ब्रह्म विहार

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ब्रह्म विहार संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है- 'ब्रह्म-स्वर्ग में निवास'। बौद्ध दर्शनशास्त्र में मानसिक विकास की चार उच्च रीतियाँ बताई गई हैं, जिनसे मनुष्य ब्रह्म स्वर्ग में पुनर्जन्म ले सकता है, ये चार रीतियाँ हैं[1]-

  1. सहानुभूति का तत्त्व, जो जीवों को प्रसन्नता देता है।[2]
  2. करुण का आदर्श तत्त्व, जो जीवों के दु:ख हरता है; करुणा के कारण बोधिसत्त्व निर्वाण में प्रवेश को स्थगित करते हैं, ताकि अन्य लोगों की मुक्ति के लिए काम किया जा सके।
  • आनंद (मुदिता) का आदर्श तत्त्व, आनंद-प्राप्त लोगों को देखकर आनंदित होना।
  • समबुद्धि का आदर्श तत्त्व, सभी वस्तुओं के प्रति आसक्ति से मुक्त होना और जीवों के प्रति उदासीन होना।[3]
  • इन्हें चार 'अपरामानस' (अनंत अनुभव) कहते हैं, क्योंकि ये चारों अनंत जीवों को प्रसन्नता देते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत ज्ञानकोश, खण्ड-4 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 103 |
  2. संस्कृत में मैत्री; पालि में नेता
  3. संस्कृत में उपेक्षा; पालि में उपेक्खा

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