सोरठा: Difference between revisions
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<blockquote><poem>जो सुमिरत सिधि होय, | <blockquote><poem>जो सुमिरत सिधि होय, गन नायक करिबर बदन। | ||
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥ | करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥ | ||
Latest revision as of 10:50, 5 January 2016
सोरठा मात्रिक छंद है और यह 'दोहा' का ठीक उल्टा होता है। इसके विषम चरणों (प्रथम और तृतीय) में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है।
- उदाहरण
जो सुमिरत सिधि होय, गन नायक करिबर बदन।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥
रहिमन हमें न सुहाय, अमिय पियावत मान विनु।
जो विष देय पिलाय, मान सहित मरिबो भलो।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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