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'''उदयन''' [[कौशांबी]] नगर के राजा [[परंतप]] का पुत्र था। राजा परंतप की गर्भिणी राजमहिषी उनके पास बैठी धूप सेंक रही थी। उसने [[लाल रंग]] का कम्बल ओढ़ा हुआ था। एक [[हाथी]] की सूरत के पक्षी ने मांस का टुकड़ा समझकर रानी को उठाया और [[आकाश तत्त्व|आकाश]] में उड़ता हुआ [[पर्वत]] की जड़ मे लगे हुए वृक्ष पर ले गया। इसी स्थान पर रानी ने कौशांबी के अगले राजा उदयन को जन्म दिया।
'''उदयन''' [[कौशांबी]] नगर के राजा [[परंतप]] का पुत्र था। कौशांबी, [[इलाहाबाद]] में नगर से प्राय: 35 मील की दूरी पर पश्चिम में बसी थी, जहाँ आज भी [[यमुना नदी]] के किनारे कोसम गाँव में उसके खंडहर उपस्थित हैं।
==जन्म==
राजा परंतप की गर्भिणी राजमहिषी उनके पास बैठी धूप सेंक रही थी। उसने [[लाल रंग]] का कम्बल ओढ़ा हुआ था। एक [[हाथी]] की सूरत के पक्षी ने मांस का टुकड़ा समझकर रानी को उठाया और [[आकाश तत्त्व|आकाश]] में उड़ता हुआ [[पर्वत]] की जड़ मे लगे हुए वृक्ष पर ले गया। इसी स्थान पर रानी ने कौशांबी के अगले राजा उदयन को जन्म दिया। जब पक्षी ने परंतप की राजमहिषी को उठा लिया, तो वह चुप रहीं, कि कहीं वह पक्षी उन्हें छोड़ न दे। पक्षी द्वारा एक पेड़ की जड़ पर रख दिये जाने के बाद उन्होंने पेड़ का सहारा पाकर ताली बजाकर शोर मचाया। उसका शोर सुनकर पक्षी उड़ गया तथा एक तापस वहाँ पर जा पहुँचा। उसने गर्भवती महिषी को अपने आवास में स्थान दिया। पुत्र जन्म के उपरान्त भी वह वर्षों तक तापस के पास रही। रानी के पुत्र का नाम उदयन रखा गया था।
==कौशांबी का राजा==
अपने पिता (राजा [[परंतप]]) की मृत्यु के उपरान्त उदयन माँ के कम्बल तथा अंगूठी के साथ [[कौशांबी]] पहुँचा तथा उसने राजा का पद प्राप्त किया। वह [[संगीत]] के बल से [[हाथी|हाथियों]] को भगा देता था। एक बार राजा चंडप्रद्योत ने लकड़ी का हाथी बनवाकर उसमें सैनिक बैठाकर उदयन के पास भेजे। वह अपनी कला का प्रदर्शन करने लगा, तो सैनिक उसे पकड़कर ले गये। चंडप्रद्योत ने उदयन से उसका कौशल सीखा।
==प्रसिद्धि==
उदयन [[संस्कृत साहित्य]] की परंपरा में महान प्रणयी हो गया है और उसकी उस साहित्य में स्पेनी साहित्य के प्रिय नायक दोन जुआन से भी अधिक प्रसिद्धि है। बार-बार [[संस्कृत]] के कवियों, नाटयकारों और कथाकारों ने उसे अपनी रचनाओं का नायक बनाया है और उसकी लोकप्रियता के परिणामस्वरूप गाँवों में लोग निंरतर उसकी कथा प्राचीन काल में कहते रहे हैं। [[भास|महाकवि भास]] ने अपने दो दो नाटकों- 'स्वप्नवासवदत्ता' और 'प्रतिज्ञायौगंधरायण' में उसे अपने कथानक का नायक बनाया है। वत्सराज की कथा 'बृहत्कथा' और सोमदेव के [[कथासरित्सागर]] में भी वर्णित है। इन कृतियों से प्रकट है कि उदयन [[वीणा]] के वादन में अत्यंत कुशल था और अपने उसी व्यसन के कारण उसे [[उज्जयिनी]] में अवंतिराज [[चंडप्रद्योत |चंडप्रद्योत]] महासेन का कारागार भी भोगना पड़ा। भास के नाटक के अनुसार [[वीणा]] बजाकर [[हाथी]] पकड़ते समय छदमगज द्वारा अवंतिराज ने उसे पकड़ लिया था। बाद में उदयन प्रद्योत की कन्या वासवदत्ता के साथ हथिनी पर चढ़कर वत्स भाग गया। उस पलायन का दृश्य द्वितीय शती ईसवी पूर्व के शुंग कालीन [[मिट्टी]] के ठीकरों पर खुदा हुआ मिला है। ऐसा ठीकरा [[काशी विश्वविद्यालय]] के भारत-कला-भवन में भी सुरक्षित है। कला और साहित्य के इस परस्परावलंबन से राजा की ऐतिहासिकता पुष्ट होती है।
====ऐतिहासिक व्यक्ति====
वत्सराज उदयन नि:संदेह ऐतिहासिक व्यक्ति था और उसका उल्लेख [[साहित्य]] और कला के अतिरिक्त पुराणों और [[बौद्ध]] ग्रंथों में भी हुआ है। उदयन [[बुद्ध]] का समकालीन था और उसने तथा उसके पुत्र बोधी, दोनों ने तथागत के उपदेश सुने थे। बौद्ध ग्रंथों में वर्णित [[कौशांबी]] के बुद्ध के आवास पुनीत घोषिताराम से कौशांबों की खुदाई में उस स्थान की नामांकित पट्टिका अभी मिली है। उदयन ने [[मगध]] के राजा दर्शक की भगिनी 'पद्मावती' और अंग के राजा दृढ़वर्मा की कन्या को भी, [[वासवदत्ता]] के अतिरिक्त, संभवत: ब्याहा था। बुद्धकालीन जिन चार राजवंशों- [[मगध]], [[कौशल]], [[वत्स]], [[अवंति]], में परस्पर दीर्घकालीन संघर्ष चला था, उन्हीं में उदयन का वत्स भी था, जो कालांतर में [[अवंति]] की बढ़ती हुई सीमाओं में समा गया।
 
हाल में जो [[प्राचीन भारत]] का पुनर्जागरण हुआ है, उसके परिणामस्वरूप उदयन को नायक बनाकर की प्राय: सभी भाषाओं में नाटक और कहानियाँ लिखी गई हैं। इससे प्रकट है कि वत्सराज की साहित्यिक महिमा घटी नहीं और वह नित्यप्रति साहित्यकारों में आज भी लोकप्रिय होता जा रहा है।<ref>भगवत शरण उपाध्याय, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या 90</ref>
 
 


*जब पक्षी ने परंतप की राजमहिषी को उठा लिया, तो वह चुप रहीं, कि कहीं वह पक्षी उन्हें छोड़ न दे।
*पक्षी द्वारा एक पेड़ की जड़ पर रख दिये जाने के बाद उन्होंने पेड़ का सहारा पाकर ताली बजाकर शोर मचाया।
*उसका शोर सुनकर पक्षी उड़ गया तथा एक तापस वहाँ पर जा पहुँचा।
*उसने गर्भवती महिषी को अपने आवास में स्थान दिया।
*पुत्र जन्म के उपरान्त भी वह वर्षों तक तापस के पास रही।
*रानी के पुत्र का नाम उदयन रखा गया था।
*अपने पिता (राजा [[परंतप]]) की मृत्यु के उपरान्त उदयन माँ के कम्बल तथा अंगूठी के साथ [[कौशांबी]] पहुँचा तथा उसने राजा का पद प्राप्त किया।
*वह [[संगीत]] के बल से [[हाथी|हाथियों]] को भगा देता था।
*एक बार राजा चंडप्रद्योत ने लकड़ी का हाथी बनवाकर उसमें सैनिक बैठाकर उदयन के पास भेजे।
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*चंडप्रद्योत ने उदयन से उसका कौशल सीखा।


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==संबंधित लेख==
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Latest revision as of 11:05, 8 January 2020

चित्र:Disamb2.jpg उदयन एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- उदयन (बहुविकल्पी)

उदयन कौशांबी नगर के राजा परंतप का पुत्र था। कौशांबी, इलाहाबाद में नगर से प्राय: 35 मील की दूरी पर पश्चिम में बसी थी, जहाँ आज भी यमुना नदी के किनारे कोसम गाँव में उसके खंडहर उपस्थित हैं।

जन्म

राजा परंतप की गर्भिणी राजमहिषी उनके पास बैठी धूप सेंक रही थी। उसने लाल रंग का कम्बल ओढ़ा हुआ था। एक हाथी की सूरत के पक्षी ने मांस का टुकड़ा समझकर रानी को उठाया और आकाश में उड़ता हुआ पर्वत की जड़ मे लगे हुए वृक्ष पर ले गया। इसी स्थान पर रानी ने कौशांबी के अगले राजा उदयन को जन्म दिया। जब पक्षी ने परंतप की राजमहिषी को उठा लिया, तो वह चुप रहीं, कि कहीं वह पक्षी उन्हें छोड़ न दे। पक्षी द्वारा एक पेड़ की जड़ पर रख दिये जाने के बाद उन्होंने पेड़ का सहारा पाकर ताली बजाकर शोर मचाया। उसका शोर सुनकर पक्षी उड़ गया तथा एक तापस वहाँ पर जा पहुँचा। उसने गर्भवती महिषी को अपने आवास में स्थान दिया। पुत्र जन्म के उपरान्त भी वह वर्षों तक तापस के पास रही। रानी के पुत्र का नाम उदयन रखा गया था।

कौशांबी का राजा

अपने पिता (राजा परंतप) की मृत्यु के उपरान्त उदयन माँ के कम्बल तथा अंगूठी के साथ कौशांबी पहुँचा तथा उसने राजा का पद प्राप्त किया। वह संगीत के बल से हाथियों को भगा देता था। एक बार राजा चंडप्रद्योत ने लकड़ी का हाथी बनवाकर उसमें सैनिक बैठाकर उदयन के पास भेजे। वह अपनी कला का प्रदर्शन करने लगा, तो सैनिक उसे पकड़कर ले गये। चंडप्रद्योत ने उदयन से उसका कौशल सीखा।

प्रसिद्धि

उदयन संस्कृत साहित्य की परंपरा में महान प्रणयी हो गया है और उसकी उस साहित्य में स्पेनी साहित्य के प्रिय नायक दोन जुआन से भी अधिक प्रसिद्धि है। बार-बार संस्कृत के कवियों, नाटयकारों और कथाकारों ने उसे अपनी रचनाओं का नायक बनाया है और उसकी लोकप्रियता के परिणामस्वरूप गाँवों में लोग निंरतर उसकी कथा प्राचीन काल में कहते रहे हैं। महाकवि भास ने अपने दो दो नाटकों- 'स्वप्नवासवदत्ता' और 'प्रतिज्ञायौगंधरायण' में उसे अपने कथानक का नायक बनाया है। वत्सराज की कथा 'बृहत्कथा' और सोमदेव के कथासरित्सागर में भी वर्णित है। इन कृतियों से प्रकट है कि उदयन वीणा के वादन में अत्यंत कुशल था और अपने उसी व्यसन के कारण उसे उज्जयिनी में अवंतिराज चंडप्रद्योत महासेन का कारागार भी भोगना पड़ा। भास के नाटक के अनुसार वीणा बजाकर हाथी पकड़ते समय छदमगज द्वारा अवंतिराज ने उसे पकड़ लिया था। बाद में उदयन प्रद्योत की कन्या वासवदत्ता के साथ हथिनी पर चढ़कर वत्स भाग गया। उस पलायन का दृश्य द्वितीय शती ईसवी पूर्व के शुंग कालीन मिट्टी के ठीकरों पर खुदा हुआ मिला है। ऐसा ठीकरा काशी विश्वविद्यालय के भारत-कला-भवन में भी सुरक्षित है। कला और साहित्य के इस परस्परावलंबन से राजा की ऐतिहासिकता पुष्ट होती है।

ऐतिहासिक व्यक्ति

वत्सराज उदयन नि:संदेह ऐतिहासिक व्यक्ति था और उसका उल्लेख साहित्य और कला के अतिरिक्त पुराणों और बौद्ध ग्रंथों में भी हुआ है। उदयन बुद्ध का समकालीन था और उसने तथा उसके पुत्र बोधी, दोनों ने तथागत के उपदेश सुने थे। बौद्ध ग्रंथों में वर्णित कौशांबी के बुद्ध के आवास पुनीत घोषिताराम से कौशांबों की खुदाई में उस स्थान की नामांकित पट्टिका अभी मिली है। उदयन ने मगध के राजा दर्शक की भगिनी 'पद्मावती' और अंग के राजा दृढ़वर्मा की कन्या को भी, वासवदत्ता के अतिरिक्त, संभवत: ब्याहा था। बुद्धकालीन जिन चार राजवंशों- मगध, कौशल, वत्स, अवंति, में परस्पर दीर्घकालीन संघर्ष चला था, उन्हीं में उदयन का वत्स भी था, जो कालांतर में अवंति की बढ़ती हुई सीमाओं में समा गया।

हाल में जो प्राचीन भारत का पुनर्जागरण हुआ है, उसके परिणामस्वरूप उदयन को नायक बनाकर की प्राय: सभी भाषाओं में नाटक और कहानियाँ लिखी गई हैं। इससे प्रकट है कि वत्सराज की साहित्यिक महिमा घटी नहीं और वह नित्यप्रति साहित्यकारों में आज भी लोकप्रिय होता जा रहा है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 99 |

  1. भगवत शरण उपाध्याय, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या 90

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