भालजी पेंढारकर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
(3 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 9: Line 9:
|मृत्यु=[[28 नवम्बर]], [[1994]]
|मृत्यु=[[28 नवम्बर]], [[1994]]
|मृत्यु स्थान=
|मृत्यु स्थान=
|अविभावक=
|अभिभावक=
|पति/पत्नी=
|पति/पत्नी=
|संतान=
|संतान=
Line 15: Line 15:
|कर्म-क्षेत्र=फ़िल्म निर्माता-निर्देशक, पटकथा लेखक
|कर्म-क्षेत्र=फ़िल्म निर्माता-निर्देशक, पटकथा लेखक
|मुख्य रचनाएँ=
|मुख्य रचनाएँ=
|मुख्य फ़िल्में= नेताजी पालकर, थोरतंची कमल, छत्रपति शिवाजी, मराठा तुतुका मेलवावा, ताम्ब्डी माटी
|मुख्य फ़िल्में= 'नेताजी पालकर', 'थोरतंची कमल', 'छत्रपति शिवाजी', 'मराठा तुतुका मेलवावा', 'ताम्ब्डी माटी' आदि।
|विषय=
|विषय=
|शिक्षा=
|शिक्षा=
Line 32: Line 32:
|अद्यतन=
|अद्यतन=
}}
}}
'''भालजी पेंढारकर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bhalji Pendharkar'', जन्म: [[1898]] – मृत्यु: [[28 नवम्बर]], [[1994]]) प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक थे।
'''भालजी पेंढारकर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bhalji Pendharkar'', जन्म: [[1898]] – मृत्यु: [[28 नवम्बर]], [[1994]]) प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक थे। इन्हें सन् [[1991]] में [[सिनेमा]] के सर्वोच्च पुरस्कार [[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया था। इनका पूरा नाम 'भालचंद्र गोपाल पेंढारकर' था।
*इन्हें सन् [[1991]] में [[सिनेमा]] के सर्वोच्च पुरस्कार [[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया है।
*इनका पूरा नाम 'भालचंद्र गोपाल पेंढारकर' था।
==कार्यक्षेत्र==
==कार्यक्षेत्र==
भालचंद्र गोपाल पेंढारकर ने मराठी फिल्मों को जिस तरह संवारा वह अद्भुत है। [[भारत]] का पहला देसी कैमरा बनाने वाले बाबूराव ने [[1925]] में बनाई गई भारत की पहली प्रयोगवादी फिल्म ‘सावकारी पाश’ को [[1936]] में आवाज दी। ‘सिंहगढ़’ की शूटिंग के लिए उन्होंने पहली बार रिफलेक्टर का इस्तेमाल किया। पेंढारकर [[पुणे]] के सिनेमाघर में गेटकीपर थे। [[1927]] में ‘वंदे मातरम आश्रम’ बनाने की वजह से गिरफ्तार हुए पेंढारकर ने 88 साल की उम्र में अपनी आखिरी फिल्म ‘शाबास सुनवाई’ बनाई।  
भालचंद्र गोपाल पेंढारकर ने मराठी फ़िल्मों को जिस तरह संवारा वह अद्भुत है। [[भारत]] का पहला देसी कैमरा बनाने वाले बाबूराव ने [[1925]] में बनाई गई भारत की पहली प्रयोगवादी फ़िल्म ‘सावकारी पाश’ को [[1936]] में आवाज दी। ‘सिंहगढ़’ की शूटिंग के लिए उन्होंने पहली बार रिफलेक्टर का इस्तेमाल किया। पेंढारकर [[पुणे]] के सिनेमाघर में गेटकीपर थे। [[1927]] में ‘वंदे मातरम आश्रम’ बनाने की वजह से गिरफ्तार हुए पेंढारकर ने 88 साल की उम्र में अपनी आखिरी फ़िल्म ‘शाबाश सुनवाई’ बनाई।  


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

Latest revision as of 05:25, 28 November 2017

भालजी पेंढारकर
पूरा नाम भालचंद्र गोपाल पेंढारकर
प्रसिद्ध नाम भालजी पेंढारकर
जन्म 1898
जन्म भूमि कोल्हापुर, महाराष्ट्र
मृत्यु 28 नवम्बर, 1994
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र फ़िल्म निर्माता-निर्देशक, पटकथा लेखक
मुख्य फ़िल्में 'नेताजी पालकर', 'थोरतंची कमल', 'छत्रपति शिवाजी', 'मराठा तुतुका मेलवावा', 'ताम्ब्डी माटी' आदि।
पुरस्कार-उपाधि दादा साहब फाल्के पुरस्कार (1991)
नागरिकता भारतीय

भालजी पेंढारकर (अंग्रेज़ी: Bhalji Pendharkar, जन्म: 1898 – मृत्यु: 28 नवम्बर, 1994) प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक थे। इन्हें सन् 1991 में सिनेमा के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इनका पूरा नाम 'भालचंद्र गोपाल पेंढारकर' था।

कार्यक्षेत्र

भालचंद्र गोपाल पेंढारकर ने मराठी फ़िल्मों को जिस तरह संवारा वह अद्भुत है। भारत का पहला देसी कैमरा बनाने वाले बाबूराव ने 1925 में बनाई गई भारत की पहली प्रयोगवादी फ़िल्म ‘सावकारी पाश’ को 1936 में आवाज दी। ‘सिंहगढ़’ की शूटिंग के लिए उन्होंने पहली बार रिफलेक्टर का इस्तेमाल किया। पेंढारकर पुणे के सिनेमाघर में गेटकीपर थे। 1927 में ‘वंदे मातरम आश्रम’ बनाने की वजह से गिरफ्तार हुए पेंढारकर ने 88 साल की उम्र में अपनी आखिरी फ़िल्म ‘शाबाश सुनवाई’ बनाई।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख