पहेली जून 2014: Difference between revisions
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-[[बदायूँनी|अब्दुल क़ादिर बदायूँनी]] | -[[बदायूँनी|अब्दुल क़ादिर बदायूँनी]] | ||
+[[अबुल फ़ज़ल]] | +[[अबुल फ़ज़ल]] | ||
||अबुल फ़ज़ल बहुत वर्षों तक [[अकबर]] का विश्वासपात्र वज़ीर और सलाहकार रहा। वह केवल दरबारी और आला अफ़सर ही नहीं था, | ||अबुल फ़ज़ल बहुत वर्षों तक [[अकबर]] का विश्वासपात्र वज़ीर और सलाहकार रहा। वह केवल दरबारी और आला अफ़सर ही नहीं था, वरन् बड़ा विद्वान् था और उसने अनेक पुस्तकें भी लिखी थीं। उसकी [[आइना-ए-अकबरी]] में अकबर के साम्राज्य का विवरण मिलता है और [[अकबरनामा]] में उसने अकबर के समय का [[इतिहास]] लिखा है। उसका भाई [[फ़ैज़ी]] भी अकबर का दरबारी शायर था।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अबुल फ़ज़ल]] | ||
{[[भारत]] में सिविल सेवाओं का सूत्रपात किसने किया? | {[[भारत]] में सिविल सेवाओं का सूत्रपात किसने किया? | ||
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+[[दादाजी कोंडदेव]] | +[[दादाजी कोंडदेव]] | ||
-उपर्युक्त में से कोई नहीं | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
|| दादाजी कोंडदेव अथवा 'खोंडदेव' मराठा ब्राह्मण और प्रसिद्ध | || दादाजी कोंडदेव अथवा 'खोंडदेव' मराठा ब्राह्मण और प्रसिद्ध महान् मराठा नेता [[शिवाजी|छत्रपति शिवाजी]] (1627-1680 ई.) के गुरु और अभिभावक थे। प्रारम्भ से ही वीर शिवाजी पर इनका गहरा प्रभाव था। दादाजी कोंडदेव ने अपने शिष्य शिवाजी के मन में बचपन से ही साहस और पराक्रम के उदात्त भाव के साथ-साथ प्राचीन भारत के महान् हिन्दू वीरों के प्रति श्रद्धा की भावना भरी थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दादाजी कोंडदेव]] | ||
{[[भारत]] का प्रामाणिक समय किस स्थान से निश्चित किया जाता है? | {[[भारत]] का प्रामाणिक समय किस स्थान से निश्चित किया जाता है? | ||
Line 146: | Line 146: | ||
-हवाओं का सदा एक ओर ही बहना | -हवाओं का सदा एक ओर ही बहना | ||
-हवाओं का बहुत तेज़ी से बहना | -हवाओं का बहुत तेज़ी से बहना | ||
+हवाओं के | +हवाओं के रुख़का बदलना | ||
-हवाओं का बहुत धीमी गति से बहना | -हवाओं का बहुत धीमी गति से बहना | ||
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+[[पाटलिपुत्र]] | +[[पाटलिपुत्र]] | ||
-[[राजगृह]] | -[[राजगृह]] | ||
||[[चित्र:Ashoka.jpg|right|100px|अशोक]][[बौद्ध संगीति]] का तात्पर्य उस 'संगोष्ठी' या 'सम्मेलन' है, जो [[महात्मा बुद्ध]] के परिनिर्वाण के अल्पसमय के | ||[[चित्र:Ashoka.jpg|right|100px|अशोक]][[बौद्ध संगीति]] का तात्पर्य उस 'संगोष्ठी' या 'सम्मेलन' है, जो [[महात्मा बुद्ध]] के परिनिर्वाण के अल्पसमय के पश्चात् से ही उनके उपदेशों को संग्रहीत करने, उनका पाठ करने आदि के उद्देश्य से सम्बन्धित थी। [[अशोक]] ने [[पाटलिपुत्र]] में [[बौद्ध धर्म]] की शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए दो प्रस्तर-स्तंभ प्रस्थापित किए थे। अशोक के शासनकाल के 18वें वर्ष में 'कुक्कुटाराम' नामक उद्यान में 'मोगलीपुत्र तिस्सा' (तिष्य) के सभापतित्व में 'द्वितीय बौद्ध संगीति' हुई थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पाटलिपुत्र]] | ||
{[[राजस्थान]] में 'मावट' किससे सम्बन्धित है? | {[[राजस्थान]] में 'मावट' किससे सम्बन्धित है? |
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