अभयाकर गुप्त: Difference between revisions
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*डॉ. भट्टाचार्य अभयाकर गुप्त को [[बंगाल]] में उत्पन्न, [[मगध]] में शिक्षित और विक्रमशिला विहार में प्रसिद्ध मानते हैं। | |||
*डॉ. पी. एन. बोस अभयाकर गुप्त को रामपाल का समकालीन मानते हैं। | |||
*तेंजूर से अभयाकर गुप्त के 18 ग्रंथों का पता चलता है जिसमें कालचक्र, चक्रसंवर, अभिषेक, स्वाधिष्ठानक्रम, ज्ञानडाकिनी, महाकाल, बुद्धकपाल, पंचक्रम, वर्ज्यान जैसे विविधि तांत्रिक बौद्ध विषयों का विवेचन किया गया है। | |||
*अभयाकर गुप्त ने अनेक बौद्ध ग्रंथों की टीकाएँ भी लिखी थीं। | |||
*तेंजूर में अभयाकर गुप्त को पंडित, महापंडित, आचार्य, सिद्ध, स्थविर आदि विशेषणों के साथ स्मरण किया गया है। इस ग्रंथ में इन्हें 'मगधनिवासी' कहा गया है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=173 |url=}}</ref> | |||
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अभयाकर गुप्त भारत और तिब्बत में प्रसिद्ध तांत्रिक बौद्ध आचार्य थे, जिनका समय डॉ. विनयतोष भट्टाचार्य के अनुसार 1084-1130 ई. है।
- अभयाकर गुप्त तिब्बती भाषा में निपुण थे और इन्होंने उसमें अनेक भारतीय ग्रंथों का अनुवाद भी किया।
- डॉ. भट्टाचार्य अभयाकर गुप्त को बंगाल में उत्पन्न, मगध में शिक्षित और विक्रमशिला विहार में प्रसिद्ध मानते हैं।
- डॉ. पी. एन. बोस अभयाकर गुप्त को रामपाल का समकालीन मानते हैं।
- तेंजूर से अभयाकर गुप्त के 18 ग्रंथों का पता चलता है जिसमें कालचक्र, चक्रसंवर, अभिषेक, स्वाधिष्ठानक्रम, ज्ञानडाकिनी, महाकाल, बुद्धकपाल, पंचक्रम, वर्ज्यान जैसे विविधि तांत्रिक बौद्ध विषयों का विवेचन किया गया है।
- अभयाकर गुप्त ने अनेक बौद्ध ग्रंथों की टीकाएँ भी लिखी थीं।
- तेंजूर में अभयाकर गुप्त को पंडित, महापंडित, आचार्य, सिद्ध, स्थविर आदि विशेषणों के साथ स्मरण किया गया है। इस ग्रंथ में इन्हें 'मगधनिवासी' कहा गया है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 173 |