मृत्यु: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
नवनीत कुमार (talk | contribs) No edit summary |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) m (Text replacement - "मुताबिक" to "मुताबिक़") |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 9: | Line 9: | ||
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि र्गृीति नरोऽपराणि। | वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि र्गृीति नरोऽपराणि। | ||
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संजाति नवानि देही।</blockquote> | तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संजाति नवानि देही।</blockquote> | ||
गीता के इन वचनों के साथ [[भागवत]] की बात भी याद पड़ी, उसमें [[वासुदेव|वासुदेव जी]] ने [[कंस]] को समझाते हुए कहा है कि, “जब मनुष्य मर जाता है तो जीव अपनी करनी के | गीता के इन वचनों के साथ [[भागवत]] की बात भी याद पड़ी, उसमें [[वासुदेव|वासुदेव जी]] ने [[कंस]] को समझाते हुए कहा है कि, “जब मनुष्य मर जाता है तो जीव अपनी करनी के मुताबिक़ बेबसों की तरह दूसरी देह को पाकर अपनी पुरानी देह को छोड़ देता है-” | ||
<blockquote> | <blockquote> | ||
''देहे पंचत्वमापन्ने देही कर्मानुगोऽवश:। | ''देहे पंचत्वमापन्ने देही कर्मानुगोऽवश:। | ||
Line 22: | Line 22: | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{हिन्दू | {{हिन्दू धर्म}} | ||
[[Category:हिन्दू | [[Category:हिन्दू धर्म]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म]][[Category:विविध]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Latest revision as of 09:53, 11 February 2021
मृत्यु का अर्थ है- "जीवन का अन्त, आयु की समाप्ति, मरण अथवा देहान्त।
- 'गीता' में कहा गया है कि- "जैसे जीव के इस देह के लिए लड़कपन, जवानी और बुढ़ापा है, उसी तरह उसके लिए दूसरी देह को पाना (मरना) है, जो लोग धीरज वाले हैं, उनको इससे घबराहट नहीं होती।"[1]
यथा देही शरीरेऽस्मिन् , कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तर प्राप्तिधीरस्तत्र न मुह्यति।
“जैसे पुराने कपड़े को उतार कर मनुष्य दूसरे नये कपड़े को पहनता है उसी तरह से पुरानी देह छोड़कर जीव दूसरी नयी देह में चला जाता है।”
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि र्गृीति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संजाति नवानि देही।
गीता के इन वचनों के साथ भागवत की बात भी याद पड़ी, उसमें वासुदेव जी ने कंस को समझाते हुए कहा है कि, “जब मनुष्य मर जाता है तो जीव अपनी करनी के मुताबिक़ बेबसों की तरह दूसरी देह को पाकर अपनी पुरानी देह को छोड़ देता है-”
देहे पंचत्वमापन्ने देही कर्मानुगोऽवश:।
देहान्तरमनुप्राप्य प्राक्तनं त्यज्यते वपु : ।
जैसे 'तृण जलौका' चलने के समय जब एक पाँव रख लेता है, तब दूसरा पाँव उठाता है, उसी प्रकार करनी के अनुसार जीव की भी गति है।
ब्रजस्तिष्ठ न्यदैकेन यथैवैकेन गच्छति।
यथा तृण जलौकैवं देही कर्म गतिं गत : ।
हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों गीता और भागवत पुराण में यह उल्लेख मिलता है कि मृत्यु और कुछ नहीं एक प्रकार का परिवर्तन है।[1]
|
|
|
|
|
संबंधित लेख