हुविष्क: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
|||
Line 25: | Line 25: | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{ | {{कुषाण साम्राज्य}} | ||
{{भारत के राजवंश}} | {{भारत के राजवंश}} | ||
[[Category:नया पन्ना]] | [[Category:नया पन्ना]] |
Revision as of 10:46, 3 October 2010
हुविष्क कुषाण राजा कनिष्क द्वितीय का पुत्र और उत्तराधिकारी जिसने लगभग 162 ई. से 180 ई. तक राज्य किया। कनिष्क द्वितीय के बाद हुविष्क कुषाण साम्राज्य का स्वामी बना। उसके बहुत से सिक्के भारत तथा अफ़ग़ानिस्तान में उपलब्ध हुए हैं। अत्यन्त विस्तृत क्षेत्र में हुविष्क के सिक्कों की प्राप्ति से यह अनुमान किया जाता है कि उसके समय में भी कुषाण साम्राज्य अविकल रूप से क़ायम रहा। यह आश्चर्य की बात है कि अब तक हुविष्क का कोई ऐसा सिक्का नहीं मिलता, जिस पर भगवान बुद्ध की प्रतिमा या नाम अंकित हो। हुविष्क के सिक्कों पर जहाँ उसकी अपनी सुन्दर प्रतिमा अंकित है, वहाँ साथ ही स्कन्द, विशाख आदि पौराणिक देवताओं के चित्र भी विद्यमान हैं।
जन्म
हुविष्क का जन्म 140 ई. में हुआ था।
हुविष्क का शासनकाल
- हुविष्क के शासनकाल के सिक्के अनेक स्थानों में और बड़ी मात्रा में मिले हैं। इन पर भारतीय, ईरानी और यूनानी देवी-देवताओं के चित्र अंकित हैं। इससे ज्ञात होता है कि कनिष्क का जीता हुआ पूरा राज्य इसके अधिकार में था और उसका विस्तार पूर्व में पाटलिपुत्र तक था।
- कुषाण सम्राट कनिष्क, कनिष्क द्वितीय, हुविष्क और वासुदेव का शासन काल माथुरी कला का 'स्वर्णिम काल' था। इस समय इस कला शैली ने पर्याप्त समृद्धि और पूर्णता प्राप्त की। एक और मूर्ति जो संभवत: कुषाण सम्राट 'हुविष्क' की हो सकती है, इस समय 'गोकर्णेश्वर' के नाम से मथुरा में पूजी जाती है। ऐसा लगता है कि कुषाण राजाओं को अपने और पूर्वजों के प्रतिमा मन्दिर या 'देवकुल' बनवाने की विशेष रुचि थी।
प्राप्त लेख
- हुविष्क के समय का एक लेख क़ाबुल से तीस मील पश्चिम में ख़वत नामक स्थान पर एक स्तूप की ख़ुदाई में उपलब्ध हुआ है। जिसे 'कमगुल्मपुत्र वमग्ररेग' नामक व्यक्ति ने भगवान शाक्य मुनि के शरीर की प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में लिखवाया था। क़ाबुल के पश्चिम में बौद्ध धर्म की सत्ता और प्राकृत भाषा के प्रचलन का यह ज्वलन्त प्रमाण है।
- इसी युग के बहुत से लेख ख़ोतन देश से प्राप्त हुए हैं, जो कीलमुद्राओं (विशेष प्रकार की लकड़ियों की तख्तियों) पर लिखे गए हैं। ये लेख प्राकृत भाषा में हैं, और खरोष्ठी लिपि में लिखित हैं।
- हुविष्क ने कश्मीर में अपने नाम से एक नगर (हुविष्कपुर) भी बनाया था, जिसके अवशेष बारामूला के दर्रे के समीप उस्कूल गाँव में अब भी विद्यमान हैं।
मृत्यु
हुविष्क की मृत्यु 183 ई. में हुई थी।
|
|
|
|
|