महोबा: Difference between revisions

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831 के लगभग [[चन्देल राजपूत|चन्देल राजपूतों]] ने महोबा पर अधिकार करके अपने इतिहास प्रसिद्ध राजवंश की नींव डाली थी।  
831 के लगभग [[चन्देल राजपूत|चन्देल राजपूतों]] ने महोबा पर अधिकार करके अपने इतिहास प्रसिद्ध राजवंश की नींव डाली थी।  
==जनश्रुति==
==जनश्रुति==
जनश्रुति है कि चन्देलों के [[आदिपुरुष चंद्रवर्मा]] ने यहाँ महोत्सव किया था, जिससे इस स्थान का नाम महोत्सवपुर या उससे बिगड़ कर महोबा हुआ। 12वीं शती के अन्त में महोबा में [[राजा परमार]] का राज्य था। [[पृथ्वीराज चौहान]] ने 1182 ई. के प्रसिद्ध युद्ध में जिसमें चन्देलों की ओर से [[आल्हाखण्ड|आल्हा-ऊदल]] दो भाई लड़े थे, महोबा परमाल से छीन लिया था, किन्तु कुछ समय पश्चात चन्देलों का पुनः इस पर अधिकार हो गया। 1196 ई. के लगभग [[कुतुबुद्दीन ऐबक]] ने महोबा और [[कालपी]] दोनों पर अधिकार कर लिया और अपना सूबेदार यहाँ पर नियुक्त कर दिया।
जनश्रुति है कि चन्देलों के [[आदिपुरुष चंद्रवर्मा]] ने यहाँ महोत्सव किया था, जिससे इस स्थान का नाम महोत्सवपुर या उससे बिगड़ कर महोबा हुआ। 12वीं शती के अन्त में महोबा में [[राजा परमार]] का राज्य था। [[पृथ्वीराज चौहान]] ने 1182 ई. के प्रसिद्ध युद्ध में जिसमें चन्देलों की ओर से [[आल्हाखण्ड|आल्हा-ऊदल]] दो भाई लड़े थे, महोबा परमाल से छीन लिया था, किन्तु कुछ समय पश्चात् चन्देलों का पुनः इस पर अधिकार हो गया। 1196 ई. के लगभग [[कुतुबुद्दीन ऐबक]] ने महोबा और [[कालपी]] दोनों पर अधिकार कर लिया और अपना सूबेदार यहाँ पर नियुक्त कर दिया।


==आक्रमण के समय==
==आक्रमण के समय==

Latest revision as of 07:42, 7 November 2017

831 के लगभग चन्देल राजपूतों ने महोबा पर अधिकार करके अपने इतिहास प्रसिद्ध राजवंश की नींव डाली थी।

जनश्रुति

जनश्रुति है कि चन्देलों के आदिपुरुष चंद्रवर्मा ने यहाँ महोत्सव किया था, जिससे इस स्थान का नाम महोत्सवपुर या उससे बिगड़ कर महोबा हुआ। 12वीं शती के अन्त में महोबा में राजा परमार का राज्य था। पृथ्वीराज चौहान ने 1182 ई. के प्रसिद्ध युद्ध में जिसमें चन्देलों की ओर से आल्हा-ऊदल दो भाई लड़े थे, महोबा परमाल से छीन लिया था, किन्तु कुछ समय पश्चात् चन्देलों का पुनः इस पर अधिकार हो गया। 1196 ई. के लगभग कुतुबुद्दीन ऐबक ने महोबा और कालपी दोनों पर अधिकार कर लिया और अपना सूबेदार यहाँ पर नियुक्त कर दिया।

आक्रमण के समय

तैमूर के आक्रमण के समय कालपी और महोबा के सूबेदार स्वतंत्र हो गए। 1434 ई. में जौनपुर के सूबेदार इब्राहीमशाह ने महोबा और कालपी पर अधिकार कर लिया। किन्तु अगले वर्ष मालवा के सुल्तान होशंगशाह ने इसे छीन लिया। किन्तु पुनः यह नगर जौनपुर के सुल्तान के क़ब्ज़े में आ गया। 16वीं शती में मुग़लों का साम्राज्य दिल्ली में स्थापित हुआ और साथ ही महोबा भी मुग़ल साम्राज्य का एक अंग बन गया। औरंगज़ेब के समय में बुंदेलखंड के प्रतापी राजा छत्रसाल का महोबा पर अधिकार हो गया और यह नगर शीघ्र ही उनके राज्य का एक बड़ा नगर बन गया। किन्तु अंग्रेज़ी राज्य स्थापित होने के पश्चात् महोबा एक छोटा महत्त्वहीन क़स्बा बनकर ही रह गया और उसी रूप में आज भी विद्यमान है।

चन्देलों के अवशेष

चन्देलों के समय के कुछ अवशेष महोबा में मिले हैं तथा आल्हा-ऊदल की दन्त कथाओं से सम्बन्धित ताल आदि भी यहाँ बताए जाते हैं। चन्देल नरेश वास्तुकला के प्रेमी थे। इन्हीं के ज़माने में जगत् प्रसिद्ध खजुराहो के मन्दिरों का निर्माण हुआ था। किन्तु जान पड़ता है कि युद्धों की अग्नि में महोबा के प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण अवशेष नष्ट हो गए। फिर भी राजपूतों के समय के अवशेषों में यहाँ से प्राप्त हिन्दू धर्म तथा जैन धर्म से सम्बन्धित कुछ मूर्तियाँ अवश्य उल्लेखनीय हैं। 'सिंहनाद अविलोकितेश्वर' की एक अभिलिखित मूर्ति भी प्राप्त हुई थी, जो अब लखनऊ के संग्रहालय में है। यह मध्यकालीन बुंदेलखंड की मूर्तिकला का सुन्दर उदाहरण है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 730-731 | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

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