शर्की वंश: Difference between revisions
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दिल्ली सल्तनत के पतन के | दिल्ली सल्तनत के पतन के पश्चात् शर्की सुल्तानों ने एक बड़े भूखण्ड पर क़ानून और व्यवस्था को बनाय रखा। उन्होंने [[बंगाल]] के सुल्तानों के पूर्वी उत्तर प्रदेश पर आधिपत्य के प्रयत्नों को सफल नहीं होने दिया। इससे भी अधिक उन्होंने एक सांस्कृतिक परम्परा क़ायम की, जो उनका राज समाप्त होने के बाद भी काफ़ी समय तक जीवित रही। | ||
==स्थापत्य कला== | ==स्थापत्य कला== | ||
शर्की सुल्तान ख़्वाजा जहान ने कभी सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की। 1399 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। उसके राज्य की सीमाएँ 'कोल', '[[सम्भल]]' तथा '[[रापरी]]' तक फैली | शर्की सुल्तान ख़्वाजा जहान ने कभी सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की। 1399 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। उसके राज्य की सीमाएँ 'कोल', '[[सम्भल]]' तथा '[[रापरी]]' तक फैली हुई थीं। उसने 'तिरहुत' तथा '[[दोआब]]' के साथ-साथ [[बिहार]] पर भी प्रभुत्व स्थापित किया था। शर्की वंश के लगभग सौ वर्ष के शासन काल में [[जौनपुर]] में बहुत-सी इमारतों जैसे- महल, मस्जिद, मक़बरों आदि का निर्माण किया गया। शर्की सुल्तानों द्वारा निर्मित इमारतों में [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] स्थापत्य कला का सुन्दर मिश्रण दिखाई पड़ता है। शर्की सुल्तानों के निर्माण कार्य अपनी बड़ी-बड़ी ढलुवाँ एवं तिरछी दीवारों, वर्गाकार स्तम्भों, छोटी गैलरियों एवं कोठरियों के कारण काफ़ी प्रसिद्ध हैं। | ||
शर्की सुल्तान ज्ञान और कलाओं के बड़े संरक्षक थे। कवि, विद्वान और [[संत]] जौनपुर में निवास करके उसकी शोभा बढ़ाते थे। धीरे-धीरे जौनपुर 'पूर्व का शिराज' माना जाने लगा। [[हिन्दी]] का प्रसिद्ध कवि और '[[पद्मावत]]' का रचयिता [[मलिक मुहम्मद जायसी]] यहीं रहता था। | शर्की सुल्तान ज्ञान और कलाओं के बड़े संरक्षक थे। कवि, विद्वान और [[संत]] जौनपुर में निवास करके उसकी शोभा बढ़ाते थे। धीरे-धीरे जौनपुर 'पूर्व का शिराज' माना जाने लगा। [[हिन्दी]] का प्रसिद्ध कवि और '[[पद्मावत]]' का रचयिता [[मलिक मुहम्मद जायसी]] यहीं रहता था। |
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शर्की वंश की स्थापना ख़्वाजा जहान ने की थी, जो कि महमूद के दरबार में वज़ीर के पद पर नियुक्त था। बनारस के उत्तर पश्चिम में स्थित जौनपुर राज्य की नींव फ़िरोज़शाह तुग़लक़ के द्वारा डाली गई थी। सम्भवतः इस राज्य को फ़िरोज ने अपने भाई 'जौना ख़ाँ' या 'जूना ख़ाँ' (मुहम्मद बिन तुग़लक़) की स्मृति में बसाया था। यह नगर गोमती नदी के किनारे स्थापित किया गया था। 1394 ई. में फ़िरोज तुग़लक़ के पुत्र सुल्तान महमूद ने अपने वज़ीर 'ख़्वाजा जहान' को ‘मलिक-उस-शर्क’ (पूर्व का स्वामी) की उपाधि प्रदान की। उसने दिल्ली पर हुए तैमूर के आक्रमण के कारण व्याप्त अस्थिरता का लाभ उठाकर स्वतन्त्र 'शर्की वंश' की नींव डाली।
इतिहास
गंगा की घाटी में सबसे पहले स्वतंत्रता घोषित करने वालों में फ़िरोज़ तुग़लक के समय से ही एक प्रमुख सरदार मलिक सरवर था। मलिक सरवर कुछ समय तक वज़ीर रहा था और फिर उसे 'मलिक-उस-शर्क'[1] की उपाधि देकर पूर्वी प्रान्तों का शासक बना दिया गया था। उसकी उपाघि के कारण उसके उत्तराधिकारी शर्की कहलाये। शर्की सुल्तानों ने जौनपुर, पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्थित, को अपनी राजधानी बनाया और नगर को अनेक भव्य महलों, मस्जिदों और मक़बरों से सुन्दर बनाया। इसमें से कुछ मस्जिदें और मक़बरे ही बचे हैं। इनसे प्रतीत होता है कि शर्की सुल्तानों ने दिल्ली की स्थापत्य शैली का ही अनुसरण नहीं किया। उन्होंने विशाल दरवाज़ों और महराबों वाली अपनी शैली का निर्माण भी किया।
अस्तित्व
शर्की सल्तनत का अस्तित्व लगभग 75 वर्ष तक ही बना रहा। अपनी उन्नति के काल में इस सल्तनत की पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ से उत्तरी बिहार के दरभंगा तक और उत्तर नेपाल की सीमा से दक्षिण में बुंदेलखण्ड तक थी। शर्की सुल्तान दिल्ली को भी जीतना चाहते थे, किन्तु इसमें वे सफल नहीं हुए। पंद्रहवीं शताब्दी के मध्य में दिल्ली में लोदियों के स्थापित हो जाने के बाद शर्की निरन्तर बचाव में लगे रहे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का अधिकांश हिस्सा उन्होंने खो दिया और अपनी सारी शक्ति दिल्ली जीतने की तीव्र, लेकिन असफल अभियानों में व्यर्थ कर दी। अन्ततः दिल्ली के सुल्तान बहलोल लोदी ने जौनपुर को जीत लिया और शर्की सल्तनत को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। शर्की शासक कुछ समय तक प्रवासी के रूप में चुनार में रहा और फिर अपने राज्य को फिर से प्राप्त करने के कई प्रयत्नों में असफल होकर निराशा की स्थिति में मर गया।
दिल्ली सल्तनत के पतन के पश्चात् शर्की सुल्तानों ने एक बड़े भूखण्ड पर क़ानून और व्यवस्था को बनाय रखा। उन्होंने बंगाल के सुल्तानों के पूर्वी उत्तर प्रदेश पर आधिपत्य के प्रयत्नों को सफल नहीं होने दिया। इससे भी अधिक उन्होंने एक सांस्कृतिक परम्परा क़ायम की, जो उनका राज समाप्त होने के बाद भी काफ़ी समय तक जीवित रही।
स्थापत्य कला
शर्की सुल्तान ख़्वाजा जहान ने कभी सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की। 1399 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। उसके राज्य की सीमाएँ 'कोल', 'सम्भल' तथा 'रापरी' तक फैली हुई थीं। उसने 'तिरहुत' तथा 'दोआब' के साथ-साथ बिहार पर भी प्रभुत्व स्थापित किया था। शर्की वंश के लगभग सौ वर्ष के शासन काल में जौनपुर में बहुत-सी इमारतों जैसे- महल, मस्जिद, मक़बरों आदि का निर्माण किया गया। शर्की सुल्तानों द्वारा निर्मित इमारतों में हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला का सुन्दर मिश्रण दिखाई पड़ता है। शर्की सुल्तानों के निर्माण कार्य अपनी बड़ी-बड़ी ढलुवाँ एवं तिरछी दीवारों, वर्गाकार स्तम्भों, छोटी गैलरियों एवं कोठरियों के कारण काफ़ी प्रसिद्ध हैं।
शर्की सुल्तान ज्ञान और कलाओं के बड़े संरक्षक थे। कवि, विद्वान और संत जौनपुर में निवास करके उसकी शोभा बढ़ाते थे। धीरे-धीरे जौनपुर 'पूर्व का शिराज' माना जाने लगा। हिन्दी का प्रसिद्ध कवि और 'पद्मावत' का रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी यहीं रहता था।
निर्माण कार्य
डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने शर्की शासकों के निर्माण कार्यों की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि, "शर्की सुल्तान जौनपुर की सम्राट कला और विद्या के महान् संरक्षक थे, जिन भवनों का निर्माण इन शासकों ने कराया है, वे उनकी स्थापत्य कला की अभिरुचि के प्रमाण हैं, ये भवन सुदृढ़, प्रभावयुक्त तथा सुन्दर हैं। इनमें हिन्दू-मुस्लिम निर्माण कला शैली के विचारों का वास्तविक एवं प्रारम्भिक समन्वय है।" शर्की सुल्तानों के कुछ महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्य निम्नलिखित हैं-
स्पष्ट है कि, शर्की शासकों की स्थापत्य कला में हिन्दू और इस्लामी शैलियों का अच्छा समन्वय है। विशाल ढलवा दीवारों, वर्गाकार स्तंभ, छोटे बरामदे और छायादार रास्ते हिन्दू कारीगरों द्वारा निर्मित होने के कारण स्पष्टतः हिन्दू विशेषताएँ हैं। मीनारों का अभाव इस कला की मुख्य विशेषता है। ये मस्जिदें ध्वस्त हिन्दू स्थलों पर बनायी गयी हैं। इनकी रचना शैली मुहम्मद बिन तुग़लक़ द्वारा बनवायी गयी 'बेग़मपुरी मस्जिद' (जामा मस्जिद) से बहुत अधिक प्रभावित है।
शासक
शर्की वंश में जो राजा हुए, उनके नाम इस प्रकार से है-
- मलिक करनफूल मुबारकशाह (1399 - 1402 ई.)
- इब्राहिमशाह शर्की (1402 - 1440 ई.)
- महमूदशाह शर्की (1440 - 1457 ई.)
- मुहम्मदशाह शर्की (1457 - 1458 ई.)
- हुसैनशाह शर्की (1458 - 1485 ई.)
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पूर्व का स्वामी
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