मृत्यु (सूक्तियाँ): Difference between revisions
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|इस धरती पर कर्म करते-करते सौ साल तक जीने की इच्छा रखो, क्योंकि कर्म | |इस धरती पर कर्म करते-करते सौ साल तक जीने की इच्छा रखो, क्योंकि कर्म करने वाला ही जीने का अधिकारी है। जो कर्म-निष्ठा छोड़कर भोग-वृत्ति रखता है, वह मृत्यु का अधिकारी बनता है। | ||
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Latest revision as of 13:18, 29 October 2017
क्रमांक | सूक्तियाँ | सूक्ति कर्ता |
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(1) | मृत्यु और विनाश बिना बुलाए ही आया करते हैं। क्योंकि ये हमारे मित्र के रूप में नहीं शत्रु के रूप में आते हैं। | भगवतीचरण वर्मा |
(2) | जो आदमी नशे में मदहोश हो उसकी सूरत उसकी माँ को भी बुरी लगती है। | तिरुवल्लुवर |
(3) | नशे की हालत में क्रोध की भांति, ग्लानी का वेग भी सहज ही बढ़ जाता है। | प्रेमचंद |
(4) | नशा करनेवाले मित्र से चले कोई कितना ही प्रेम क्यों ना करता हो पर जब निर्भर करने का अवसर आता है तो वह भरोषा उसपर करता है जो नशा न करता हो। | शरतचंद्र |
(5) | परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है और स्थिर होना मृत्यु। | जयशंकर प्रसाद |
(6) | युधिस्तर के पास एक भिखारी आया। उन्होंने उसे अगले दिन आने के लिए कह दिया। इस पर भीम हर्षित हो उठे। उन्होंने सोचा कि उनके भाई ने कल तक के लिए मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है। | महाभारत |
(7) | भय से ही दु:ख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं। | विवेकानंद |
(8) | आनंद ही ब्रह्म है, आनंद से ही सब प्राणी उत्पन्न होते हैं. उत्पन्न होने पर आनंद से ही जीवित रहते हैं और मृत्यु से आनंद में समा जाते हैं। | उपनिषद |
(9) | ईर्ष्यालु को मृत्यु के सामान दुःख भोगना पड़ता है। | वेदव्यास |
(10) | अपमान पूर्ण जीवन से मृत्यु अच्छी है। | कहावत |
(11) | नीति निपुण निंदा करें या प्रशंसा करें, लक्ष्मी आए चाहे चली जाय, मृत्यु चाहे आज ही हो जाए, चाहे एक युग के बाद, परन्तु धीर पुरुष न्यायमार्ग से एक पग भी विचलित नहीं होते। | भर्तृहरी |
(12) | अहम् की मृत्यु द्वारा आत्मा का वर्जन करते करते अपने रुपातित स्वरूप को आत्मा प्रकाशित करता है। | रवीन्द्र नाथ टैगोर |
(13) | कायर मृत्यु से पूर्व अनेकों बार मर चुकता है, जबकि बहादुर को मरने के दिन ही मरना पड़ता है। | |
(14) | जीवन का महत्त्वा इसलिये है, ख्योंकी मृत्यु है। मृत्यु न हो तो ज़िन्दगी बोझ बन जायेगी. इसलिये मृत्यु को दोस्त बनाओ, उसी दरो नहीं। | |
(15) | जीवन और मृत्यु में, सुख और दुःख मे ईश्वर समान रूप से विद्यमान है। समस्त विश्व ईश्वर से पूर्ण हैं। अपने नेत्र खोलों और उसे देखों। | |
(16) | सन्न्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन से प्रेम करते हैं, परन्तु संन्यासी के लिए प्रेम करने को मृत्यु है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्या कर लें। आत्महत्या करने वालों को तो कभी मृत्यु प्यारी नहीं होती है। संन्यासी का धर्म है समस्त संसार के हित के लिए निरंतर आत्मत्याग करते हुए धीरे - धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जाना। | |
(17) | मृत्यु दो बार नहीं आती और जब आने को होती है, उससे पहले भी नहीं आती है। | |
(18) | पवित्र विचार-प्रवाह ही जीवन है तथा विचार-प्रवाह का विघटन ही मृत्यु है। | |
(19) | भले ही आपका जन्म सामान्य हो, आपकी मृत्यु इतिहास बन सकती है। | |
(20) | जरा रूप को, आशा धैर्य को, मृत्यु प्राण को, क्रोध श्री को, काम लज्जा को हरता है पर अभिमान सब को हरता है। | विदुर नीति |
(21) | जैसे जीने के लिए मृत्यु का अस्वीकरण ज़रूरी है वैसे ही सृजनशील बने रहने के लिए प्रतिष्ठा का अस्वीकरण ज़रूरी है। | डॉ. रघुवंश |
(22) | अकर्मण्यता के जीवन से यशस्वी जीवन और यशस्वी मृत्यु श्रेष्ठ होती है। | चंद्रशेखर वेंकट रामन |
(23) | भगवान में विश्वास न रखने वाले व्यक्ति के लिए, मृत्यु एक अंत हैं; लेकिन विश्वास करने वाले के लिए यह शुरुआत है। | अज्ञात |
(24) | सच्चे वीर को युद्ध में मृत्यु से जितना कष्ट नहीं होता उससे कहीं अधिक कष्ट कायर को युद्ध के भय से होता है। | भतृहरि |
(25) | भय से ही दुःख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयाँ उत्पन्न होती हैं। | स्वामी विवेकानंद |
(26) | भूख प्यास से जितने लोगों की मृत्यु होती है उससे कहीं अधिक लोगों की मृत्यु ज़्यादा खाने और ज़्यादा पीने से होती है। | कहावत |
(27) | जब आपका जन्म हुआ तो आप रोए और जग हंसा था. अपने जीवन को इस प्रकार से जीएं कि जब आप की मृत्यु हो तो दुनिया रोए और आप हंसें। | कबीर |
(28) | जैसे पके हुए फलों को गिरने के सिवा कोई भय नहीं वैसे ही पैदा हुए मनुष्य को मृत्यु के सिवा कोई भय नहीं। | वाल्मीकि |
(29) | श्रद्धा और विश्वास ऐसी जड़ी बूटियाँ हैं कि जो एक बार घोल कर पी लेता है वह चाहने पर मृत्यु को भी पीछे धकेल देता है। | अमृतलाल नागर |
(30) | आप मृत्यु के उपरांत अपने साथ अपने अच्छे-बुरे कर्मों की पूंजी साथ ले जाएंगे, इसके अलावा आप कुछ साथ नहीं ले जा सकते, याद रखें 'कुछ नहीं'। | स्वामी श्री सुदर्शनाचार्य जी |
(31) | जब आपके पास पैसा आ जाता है तो समस्या सेक्स की हो जाती है, जब आपके पास दोनों चीज़ें हो जाती हैं तो स्वास्थ्य समस्या हो जाती है और जब सारी चीज़ें आपके पास होती हैं, तो आपको मृत्यु भय सताने लगता है। | जे पी डोनलेवी |
(32) | मृत्यु, आधे-अधूरे जीवन की तुलना में कम भयावह होती है। | बर्टोल्ट ब्रेच्ट |
(33) | ऐसा व्यक्ति जो अनुशासन के बिना जीवन जीता है वह सम्मान रहित मृत्यु मरता है। | आईसलैण्ड की कहावत |
(34) | अमृत और मृत्यु दोनों इसी शरीर में स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है। | वेदव्यास |
(35) | आलस्य आपके लिए मृत्यु के समान है। केवल उद्योग ही आपके लिए जीवन है। | स्वामी रामतीर्थ |
(36) | आलोचना एक भयानक चिंगारी है- ऐसी चिंगारी, जो अहंकार रूपी बारूद के गोदाम में विस्फोट उत्पन्न कर सकती है और वह विस्फोट कभी-कभी मृत्यु को शीघ्र ले आता है। | डेल कारनेगी |
(37) | इस धरती पर कर्म करते-करते सौ साल तक जीने की इच्छा रखो, क्योंकि कर्म करने वाला ही जीने का अधिकारी है। जो कर्म-निष्ठा छोड़कर भोग-वृत्ति रखता है, वह मृत्यु का अधिकारी बनता है। | वेद |
(38) | अमृत और मृत्यु दोनों इस शरीर में ही स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है। | वेदव्यास |
(39) | जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। | जेम्स एंथनी फ्राउड |
(40) | प्रेम की मृत्यु नहीं होती, प्रेम अमृत रहता है। | उमाशंकर जोशी |
(41) | संपत्ति तो जन्म, मृत्यु वृद्धावस्था, शोक और राग के बीज का उत्तम अंकुर है। इसके प्रभाव में अंधा हुआ मानव मुक्ति के मार्ग को नहीं देख सकता। | देवीभागवत |
(42) | जिस तरह तीतर अपने अंडों को नहीं सेता, उसी तरह बेईमानी से कमाने वाला व्यक्ति अपने धन का उपभोग नहीं कर पाता। और मृत्यु के बाद लोग उसे मूर्ख और कुटिल कह कर बुलाते हैं। | रस्किन बांड |
(43) | विचार या भाव ही मनुष्य को उत्तेजित करते हैं, आदर्श ही लोगों को मृत्यु तक का सामना करने को तैयार करते हैं। | विवेकानंद |
(44) | परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है। स्थिर होना मृत्यु है। | जयशंकर प्रसाद |
(45) | भलाई से बढ़कर जीवन और बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। | आदिभट्टल नारायण दासु |
(46) | मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है। | स्वामी हरिहर चैतन्य |
(47) | मेरा कहना तो यह है कि प्रमाद मृत्यु है और अप्रमाद अमृत। | वेदव्यास |
(48) | अगर अपने आपको किसी रंग में रंगना है तो प्रेम-रंग में रंग, क्योंकि इस रंग में रंगा हुआ मनुष्य मृत्यु के बंधनों से छूट जाता है। | सनाई |
(49) | मृत्यु सुनने में जितनी भयावह लगती है, पर देखने में उतनी ही निरीह और स्वाभाविक है। | शिवानी |
(50) | अमृत और मृत्यु- दोनों ही इस शरीर में स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है। | वेदव्यास |
(51) | समय आए बिना वज्रपात होने पर भी मृत्यु नहीं होती और समय आ जाने पर पुष्प भी प्राणी के प्राण ले लेता है। | कल्हण |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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