नारद पांचरात्र: Difference between revisions
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'''नारद पांचरात्र''' [[वैष्णव सम्प्रदाय]] का ग्रंथ है। 'रात्र' का अर्थ है- 'ज्ञान'। [[वासुदेव]], [[संकर्षण]], [[प्रद्युम्न]], [[अनिरुद्ध]] और [[ब्रह्मा]] इन पाँचों का व्यूह, विभरअंतर्यामी और अर्चा, इन पाँच रूपों का ज्ञान जिस शास्त्र में है, उसे पांचरात्र कहते हैं। | |||
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नारद पांचरात्र वैष्णव सम्प्रदाय का ग्रंथ है। 'रात्र' का अर्थ है- 'ज्ञान'। वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध और ब्रह्मा इन पाँचों का व्यूह, विभरअंतर्यामी और अर्चा, इन पाँच रूपों का ज्ञान जिस शास्त्र में है, उसे पांचरात्र कहते हैं।
- यह शास्त्र श्रीकृष्ण द्वारा प्रदत्त था। नारद ने उसका प्रचार किया।
- तत्व, मुक्ति, भक्ति, योग विषय इसके अंग हैं।
- इसमें कृष्ण और राधा की भक्ति का उपदेश दिया गया है।
- श्रीकृष्ण का भजन, ध्यान, नामकीर्तन, चरणामृतपान और तदर्पित भोजन का प्रसाद ग्रहण करने से सभी वांछित सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, वैकुंठ की प्राप्ति होती है। अहिंसा, इन्द्रिय संयम, जीवदया, क्षमा, शम, दम, ध्यान, सत्य, इन आठ पुष्पों से कृष्ण संतुष्ट होते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय संस्कृति के सर्जक, पेज न. (22)