नमक सत्याग्रह: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - "कार्यवाही" to "कार्रवाई")
 
(2 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 9: Line 9:
राजनीति की गति एक बार फिर बढ़ गई थी। [[26 फ़रवरी]], [[1930]] को विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फ़हराकर और देशभक्ति के गीत गाकर ‘[[स्वतंत्रता दिवस]]’ मनाया गया। गाँधीजी ने स्वयं सुस्पष्ट निर्देश देकर बताया कि इस दिन को कैसे मनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि स्वतंत्रता की उद्घोषणा सभी गाँवों और शहरों में हो, अच्छा होगा। गाँधीजी ने सुझाव दिया कि नगाड़े पीटकर पारंपरिक तरीके से संगोष्ठी के समय की घोषणा की जाए। समारोहों की शुरुआत राष्ट्रीय ध्वज को फ़हराए जाने से होगी। दिन का बाकी हिस्सा किसी रचनात्मक कार्य में चाहे वह सूत कताई हो अथवा ‘अछूतों’ की सेवा अथवा हिंदुओं व मुसलमानों का पुनर्मिलन अथवा निषिद्ध कार्य अथवा ये सभी एक साथ करने में व्यतीत होगा और यह असंभव नहीं है। इसमें भाग लेने वाले लोग दृढ़तापूर्वक यह प्रतिज्ञा लेंगे कि अन्य लोगों की तरह भारतीय लोगों को भी स्वतंत्रता और अपने कठिन परिश्रम के फल का आनंद लेने का अहरणीय अधिकार है और यह कि यदि कोई भी सरकार लोगों को इन अधिकारों से वंचित रखती है या उनका दमन करती है तो लोगों को इन्हें बदलने अथवा समाप्त करने का भी अधिकार है।
राजनीति की गति एक बार फिर बढ़ गई थी। [[26 फ़रवरी]], [[1930]] को विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फ़हराकर और देशभक्ति के गीत गाकर ‘[[स्वतंत्रता दिवस]]’ मनाया गया। गाँधीजी ने स्वयं सुस्पष्ट निर्देश देकर बताया कि इस दिन को कैसे मनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि स्वतंत्रता की उद्घोषणा सभी गाँवों और शहरों में हो, अच्छा होगा। गाँधीजी ने सुझाव दिया कि नगाड़े पीटकर पारंपरिक तरीके से संगोष्ठी के समय की घोषणा की जाए। समारोहों की शुरुआत राष्ट्रीय ध्वज को फ़हराए जाने से होगी। दिन का बाकी हिस्सा किसी रचनात्मक कार्य में चाहे वह सूत कताई हो अथवा ‘अछूतों’ की सेवा अथवा हिंदुओं व मुसलमानों का पुनर्मिलन अथवा निषिद्ध कार्य अथवा ये सभी एक साथ करने में व्यतीत होगा और यह असंभव नहीं है। इसमें भाग लेने वाले लोग दृढ़तापूर्वक यह प्रतिज्ञा लेंगे कि अन्य लोगों की तरह भारतीय लोगों को भी स्वतंत्रता और अपने कठिन परिश्रम के फल का आनंद लेने का अहरणीय अधिकार है और यह कि यदि कोई भी सरकार लोगों को इन अधिकारों से वंचित रखती है या उनका दमन करती है तो लोगों को इन्हें बदलने अथवा समाप्त करने का भी अधिकार है।
==नमक यात्राओं का आयोजन==
==नमक यात्राओं का आयोजन==
गाँधीजी की इस चुनौती का महत्त्व अधिकांश भारतीयों को समझ में आ गया था किन्तु अंग्रेज़ी राज को नहीं। हालांकि गाँधीजी ने अपनी ‘नमक यात्रा’ की पूर्व सूचना [[वाइसराय]] इर्विन को दे दी थी, किन्तु [[लॉर्ड इर्विन|इर्विन]] उनकी इस कार्यवाही के महत्त्व को न समझ सके। [[12 मार्च]] [[1930]] को गाँधीजी ने [[साबरमती आश्रम]] में अपने आश्रम से समुद्र की ओर चलना शुरू किया। तीन हफ्तों बाद गाँधीजी अपने [[गंतव्य]] स्थान पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने मुट्‌ठी भर नमक बनाकर स्वयं को क़ानून की निगाह में अपराधी बना दिया। इसी बीच देश के अन्य भागों में समान्तर नमक यात्राएँ अयोजित की गई।
गाँधीजी की इस चुनौती का महत्त्व अधिकांश भारतीयों को समझ में आ गया था किन्तु अंग्रेज़ी राज को नहीं। हालांकि गाँधीजी ने अपनी ‘नमक यात्रा’ की पूर्व सूचना [[वाइसराय]] इर्विन को दे दी थी, किन्तु [[लॉर्ड इर्विन|इर्विन]] उनकी इस कार्रवाई के महत्त्व को न समझ सके। [[12 मार्च]] [[1930]] को गाँधीजी ने [[साबरमती आश्रम]] में अपने आश्रम से समुद्र की ओर चलना शुरू किया। तीन हफ्तों बाद गाँधीजी अपने [[गंतव्य]] स्थान पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने मुट्‌ठी भर नमक बनाकर स्वयं को क़ानून की निगाह में अपराधी बना दिया। इसी बीच देश के अन्य भागों में समान्तर नमक यात्राएँ अयोजित की गई।
==औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध==
==औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध==
असहयोग आन्दोलन की तरह अधिकॄत रूप से स्वीकॄत राष्ट्रीय अभियान के अलावा भी विरोध की असंख्य धाराएँ थीं। देश के विशाल भाग में किसानों ने दमनकारी औपनिवेशिक वन क़ानूनों का उल्लंघन किया, जिसके कारण वे और उनके मवेशी उन्हीं जंगलों में नहीं जा सकते थे, जहाँ एक जमाने में वे बेरोकटोक घूमते थे। कुछ कस्बों में फैक्ट्री कामगार हड़ताल पर चले गए, वक़ीलों ने ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार कर दिया और विद्यार्थियों ने सरकारी शिक्षा संस्थानों में पढ़ने से इन्कार कर दिया। [[चित्र:Dandi-March-1.jpg|thumb|250px|left|नमक सत्याग्रह, दांडी मार्च का एक दृश्य]] सन् 1920-22 ई. की तरह इस बार भी गाँधीजी के आह्वान ने तमाम भारतीय वर्गों को औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध अपना असंतोष व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया। जवाब में सरकार असंतुष्टों को हिरासत में लेने लगी। नमक सत्याग्रह के सिलसिले में लगभग 60,000 लोगों को गिरफ़्तार किया गया। गिरफ़्तार होने वालों में गाँधीजी भी थे। समुद्र तट की ओर गाँधीजी की यात्रा की प्रगति का पता उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए तैनात पुलिस अफ़सरों द्वारा भेजी गई गोपनीय रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। इन रिपोर्टों में रास्ते के गाँवों में गाँधीजी द्वारा दिए गए भाषण भी मिलते हैं, जिनमें उन्होंने स्थानीय अधिकारियों से आह्वान किया था कि वे सरकारी नौकरियाँ छोड़कर स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल हो जाएँ।
असहयोग आन्दोलन की तरह अधिकॄत रूप से स्वीकॄत राष्ट्रीय अभियान के अलावा भी विरोध की असंख्य धाराएँ थीं। देश के विशाल भाग में किसानों ने दमनकारी औपनिवेशिक वन क़ानूनों का उल्लंघन किया, जिसके कारण वे और उनके मवेशी उन्हीं जंगलों में नहीं जा सकते थे, जहाँ एक जमाने में वे बेरोकटोक घूमते थे। कुछ कस्बों में फैक्ट्री कामगार हड़ताल पर चले गए, वक़ीलों ने ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार कर दिया और विद्यार्थियों ने सरकारी शिक्षा संस्थानों में पढ़ने से इन्कार कर दिया। [[चित्र:Dandi-March-1.jpg|thumb|250px|left|नमक सत्याग्रह, दांडी मार्च का एक दृश्य]] सन् 1920-22 ई. की तरह इस बार भी गाँधीजी के आह्वान ने तमाम भारतीय वर्गों को औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध अपना असंतोष व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया। जवाब में सरकार असंतुष्टों को हिरासत में लेने लगी। नमक सत्याग्रह के सिलसिले में लगभग 60,000 लोगों को गिरफ़्तार किया गया। गिरफ़्तार होने वालों में गाँधीजी भी थे। समुद्र तट की ओर गाँधीजी की यात्रा की प्रगति का पता उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए तैनात पुलिस अफ़सरों द्वारा भेजी गई गोपनीय रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। इन रिपोर्टों में रास्ते के गाँवों में गाँधीजी द्वारा दिए गए भाषण भी मिलते हैं, जिनमें उन्होंने स्थानीय अधिकारियों से आह्वान किया था कि वे सरकारी नौकरियाँ छोड़कर स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल हो जाएँ।
Line 33: Line 33:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन}}{{महात्मा गाँधी}}
{{भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन}}{{महात्मा गाँधी}}{{भारत का विभाजन}}
[[Category:महात्मा गाँधी]]
[[Category:महात्मा गाँधी]][[Category:आंदोलन]][[Category:भारतीय आंदोलन]]
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:इतिहास कोश]][[Category:अंग्रेज़ी शासन]][[Category:स्वतन्त्रता संग्राम 1857]][[Category:भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन]]
[[Category:अंग्रेज़ी शासन]]
[[Category:स्वतन्त्रता संग्राम 1857]]
[[Category:भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__
{{सुलेख}}
{{सुलेख}}

Latest revision as of 09:00, 10 February 2021

[[चित्र:MKGandhi.gif|महात्मा गांधी|thumb|250px]]

नमक सत्याग्रह राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गये आन्दोलनों में से एक था। गाँधीजी ने स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने के तुरंत बाद घोषणा की कि वे ब्रिटिश भारत के सर्वाधिक घृणित क़ानूनों में से एक, जिसने नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य को एकाधिकार दे दिया है, को तोड़ने के लिए एक यात्रा का नेतृत्व करेंगे। महात्मा गाँधी ने 'नमक एकाधिकार' के जिस मुद्दे का चयन किया था, वह गाँधीजी की कुशल समझदारी का एक अन्य उदाहरण था। प्रत्येक भारतीय घर में नमक का प्रयोग अपरिहार्य था, लेकिन इसके बावज़ूद उन्हें घरेलू प्रयोग के लिए भी नमक बनाने से रोका गया और इस तरह उन्हें दुकानों से ऊँचे दाम पर नमक ख़रीदने के लिए बाध्य किया गया। नमक पर राज्य का एकाधिपत्य बहुत अलोकप्रिय था। इसी को निशाना बनाते हुए गाँधीजी अंग्रेज़ी शासन के ख़िलाफ़ व्यापक असंतोष को संघटित करने की सोच रहे थे।

वार्षिक अधिवेशन

महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन समाप्त होने के कई वर्ष बाद तक अपने को समाज सुधार कार्यों पर केंद्रित रखा। महात्मा गाँधी ने 1928 में पुन: राजनीति में प्रवेश करने की सोची। उस वर्ष सभी श्वेत सदस्यों वाले साइमन कमीशन, जो कि उपनिवेश की स्थितियों की जाँच-पड़ताल के लिए इंग्लैंड से भेजा गया था, उसके विरुद्ध अखिल भारतीय अभियान चलाया जा रहा था। गाँधीजी ने इस आंदोलन में स्वयं भाग नहीं लिया था, पर इस आंदोलन को उन्होंने अपना आशीर्वाद दिया था तथा इसी वर्ष बारदोली में होने वाले एक किसान आन्दोलन के साथ भी उन्होंने ऐसा किया था। 1929 में दिसंबर के अंत में कांग्रेस ने अपना वार्षिक अधिवेशन लाहौर शहर में किया। यह अधिवेशन दो दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण था-

  1. जवाहरलाल नेहरू का अध्यक्ष के रूप में चुनाव, जो युवा पीढ़ी को नेतृत्व की छड़ी सौंपने का प्रतीक था।
  2. ‘पूर्ण स्वराज’ अथवा 'पूर्ण स्वतंत्रता की उद्घोषणा'।

स्वतंत्रता की उद्घोषणा

राजनीति की गति एक बार फिर बढ़ गई थी। 26 फ़रवरी, 1930 को विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फ़हराकर और देशभक्ति के गीत गाकर ‘स्वतंत्रता दिवस’ मनाया गया। गाँधीजी ने स्वयं सुस्पष्ट निर्देश देकर बताया कि इस दिन को कैसे मनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि स्वतंत्रता की उद्घोषणा सभी गाँवों और शहरों में हो, अच्छा होगा। गाँधीजी ने सुझाव दिया कि नगाड़े पीटकर पारंपरिक तरीके से संगोष्ठी के समय की घोषणा की जाए। समारोहों की शुरुआत राष्ट्रीय ध्वज को फ़हराए जाने से होगी। दिन का बाकी हिस्सा किसी रचनात्मक कार्य में चाहे वह सूत कताई हो अथवा ‘अछूतों’ की सेवा अथवा हिंदुओं व मुसलमानों का पुनर्मिलन अथवा निषिद्ध कार्य अथवा ये सभी एक साथ करने में व्यतीत होगा और यह असंभव नहीं है। इसमें भाग लेने वाले लोग दृढ़तापूर्वक यह प्रतिज्ञा लेंगे कि अन्य लोगों की तरह भारतीय लोगों को भी स्वतंत्रता और अपने कठिन परिश्रम के फल का आनंद लेने का अहरणीय अधिकार है और यह कि यदि कोई भी सरकार लोगों को इन अधिकारों से वंचित रखती है या उनका दमन करती है तो लोगों को इन्हें बदलने अथवा समाप्त करने का भी अधिकार है।

नमक यात्राओं का आयोजन

गाँधीजी की इस चुनौती का महत्त्व अधिकांश भारतीयों को समझ में आ गया था किन्तु अंग्रेज़ी राज को नहीं। हालांकि गाँधीजी ने अपनी ‘नमक यात्रा’ की पूर्व सूचना वाइसराय इर्विन को दे दी थी, किन्तु इर्विन उनकी इस कार्रवाई के महत्त्व को न समझ सके। 12 मार्च 1930 को गाँधीजी ने साबरमती आश्रम में अपने आश्रम से समुद्र की ओर चलना शुरू किया। तीन हफ्तों बाद गाँधीजी अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने मुट्‌ठी भर नमक बनाकर स्वयं को क़ानून की निगाह में अपराधी बना दिया। इसी बीच देश के अन्य भागों में समान्तर नमक यात्राएँ अयोजित की गई।

औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध

असहयोग आन्दोलन की तरह अधिकॄत रूप से स्वीकॄत राष्ट्रीय अभियान के अलावा भी विरोध की असंख्य धाराएँ थीं। देश के विशाल भाग में किसानों ने दमनकारी औपनिवेशिक वन क़ानूनों का उल्लंघन किया, जिसके कारण वे और उनके मवेशी उन्हीं जंगलों में नहीं जा सकते थे, जहाँ एक जमाने में वे बेरोकटोक घूमते थे। कुछ कस्बों में फैक्ट्री कामगार हड़ताल पर चले गए, वक़ीलों ने ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार कर दिया और विद्यार्थियों ने सरकारी शिक्षा संस्थानों में पढ़ने से इन्कार कर दिया। thumb|250px|left|नमक सत्याग्रह, दांडी मार्च का एक दृश्य सन् 1920-22 ई. की तरह इस बार भी गाँधीजी के आह्वान ने तमाम भारतीय वर्गों को औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध अपना असंतोष व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया। जवाब में सरकार असंतुष्टों को हिरासत में लेने लगी। नमक सत्याग्रह के सिलसिले में लगभग 60,000 लोगों को गिरफ़्तार किया गया। गिरफ़्तार होने वालों में गाँधीजी भी थे। समुद्र तट की ओर गाँधीजी की यात्रा की प्रगति का पता उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए तैनात पुलिस अफ़सरों द्वारा भेजी गई गोपनीय रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। इन रिपोर्टों में रास्ते के गाँवों में गाँधीजी द्वारा दिए गए भाषण भी मिलते हैं, जिनमें उन्होंने स्थानीय अधिकारियों से आह्वान किया था कि वे सरकारी नौकरियाँ छोड़कर स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल हो जाएँ।

स्वराज की सीढ़ियाँ

वसना नामक गाँव में गाँधीजी ने ऊँची जाति वालों को संबोधित करते हुए कहा था कि यदि आप स्वराज के हक़ में आवाज़ उठाते हैं, तो आपको अछूतों की सेवा करनी पड़ेगी। आपको स्वराज सिर्फ़ नमक कर या अन्य करों के खत्म हो जाने से नहीं मिल जाएगा। स्वराज के लिए आपको अपनी उन ग़लतियों का प्रायश्चित करना होगा जो आपने अछूतों के साथ की हैं। स्वराज के लिए हिन्दू, मुसलमान, पारसी और सिख, सबको एकजुट होना पड़ेगा। ये स्वराज की सीढ़ियाँ हैं। पुलिस के जासूसों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि गाँधीजी की सभाओं में तमाम जातियों के औरत-मर्द शामिल हो रहे हैं। उनका कहना था कि हज़ारों वॉलंटियर राष्ट्रवादी उद्देश्य के लिए सामने आ रहे हैं। उनमें से बहुत सारे ऐसे सरकारी अफ़सर थे जिन्होंने औपनिवेशिक शासन में अपने पदों से इस्तीफ़ा दे दिया था। सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में ज़िला पुलिस सुपरिटेंडेंट पुलिस अधीक्षक ने लिखा था कि श्री गाँधीजी शांत और निश्चिंत दिखाई दिए। वे जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे हैं, उनकी ताकत बढ़ती जा रही है।

जनसमर्थन

[[चित्र:Dandi-March.jpg|thumb|300px|ग्यारह मूर्ति, नई दिल्ली, (नमक सत्याग्रह, दांडी मार्च का एक दृष्य)]] नमक यात्रा की प्रगति को एक और बात से भी समझा जा सकता है। अमेरिकी समाचार पत्रिका टाइम को गाँधीजी की क़दकाठी पर हँसी आती थी। गाँधीजी के तकुए जैसे शरीर और मकड़ी जैसे पैरों का पत्रिका ने ख़ूब मजाक उड़ाया था। इस यात्रा के बारे में अपनी पहली रिपोर्ट में ही टाइम ने नमक यात्रा के मंज़िल तक पहुँचने पर अपनी गहरी शंका व्यक्त कर दी थी। उसने दावा किया कि गाँधीजी दूसरे दिन पैदल चलने के बाद ज़मीन पर पसर गए थे। पत्रिका को इस बात पर विश्वास नहीं था कि इस मरियल साधु के शरीर में और आगे जाने की ताकत बची है। लेकिन पत्रिका की सोच एक ही रात में बदल गई। टाइम ने लिखा कि इस यात्रा को जो भारी जनसमर्थन मिल रहा है उसने अंग्रेज़ शासकों को बेचैन कर दिया है। अब वे भी गाँधीजी को ऐसा साधु और जननेता कहकर सलामी देने लगे हैं, जो ईसाई धर्मावलंबियों के ख़िलाफ़ ईसाई तरीकों का ही हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।

उल्लेखनीयता

नमक यात्रा कम से कम तीन कारणों से उल्लेखनीय थी-

  1. यही वह घटना थी, जिसके चलते महात्मा गाँधी दुनिया की नज़र में आए। इस यात्रा को यूरोप और अमेरिकी प्रेस ने व्यापक कवरेज दी।
  2. यह पहली राष्ट्रवादी गतिविधि थी, जिसमें औरतों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। समाजवादी कार्यकर्ता कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने गाँधीजी को समझाया कि वे अपने आंदोलनों को पुरुषों तक ही सीमित न रखें। कमलादेवी खुद उन असंख्य औरतों में से एक थीं, जिन्होंने नमक या शराब क़ानूनों का उल्लंघन करते हुए सामूहिक गिरफ़्तारी दी थी।
  3. नमक यात्रा के कारण ही अंग्रेज़ों को यह अहसास हुआ था कि अब उनका राज बहुत दिन नहीं टिक सकेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना पड़ेगा।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख


सुव्यवस्थित लेख|link=भारतकोश:सुव्यवस्थित लेख