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'''संस्मरण''' [[साहित्य]] की एक विधा है। स्मृति के आधार पर किसी विषय पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख 'संस्मरण' कहलाता है। संस्मरण को साहित्यिक निबन्ध की एक प्रवृत्ति भी माना जा सकता है। ऐसी रचनाओं को संस्मरणात्मक निबंध कहा जा सकता है। जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी घट जाती हैं जिनके साथ हम जुड से जाते हैं। उन्हें याद करना तथा ऐसे संस्मरण सुनना-सुनाना अपने आप में आंनद का स्त्रोत है। आत्मकथाएं संस्मरणों का विस्तृत रूपाकार ही हैं। आत्मकथाओं के जरिये हमें इस संसार के महान, सफलतम लोगों के जीवन के सकारात्मक - नकारात्मक | '''संस्मरण''' [[साहित्य]] की एक विधा है। स्मृति के आधार पर किसी विषय पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख 'संस्मरण' कहलाता है। संस्मरण को साहित्यिक निबन्ध की एक प्रवृत्ति भी माना जा सकता है। ऐसी रचनाओं को संस्मरणात्मक निबंध कहा जा सकता है। जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी घट जाती हैं जिनके साथ हम जुड से जाते हैं। उन्हें याद करना तथा ऐसे संस्मरण सुनना-सुनाना अपने आप में आंनद का स्त्रोत है। आत्मकथाएं संस्मरणों का विस्तृत रूपाकार ही हैं। आत्मकथाओं के जरिये हमें इस संसार के महान, सफलतम लोगों के जीवन के सकारात्मक - नकारात्मक ख़ासो - आम घटनाक्रम के भीतर झांकने का अवसर मिलता है। यात्रा साहित्य भी इसके अन्तर्गत आता है। | ||
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व्यापक रूप से संस्मरण आत्मचरित के अन्तर्गत लिया जा सकता है। किन्तु संस्मरण और आत्मचरित के दृष्टिकोण में मौलिक अन्तर है। आत्मचरित के लेखक का मुख्य उद्देश्य अपनी जीवनकथा का वर्णन करना होता है। इसमें कथा का प्रमुख पात्र स्वयं लेखक होता है। संस्मरण लेखक का दृष्टिकोण भिन्न रहता है। संस्मरण में लेखक जो कुछ स्वयं देखता है और स्वयं अनुभव करता है उसी का चित्रण करता है। लेखक की स्वयं की अनुभूतियाँ तथा संवेदनाएँ संस्मरण में अन्तर्निहित रहती हैं। इस दृष्टि से संस्मरण का लेखक निबन्धकार के अधिक निकट है। वह अपने चारों ओर के जीवन का वर्णन करता है। [[इतिहासकार]] के समान वह केवल यथातथ्य विवरण प्रस्तुत नहीं करता है। पाश्चात्य साहित्य में साहित्यकारों के अतिरिक्त अनेक राजनेताओं तथा सेनानायकों ने भी अपने संस्मरण लिखे हैं, जिनके साहित्यिक महत्त्व को स्वीकारा गया है। | व्यापक रूप से संस्मरण आत्मचरित के अन्तर्गत लिया जा सकता है। किन्तु संस्मरण और आत्मचरित के दृष्टिकोण में मौलिक अन्तर है। आत्मचरित के लेखक का मुख्य उद्देश्य अपनी जीवनकथा का वर्णन करना होता है। इसमें कथा का प्रमुख पात्र स्वयं लेखक होता है। संस्मरण लेखक का दृष्टिकोण भिन्न रहता है। संस्मरण में लेखक जो कुछ स्वयं देखता है और स्वयं अनुभव करता है उसी का चित्रण करता है। लेखक की स्वयं की अनुभूतियाँ तथा संवेदनाएँ संस्मरण में अन्तर्निहित रहती हैं। इस दृष्टि से संस्मरण का लेखक निबन्धकार के अधिक निकट है। वह अपने चारों ओर के जीवन का वर्णन करता है। [[इतिहासकार]] के समान वह केवल यथातथ्य विवरण प्रस्तुत नहीं करता है। पाश्चात्य साहित्य में साहित्यकारों के अतिरिक्त अनेक राजनेताओं तथा सेनानायकों ने भी अपने संस्मरण लिखे हैं, जिनके साहित्यिक महत्त्व को स्वीकारा गया है। | ||
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[[चित्र:Smiriti-Ki-Rekhayein.jpg|thumb|स्मृति की रेखाएँ
महादेवी वर्मा का प्रसिद्ध संस्मरण]]
संस्मरण साहित्य की एक विधा है। स्मृति के आधार पर किसी विषय पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख 'संस्मरण' कहलाता है। संस्मरण को साहित्यिक निबन्ध की एक प्रवृत्ति भी माना जा सकता है। ऐसी रचनाओं को संस्मरणात्मक निबंध कहा जा सकता है। जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी घट जाती हैं जिनके साथ हम जुड से जाते हैं। उन्हें याद करना तथा ऐसे संस्मरण सुनना-सुनाना अपने आप में आंनद का स्त्रोत है। आत्मकथाएं संस्मरणों का विस्तृत रूपाकार ही हैं। आत्मकथाओं के जरिये हमें इस संसार के महान, सफलतम लोगों के जीवन के सकारात्मक - नकारात्मक ख़ासो - आम घटनाक्रम के भीतर झांकने का अवसर मिलता है। यात्रा साहित्य भी इसके अन्तर्गत आता है।
संस्मरण और आत्मचरित
व्यापक रूप से संस्मरण आत्मचरित के अन्तर्गत लिया जा सकता है। किन्तु संस्मरण और आत्मचरित के दृष्टिकोण में मौलिक अन्तर है। आत्मचरित के लेखक का मुख्य उद्देश्य अपनी जीवनकथा का वर्णन करना होता है। इसमें कथा का प्रमुख पात्र स्वयं लेखक होता है। संस्मरण लेखक का दृष्टिकोण भिन्न रहता है। संस्मरण में लेखक जो कुछ स्वयं देखता है और स्वयं अनुभव करता है उसी का चित्रण करता है। लेखक की स्वयं की अनुभूतियाँ तथा संवेदनाएँ संस्मरण में अन्तर्निहित रहती हैं। इस दृष्टि से संस्मरण का लेखक निबन्धकार के अधिक निकट है। वह अपने चारों ओर के जीवन का वर्णन करता है। इतिहासकार के समान वह केवल यथातथ्य विवरण प्रस्तुत नहीं करता है। पाश्चात्य साहित्य में साहित्यकारों के अतिरिक्त अनेक राजनेताओं तथा सेनानायकों ने भी अपने संस्मरण लिखे हैं, जिनके साहित्यिक महत्त्व को स्वीकारा गया है।
इतिहास
संस्मरणों को साहित्यिक रूप में लिखे जाने का प्रचलन आधुनिक काल में पाश्चात्य प्रभाव के कारण हुआ लेकिन हिन्दी साहित्य में संस्मरणात्मक आलेखों की गद्य विधा का पर्याप्त विकास हुआ है। संस्मरण लेखन के क्षेत्र में अत्यन्त प्रौढ तथा श्रेष्ठ रचनायें हिन्दी साहित्य में उपलब्ध हैं।
श्रेष्ठ कृतियाँ
हिन्दी के प्रारंभिक संस्मरण लेखकों में बनारसीदास चतुर्वेदी, महादेवी वर्मा तथा रामवृक्ष बेनीपुरी आदि हैं। चतुर्वेदी ने "संस्मरण" तथा "हमारे अपराध" शीर्षक कृतियों में अपने विविध संस्मरण आकर्षक शैली में लिखे हैं। हिन्दी के अनेक अन्य लेखकों तथा लेखिकाओं ने भी बहुत अच्छे संस्मरण लिखे हैं। उनमें से कुछ साहित्यकारों का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा। श्रीमती महादेवी वर्मा की "स्मृति की रेखाएँ" तथा "अतीत के चलचित्र" संस्मरण साहित्य की श्रेष्ठ कृतियाँ हैं। रामबृक्ष बेनीपुरी की कृति "माटी की मूरतें" में जीवन में अनायास मिलने वाले सामान्य व्यक्तियों का सजीव एवं संवेदनात्मक कोमल चित्रण किया गया है। इनके अतिरिक्त कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर ने "भूले हुए चेहरे" तथा "दीपजले शंख बजे" में अपने कतिपय अच्छे और आकर्षक संस्मरण संकलित किये। गुलाबराय की कृति "मेरी असफलताएँ" को संस्मरणात्मक निबन्ध की कोटि में रखा जा सकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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