फ़िरोज़शाह तुग़लक़: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
{{tocright}} | {{tocright}} | ||
'''फ़िरोज़शाह तुग़लक़''' (1351-1388 ई.), [[मुहम्मद तुग़लक़]] का चचेरा भाई एवं सिपहसलार 'रजब' का पुत्र था। उसकी माँ ‘बीबी नैला’ [[राजपूत]] सरदार रणमल की पुत्री थी। मुहम्मद तुग़लक़ की मुत्यु के बाद 20 मार्च, 1351 को फ़िरोज़ तुग़लक़ का राज्याभिषक थट्टा के निकट हुआ। पुनः फ़िरोज़ का राज्याभिषेक [[दिल्ली]] में अगस्त, 1351 में हुआ। सुल्तान बनने के बाद फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने सभी क़र्ज़े माफ कर दिए, जिसमें 'सोंधर ऋण' भी शामिल था, जो मुहम्मद तुग़लक़ के समय किसानों को दिया गया था। | '''फ़िरोज़शाह तुग़लक़''' (1351-1388 ई.), [[मुहम्मद तुग़लक़]] का चचेरा भाई एवं सिपहसलार 'रजब' का पुत्र था। उसकी माँ ‘बीबी नैला’ [[राजपूत]] सरदार रणमल की पुत्री थी। मुहम्मद तुग़लक़ की मुत्यु के बाद 20 मार्च, 1351 को फ़िरोज़ तुग़लक़ का राज्याभिषक थट्टा के निकट हुआ। पुनः फ़िरोज़ का राज्याभिषेक [[दिल्ली]] में अगस्त, 1351 में हुआ। सुल्तान बनने के बाद फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने सभी क़र्ज़े माफ कर दिए, जिसमें 'सोंधर ऋण' भी शामिल था, जो मुहम्मद तुग़लक़ के समय किसानों को दिया गया था। उसने उपज के हिसाब से लगान निश्चित किया। सरकारी पदों को पुनः वंशानुगत कर दिया। | ||
==प्रारम्भिक असफलता== | |||
'''सुल्तान बनने के बाद फ़िरोज़ तुग़लक़ ने''' [[दिल्ली सल्तनत]] से अलग हुए अपने प्रदेशों को जीतने के अभियान के अन्तर्गत [[बंगाल]] एवं [[सिंध]] पर आक्रमण किया। बंगाल को जीतने के लिए सुल्तान ने 1353 ई. में आक्रमण किया। उस समय शम्सुद्दीन इलियास वहाँ का शासक था। उसने इकदला के क़िले में शरण ले रखी थी, सुल्तान फ़िरोज़ अन्ततः क़िले पर अधिकार करने में असफल होकर 1355 ई. में वापस दिल्ली आ गया। पुनः बंगाल पर अधिकार करने के प्रयास के अन्तर्गत 1359 ई. में फ़िरोज़ तुग़लक़ ने वहाँ के तत्कालीन शासक शम्सुद्दीन के पुत्र सिकन्दर शाह पर आक्रमण किया, किन्तु असफल होकर एक बार फिर वापस आ गया। | |||
==आंशिक सफलताएँ== | ==आंशिक सफलताएँ== | ||
'''1360 ई. में सुल्तान फ़िरोज़ ने''' ‘जाजनगर’ ([[उड़ीसा]]) पर आक्रमण करके वहाँ के शासक भानुदेव तृतीय को परास्त कर [[पुरी]] के [[जगन्नाथ मंदिर पुरी]] को ध्वस्त किया। 1361 ई. में फ़िरोज़ ने [[नगरकोट]] पर आक्रमण किया। यहाँ के जामबाबनियों से लड़ती हुई सुल्तान की सेना लगभग 6 महीने तक रन के रेगिस्तान में फँसी रही, कालान्तर में जामबाबनियों ने सुल्तान की अधीनता को स्वीकार कर लिया और वार्षिक कर देने के लिए सहमत हो गये। | '''1360 ई. में सुल्तान फ़िरोज़ ने''' ‘जाजनगर’ ([[उड़ीसा]]) पर आक्रमण करके वहाँ के शासक भानुदेव तृतीय को परास्त कर [[पुरी]] के [[जगन्नाथ मंदिर पुरी]] को ध्वस्त किया। 1361 ई. में फ़िरोज़ ने [[नगरकोट]] पर आक्रमण किया। यहाँ के जामबाबनियों से लड़ती हुई सुल्तान की सेना लगभग 6 महीने तक रन के रेगिस्तान में फँसी रही, कालान्तर में जामबाबनियों ने सुल्तान की अधीनता को स्वीकार कर लिया और वार्षिक कर देने के लिए सहमत हो गये। |
Revision as of 11:33, 28 February 2011
फ़िरोज़शाह तुग़लक़ (1351-1388 ई.), मुहम्मद तुग़लक़ का चचेरा भाई एवं सिपहसलार 'रजब' का पुत्र था। उसकी माँ ‘बीबी नैला’ राजपूत सरदार रणमल की पुत्री थी। मुहम्मद तुग़लक़ की मुत्यु के बाद 20 मार्च, 1351 को फ़िरोज़ तुग़लक़ का राज्याभिषक थट्टा के निकट हुआ। पुनः फ़िरोज़ का राज्याभिषेक दिल्ली में अगस्त, 1351 में हुआ। सुल्तान बनने के बाद फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने सभी क़र्ज़े माफ कर दिए, जिसमें 'सोंधर ऋण' भी शामिल था, जो मुहम्मद तुग़लक़ के समय किसानों को दिया गया था। उसने उपज के हिसाब से लगान निश्चित किया। सरकारी पदों को पुनः वंशानुगत कर दिया।
प्रारम्भिक असफलता
सुल्तान बनने के बाद फ़िरोज़ तुग़लक़ ने दिल्ली सल्तनत से अलग हुए अपने प्रदेशों को जीतने के अभियान के अन्तर्गत बंगाल एवं सिंध पर आक्रमण किया। बंगाल को जीतने के लिए सुल्तान ने 1353 ई. में आक्रमण किया। उस समय शम्सुद्दीन इलियास वहाँ का शासक था। उसने इकदला के क़िले में शरण ले रखी थी, सुल्तान फ़िरोज़ अन्ततः क़िले पर अधिकार करने में असफल होकर 1355 ई. में वापस दिल्ली आ गया। पुनः बंगाल पर अधिकार करने के प्रयास के अन्तर्गत 1359 ई. में फ़िरोज़ तुग़लक़ ने वहाँ के तत्कालीन शासक शम्सुद्दीन के पुत्र सिकन्दर शाह पर आक्रमण किया, किन्तु असफल होकर एक बार फिर वापस आ गया।
आंशिक सफलताएँ
1360 ई. में सुल्तान फ़िरोज़ ने ‘जाजनगर’ (उड़ीसा) पर आक्रमण करके वहाँ के शासक भानुदेव तृतीय को परास्त कर पुरी के जगन्नाथ मंदिर पुरी को ध्वस्त किया। 1361 ई. में फ़िरोज़ ने नगरकोट पर आक्रमण किया। यहाँ के जामबाबनियों से लड़ती हुई सुल्तान की सेना लगभग 6 महीने तक रन के रेगिस्तान में फँसी रही, कालान्तर में जामबाबनियों ने सुल्तान की अधीनता को स्वीकार कर लिया और वार्षिक कर देने के लिए सहमत हो गये।
इन साधारण विजयों के अतिरिक्त फ़िरोज़ के नाम कोई बड़ी सफलता नहीं जुड़ी है। उसने दक्षिण में स्वतंत्र हुए राज्य विजयनगर, बहमनी एवं मदुरा को पुनः जीतने का कोई प्रयास नहीं किया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि, सुल्तान फ़िरोज़ तुग़लक़ ने अपने शासन काल में कोई भी सैनिक अभियान साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं किया और जो भी अभियान उसने किया, वह मात्र साम्राज्य को बचाये रखने के लिए किया।
राजस्व व्यवस्था
राजस्व व्यवस्था के अन्तर्गत फ़िरोज़ ने अपने शासन काल में 24 कष्टदायक करों को समाप्त कर दिया और केवल 4 कर ‘ख़राज’ (लगान), ‘खुम्स’ (युद्ध में लूट का माल), ‘जजिया’, एवं 'ज़कात' (इस्लाम धर्म के अनुसार अढ़ाई प्रतिशत का दान, जो उन लोगों को देना पड़्ता है, जो मालदार हों और उन लोगों को दिया जाता है, जो अपाहिज या असहाय और साधनहीन हों) को वसूल करने का आदेश दिया। उलेमाओं के आदेश पर सुल्तान ने एक नया सिंचाई (शर्ब) कर भी लगाया, जो उपज का 1/10 भाग वसूला जाता था। सम्भवतः फ़िरोज़ तुग़लक़ के शासन काल में लगान उपज का 1/5 से 1/3 भाग होता था। सुल्तान ने सिंचाई की सुविधा के लिए 5 बड़ी नहरें यमुना नदी से हिसार तक 150 मील लम्बी सतलुज नदी से घग्घर नदी तक 96 मील लम्बी सिरमौर की पहाड़ी से लेकर हांसी तक, घग्घर से फ़िरोज़ाबाद तक एवं यमुना से फ़िरोज़ाबाद तक का निर्माण करवाया। उसने फलो के लगभग 1200 बाग़ लगवाये। आन्तरिक व्यापार को बढ़ाने के लिए अनेक करों को समाप्त कर दिया।
नगरों की स्थापना
नगर एवं सार्वजनिक निर्माण कार्यों के अन्तर्गत सुल्तान ने लगभग 300 नये नगरों की स्थापना की। इनमें से हिसार, फ़िरोज़ाबाद (दिल्ली), फ़तेहाबाद, जौनपुर, फ़िरोज़पुर आदि प्रमुख थे। इन नगरों में यमुना नदी के किनारे बसाया गया फ़िरोज़ाबाद सुल्तान को सर्वाधिक प्रिय था। जौनपुर नगर की नींव फ़िरोज़ ने अपने चचेरे भाई 'फ़खरुद्दीन जौना' (मुहम्मद बिन तुग़लक़) की स्मृति में डाली थी। उसके शासन काल मे ख़िज्राबाद एवं मेरठ से अशोक के दो स्तम्भलेखों को लाकर दिल्ली में स्थापित किया गया। अपने कल्याणकारी कार्यों के अन्तर्गत फ़िरोज़ ने एक रोज़गार का दफ्तर एवं मुस्लिम अनाथ स्त्रियों, विधवाओं एवं लड़कियों की सहायता हेतु एक नये 'दीवान-ए-ख़ैरात' नामक विभाग की स्थापना की। 'दारुल-शफ़ा' (शफ़ा=जीवन का अंतिम किनारा, जीवन का अंतिम भाग) नामक एक राजकीय अस्पताल का निर्माण करवाया, जिसमें ग़रीबों का मुफ्त इलाज होता था।
फ़िरोज़ की नीति एवं परिणाम
फ़िरोज़ के शासनकाल में दासों की संख्या लगभग 1,80,000 पहुँच गई थी। इनकी देखभाल हेतु सुल्तान दे 'दीवान-ए-बंदग़ान' की स्थापना की। कुछ दास प्रांतों में भेजे गये तथा शेष को केन्द्र में रखा गया। दासों को नकद वेतन या भूखण्ड दिए गये। दासों को दस्तकारी का प्रशिक्षण भी दिया गया। सैन्य व्यवस्था के अन्तर्गत फ़िरोज़ ने सैनिकों पुनः जागीर के रूप में वेतन देना प्रारम्भ कर दिया। उसने सैन्य पदों को वंशानुगत बना दिया, इसमें सैनिकों की योग्यता की जाँच पर असर पड़ा। खुम्स का 4/5 भाग फिर से सैनिकों को देने के आदेश दिए गये। कुछ समय बाद उसका भयानक परिणम सामने आया। फ़िरोज़ तुग़लक़ को कुछ इतिहासकार धर्मान्ध एवं असहिष्णु शासक मानते हैं। सम्भवतः दिल्ली सल्तनत का वह प्रथम सुल्तान था, जिसने इस्लामी नियमों का कड़ाई से पालन करके उलेमा वर्ग को प्रशासनिक कार्यों में महत्व दिया। न्याय व्यवस्था पर पुनः धर्मगुरुओं का प्रभाव स्थापित हो गया। मुक्ती कानूनों की व्याख्या करते थे। मुसलमान अपराधियों को मृत्यु दण्ड देना बन्द कर दिया गया। फ़िरोज़ कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने हिन्दू जनता को ‘जिम्मी’ (इस्लाम धर्म स्वीकार न करने वाले) कहा और हिन्दू ब्राह्मणों पर जजिया कर लगाया। डॉ. आर.सी. मजूमदार ने कहा है कि, "फ़िरोज़ इस युग का सबसे धर्मान्ध एवं इस क्षेत्र में सिंकदर लोदी एवं औरंगज़ेब का अप्रगामी था।’ दिल्ली सल्तनत में प्रथम बार फ़िरोज़ तुग़लक़ ने ब्राह्मणों से भी जजिया लिया।
संरक्षण एवं रचनाएँ
शिक्षा प्रसार के क्षेत्र में सुल्तान फ़िरोज़ ने अनेक मक़बरों एवं मदरसों (लगभग 13) की स्थापना करवायी। उसने 'जियाउद्दीन बरनी' एवं 'शम्स-ए-सिराज अफीफ' को अपना संरक्षण प्रदान किया। बरनी ने 'फ़तवा-ए-जहाँदारी' एवं 'तारीख़-ए-फ़िरोज़शाही' की रचना की। फ़िरोज़ ने अपनी आत्मकथा ‘फुतूहात-ए-फ़िरोज़शाही’ की रचना की जबकि ‘सीरत-ए-फ़िरोज़शही’ की रचना किसी अज्ञात विद्धान द्वारा की गई है। फ़िरोज़ ने ज्वालामुखी मंदिर के पुस्तकालय से लूटे गये 1300 ग्रंथों में से कुछ का एजुद्दीन द्वारा ‘दलायते-फ़िरोज़शाही’ नाम से अनुवाद करवाया। 'वलायले-फ़िरोज़शाही' आयुर्वेद से संबंधित ग्रन्थ था। उसने जल घड़ी का अविष्कार किया। अपने भाई जौना ख़ाँ (मुहम्मद तुग़लक़) की स्मृति में जौनपुर नामक शहर बसाया।
घूसखोरी को बढ़ावा
सुल्तान फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने प्रशासन में स्वयं घूसखोरी को प्रोत्साहित किया था। अफीफ के अनुसार-सुल्तान ने एक घुड़सवार को अपने ख़ज़ाने से एक टका दिया, ताकि वह रिश्वत देकर अर्ज में अपने घोड़े को पास करवा सकें। फ़िरोज़ तुग़लक़ सल्तनत कालीन पहला शासक था, जिसने राज्य की आदमनी का ब्यौरा तैयार करवाया। ख्वाजा हिसामुद्दीन के एक अनुमान के अनुसार- फ़िरोज़ तुग़लक़ के शासन काल की वार्षिक आय 6 करोड़ 75 लाख टका थी। उसके समय में इंजारेदारी को पुनः बढ़ावा दिया गया।
सिक्कों का प्रचलन
फ़िरोज़ तुग़लक़ ने मुद्रा व्यवस्था के अन्तर्गत बड़ी संख्या में तांबा एवं चाँदी के मिश्रण से निर्मित सिक्के जारी करवाये, जिसे सम्भवतः ‘अद्धा’ एवं ‘मिस्र’ कहा जाता था। फ़िरोज़ तुग़लक़ ने ‘शंशगानी’ (6 जीतल का) का नया सिक्का चलवाया था। उसने सिक्कों पर अपने नाम के साथ अपने पुत्र अथवा उत्तराधिकारी 'फ़तह ख़ाँ' का नाम अंकित करवाया। फ़िरोज़ ने अपने को ख़लीफ़ा का नाइब पुकारा तथा सिक्कों पर ख़लीफ़ा का नाम अंकित करवाया। फ़िरोज़शाह तुग़लक़ का शासन कल्याणकारी निरंकुशता पर आधारित था। वह प्रथम सुल्तान था, जिसनें विजयों तथा युद्धों की तुलना में अपनी प्रजा की भौतिक उन्नति को श्रेष्ठ स्थान दिया, शासक के कर्तव्यों का विस्तृत किया तथा इस्लाम धर्म को राज्य शासन का आधार बनाया। हेनरी इलिएट और एलफिन्सटन ने फ़िरोज़ तुग़लक़ को “सल्तनत युग का अकबर” कहा है। फ़िरोज़शाह तुग़लक़ की सफलताओं का श्रेय उसके प्रधानमंत्री 'ख़ान-ए-जहाँ मकबूल' का दिया जाता है।
मृत्यु
सुल्तान फ़िरोज़ तुग़लक़ की मृत्यु सितम्बर, 1398 ई. में हुई।
|
|
|
|
|
संबंधित लेख