पल्लव वंश: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 14: Line 14:
*[[विष्णुगोप]]
*[[विष्णुगोप]]
*[[सिंह विष्णु]] (575-600 ई.)
*[[सिंह विष्णु]] (575-600 ई.)
*[[महेन्द्र वर्मन प्रथम]] (600-30 ई.)
*[[महेन्द्र वर्मन प्रथम]] (600-630 ई.)
*[[नरसिंह वर्मन प्रथम]] (630-68 ई.)
*[[नरसिंह वर्मन प्रथम]] (630-668 ई.)
*[[महेन्द्र वर्मन द्वितीय]] (668-70 ई.)
*[[महेन्द्र वर्मन द्वितीय]] (668-670 ई.)
*[[परमेश्वर वर्मन प्रथम]] (670-95 ई.)
*[[परमेश्वर वर्मन प्रथम]] (670-695 ई.)
*[[नरसिंह वर्मन द्वितीय]] (695-720 ई.)
*[[नरसिंह वर्मन द्वितीय]] (695-720 ई.)
*[[परमेश्वर वर्मन द्वितीय]] (720-31 ई.)
*[[परमेश्वर वर्मन द्वितीय]] (720-731 ई.)
*[[नंदि वर्मन द्वितीय]] (731-95 ई.)
*[[नंदि वर्मन द्वितीय]] (731-795 ई.)
*[[दंति वर्मन]] (796-847 ई.)
*[[दंति वर्मन]] (796-847 ई.)
*[[नंदि वर्मन तृतीय]] (847-69 ई.)
*[[नंदि वर्मन तृतीय]] (847-869 ई.)
*[[नृपत्तुंग वर्मन]] (870-79 ई.)
*[[नृपत्तुंग वर्मन]] (870-879 ई.)
*[[अपराजित]] (879-97 ई.)।   
*[[अपराजित]] (879-897 ई.)।   


{{प्रचार}}
{{प्रचार}}

Revision as of 06:47, 13 February 2011

गुप्त वंश के बाद हर्षवर्धन के अतिरिक्त कोई ऐसी शक्ति नहीं थी, जो उत्तर भारत की राजनीतिक स्थिति को स्थिरता प्रदान कर सकती थी। इस समय दक्षिण भारत में दो महत्वपूर्ण वंश-कांची के पल्लव वंश एवं बादामी या वातापि के चालुक्य वंश शासन कर रहे थे।

उत्पत्ति मतभेद

कांची के पल्लव वंश के विषय में प्राथमिक जानकारी हरिषेण की 'प्रयाग प्रशस्ति' एवं ह्वेनसांग के यात्रा विवरण से मिलती है। संभवतः पल्लव लोग स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के पूर्व सातवाहनों के सामन्त थे। इनके प्रारम्भिक अभिलेख प्राकृत भाषा में एवं बाद मे संस्कृत में मिले है। पल्लवों की उत्पत्ति के संदर्भ में अन्तिम पंक्ति लेखक प्रो. राव भी यह मानने पर विवश हो गए हैं कि, “पल्लवों की उत्पत्ति का प्रश्न विवादग्रस्त एवं अन्धकार में निमग्न है।” पल्लव वंश के राजाओं का मूल कहाँ से हुआ, इस सवाल को लेकर ऐतिहासिकों ने बहुत तर्क-वितर्क किया है। एक मत यह है, कि पल्लव लोग पल्हव या पार्थियन थे, जिन्होंने शकों के कुछ समय बाद भारत में प्रवेश कर उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित किए थे। शक राजा रुद्रदामा का एक अमात्य सौराष्ट्र पर शासन करने के लिए नियुक्त था, जिसका नाम सुविशाख था। वह जाति से पल्हव या पार्थियन था। सम्भवतः इसी प्रकार के पल्हव अमात्य सातवाहन सम्राटों की ओर से भी नियत किये जाते थे, और उन्हीं में से किसी ने दक्षिण के पल्लव राज्य की स्थापना की थी। अब प्रायः ऐतिहासिक लोग पल्लवों का पल्हवों या पार्थियनों से कोई सम्बन्ध नहीं मानते। काशीप्रसाद जायसवाल के अनुसार पल्लव लोग ब्राह्मण थे, क्योंकि वे अपने को द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा का वंशज मानते थे।

वंश मान्यता

पल्लव अभिलेखों में भी पल्लवों को भारद्वाजगोत्रीय तथा अश्वात्थामा का वंशज कहा गया है। तालगुण्ड अभिलेख उन्हें क्षत्रिय कहता है। प्रो. आर. सत्यनमैय्यर मानते है कि पल्लव अशोक के साम्राज्य के एक प्रांत टोण्डमण्डलम से ही उत्पन्न हुए थे। पल्लवों की उत्पत्ति का यही विचार अब तक सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ऐसा लगता है कि, पल्लवों में उत्तरी भारत के भारद्वाजगोत्रीय ब्राह्मणों तथा कांची के आस-पास के राजवंशों के रक्त का मिश्रण था। यद्यपि पल्लवों के राजनीतिक तथा सांस्कृतिक उत्कर्ष का केन्द्र कांची थी, किन्तु उनका मूल निवास तोण्डमण्डलम् था। कालान्तर में उनका साम्राज्य उत्तर में पेन्नार नदी से दक्षिण में कावेरी नदी की घाटी तक विस्तृत हो गया।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

इतना निश्चित है कि पल्लव राज्य की स्थापना उस समय में हुई, जबकि सातवाहन राज्य खण्ड-खण्ड हो गया था। इस वंश द्वारा शासित प्रदेश पहले सातवाहनों की अधीनता में थे। यह माना जा सकता है, कि पल्लव राज्य का संस्थापक पहले सातवाहनों द्वारा नियुक्त प्रान्तीय शासक था, और उसने अपने अधिपति की निर्बलता से लाभ उठाकर अपने को स्वतंत्र कर लिया था। पल्लव वंश की सत्ता का संस्थापक यह पुरुष सम्भवतः बप्पदेव था। कांचीपुरम में उपलब्ध हुए दो ताम्रपत्रों से इस वंश के प्रारम्भिक इतिहास के विषय में अनेक महत्त्वपूर्ण बातें ज्ञात होती हैं। इन ताम्रपत्रों पर 'स्कन्दवर्मा' नाम के एक राजा के दान पुण्य को उत्कीर्ण किया गया है, जिसे एक लेख में 'युवमहाराजय' और दूसरे में 'धम्ममहाराजाधिराज' कहा गया है। इससे सूचित होता है, कि एक दानपत्र उसने तब उत्कीर्ण करवाया था, जब कि वह युवराज था और दूसरा उस समय, जब कि वह महाराजाधिराज बन गया था। उसने अग्निष्टोम, वाजपेय और अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान कर अपनी शक्ति का उत्कर्ष किया, और तुंगभद्रा एवं कृष्णा नदियों द्वारा सिंचित प्रदेश में शासन करते हुए कांची को अपनी राजधानी बनाया।

पल्लव शासक

गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त ने दक्षिणी भारत में विजय यात्रा करते हुए पल्लव राज विष्णुगोप को भी आत्मसमर्पण के लिए विवश किया था। समुद्रगुप्त की यह विजय यात्रा चौथी सदी के मध्य भाग में हुई थी। कठिनाई यह है, कि पल्लवों के प्रारम्भिक इतिहास को जानने के लिए उत्कीर्ण लेखों के अतिरिक्त अन्य कोई साधन हमारे पास नहीं है। इन लेखों में पल्लव वंश के राजाओं के अपने शासन काल की तिथियाँ तो दी हुई हैं, पर इन राजाओं में कौन पहले हुआ और कौन पीछे, यह निर्धारित कर सकना सम्भव नहीं है।

पल्लव वंश में जो शासक हुए उनके नाम इस प्रकार है:-


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख