क्षितिगर्भ

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क्षितिगर्भ को बौद्ध धर्म में बोधिसत्व (भावी बुद्ध) कहा गया है, जो हालांकि भारत में चौथी शताब्दी में ज्ञात थे, ये चीन में 'ताई-त्सांग' और जापान में 'जिज़ो' के रूप में काफ़ी लोकप्रिय हुए थे।[1]

  • 'क्षितिगर्भ' एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है "धरती का गर्भ"।
  • दलितों, मरणासन्न लोगों तथा दु:स्वप्नदर्शियों के उद्धारक के रूप में क्षितिगर्भ को माना जाता है, क्योंकि उन्होंने तब तक प्रयास करते रहने की शपथ ली है, जब तक वह नरक के लिए निराकृत सभी आत्माओं की रक्षा नहीं कर लेते हैं।
  • चीन में क्षितिगर्भ को नरक अधिपति माना जाता है और जब किसी की मृत्यु होने वाली होती है, तब उनका आह्वान किया जाता है।
  • जापान में 'जिज़ो' के रूप क्षितिगर्भ नरक पर शासन नहीं करते,[2] बल्कि मरे हुए लोगों के प्रति और विशेष रूप से मृत बच्चों के प्रति उनकी दयालुता के कारण उन्हें सम्मान दिया जाता है।
  • मध्य एशिया में व्यापक स्तर पर उनकी पूजा का प्रमाण चीनी तुर्किस्तान के मंदिरों की पट्टिकाओं पर उनके चित्रण से प्राप्त होता है।
  • क्षितिगर्भ को सामान्यत: घुटे सिर वाले भिक्षु के रूप में दिखाया जाता है, लेकिन उनके गिर्द प्रभामंडल और भौहों के बीच ऊर्णा[3] होती है।
  • वे धर्मदंड (खक्कर) से नरक का द्वार खोलते हैं। 'प्रदीप्त चिंतामणि' से क्षितिगर्भ अंधकार दूर करते हैं।
  • क्षितिगर्भ को पीड़ित व्यक्ति की आवश्यकता के अनुरूप स्वयं को प्रदर्शित करने की क्षमता प्राप्त है, इसलिए अक्सर उन्हें, विशेषकर जापान में, छह आयामों में दिखाया जाता है, जिनमें से प्रत्येक छह कामना विश्वों में से एक से संबंधित हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत ज्ञानकोश, खण्ड-1 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 483 |
  2. यह 'एम्मा-ओ' का कार्य है
  3. बालों का गुच्छा

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