फ़रीदुद्दीन गंजशकर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''बाबा फ़रीद''' (1172-1266 ई.; पूरा नाम- 'हजरत ख़्वाजा फ़रीदुद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
m (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ")
 
(5 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
'''बाबा फ़रीद''' (1172-1266 ई.; पूरा नाम- 'हजरत ख़्वाजा फ़रीदुद्दीन गंजशकर') दक्षिण एशिया में पंजाब क्षेत्र के एक प्रसिद्ध [[मुस्लिम]] संत थे। इन्हें उच्च कोटि के [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] [[कवि]] के रूप में भी प्रसिद्धि प्राप्त थी। इनकी रचनाओं को [[सिक्ख]] गुरुओं ने सम्मान सहित '[[गुरु ग्रंथ साहिब|श्री गुरु ग्रंथ साहिब]]' में स्थान दिया है। वर्तमान समय में [[भारत]] के [[पंजाब|पंजाब प्रांत]] में स्थित [[फरीदकोट]] शहर का नाम बाबा फ़रीद पर ही रखा गया था। इसी शहर में उनकी मज़ार भी है।
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय
|चित्र=Baba-Farid.jpg
|चित्र का नाम=फ़रीदुद्दीन गंजशकर
|विवरण='फ़रीदुद्दीन गंजशकर' प्रसिद्ध [[मुस्लिम]] संत तथा [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] कवि थे। इनकी रचनाओं को [[सिक्ख]] गुरुओं ने '[[गुरु ग्रंथ साहिब|श्री गुरु ग्रंथ साहिब]]' में स्थान दिया है।
|शीर्षक 1=अन्य नाम
|पाठ 1=बाबा फ़रीद
|शीर्षक 2=जन्म
|पाठ 2=1172 ई. (लगभग)
|शीर्षक 3=जन्म स्थान
|पाठ 3=गाँव खोतवाल, [[मुल्तान|ज़िला मुल्तान]]
|शीर्षक 4=माता-पिता
|पाठ 4=शेख़ जमान सुलेमान तथा मरियम
|शीर्षक 5=
|पाठ 5=
|शीर्षक 6=
|पाठ 6=
|शीर्षक 7=
|पाठ 7=
|शीर्षक 8=
|पाठ 8=
|शीर्षक 9=
|पाठ 9=
|शीर्षक 10=विशेष
|पाठ 10=बाबा फ़रीद के पूर्वज [[महमूद ग़ज़नवी|सुल्तान महमूद ग़ज़नवी]] के साथ संबंध रखते थे। आपके पिता ग़ज़नवी के भतीजे थे।
|संबंधित लेख=
|अन्य जानकारी=गुरु की ख़ोज में बाबा फ़रीद [[अजमेर]], [[भारत]] में [[मुईनुद्दीन चिश्ती|चिश्ती साहिब]] के पास आ गए थे। उन्हें मुरशद मानकर उनकी सेवा करते थे।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
'''बाबा फ़रीद''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Fariduddin Ganjshakar'' , 1172-1266 ई.; पूरा नाम- 'हजरत ख़्वाजा फ़रीदुद्दीन गंजशकर') दक्षिण एशिया में पंजाब क्षेत्र के एक प्रसिद्ध [[मुस्लिम]] संत थे। इन्हें उच्च कोटि के [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] [[कवि]] के रूप में भी प्रसिद्धि प्राप्त थी। इनकी रचनाओं को [[सिक्ख]] गुरुओं ने सम्मान सहित '[[गुरु ग्रंथ साहिब|श्री गुरु ग्रंथ साहिब]]' में स्थान दिया है। वर्तमान समय में [[भारत]] के [[पंजाब|पंजाब प्रांत]] में स्थित [[फरीदकोट]] शहर का नाम बाबा फ़रीद पर ही रखा गया था। इसी शहर में उनकी मज़ार भी है।
==परिचय==
==परिचय==
बाबा फ़रीद का जन्म 1172 ई. में गाँव खोतवाल ज़िला मुल्तान में हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम शेख़ जमान सुलेमान तथा [[माता]] का नाम मरियम था। इनकी माता धर्मात्मा इस्लामी तालीम की ज्ञाता थीं। वह शुद्ध हृदय वाली व ईमानदार थीं। उनकी शिक्षा का प्रभाव फ़रीद के ऊपर बचपन में ही पड़ गया था। फ़रीद 12 साल से पहले ही क़ुरान मजीद का अध्ययन कर गए। यह भी कहा जाता है कि मौखिक रूप से पहले ही याद कर लिया तथा धार्मिक परिपक्व हो गए। इनके पिता मशहूर [[सूफ़ी मत|सूफ़ी]] थे।
बाबा फ़रीद का जन्म 1172 ई. में गाँव खोतवाल, [[मुल्तान|ज़िला मुल्तान]] में हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम शेख़ जमान सुलेमान तथा [[माता]] का नाम मरियम था। इनकी माता धर्मात्मा इस्लामी तालीम की ज्ञाता थीं। वह शुद्ध हृदय वाली व ईमानदार थीं। उनकी शिक्षा का प्रभाव फ़रीद के ऊपर बचपन में ही पड़ गया था। फ़रीद 12 साल से पहले ही क़ुरान मजीद का अध्ययन कर गए। यह भी कहा जाता है कि मौखिक रूप से पहले ही याद कर लिया तथा धार्मिक परिपक्व हो गए। इनके पिता मशहूर [[सूफ़ी मत|सूफ़ी]] थे।


बाबा फ़रीद के पूर्वज [[महमूद ग़ज़नवी|सुल्तान महमूद ग़ज़नवी]] के साथ संबंध रखते थे। आपके पिता ग़ज़नवी के भतीजे थे। सुलेमान पहले हिन्द आ गया, फिर वहाँ से [[लाहौर]] आ बैठा। सुलेमान का फकीरी दायरा कायम हो गया। लाहौर से उठकर जंगली इलाके मुल्क़ की तरफ़ चले गए। अन्त में पाकपटन में अपना स्थान कायम कर लिया। वहीं शेख़ बाबा फ़रीद का जन्म हुआ। बाबा फ़रीद का जन्म [[गुरु नानक देव|गुरु नानक देव जी]] से पाँच सौ साल पहले माना जाता है।<ref name="aa">{{cite web |url= https://spiritualworld.co.in/bhakto-aur-santo-ki-jivni-aur-bani-words-by-great-bhagats/bhagat-shek-farid-ji-an-introduction|title=भक्त शेख़ फ़रीद जी |accessmonthday= 04 नवम्बर|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= आध्यात्मिक जगत|language= हिन्दी}}</ref>
बाबा फ़रीद के पूर्वज [[महमूद ग़ज़नवी|सुल्तान महमूद ग़ज़नवी]] के साथ संबंध रखते थे। आपके पिता ग़ज़नवी के भतीजे थे। सुलेमान पहले हिन्द आ गया, फिर वहाँ से [[लाहौर]] आ बैठा। सुलेमान का फकीरी दायरा कायम हो गया। लाहौर से उठकर जंगली इलाके मुल्क़ की तरफ़ चले गए। अन्त में पाकपटन में अपना स्थान कायम कर लिया। वहीं शेख़ बाबा फ़रीद का जन्म हुआ। बाबा फ़रीद का जन्म [[गुरु नानक देव|गुरु नानक देव जी]] से पाँच सौ साल पहले माना जाता है।<ref name="aa">{{cite web |url= https://spiritualworld.co.in/bhakto-aur-santo-ki-jivni-aur-bani-words-by-great-bhagats/bhagat-shek-farid-ji-an-introduction|title=भक्त शेख़ फ़रीद जी |accessmonthday= 04 नवम्बर|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= आध्यात्मिक जगत|language= हिन्दी}}</ref>
Line 7: Line 36:
एक दिन इनकी माता ने तपस्या के बारे में बताया तो आप ने विचार बना लिया कि युवा होकर तपस्या करेंगे। जब युवा हुए, चेतना आयी तो घर से तपस्या के लिए निकल पड़े। उन्होंने बारह साल जंगल में काटे। उनके बाल बढ़ गए व जुड़ गए। प्रभु का सिमरन करते हुए गर्मी-सर्दी में रहकर वन की पीलू, करीरों के डेले, थोहर का पक्का फल आदि खा लेते। कभी-कभी वृक्ष के पत्ते भी खा लेते। उनके मन में बारह साल [[भक्ति]] करके अहंकार आ गया। उन्होंने चिड़िया को कहा- "मर जाओ", सचमुच ही चिड़िया मर गई। "जीवित हो जाओ", वह सचमुच ही जीवित हो गई। उन्हें लगा कि उनकी भक्ति पूरी हो गई है। रिद्धियाँ-सिद्धियाँ मिल गई हैं।
एक दिन इनकी माता ने तपस्या के बारे में बताया तो आप ने विचार बना लिया कि युवा होकर तपस्या करेंगे। जब युवा हुए, चेतना आयी तो घर से तपस्या के लिए निकल पड़े। उन्होंने बारह साल जंगल में काटे। उनके बाल बढ़ गए व जुड़ गए। प्रभु का सिमरन करते हुए गर्मी-सर्दी में रहकर वन की पीलू, करीरों के डेले, थोहर का पक्का फल आदि खा लेते। कभी-कभी वृक्ष के पत्ते भी खा लेते। उनके मन में बारह साल [[भक्ति]] करके अहंकार आ गया। उन्होंने चिड़िया को कहा- "मर जाओ", सचमुच ही चिड़िया मर गई। "जीवित हो जाओ", वह सचमुच ही जीवित हो गई। उन्हें लगा कि उनकी भक्ति पूरी हो गई है। रिद्धियाँ-सिद्धियाँ मिल गई हैं।
==अंहकार का नाश==
==अंहकार का नाश==
अहंकार में भरे हुए बाबा फ़रीद पास के गाँव में पहुंच गए। अपनी प्यास बुझाने के लिए कुएँ की तरफ़ चल दिए। वहाँ पर एक स्त्री पानी का डोल निकालती व भरकर उल्टा देती। फ़रीद ने कहा "कन्या! मुझे पानी पिलाओ मैं दूर से आया हूँ।" परन्तु उस कन्या ने फ़रीद की तरफ़ ध्यान न दिया और अपने कार्य में लगी रही। बाबा फ़रीद क्रोधित हो गए और कहने लगे- "मैं कब से कह रहा हूँ मुझे पानी पिलाओ। जमीन पर पानी फैंकने से तुम्हें क्या लाभ?" कन्या ने उत्तर दिया- "मेरी बहन का घर जल रहा है, आग बुझा रही हूँ। मेरी बहन का घर यहाँ से बीस कोस दूर है।" बाबा फ़रीद यह सुनकर बहुत हैरान हुए। कन्या ने कहना शुरू किया कि- "यहाँ चिड़िया नहीं जिनको कहोगे 'मर जाओ' तो वह मर जाएँगी तथा कहोगे "उड़ जाओ" तो उड़ जाएँगी। यहाँ यह नहीं।" यह बात सुनकर बाबा फ़रीद दंग रह गए कि उसे यह बात कहाँ से ज्ञात हुई। उन्होंने कन्या से कहा- "आप चाहे मुझे पानी न पिलाएँ, परन्तु सब कुछ जानने तथा आग बुझाने की शक्ति कहाँ से प्राप्त की।" कन्या ने उत्तर दिया- "सेवा तथा पति प्रेम करती हूँ। यही तपस्या है अहंकार नहीं।" बाबा फ़रीद ने पानी पिया और क्या देखते हैं कि कुआँ खाली है, न डोल, न फिरनी, न वह कन्या। अकेले फ़रीद वहाँ खड़े थे। वह हैरान हो गए और जान गए कि परमात्मा ने यह सारा खेल रचा है।<ref name="aa"/>
अहंकार में भरे हुए बाबा फ़रीद पास के गाँव में पहुंच गए। अपनी प्यास बुझाने के लिए कुएँ की तरफ़ चल दिए। वहाँ पर एक स्त्री पानी का डोल निकालती व भरकर उल्टा देती। फ़रीद ने कहा "कन्या! मुझे पानी पिलाओ मैं दूर से आया हूँ।" परन्तु उस कन्या ने फ़रीद की तरफ़ ध्यान न दिया और अपने कार्य में लगी रही। बाबा फ़रीद क्रोधित हो गए और कहने लगे- "मैं कब से कह रहा हूँ मुझे पानी पिलाओ। जमीन पर पानी फैंकने से तुम्हें क्या लाभ?" कन्या ने उत्तर दिया- "मेरी बहन का घर जल रहा है, आग बुझा रही हूँ। मेरी बहन का घर यहाँ से बीस कोस दूर है।" बाबा फ़रीद यह सुनकर बहुत हैरान हुए। कन्या ने कहना शुरू किया कि- "यहाँ चिड़िया नहीं जिनको कहोगे 'मर जाओ' तो वह मर जाएँगी तथा कहोगे "उड़ जाओ" तो उड़ जाएँगी। यहाँ यह नहीं।" यह बात सुनकर बाबा फ़रीद दंग रह गए कि उसे यह बात कहाँ से ज्ञात हुई। उन्होंने कन्या से कहा- "आप चाहे मुझे पानी न पिलाएँ, परन्तु सब कुछ जानने तथा आग बुझाने की शक्ति कहाँ से प्राप्त की।" कन्या ने उत्तर दिया- "सेवा तथा पति प्रेम करती हूँ। यही तपस्या है अहंकार नहीं।" बाबा फ़रीद ने पानी पिया और क्या देखते हैं कि कुआँ ख़ाली है, न डोल, न फिरनी, न वह कन्या। अकेले फ़रीद वहाँ खड़े थे। वह हैरान हो गए और जान गए कि परमात्मा ने यह सारा खेल रचा है।<ref name="aa"/>
==पुन: गृह त्याग==
==पुन: गृह त्याग==
जब बाबा फ़रीद घर पहुँचे तो [[माँ]] ने देखा कि पुत्र के बाल जुड़े हुए हैं। वह उसे सवारने लगीं। फ़रीद को पीड़ा महसूस हुई। माँ कहने लगीं- "पुत्र! जिन वृक्षों के पत्ते तोड़कर खाते थे तो उनको पीड़ा नहीं होती थी? इस तरह दूसरों को दुःख देने से पीड़ा अनुभव होती है। सब में अल्लाह का नूर है, चाहे कोई पक्षी है या परिंदा।" बाबा फ़रीद को ज्ञात हो गया कि उनकी [[भक्ति]] अभी अधूरी है। जो की थी चिड़ियों की परीक्षा में गंवा ली। इस तरह उनके मन में दूसरी बार तपस्या करने का ध्यान आया। बाबा फ़रीद ने फिर घर छोड़ दिया। धरती पर गिरी हुई चीज़ ही खाते, वृक्ष से पत्ता तक न तोड़ते। इस तरह कई साल बीत गए। उनका शरीर कमजोर हो गया। प्रभु दर्शन की लालसा थी, पर भगवान के दर्शन नहीं होते थे। उस समय की शारीरिक व मानसिक अवस्था को फ़रीद ने इस तरह बयान किया है-  
जब बाबा फ़रीद घर पहुँचे तो [[माँ]] ने देखा कि पुत्र के बाल जुड़े हुए हैं। वह उसे सवारने लगीं। फ़रीद को पीड़ा महसूस हुई। माँ कहने लगीं- "पुत्र! जिन वृक्षों के पत्ते तोड़कर खाते थे तो उनको पीड़ा नहीं होती थी? इस तरह दूसरों को दुःख देने से पीड़ा अनुभव होती है। सब में अल्लाह का नूर है, चाहे कोई पक्षी है या परिंदा।" बाबा फ़रीद को ज्ञात हो गया कि उनकी [[भक्ति]] अभी अधूरी है। जो की थी चिड़ियों की परीक्षा में गंवा ली। इस तरह उनके मन में दूसरी बार तपस्या करने का ध्यान आया। बाबा फ़रीद ने फिर घर छोड़ दिया। धरती पर गिरी हुई चीज़ ही खाते, वृक्ष से पत्ता तक न तोड़ते। इस तरह कई साल बीत गए। उनका शरीर कमज़ोर हो गया। प्रभु दर्शन की लालसा थी, पर भगवान के दर्शन नहीं होते थे। उस समय की शारीरिक व मानसिक अवस्था को फ़रीद ने इस तरह बयान किया है-  


<poem>कागा करंग ढंढोलिआ सगला खाइआ मासु॥
<poem>कागा करंग ढंढोलिआ सगला खाइआ मासु॥
ऐ दुई नैना मति छुहउ पिर देखन की आस॥</poem>
ऐ दुई नैना मति छुहउ पिर देखन की आस॥</poem>


भव-शरीर पिंजर मात्र ही रह गया। इस तरह कई साल [[भक्ति]] करते बीत गए, परमेश्वर नहीं आया। प्रभु के दर्शन एक दो बार हुए। मन को संतुष्ठी हुई पर पूर्णता प्राप्त नहीं हुई। उन्हें यह ज्ञात हो गया कि बिना मुरशद धारण किए मन को संतोष प्राप्त नहीं हो सकता। इसलिए गुरु धरण करना जरुरी है।<ref name="aa"/>
भव-शरीर पिंजर मात्र ही रह गया। इस तरह कई साल [[भक्ति]] करते बीत गए, परमेश्वर नहीं आया। प्रभु के दर्शन एक दो बार हुए। मन को संतुष्ठी हुई पर पूर्णता प्राप्त नहीं हुई। उन्हें यह ज्ञात हो गया कि बिना मुरशद धारण किए मन को संतोष प्राप्त नहीं हो सकता। इसलिए गुरु धरण करना ज़रूरी है।<ref name="aa"/>
==अजमेर आगमन==
गुरु की ख़ोज में फ़रीद [[अजमेर]], [[भारत]] में [[मुईनुद्दीन चिश्ती|चिश्ती साहिब]] के पास पहुँच गए। उन्हें मुरशद मानकर सेवा करने लगे। [[भक्ति]] के लिए सेवा व श्रद्धा दो गुण चाहिए थे। आप डटकर सेवा करते रहे। कई वर्षों की सेवा के बाद हजरत चिश्ती साहिब ने प्रसन्नतापूर्वक उन्हें वर दिया और बाबा फ़रीद उनके चरण पकड़कर श्रवण करते हुए कृतार्थ हो गए।
;इस्लाम का प्रचार
बाद के समय में बाबा फ़रीद अपने घर पाकपटन लौट आए और [[इस्लाम धर्म]] का प्रचार करने लगे। नेकी, सत्य और विनय का प्रकाश चारों तरफ़ जगमगा गया तथा आपकी गद्दी का यश दूर-दूर तक फ़ैल गया। जो भी उस गद्दी पर विराजमान होता, उसका नाम फ़रीद रखा जाता। अब भी यह गद्दी करामाती गद्दी मानी जाती है।
==दोहे==
;अहिंसा का उपदेश
<poem>जो तैं मारण मुक्कियाँ, उनां ना मारो घुम्म,
अपनड़े घर जाईए, पैर तिनां दे चुम्म।</poem>


अर्थात् 'यदि कोई आपको घूँसा भी मारे तो उसे पलट कर मत मारो। उसके पैरों को चूमो और अपने घर की राह लो।'
;संतोष का उपदेश
<poem>रुखी सुक्खी खाय के, ठण्डा पाणी पी,
वेख पराई चोपड़ी, ना तरसाईये जी।</poem>
अर्थात् 'रूखी सूखी जो मिले खाओ और ठण्डा पानी पियो। दूसरे की चुपड़ी रोटी देखकर ईर्ष्या मत करो।'
;प्रभु विरह
<poem>बिरहा बिरहा आखिए, बिरहा हुं सुलतान,
जिस तन बिरहा ना उपजै, सो तन जान मसान।</poem>


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://hindi.webdunia.com/article/indian-religion-sant-mahatma/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE-%E0%A4%AB%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A6-107071600062_1.htm बाबा फ़रीद]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{भारत के संत}}{{इस्लाम धर्म}}
{{इस्लाम धर्म}}
[[Category:धर्म प्रवर्तक और संत]][[Category:सूफ़ी सम्प्रदाय]][[Category:सूफ़ी संत]][[Category:इस्लाम धर्म]][[Category:इस्लाम धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
[[Category:धर्म प्रवर्तक और संत]][[Category:सूफ़ी सम्प्रदाय]][[Category:सूफ़ी संत]][[Category:इस्लाम धर्म]][[Category:इस्लाम धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 07:43, 7 November 2017

फ़रीदुद्दीन गंजशकर
विवरण 'फ़रीदुद्दीन गंजशकर' प्रसिद्ध मुस्लिम संत तथा पंजाबी कवि थे। इनकी रचनाओं को सिक्ख गुरुओं ने 'श्री गुरु ग्रंथ साहिब' में स्थान दिया है।
अन्य नाम बाबा फ़रीद
जन्म 1172 ई. (लगभग)
जन्म स्थान गाँव खोतवाल, ज़िला मुल्तान
माता-पिता शेख़ जमान सुलेमान तथा मरियम
विशेष बाबा फ़रीद के पूर्वज सुल्तान महमूद ग़ज़नवी के साथ संबंध रखते थे। आपके पिता ग़ज़नवी के भतीजे थे।
अन्य जानकारी गुरु की ख़ोज में बाबा फ़रीद अजमेर, भारत में चिश्ती साहिब के पास आ गए थे। उन्हें मुरशद मानकर उनकी सेवा करते थे।

बाबा फ़रीद (अंग्रेज़ी: Fariduddin Ganjshakar , 1172-1266 ई.; पूरा नाम- 'हजरत ख़्वाजा फ़रीदुद्दीन गंजशकर') दक्षिण एशिया में पंजाब क्षेत्र के एक प्रसिद्ध मुस्लिम संत थे। इन्हें उच्च कोटि के पंजाबी कवि के रूप में भी प्रसिद्धि प्राप्त थी। इनकी रचनाओं को सिक्ख गुरुओं ने सम्मान सहित 'श्री गुरु ग्रंथ साहिब' में स्थान दिया है। वर्तमान समय में भारत के पंजाब प्रांत में स्थित फरीदकोट शहर का नाम बाबा फ़रीद पर ही रखा गया था। इसी शहर में उनकी मज़ार भी है।

परिचय

बाबा फ़रीद का जन्म 1172 ई. में गाँव खोतवाल, ज़िला मुल्तान में हुआ था। इनके पिता का नाम शेख़ जमान सुलेमान तथा माता का नाम मरियम था। इनकी माता धर्मात्मा इस्लामी तालीम की ज्ञाता थीं। वह शुद्ध हृदय वाली व ईमानदार थीं। उनकी शिक्षा का प्रभाव फ़रीद के ऊपर बचपन में ही पड़ गया था। फ़रीद 12 साल से पहले ही क़ुरान मजीद का अध्ययन कर गए। यह भी कहा जाता है कि मौखिक रूप से पहले ही याद कर लिया तथा धार्मिक परिपक्व हो गए। इनके पिता मशहूर सूफ़ी थे।

बाबा फ़रीद के पूर्वज सुल्तान महमूद ग़ज़नवी के साथ संबंध रखते थे। आपके पिता ग़ज़नवी के भतीजे थे। सुलेमान पहले हिन्द आ गया, फिर वहाँ से लाहौर आ बैठा। सुलेमान का फकीरी दायरा कायम हो गया। लाहौर से उठकर जंगली इलाके मुल्क़ की तरफ़ चले गए। अन्त में पाकपटन में अपना स्थान कायम कर लिया। वहीं शेख़ बाबा फ़रीद का जन्म हुआ। बाबा फ़रीद का जन्म गुरु नानक देव जी से पाँच सौ साल पहले माना जाता है।[1]

तपस्या

एक दिन इनकी माता ने तपस्या के बारे में बताया तो आप ने विचार बना लिया कि युवा होकर तपस्या करेंगे। जब युवा हुए, चेतना आयी तो घर से तपस्या के लिए निकल पड़े। उन्होंने बारह साल जंगल में काटे। उनके बाल बढ़ गए व जुड़ गए। प्रभु का सिमरन करते हुए गर्मी-सर्दी में रहकर वन की पीलू, करीरों के डेले, थोहर का पक्का फल आदि खा लेते। कभी-कभी वृक्ष के पत्ते भी खा लेते। उनके मन में बारह साल भक्ति करके अहंकार आ गया। उन्होंने चिड़िया को कहा- "मर जाओ", सचमुच ही चिड़िया मर गई। "जीवित हो जाओ", वह सचमुच ही जीवित हो गई। उन्हें लगा कि उनकी भक्ति पूरी हो गई है। रिद्धियाँ-सिद्धियाँ मिल गई हैं।

अंहकार का नाश

अहंकार में भरे हुए बाबा फ़रीद पास के गाँव में पहुंच गए। अपनी प्यास बुझाने के लिए कुएँ की तरफ़ चल दिए। वहाँ पर एक स्त्री पानी का डोल निकालती व भरकर उल्टा देती। फ़रीद ने कहा "कन्या! मुझे पानी पिलाओ मैं दूर से आया हूँ।" परन्तु उस कन्या ने फ़रीद की तरफ़ ध्यान न दिया और अपने कार्य में लगी रही। बाबा फ़रीद क्रोधित हो गए और कहने लगे- "मैं कब से कह रहा हूँ मुझे पानी पिलाओ। जमीन पर पानी फैंकने से तुम्हें क्या लाभ?" कन्या ने उत्तर दिया- "मेरी बहन का घर जल रहा है, आग बुझा रही हूँ। मेरी बहन का घर यहाँ से बीस कोस दूर है।" बाबा फ़रीद यह सुनकर बहुत हैरान हुए। कन्या ने कहना शुरू किया कि- "यहाँ चिड़िया नहीं जिनको कहोगे 'मर जाओ' तो वह मर जाएँगी तथा कहोगे "उड़ जाओ" तो उड़ जाएँगी। यहाँ यह नहीं।" यह बात सुनकर बाबा फ़रीद दंग रह गए कि उसे यह बात कहाँ से ज्ञात हुई। उन्होंने कन्या से कहा- "आप चाहे मुझे पानी न पिलाएँ, परन्तु सब कुछ जानने तथा आग बुझाने की शक्ति कहाँ से प्राप्त की।" कन्या ने उत्तर दिया- "सेवा तथा पति प्रेम करती हूँ। यही तपस्या है अहंकार नहीं।" बाबा फ़रीद ने पानी पिया और क्या देखते हैं कि कुआँ ख़ाली है, न डोल, न फिरनी, न वह कन्या। अकेले फ़रीद वहाँ खड़े थे। वह हैरान हो गए और जान गए कि परमात्मा ने यह सारा खेल रचा है।[1]

पुन: गृह त्याग

जब बाबा फ़रीद घर पहुँचे तो माँ ने देखा कि पुत्र के बाल जुड़े हुए हैं। वह उसे सवारने लगीं। फ़रीद को पीड़ा महसूस हुई। माँ कहने लगीं- "पुत्र! जिन वृक्षों के पत्ते तोड़कर खाते थे तो उनको पीड़ा नहीं होती थी? इस तरह दूसरों को दुःख देने से पीड़ा अनुभव होती है। सब में अल्लाह का नूर है, चाहे कोई पक्षी है या परिंदा।" बाबा फ़रीद को ज्ञात हो गया कि उनकी भक्ति अभी अधूरी है। जो की थी चिड़ियों की परीक्षा में गंवा ली। इस तरह उनके मन में दूसरी बार तपस्या करने का ध्यान आया। बाबा फ़रीद ने फिर घर छोड़ दिया। धरती पर गिरी हुई चीज़ ही खाते, वृक्ष से पत्ता तक न तोड़ते। इस तरह कई साल बीत गए। उनका शरीर कमज़ोर हो गया। प्रभु दर्शन की लालसा थी, पर भगवान के दर्शन नहीं होते थे। उस समय की शारीरिक व मानसिक अवस्था को फ़रीद ने इस तरह बयान किया है-

कागा करंग ढंढोलिआ सगला खाइआ मासु॥
ऐ दुई नैना मति छुहउ पिर देखन की आस॥

भव-शरीर पिंजर मात्र ही रह गया। इस तरह कई साल भक्ति करते बीत गए, परमेश्वर नहीं आया। प्रभु के दर्शन एक दो बार हुए। मन को संतुष्ठी हुई पर पूर्णता प्राप्त नहीं हुई। उन्हें यह ज्ञात हो गया कि बिना मुरशद धारण किए मन को संतोष प्राप्त नहीं हो सकता। इसलिए गुरु धरण करना ज़रूरी है।[1]

अजमेर आगमन

गुरु की ख़ोज में फ़रीद अजमेर, भारत में चिश्ती साहिब के पास पहुँच गए। उन्हें मुरशद मानकर सेवा करने लगे। भक्ति के लिए सेवा व श्रद्धा दो गुण चाहिए थे। आप डटकर सेवा करते रहे। कई वर्षों की सेवा के बाद हजरत चिश्ती साहिब ने प्रसन्नतापूर्वक उन्हें वर दिया और बाबा फ़रीद उनके चरण पकड़कर श्रवण करते हुए कृतार्थ हो गए।

इस्लाम का प्रचार

बाद के समय में बाबा फ़रीद अपने घर पाकपटन लौट आए और इस्लाम धर्म का प्रचार करने लगे। नेकी, सत्य और विनय का प्रकाश चारों तरफ़ जगमगा गया तथा आपकी गद्दी का यश दूर-दूर तक फ़ैल गया। जो भी उस गद्दी पर विराजमान होता, उसका नाम फ़रीद रखा जाता। अब भी यह गद्दी करामाती गद्दी मानी जाती है।

दोहे

अहिंसा का उपदेश

जो तैं मारण मुक्कियाँ, उनां ना मारो घुम्म,
अपनड़े घर जाईए, पैर तिनां दे चुम्म।

अर्थात् 'यदि कोई आपको घूँसा भी मारे तो उसे पलट कर मत मारो। उसके पैरों को चूमो और अपने घर की राह लो।'

संतोष का उपदेश

रुखी सुक्खी खाय के, ठण्डा पाणी पी,
वेख पराई चोपड़ी, ना तरसाईये जी।

अर्थात् 'रूखी सूखी जो मिले खाओ और ठण्डा पानी पियो। दूसरे की चुपड़ी रोटी देखकर ईर्ष्या मत करो।'

प्रभु विरह

बिरहा बिरहा आखिए, बिरहा हुं सुलतान,
जिस तन बिरहा ना उपजै, सो तन जान मसान।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 भक्त शेख़ फ़रीद जी (हिन्दी) आध्यात्मिक जगत। अभिगमन तिथि: 04 नवम्बर, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख