अग्रहार: Difference between revisions

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==संगमकालीन साहित्य में वर्णन==
==संगमकालीन साहित्य में वर्णन==
विशुद्ध रूप से यह ब्राह्मणों की ही बस्ती हुआ करती थी और इसका उल्लेख तीसरी सदी के [[संगम काल]] के साहित्य में भी पर्याप्त मिलता है। इन्हें 'चतुर्वेदिमंगलम' भी कहा गया है। अग्रहार का तात्पर्य ही है "फूलों की तरह माला में पिरोये हुए घरों की श्रृंखला"। वे प्राचीन नगर नियोजन  के उत्कृष्ट उदाहरण माने जा सकते हैं। इन ग्रामों (अग्रहारम) में रहने वालों की दिनचर्या पूरी तरह वहां के मंदिर के इर्द गिर्द और उससे जुड़ी हुई होती थी। यहाँ तक कि उनकी अर्थव्यवस्था भी मंदिर के द्वारा प्रभावित हुआ करती थी। प्रातःकाल सूर्योदय के बहुत पहले ही दिनचर्या प्रारंभ हो जाती थी। जैसे महिलाओं और पुरुषों का तालाब या बावड़ी जाकर [[स्नान]] करना, घरों के सामने [[गोबर]] से लीपकर सादा रंगोली बनाना, भगवान के दर्शन के लिए मंदिर जाना और वहां से वापस आकर ही अपने दूसरे कार्यों में लग जाना।
विशुद्ध रूप से यह [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] की ही बस्ती हुआ करती थी और इसका उल्लेख तीसरी सदी के [[संगम काल]] के साहित्य में भी पर्याप्त मिलता है। इन्हें 'चतुर्वेदिमंगलम' भी कहा गया है। अग्रहार का तात्पर्य ही है "फूलों की तरह माला में पिरोये हुए घरों की श्रृंखला"। वे प्राचीन नगर नियोजन  के उत्कृष्ट उदाहरण माने जा सकते हैं। इन ग्रामों (अग्रहारम) में रहने वालों की दिनचर्या पूरी तरह वहां के मंदिर के इर्द गिर्द और उससे जुड़ी हुई होती थी। यहाँ तक कि उनकी अर्थव्यवस्था भी मंदिर के द्वारा प्रभावित हुआ करती थी। प्रातःकाल सूर्योदय के बहुत पहले ही दिनचर्या प्रारंभ हो जाती थी। जैसे महिलाओं और पुरुषों का तालाब या बावड़ी जाकर [[स्नान]] करना, घरों के सामने [[गोबर]] से लीपकर सादा रंगोली बनाना, भगवान के दर्शन के लिए मंदिर जाना और वहां से वापस आकर ही अपने दूसरे कार्यों में लग जाना।
==कृषि आधारित अर्थव्यवस्था==
==कृषि आधारित अर्थव्यवस्था==
अग्रहारम के चारों तरफ़ दूसरी जाति के लोग भी बसते थे, जैसे- बढई, कुम्हार, बसोड, लोहार, सुनार, वैद्य, व्यापारी और खेतिहर मजदूर आदि। मंदिर को और वहां के ब्राह्मणों को भी उनकी सेवाओं की आवश्यकता जो रहती थी। ब्राह्मणों के पास स्वयं की [[कृषि]] योग्य भूमि भी हुआ करती थी या फिर वे पट्टे पर मंदिर से प्राप्त करते थे। मंदिर की संपत्ति की देखरेख और अन्य क्रिया कलापों के लिए पर्याप्त कर्मी भी हुआ करते थे, जिन्हें नकद या वस्तु ([[धान]]/[[चावल]]) रूप में वेतन दिया जाता था। मंदिर के प्रशासन के लिए एक न्यास भी हुआ करता था। कुल मिलाकर मंदिर को केंद्र में रखते हुए एक कृषि आधारित अर्थव्यवस्था थी।<ref name="aa"/>
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मूलतः [[तमिलनाडु]] के [[कुम्भकोणम]], [[तंजावूर]] तथा [[तिरुनेल्वेलि]] से भयभीत ब्राह्मणों का पलायन हुआ था। बड़ी संख्या में वे लोग [[पालक्काड]] में आकर बस गए थे और कुछ [[कोच्चि]] के राजा के शरणागत हुए। तिरुनेल्वेलि से पलायन करने वालों ने त्रावन्कोर में शरण ली और बस गये। उन्हें राजकार्य, शिक्षण आदि के लिए उपयुक्त समझा गया और लगभग सभी को कृषि भूमि भी उपलब्ध हुई। [[केरल]] आकर उन्होंने अपने अग्रहारम बना लिए और अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को संजोये रखा। उनके आग्रहाराम में [[शिव]] के मंदिर के अतिरिक्त [[विष्णु]] के लिए भी दूसरे छोर पर मंदिर बनाये गए।
मूलतः [[तमिलनाडु]] के [[कुम्भकोणम]], [[तंजावूर]] तथा [[तिरुनेल्वेलि]] से भयभीत ब्राह्मणों का पलायन हुआ था। बड़ी संख्या में वे लोग [[पालक्काड]] में आकर बस गए थे और कुछ [[कोच्चि]] के राजा के शरणागत हुए। तिरुनेल्वेलि से पलायन करने वालों ने त्रावन्कोर में शरण ली और बस गये। उन्हें राजकार्य, शिक्षण आदि के लिए उपयुक्त समझा गया और लगभग सभी को कृषि भूमि भी उपलब्ध हुई। [[केरल]] आकर उन्होंने अपने अग्रहारम बना लिए और अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को संजोये रखा। उनके आग्रहाराम में [[शिव]] के मंदिर के अतिरिक्त [[विष्णु]] के लिए भी दूसरे छोर पर मंदिर बनाये गए।
==आधुनिकता का प्रभाव==
==आधुनिकता का प्रभाव==
अब समय बदल चुका है। आधुनिकता के चक्कर में कई घरों को तोड़कर नया रूप दे दिया गया है। इन ग्रामों की आबादी भी घटती जा रही, क्योंकि घरों के युवा रोज़ी रोटी के लिए देश में ही अन्यत्र या विदेशों में जा बसे हैं और यह प्रक्रिया जारी है। अतः कई मकान स्थानीय लोगों ने खरीद लिए हैं। जो [[ब्राह्मण]] [[परिवार]] बचे जुए हैं, उनमें अधिकतर वृद्ध ही रह गये हैं। पालक्काड के आसपास अब भी बहुत-से अग्रहारम हैं, जहाँ उत्सव आदि आधुनिकता के आगोश में रहते हुए भी परंपरागत रूप में मनाये जाते हैं। [[दीपावली]] के बाद [[नवम्बर]]/[[दिसंबर]] में एक 'तमिल त्यौहार' पड़ता है, जिसे 'कार्थिकई' कहते हैं। यह कुछ-कुछ [[भाई दूज|भाईदूज]] जैसा है। हर घर के सामने रंगोली तो बनती ही है, परन्तु शाम को उन पर नाना प्रकार के [[पीतल]] के दिए जलाकर रखे जाते हैं। यही वह एक अवसर होता है, जब लोगों के घरों के बाहर दिए जलते हैं, क्योंकि ऐसा [[दीपावली]] में भी नहीं होता।<ref name="aa"/>
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Latest revision as of 12:39, 20 April 2018

अग्रहार
विवरण दक्षिण भारत के तमिलनाडु तथा केरल अदि राज्यों में 'अग्रहार' ऐसे ग्राम को कहा जाता है, जहाँ के सभी निवासी ब्राह्मण हों।
देश भारत
राज्य तमिलनाडु, केरल आदि।
अन्य नाम अग्रहारम, बहुत समय पहले इन्हें 'चतुर्वेदीमंगलम' भी कहा जाता था।
संबंधित लेख दक्षिण भारत, अग्रहारिक, तमिलनाडु की संस्कृति, केरल की संस्कृति
अन्य जानकारी अग्रहारम के चारों तरफ़ दूसरी जाति के लोग भी बसते थे, जैसे- बढ़ई, कुम्हार, बसोड, लोहार, सुनार, वैद्य, व्यापारी और खेतिहर मज़दूर आदि, क्योंकि ब्राह्मणों को मन्दिर आदि के लिए इनकी सेवाओं की आवश्यकता रहती थी।

अग्रहार अथवा 'अग्रहारम' दक्षिण भारत में उस ग्राम को कहा जाता है, जिसके निवासी पूर्णतः ब्राह्मण हों। विभिन्न जाति वाले गावों के उस भाग को भी अग्रहार कहते हैं, जिसमें ब्राह्मण रहते हैं। बहुत समय पहले इन्हें 'चतुर्वेदीमंगलम' भी कहा जाता था।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी के सेनापति मलिक काफ़ूर ने 14वीं सदी के प्रारंभ में मदुरै पर आक्रमण करके इस शहर पर कब्ज़ा कर लिया था। इतिहास में संभवतः यही वह समय था, जब उस अंचल के ब्राह्मण, जो अग्रहारमों में रहा करते थे, भयभीत हो गए और हिन्दू राज्यों में जाकर शरण लेने की सोची। तमिलनाडु से सामूहिक पलायन कर जिन लोगों का केरल आना हुआ था, उन्हें राजाश्रय प्राप्त हुआ और उन्हें शहर या गाँव के एक अलग भाग में बसाया गया। ऐसी बसावट को भी 'अग्रहारम' या 'ग्रामं' कहा गया। एक छोर पर या बीच में शिव का मंदिर और अगल-बगल उत्तर से दक्षिण की ओर कतारों में बने लगभग 100 घर, एक-दूसरे से जुड़े हुए। दूसरी तरफ़ ऐसे भी लोग थे, जो तामिलनाडू में ही रह गए, परन्तु कालांतर में कुछ परिवार केरल में अपनी किस्मत आजमाने के लिए चले आये और अलग-अलग गाँवों में बसते गए। उनके घरों को 'मठ' कहा जाता है। इस तरह का विस्थापन लगभग 250 वर्ष पहले ही हुआ था। ये दूसरे प्रकार के लोग अधिक खुले विचारों के थे, क्योंकि स्थानीय लोगों के वे अधिक करीब थे, जिसके कारण वे स्थानीय संस्कृति और परम्पराओं में सरलता से रच बस गए।[1]

संगमकालीन साहित्य में वर्णन

विशुद्ध रूप से यह ब्राह्मणों की ही बस्ती हुआ करती थी और इसका उल्लेख तीसरी सदी के संगम काल के साहित्य में भी पर्याप्त मिलता है। इन्हें 'चतुर्वेदिमंगलम' भी कहा गया है। अग्रहार का तात्पर्य ही है "फूलों की तरह माला में पिरोये हुए घरों की श्रृंखला"। वे प्राचीन नगर नियोजन के उत्कृष्ट उदाहरण माने जा सकते हैं। इन ग्रामों (अग्रहारम) में रहने वालों की दिनचर्या पूरी तरह वहां के मंदिर के इर्द गिर्द और उससे जुड़ी हुई होती थी। यहाँ तक कि उनकी अर्थव्यवस्था भी मंदिर के द्वारा प्रभावित हुआ करती थी। प्रातःकाल सूर्योदय के बहुत पहले ही दिनचर्या प्रारंभ हो जाती थी। जैसे महिलाओं और पुरुषों का तालाब या बावड़ी जाकर स्नान करना, घरों के सामने गोबर से लीपकर सादा रंगोली बनाना, भगवान के दर्शन के लिए मंदिर जाना और वहां से वापस आकर ही अपने दूसरे कार्यों में लग जाना।

कृषि आधारित अर्थव्यवस्था

अग्रहारम के चारों तरफ़ दूसरी जाति के लोग भी बसते थे, जैसे- बढ़ई, कुम्हार, बसोड, लोहार, सुनार, वैद्य, व्यापारी और खेतिहर मज़दूर आदि। मंदिर को और वहां के ब्राह्मणों को भी उनकी सेवाओं की आवश्यकता जो रहती थी। ब्राह्मणों के पास स्वयं की कृषि योग्य भूमि भी हुआ करती थी या फिर वे पट्टे पर मंदिर से प्राप्त करते थे। मंदिर की संपत्ति की देखरेख और अन्य क्रिया कलापों के लिए पर्याप्त कर्मी भी हुआ करते थे, जिन्हें नकद या वस्तु (धान/चावल) रूप में वेतन दिया जाता था। मंदिर के प्रशासन के लिए एक न्यास भी हुआ करता था। कुल मिलाकर मंदिर को केंद्र में रखते हुए एक कृषि आधारित अर्थव्यवस्था थी।[1]

मूलतः तमिलनाडु के कुम्भकोणम, तंजावूर तथा तिरुनेल्वेलि से भयभीत ब्राह्मणों का पलायन हुआ था। बड़ी संख्या में वे लोग पालक्काड में आकर बस गए थे और कुछ कोच्चि के राजा के शरणागत हुए। तिरुनेल्वेलि से पलायन करने वालों ने त्रावन्कोर में शरण ली और बस गये। उन्हें राजकार्य, शिक्षण आदि के लिए उपयुक्त समझा गया और लगभग सभी को कृषि भूमि भी उपलब्ध हुई। केरल आकर उन्होंने अपने अग्रहारम बना लिए और अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को संजोये रखा। उनके आग्रहाराम में शिव के मंदिर के अतिरिक्त विष्णु के लिए भी दूसरे छोर पर मंदिर बनाये गए।

आधुनिकता का प्रभाव

अब समय बदल चुका है। आधुनिकता के चक्कर में कई घरों को तोड़कर नया रूप दे दिया गया है। इन ग्रामों की आबादी भी घटती जा रही, क्योंकि घरों के युवा रोज़ी रोटी के लिए देश में ही अन्यत्र या विदेशों में जा बसे हैं और यह प्रक्रिया जारी है। अतः कई मकान स्थानीय लोगों ने ख़रीद लिए हैं। जो ब्राह्मण परिवार बचे जुए हैं, उनमें अधिकतर वृद्ध ही रह गये हैं। पालक्काड के आसपास अब भी बहुत-से अग्रहारम हैं, जहाँ उत्सव आदि आधुनिकता के आगोश में रहते हुए भी परंपरागत रूप में मनाये जाते हैं। दीपावली के बाद नवम्बर/दिसंबर में एक 'तमिल त्यौहार' पड़ता है, जिसे 'कार्थिकई' कहते हैं। यह कुछ-कुछ भाईदूज जैसा है। हर घर के सामने रंगोली तो बनती ही है, परन्तु शाम को उन पर नाना प्रकार के पीतल के दिए जलाकर रखे जाते हैं। यही वह एक अवसर होता है, जब लोगों के घरों के बाहर दिए जलते हैं, क्योंकि ऐसा दीपावली में भी नहीं होता।[1]


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 अग्रहारम (हिन्दी) मल्हार। अभिगमन तिथि: 04 मार्च, 2015।

संबंधित लेख

शब्द संदर्भ कोश
काश्तकार अंतरराष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय कल्पसिद्धि गाथा उपाख्यान आख्यान शताब्दी सुई न्यग्रोध महाप्राण व्यंजन अन्तःस्थ व्यंजन ओष्ठ्य व्यंजन दन्त्य व्यंजन मूर्धन्य व्यंजन तालव्य व्यंजन कण्ठ्य व्यंजन अव्यय वत्स कुमार किम्पुरुष सत्य वाह संवर्त्तक (हल) स्थावर जरा मोहनास्त्र ऐषीक शस्त्र रात सनातन अनन्त अद्भुत वराह दण्ड विमुख कुकुर वृषध्वज (बहुविकल्पी) यायावर सत्र कुलपति चरु शूर्प यूथनाथ द्वारपाल कलाबत्तू धत्ता कड़वक क्लीब भृंग पतोहू अट्टगत्तर अट्टगम अचल प्रवृत्ति अबोहन अंत-अयम् बराबर क्षेत्र हिरण्य हरणीपर्यंत हल्लि हल्लिकार हलिक हैमन शस्य श्रणी स्ववीर्योपजीविन सुनु सूना स्थान स्थान मान्य स्थल स्थल वृत्ति स्त्रोत चतुर्थ पंचभागिकम गुणपत्र खेत्तसामिक बलिदान कृप्यगृह कुमारगदियानक कुल्यवाप कर्मान्तिक सीमा एकपुरुषिकम उत्पाद्यमानविष्टि आवात आसिहार आलि आघाट आधवाय आदाणक स्कंधावार सीत्य सिद्ध सेवा सेतुबंध सेनाभक्त सर्वमान्य सर्व-आभ्यांतर-सिद्धि सन्निधाता संग्रहत संक्रांत संकर कुल संकर ग्राम साध्य अयनांगल अट्टपतिभाग अस्वयंकृत कृषि अर्धसीतिका अक्षयनीवी अक्षपटलाध्यक्ष अक्षपटल अकृत अकृष्ट अकरदायिन अकरद अग्रहार अग्रहारिक अदेवमातृक अध्यिय-मनुस्सनम नियोग समाहर्ता सालि सकारुकर सद्भाग साचित्त सभा-माध्यम शुल्क शौल्किक शासन रूधमारोधि रोपण रज्जु राजकीय क्षेत्र योगक्षेम यव मेय मासु मूलवाप मंडपिका महात्राण भूतवातप्रत्यय भूमिच्छिद्रन्याय भूमास्क भुक्ति भुज्यमान भोगायक भोगपति भोगगाम भोग भिक्षु हल भिख्खुहलपरिहार भाण्डागारिक ब्रह्मदेय बीत्तुवत्त भद्रभोग भागदुध भैक्षक बीजगण बरज फेणाघात पुस्तपाल पूर्ववाप पुर प्रतिकर प्रदेश पथक पतित पिण्डक पौतवम् पट्टला पार्श्व पर्रु पातक पल्लिका पारिहारिक परिहार पादोनलक्ष पण्यसंस्था परिभोग पंचकुल न्याय कर्णिक निवर्तन व्यामिश्र-भूमि ब्रीहि विविता वित्तोलकर विषामत्ता विलोप वत्थुपति वातक वासेत-कुटम्बिक वार्ता वर्षिकाशस्य वरत्रा वरज विपर्यस्त विपर्यय वापी वापातिरिक्तम् वाप गत्या लांगुल रूपजीवा रूपदर्शक शास्त्रीय कला शास्त्र अस्त्र शस्त्र शास्त्रीय थाना सूत्र स्वभाव सव्यसाची पुण्य तिथि जयंती सैर रंगशाला तरणी तरणि जातक घोषणापत्र गोधूलि महामाया वितान मेहराब शर्करा गज़ यातना शिविर समन्वयवाद गोष्ठी कचहरी अनामिका (उँगली) मध्यमा तर्जनी अंगूठा नुक़्ता कूटस्थ स्मार्त कन्दरा ख़ाना ख़ानाबदोश कोष्ण उपभोग उपभोक्ता उत्पादन उत्पादक आखेटक नौगम्य अवस्थित और उपस्थित अभिज्ञ और अनभिज्ञ अफ़वाह और किंवदंती अधिकांश और अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अनुवाद अध्यास सहोदरा सहोदर दशलक्षण धर्म संयम जनश्रुति परास राजमहल सुदर्शन अनुष्ठान कठौती कठौता बारगीर बारगी बीजना जुगाड़ खरल नाल कश्कोल सदक़ा छिन्नक अरणी आप: वलय तरंग अवशेष साखी अभंग अबीर श्रृंग राका लोककथा अखाड़ा अंगहीन बावली खंडहर सफ़र सारिका अंतर्धान दैत्य विधि यम (संयम) निवेश नाम पुछत्तर बखार तत्थो-थंभो बेला गोरु आसरैत मुदा अलग्योझा द्विज अम्बु प्रव्रज्या ईहित ईहामृग ईहा ईहग ईसरी ईसर ईसन ईस ईष्म ईषु ईषिका ईषा ईषना ईषद ईषत्‌स्पृष्ट ईषत ईश्वरोपासना ईश्वरीय ईश्वरी ईश्वराधीन ईश्वरवादी ईश्वर-वाद ईश्वर-प्रणिधान ईशित्व ईशिता ईशा ईशता ईली ईलि ईल ईर्ष्यालु ईर्ष्या ईर्ष्यक ईर्ष्य ईर्षु ईर्षित ईर्षालु ईर्षा ईर्षणा ईरित ईरण ईरमद ईरखा ईर ईमानदारी ईमानदार ईमन-कल्यान ईमन ईप्सु ईप्सित ईप्सा ईडा त्रिगंभीर त्रिगंधक त्रिगंग त्रिखी त्रिखा त्रिख त्रिक्षुर त्रिक्षार त्रिकोण-मिति त्रिकोण-भवन त्रिकोण-फल त्रि-कूर्चक त्रिकूटा त्रिकूट गढ़ त्रिकुटी त्रिकुटा त्रिकुट त्रिकालदर्शी त्रिकालदर्शिता त्रिकाल-दर्शक त्रिकालज्ञता त्रिकालज्ञ त्रिकाल त्रिकार्षिक त्रिकाय त्रिका त्रिकांडीय ईदृश ईदी ईतर ईढ़ त्रिकांड ईड्य त्रिक-शूल ईडित त्रिकल ईडन ईठि त्रिकर्मा त्रिकर्मन त्रिकत्रय ईठना त्रिकटुक त्रिकटु त्रिकट ईजाद त्रिककुम ईजा त्रिककुद ईछा त्रि-कंट ज्ञानद ज्ञानचक्षु ज्ञानगोचर ज्ञानगम्य ज्ञान कृत ज्ञातृव्य ज्ञाति पुत्र ज्ञाति ज्ञाता ज्ञातव्य ज्ञात यौवना ज्ञात-नंदन ज्ञात ज्ञप्ति ज्ञापित ज्ञापन ज्ञप्त ज्ञपन ईछन ईखराज त्रिशांश त्रि ईख ईक्षित त्रिंशत्पत्र ईक्षा ईक्षिका त्रिशत ईक्षण त्रिशः ईक्षणिक ईक्षक ईकरांत त्राहि इंद्र सावर्णि इंद्र सभा इंद्र वारुणी इंद्र वधू इंद्र वंशा इंद्र यव इंद्र मंडल इंद्र नील इन्द्र ध्वज इंद्रधनुषी इंद्र जौ इंद्रजाली इंद्र जव इंद्रचाप इंद्र गोप ईकार इंद्र गिरि इंद्र कृष्ट ईढ इंद्रक ईंटा इंद्रियवाद ईंचा-तानी इंदिरालय इंदिरा-रमण इंदिरा ईंचना इंतहा इंतज़ार ईस्टर इंतज़ाम इंतक़ाल ईश मनोहरी इंतक़ाम इँटकोहरा ईश-गौड़ इँटाई इंगुर ईश-गिरी इंगुदी ईठ द्रव्य कफ़न अदृष्ट सदी ग्रंथ कालांतर दृश्य तटवर्ती गंतव्य सुपाच्य परिदृश्य उदगम ताल्लुक़ दार बेनामी सौदा अपवाह प्रायोपवेश अनुश्रुति अंग शब्द संदर्भ सूची अलंकरण भुव किंवदंती मधु वैकुण्ठ (बहुविकल्पी) अग्नि जिन (बहुविकल्पी) आसंदी मिथक आत्मा भक्त प्रदर्श प्रदर आस्तिक तोरण कणिक कणिका एषणा एला उपहसित उन्मत्त उन्मुख उद्रेक उदोत अजा उपशमन उपशम ईति अपोह अनूरु अनुयोग अनुयोज्य नेपथ्य नृमेध निर्दिष्ट निवृत्त निवृत्ति निर्वाप निर्वात निष्कण्टक विप्लाव निष्क विप्लवी विप्लव चिन्त्य आजीव आजीवक पारपत्र निक्षेपक निक्षेप धृष्टता धृष्ट धव अखिलेश वितर्कण वितर्क लत्ता वितत कुरंग कुंजर कलुष धात्री विद्या धात्रीफल धात्री नवमी धात्री कर्णी कपिशा कनखी कर्ष दृप्त अर्क शाम्य सुश्रव्य धृति सुश्रवा अयुत शिषी धृत सुष्ठु सुश्रव अपत्र संवृत रंजन रंजक यूथिका यूप युति यष्टि लुंचन लास्य सस्य समर्चन सहिक सुकृत ललाम बिंब बानक भास्वर भाव्य प्रणव आच्छादित आच्छादक आच्छन्न जन्मांध विवर्त विवर्ण हपना हप वाच्य वाक लव रोचना रोचन रेचन रेचक रुचिरा रुचिर मुकरी (पहेली) औदीच्य और्वशेय शाला और्व शारिका शारि शकुन अम्लान फुरहरी चार्वी अगह चकनाचूर शंकु शमन शरभ शार्दूल चोखा चित्रा ओखा ओख ऐन्द्र फुनगी अगम्य वाहिका वाहिक क्षतज क्षत क्षारण क्षार घालना घाल बिललाना बंधक झिलमिला झिलम क्षितिज यथार्थवाद ऊखा यथार्थ ऊख ऊगट खनक खन कनक लाघवी लाघविक लाघवकारी लाघव क्षिप्रहस्त छाक हवि हव्य कनिष्ठिका सुगत जनांत तुष हृति हृताधिकार दृष्टि दृष्टार्थ दृष्टांत दृष्टवाद प्रत्यक्षवाद प्रत्यगात्मा क्षिप्रकारी क्षिप्र हृत प्रत्यक्षर हृच्छूल खेह प्रत्यक्ष दृष्टवत मूलभूत दृष्टफल वायवी वायवीय कनिष्ठा वायव कनिष्ठ मौलिक दृष्ट दोष दृष्टकूट मूलिक दृष्ट विष्टि निदाघ हर्म्य अच्युत पुनीत तत्त्व मुकरी आनन्द यंत्र पद अंधता साधु यश संत दीक्षा विधु मुरमर्दन पुरुषोत्तम भव पीताम्बर हर माधव चतुर्भुज उग्र उपेन्द्र स्थाणु क्रतुध्वंसिन भर्ग नीललोहित त्रिलोचन विरूपाक्ष वामदेव (शिव) शितकिण्ठ (शिव) शितकिण्ठ गरुड़ध्वज गिरीश गोविन्द सुपर्ण श्रीकण्ठ कपर्दिन पिनाकी मृत्युंजय मृड गिरिश नागान्तक भूतेश शंकर शर्व नारायण महेश्वर (शिव) वैनतेय शूलिन पशुपति तार्क्ष्य ईश मुनि विकट मुनीन्द्र विघ्ननाशक सुमुख लोकजित गरुत्मत् मारजित भगवत तथागत धर्मराज सर्वज्ञ विनायक अगाध अर्य अर्ह अल्प इक्षु इच्छा आस्रव आस्य आहार्य आक्रन्द आकर्ष असूयक अक्षर ओज प्रकर्ष पन्थ प्रकृत एकार्थ उन्नम्र उज्जृम्भण ईशान उन्नत उज्जृम्भ जय्य जय नैरुज्य जल्प मन्द तेज नमस्कार नम्रता नम्र प्रभाव आर्जव प्रताप अक्रोपोलिस अंतश्चेतना अंत:करण अगोरा अतिनूतन युग अनागामी अनल अनग्रदंत अतिवृद्धि अधिहृषता (ऐलर्जी) अनुबंध अनुभव अनुभववाद अन्यथानुपपत्ति अन्यथासिद्धि अपील अभिप्रेरक अल्बम अराजकता आमीन आयाम इंजील इंटर लिंगुआ कोषाध्यक्ष दैनिक मासिक
ऐतिहासिक शब्दावली

मजलिस-ए-खलवत, शाहना-ए-पील, दीवान-ए-इमारत, शाहना-ए-मण्डी, सद्र-उस-सुदूर, दीवान-ए-कजा, दीवान-ए-अर्ज, दीवान-ए-विजारत, मंत्रिपरिषद (सल्तनत काल), उलेमा वर्ग, मेलुहा, जीतल, नवाब, हश्म-ए-क़ल्ब, हश्म-ए-अतरफ़, सरहंग, सरजामदार, सरजानदार, शहन-ए-इमारत, सरख़ैल, समा, सदक़ा, वली, वक़्फ़, मुक़द्दम, मैमार, मुहतसिब, मुक़ता, मिल्क़, मसाहत, बलाहर, बरीद, फ़िक़ह, पायक, नौबत, नायक बारबक, दीवाने-क़ज़ा, दबीर, तलीआ, तफ़सीर, तज़्कीर, जहांदारी, ज़िम्मी, ख़राज, ख़िर्क़ा, ख़ासदार, ख़ासख़ैल, ख़लासा भूमि, ख़ानक़ाह, ख़ान, कु, क़ुब्बा, इद्रार, इतलाकी, आमिल, अमीर-ए-बहार, अमीर-ए-दाद, अक़ता, आरिज़े मुमालिक, मुस्तौफ़ी-ए-मुमालिक, मुतसर्रिफ़, दीवान-ए-बंदगान, दीवान-ए-इस्तिहक़, दीवान-ए-ख़ैरात, वकील-ए-दर, बारबक, शहना-ए-पील, अमीर-ए-हाजिब, अमीर-ए-शिकार, अमीर-ए-मजलिस, अमीर-ए-आख़ुर, सर-ए-जाँदार, दीवान-ए-नज़र, सद्र-उस-सदुर, वकील-ए-सुल्तान, नायब-ए-मुमालिकत, दीवान-ए-रिसायत, दीवान-ए-रसालत, दीवान-ए-बरीद, दीवान-ए-इंशा, दीवान-ए-आरिज, क़ाज़ी-उल-क़ुज़ात, नाज़िर, मुशरिफ़-ए-मुमालिक, नायब वज़ीर, दीवान-ए-वक़ूफ़, दीवान-ए-मुस्तख़राज, दीवान-ए-अमीर कोही, दीवान, ख़ज़ीन, सुल्तान, अमीर, वज़ीर, अगोरा, अट्टगत्तर, अट्टगम, अचल प्रवृत्ति, अबोहन, अंत-अयम्, क्षेत्र, हिरण्य, हरणीपर्यंत, हल्लि, हल्लिकार, हलिक, हैमन शस्य, श्रणी, स्ववीर्योपजीविन, सुनु, सूना, स्थान, स्थान मान्य, स्थल, स्थल वृत्ति, स्त्रोत, चतुर्थ पंचभागिकम, गुणपत्र, खेत्तसामिक, कृप्यगृह, कुमारगदियानक, कुल्यवाप, कर्मान्तिक, सीमा, एकपुरुषिकम, उत्पाद्यमानविष्टि, आवात, आसिहार, आलि, आघाट, आधवाय, आदाणक, स्कंधावार, सीत्य, सिद्ध, सेवा, सेतुबंध, सेनाभक्त, सर्वमान्य, सर्व-आभ्यांतर-सिद्धि, संग्रहत, संक्रांत, संकर कुल, संकर ग्राम, साध्य, अयनांगल, अट्टपतिभाग, अस्वयंकृत कृषि, अर्धसीतिका, अक्षयनीवी, अक्षपटलाध्यक्ष, अक्षपटल, अकृत, अकृष्ट, अकरदायिन, अकरद, अग्रहार, अग्रहारिक, अदेवमातृक, अध्यिय-मनुस्सनम, समाहर्ता, सालि, सकारुकर, सद्भाग, साचित्त, सभा-माध्यम, शुल्क, शौल्किक, शासन, शैवर, व्यामिश्र-भूमि, ब्रीहि, विविता, वित्तोलकर, विष्टि, विषामत्ता, विलोप, वत्थुपति, वातक, वासेत-कुटम्बिक, वार्ता, वर्षिकाशस्य, वरत्रा, वरज, वापी, वापातिरिक्तम्, वाप गत्या, लांगुल, रूपजीवा, रूपदर्शक, रूधमारोधि, रोपण, रज्जु, राजकीय क्षेत्र, योगक्षेम, यव, मूलवाप, मेय, मासु, मंडपिका, महात्राण, भूतवातप्रत्यय, भूमिच्छिद्रन्याय, भूमास्क, भुक्ति, भुज्यमान, भोगायक, भोगपति, भोगगाम, भोग, भिक्षु हल, भिख्खुहलपरिहार, भाण्डागारिक, भैक्षक, भागदुध, भद्रभोग, ब्रह्मदेय, बीत्तुवत्त, बीजगण, बरज, फेणाघात, पुस्तपाल, पूर्ववाप, पुर, प्रत्यंत, प्रतिकर, प्रस्थक, प्रकृष्ट, प्रदेश, पोलाच्य, पिण्डक, पौतवम्, पट्टला, पतित, पथक, पातक, पार्श्व, पल्लिका, पर्रु, पारिहारिक, परिहार, परिभोग, पण्यसंस्था, पादोनलक्ष, पंचकुल, न्याय कर्णिक, निवर्तन