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सर्कोपिथीकाइडिया कुल के प्रेस्बाइटिस, पायगाथ्रिक्स, राइनोपिथैकस और सिमिया वंश के कई पूर्वदेशीय वानरों में से एक। इनसे संबंधित अफ्रीकी गुरेजा की तरह लंगूर का बड़े आकार का आमाशय होता है। जो इसके भोजन, पत्तियों, फलों और अन्य वनस्पतियों आदि को पचाने में अनुकूल सिद्ध होता है।  
[[चित्र:Langur.jpg|thumb|लंगूर]]
लंगूर सर्कोपिथीकाइडिया कुल के प्रेस्बाइटिस, पायगाथ्रिक्स, राइनोपिथैकस और सिमिया वंश के कई पूर्वदेशीय वानरों में से एक। इनसे संबंधित अफ्रीकी गुरेजा की तरह लंगूर का बड़े आकार का आमाशय होता है। जो इसके भोजन, पत्तियों, फलों और अन्य वनस्पतियों आदि को पचाने में अनुकूल सिद्ध होता है।  


प्रेस्बाइटिस वंश के लंगूर अथवा पत्तियां खाने वाले लंगूर (जिसे कभी पायगाथ्रिक्स जाति में भी रखा जाता है) की लगभग 14 प्रजातियां हैं, जिसमें [[भारत]] का पूज्य वानर [[हनुमान]] लंगूर (पी. एंटेलस) भी शामिल है। इस वंश के सदस्य समूह में रहने वाले, दिनचर और मूलतः वृक्षवासी होते हैं। इन वानरों की पूंछ लंबी, शरीर सुतवां और हाथ-पैर लंबे व पतले होते हैं। अलग-अलग प्रजातियों के अनुसार इन लंगूरों का सिर और शरीर 40 से 80 सेमी लंबा और पूंछ लगभग 50 से 110 सेमी लंबी होती है। इन बंदरों के लंबे रोय होते हैं और इनकी कई प्रजातियों में तो सिर पर लंबे बालों की टोपी या कलगीनुमा संरचना होती है। वयस्कों के चेहरे का रंग सामान्यतः काला होता है। [[रंग]] अलग-अलग प्रजातियों पर भी निर्भर करता है। लेकिन आमतौर पर यह स्लेटी,भूरा अथवा काला होता है। लगभग 168 दिनों की गर्भावधि के बाद पैदा हुए एकल शिशु का रंग वयस्क के रंग से भिन्न होता है और शायद इसीलिए उसकी मां उसकी रक्षा के लिए प्रेरित होती है।  
प्रेस्बाइटिस वंश के लंगूर अथवा पत्तियां खाने वाले लंगूर (जिसे कभी पायगाथ्रिक्स जाति में भी रखा जाता है) की लगभग 14 प्रजातियां हैं, जिसमें [[भारत]] का पूज्य वानर [[हनुमान]] लंगूर (पी. एंटेलस) भी शामिल है। इस वंश के सदस्य समूह में रहने वाले, दिनचर और मूलतः वृक्षवासी होते हैं। इन वानरों की पूंछ लंबी, शरीर सुतवां और हाथ-पैर लंबे व पतले होते हैं। अलग-अलग प्रजातियों के अनुसार इन लंगूरों का सिर और शरीर 40 से 80 सेमी लंबा और पूंछ लगभग 50 से 110 सेमी लंबी होती है। इन बंदरों के लंबे रोय होते हैं और इनकी कई प्रजातियों में तो सिर पर लंबे बालों की टोपी या कलगीनुमा संरचना होती है। वयस्कों के चेहरे का रंग सामान्यतः काला होता है। [[रंग]] अलग-अलग प्रजातियों पर भी निर्भर करता है। लेकिन आमतौर पर यह स्लेटी,भूरा अथवा काला होता है। लगभग 168 दिनों की गर्भावधि के बाद पैदा हुए एकल शिशु का रंग वयस्क के रंग से भिन्न होता है और शायद इसीलिए उसकी माँ उसकी रक्षा के लिए प्रेरित होती है।  
[[चित्र:Langur-Manas-National-Park.jpg|thumb|250px|left|लंगूर, [[मानस अभयारण्य]]]]
इस वंश का सामान्य बंदर हनुमान लंगूर जन्म के समय लगभग काला और वयस्क होते-होते स्लेटी, धूसर या भूरा हो जाता है। भारत में पवित्र माना जाने वाला यह लंगूर फसलों और व्यापारियों के गोदामों पर धावा बोलते हुए गांव और मंदिरों में स्वतंत्रता से घूमता रहता है। हनुमान लंगूर लगभग 20 से 30 के झुण्ड में रहते हैं। इस जाति में नर का प्रमुख स्थान है। लेकिन मादा का कोई निश्चित स्थान नहीं होता है। माँ अपने बच्चे की सुरक्षा का बहुत ध्यान रखती है। लेकिन वह अन्य मादाआं को नवजात शिशु की देखभाल में सहायता की अनुमति दे देती है। डाक लंगूर (पायगाथ्रिक्स नीमियस) दक्षिण पूर्व एशिया के जंगलों में रहने वाला बड़ा बंदर है। इसके शरीर पर छोटे और धूसर रंग के रोएं होते हैं। जिन पर लाल और सफेद निशान बने होते हैं। चपटी-छोटी और मोटी नाक वाले लंगूर (पायगाथ्रिक्स राक्सलनी और एव्यूंक्यूलस) [[चीन]] व उत्तरी वियतनाम के जंगलों में पाये जाते हैं। इनकी नाक ऊपर की ओर मुड़ी होती है और शरीर के लंबे रोएं धूसर काले या भूरे व ऊपर से पीलापन लिए होते हैं। इंडोनेशिया के नम जंगलों में पाए जाने वाले मैकाक जैसे सुअर-पूंछ लंगूर (नैसैलिस कानकलर) की नाक चपटी और रंग भूरा सा होता है। प्रेस्बाइटिस एंटैलस प्रजाति के अतिरिक्स अन्य सभी वर्णित प्रजातियां दुर्लभ और विलुप्तप्राय प्राणियों के रूप में वर्गीकृत हैं।


इस वंश का सामान्य बंदर हनुमान लंगूर जन्म के समय लगभग काला और वयस्क होते-होते स्लेटी, धूसर या भूरा हो जाता है। भारत में पवित्र माना जाने वाला यह लंगूर फसलों और व्यापारियों के गोदामों पर धावा बोलते हुए गांव और मंदिरों में स्वतंत्रता से घूमता रहता है। हनुमान लंगूर लगभग 20 से 30 के झुण्ड में रहते हैं। इस जाति में नर का प्रमुख स्थान है। लेकिन मादा का कोई निश्चित स्थान नहीं होता है। मां अपने बच्चे की सुरक्षा का बहुत ध्यान रखती है। लेकिन वह अन्य मादाआं को नवजात शिशु की देखभाल में सहायता की अनुमति दे देती है। डाक लंगूर (पायगाथ्रिक्स नीमियस) दक्षिण पूर्व एशिया के जंगलों में रहने वाला बड़ा बंदर है। इसके शरीर पर छोटे और धूसर रंग के रोएं होते हैं। जिन पर लाल और सफेद निशान बने होते हैं। चपटी-छोटी और मोटी नाक वाले लंगूर (पायगाथ्रिक्स राक्सलनी और एव्यूंक्यूलस) [[चीन]] व उत्तरी वियतनाम के जंगलों में पाये जाते हैं। इनकी नाक ऊपर की ओर मुड़ी होती है और शरीर के लंबे रोएं धूसर काले या भूरे व ऊपर से पीलापन लिए होते हैं। इंडोनेशिया के नम जंगलों में पाए जाने वाले मैकाक जैसे सुअर-पूंछ लंगूर (नैसैलिस कानकलर) की नाक चपटी और रंग भूरा सा होता है। प्रेस्बाइटिस एंटैलस प्रजाति के अतिरिक्स अन्य सभी वर्णित प्रजातियां दुर्लभ और विलुप्तप्राय प्राणियों के रूप में वर्गीकृत हैं।
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Latest revision as of 14:06, 2 June 2017

thumb|लंगूर लंगूर सर्कोपिथीकाइडिया कुल के प्रेस्बाइटिस, पायगाथ्रिक्स, राइनोपिथैकस और सिमिया वंश के कई पूर्वदेशीय वानरों में से एक। इनसे संबंधित अफ्रीकी गुरेजा की तरह लंगूर का बड़े आकार का आमाशय होता है। जो इसके भोजन, पत्तियों, फलों और अन्य वनस्पतियों आदि को पचाने में अनुकूल सिद्ध होता है।

प्रेस्बाइटिस वंश के लंगूर अथवा पत्तियां खाने वाले लंगूर (जिसे कभी पायगाथ्रिक्स जाति में भी रखा जाता है) की लगभग 14 प्रजातियां हैं, जिसमें भारत का पूज्य वानर हनुमान लंगूर (पी. एंटेलस) भी शामिल है। इस वंश के सदस्य समूह में रहने वाले, दिनचर और मूलतः वृक्षवासी होते हैं। इन वानरों की पूंछ लंबी, शरीर सुतवां और हाथ-पैर लंबे व पतले होते हैं। अलग-अलग प्रजातियों के अनुसार इन लंगूरों का सिर और शरीर 40 से 80 सेमी लंबा और पूंछ लगभग 50 से 110 सेमी लंबी होती है। इन बंदरों के लंबे रोय होते हैं और इनकी कई प्रजातियों में तो सिर पर लंबे बालों की टोपी या कलगीनुमा संरचना होती है। वयस्कों के चेहरे का रंग सामान्यतः काला होता है। रंग अलग-अलग प्रजातियों पर भी निर्भर करता है। लेकिन आमतौर पर यह स्लेटी,भूरा अथवा काला होता है। लगभग 168 दिनों की गर्भावधि के बाद पैदा हुए एकल शिशु का रंग वयस्क के रंग से भिन्न होता है और शायद इसीलिए उसकी माँ उसकी रक्षा के लिए प्रेरित होती है। [[चित्र:Langur-Manas-National-Park.jpg|thumb|250px|left|लंगूर, मानस अभयारण्य]] इस वंश का सामान्य बंदर हनुमान लंगूर जन्म के समय लगभग काला और वयस्क होते-होते स्लेटी, धूसर या भूरा हो जाता है। भारत में पवित्र माना जाने वाला यह लंगूर फसलों और व्यापारियों के गोदामों पर धावा बोलते हुए गांव और मंदिरों में स्वतंत्रता से घूमता रहता है। हनुमान लंगूर लगभग 20 से 30 के झुण्ड में रहते हैं। इस जाति में नर का प्रमुख स्थान है। लेकिन मादा का कोई निश्चित स्थान नहीं होता है। माँ अपने बच्चे की सुरक्षा का बहुत ध्यान रखती है। लेकिन वह अन्य मादाआं को नवजात शिशु की देखभाल में सहायता की अनुमति दे देती है। डाक लंगूर (पायगाथ्रिक्स नीमियस) दक्षिण पूर्व एशिया के जंगलों में रहने वाला बड़ा बंदर है। इसके शरीर पर छोटे और धूसर रंग के रोएं होते हैं। जिन पर लाल और सफेद निशान बने होते हैं। चपटी-छोटी और मोटी नाक वाले लंगूर (पायगाथ्रिक्स राक्सलनी और एव्यूंक्यूलस) चीन व उत्तरी वियतनाम के जंगलों में पाये जाते हैं। इनकी नाक ऊपर की ओर मुड़ी होती है और शरीर के लंबे रोएं धूसर काले या भूरे व ऊपर से पीलापन लिए होते हैं। इंडोनेशिया के नम जंगलों में पाए जाने वाले मैकाक जैसे सुअर-पूंछ लंगूर (नैसैलिस कानकलर) की नाक चपटी और रंग भूरा सा होता है। प्रेस्बाइटिस एंटैलस प्रजाति के अतिरिक्स अन्य सभी वर्णित प्रजातियां दुर्लभ और विलुप्तप्राय प्राणियों के रूप में वर्गीकृत हैं।


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