मुख्य सड़क के उस पार स्थित 'गाँधी चित्र प्रदर्शनी' में बापू का संपूर्ण जीवन क्रम चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। यह चित्र प्रदर्शनी काफ़ी अद्भुत है और आश्रम में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इसे अवश्य देखना चाहिए। इसे देखते समय बापू का पूरा जीवन सामने जीवन्त हो उठता है। यहाँ चित्रों के अतिरिक्त महात्मा गाँधी के जीवन में घटित घटनाओं को मूर्तियों द्वारा तथा उनके आवास आदि को प्रतिकृति के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। इससे बापू के जीवन क्रम व कार्य को समझने व जानने में बहुत आसानी होती है।
आश्रमवासियों के लिए सूचनाएँ
गाँधीजी एक पोथी में समय-समय पर आश्रमवासियों के लिए सूचनाएँ लिखकर रखा करते थे। पोथी के प्रारंभ में लिखा रहता था- "शेगाँव सेवकों के लिए"। इस पोथी में बहुत ही अद्भुत बातें लिखी रहती थीं, जो अनुकरणीय हैं। उनमें से कुछ बातें इस प्रकार हैं-
- थूक भी मल है। इसलिए जिस जगह हम थूकें या मैले हाथ धोवें वहाँ बर्तन कभी साफ ना करें। (दिनांक - 6.8.1936)
- मेरी सलाह है कि सब नियम पूर्वक सूत्रयज्ञ करें। उस बात में हमें बहुत सावधान रहना चाहिए। (दिनांक - 6.1.1940)
- सब काम सावधानी से होना चाहिए, हम सब एक कुटुम्ब हैं, इसी भावना से काम लेना आवश्यक है। (दिनांक - 21.1.1940)
- नमक भी जितना चाहिए, उतना ही लेवें। पानी तक निकम्मा खर्च न करें। मैं आशा करता हूँ कि सब (लोग) आश्रम की हर एक चीज अपनी और गरीब की है, ऐसा समझकर चलेंगे। (दिनांक - 30.1.1940)
गाँधीजी का कथन
सेवाग्राम में रहते हुए महात्मा गाँधी ने 1937 में कहा था-
"आप यह विश्वास रखें कि मैं जिस तरह से रहना चाहता हूँ, ठीक उसी तरह से आज रह रहा हूँ। जीवन के प्रारंभ में ही अगर मुझे अधिक स्पष्ट दर्शन होता तो मैं शायद जो करता, वह अब जीवन के संध्या काल में कर रहा हूँ। यह मेरे जीवन की अंतिम अवस्था है। मैं तो नींव से निर्माण करके ऊपर तक जाने के प्रयास में लगा हूँ। मैं क्या हूँ, यह यदि आप जानना चाहते हैं तो मेरा यहाँ (सेवाग्राम) का जीवन आप देखिए तथा यहाँ के वातावरण का अध्ययन कीजिए।"
यदि कोई वास्तव में गाँधीजी को, उनके दर्शन को और उनके जीवन को समझना चाहता है तो उसे 'सेवाग्राम आश्रम' ज़रूर देखना चाहिए। वहाँ अब भी चरखे पर सूत काता जाता है। पारंपरिकता वहाँ जीवन्त है। स्वयं गाँधीजी भी वहाँ जीवन्त हैं। आश्रम देखकर सहसा विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि कोई महान् पुरुष इस सादगी से भी रह सकता है। विश्व के महान् वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन ने भी एक बार गाँधीजी के बारे में कहा था कि- "मैं गाँधी को हमारे युग का एकमात्र सच्चा महापुरुष मानता हूँ। आने वाली पीढ़ियाँ कठिनाई से यह विश्वास कर पाएँगी कि गाँधी जैसा हाड़-माँस का बना व्यक्ति सचमुच इस धरती पर कभी टहलता था।"[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 बापू के जीवन का दर्पण- सेवाग्राम आश्रम (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 11 अक्टूबर, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख