गुप्तकालीन वाणिज्य और व्यापार: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('गुप्त काल में व्यापार एवं वाणिज्य अपने उत्कर्ष पर थ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
Line 22: Line 22:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{गुप्त साम्राज्य}}
{{गुप्त साम्राज्य}}{{गुप्त राजवंश}}{{भारत के राजवंश}}
{{गुप्त राजवंश}}
 
{{भारत के राजवंश}}
[[Category:गुप्त_काल]]
[[Category:गुप्त_काल]]
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:इतिहास कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 06:47, 22 October 2010

गुप्त काल में व्यापार एवं वाणिज्य अपने उत्कर्ष पर था। उज्जैन, भड़ौच, प्रतिष्ष्ठान, विदिशा, प्रयाग, पाटलिपुत्र, वैशाली, ताम्रलिपि, मथुरा, अहिच्छत्र, कौशाम्बी आदि महत्वपूर्ण व्यापारिक नगर है। इन सब में उज्जैन सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यापारिक स्थल था क्योंकि देश के हर कोने से मार्ग उज्जैन की ओर आते थे। स्वर्ण मुदाओं की अधिकता के कारण ही संभवतः गुप्तकालीन व्यापार विकास कर सका।

गुप्त राजाओं ने ही सर्वाधिक स्वर्ण मुद्राओं जारी की, इनकी स्वर्णमुद्राओ को अभिलेखों मे ‘दीनार‘ कहा गया है। इनकी स्वर्ण मुद्राओं में स्वर्ण की मात्रा कुषाणें की स्वर्ण मुद्राओं की तुलना में कम थी। गुप्त राजाओं ने गुजरात को विजित करने के उपरान्त चांदी के सिक्के चलाए। यह विजय सम्भवतः चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा शकों के विरुद्ध दर्ज की गई थी। तांबे के सिक्कों का प्रचलन गुप्तकाल में कम था। कुषाण काल के विपरीत गुप्त काल में आन्तरिक व्यापार में ह्मास के लक्षण दिखते हैं। ह्मस के कारणों में गुप्तकाली मौद्रिकनीति की असफलता भी एक महत्वपूर्ण कारण थी क्योंकि गुप्तों के पास ऐसी कोई सामान्य मुद्रा नहीं थी जो उनके जीवन का अभिन्न अंग बन सकती थी।

फाह्मन ने लिखा है कि गुप्त काल में साधारण जनता दैनिक जीवन के विनिमय में वस्तुओं के आदान प्रदान या फिर कौड़ियों से काम चलाती थी। आन्तरिक व्यापार की ही तरह गुप्तकाल मंे विदेशी व्यापार भी पतन की ओर अग्रसर था क्योंकि तीसरी शताब्दी ई. में बाद रोम साम्राज्य निरन्तरण हूणों के आक्रमण को झेलते हुए काफी कमजोर हो गया था। वह अब इस स्थिति में नही था कि अपने विदेशी व्यापार को पहले जैसी स्थिति में बनाये रखे, दूसरे रोम जनता ने लगभग छठी शताब्दी के मध्य चीनियों से रेशम उत्पादन की तकनीक सीख ली थी। चूकिं रेशम व्यापार ही भारत और रागेम के मध्य महत्वपूर्ण व्यापार का आधार था, इसलिए भारत का विदेशी व्यापार अधिक प्रभावित हुआ।

रोम साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय रेशम की मांग विदेशों में कम हो गई जिसके परिणाम स्वरूप 5 वी शताब्दी के मध्य बुनकरों की एक श्रेणी जो, लाट प्रदेश में निवास करती थी, मंदसौर में जाकर बस गयी।

पूर्व में भारत का व्यापार चीन से हो रहा था। इन दोनों के मध्य मध्यस्थ की भूमि सिंहलद्वीप (श्रीलंका) निभाता था। चीन और भारत के मध्य होने वाला व्यपार सम्भवतः वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित था जिसकी पुष्टि के लिए यह कहना पर्याप्त है कि न तो चीन के सिक्के भारत में मिले हैं, और न ही भारत के सिक्के चीन में। भारत-चीन को रत्न, केसर, सुगन्धित पदार्थ, सिले-सिलायें सुन्दर वस्त्र आदि निर्यात करता था।

पूर्वी तट पर स्थित बंदरगाह ताम्रलिप्ति, घंटाशाला एवं कदूरा से शायद गुप्त शासक दक्षिण-पूर्व एशिया से व्यापार करते थे। पश्चिमी तट पर स्थित भड़ौच (ब्रोच), कैम्बे, सोपारा, कल्याण आदि बन्दरगाहों से भूमध्य सागर एवं पश्चिम एशिया के साथ व्यापार सम्पन्न होता था। इस समय भारत में चीनसे रेशम (चीनांशुक), इथोपिया से हाथी दांत, अरब, ईरान एवं बैक्ट्रिया से घोड़ों आदि का आयात होता था। भारतीय जलयान निर्वाध रूप से अरब सागर, हिन्द महासागर उद्योगों में से था। रेशमी वस्त्र मलमल, कैलिकों, लिनन, ऊनी एवं सूती था। गुप्त काल के अन्तिम चरण में पाटलिपुत्र, मथुरा, कुम्रहार, सोनपुर, सोहगौरा एवं गंगाघाटी के कुछ नगरों का ह्मस हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

Template:गुप्त साम्राज्यTemplate:गुप्त राजवंश