कपालकुंडला -बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय: Difference between revisions

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==कथा==
==कथा==
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==नारी चरित्र की प्रधानता==
==नारी चरित्र की प्रधानता==
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Latest revision as of 15:21, 9 June 2020

कपालकुंडला -बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय
विवरण 'कपालकुंडला' एक प्रसिद्ध उपन्यास है। इस उपन्यास में नारी चरित्र की प्रधानता को प्रस्तुत किया गया है।
रचनाकार बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय
देश भारत
भाषा बंगाली
साहित्यिक विधा उपन्यास
प्रकाशन तिथि 1866
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स
आईएसबीएन 81-288-0313-1

कपालकुंडला नामक प्रसिद्ध उपन्यास के रचनाकार बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय थे। बंकिम दा के लेखन इतिहास में उनकी यह रचना श्रेणी में दूसरे स्थान पर आती है। 'दुर्गेश नंदिनी' के पश्चात् बंकिम दा ने यह दूसरा उपन्यास लिखा था। 'कपालकुंडला' बंकिम दा के बेहतरीन और लोकप्रिय उपन्यासों में से एक माना जाता है। इसका अंग्रेज़ी, जर्मन, हिन्दी, गुजराती, तमिल, तेलुगु और संस्कृत में अनुवाद किया गया है।

कथा

'कपालकुंडला' उपन्यास के कुछ पात्र और घटनाएँ निम्न प्रकार हैं, जिसमें कथा की रोचकता की थोड़ी बहुत झलक मिलती है। वैसे यह उपन्यास एक ऐसे किरदार 'कपालकुंडला' नाम की स्त्री पर आधारित है, जिसने अपने प्यार का बलिदान दिया। बंकिम दा ने इस उपन्यास में भी स्त्री चरित्र को अपनी पृष्ठभूमि में रखा है।[1]

"नवकुमार नाम का नवयुवक गंगासागर तीर्थयात्रा से एक बड़े जहाज़ से लौट रहा है। अत्यधिक धुंध होने के कारण उसका जहाज़ भटक जाता है और एक निर्जन द्वीप पर जा लगता है। नवकुमार यात्रियों के भोजन की व्यवस्था के लिए अकेले जंगल में चला जाता है। वापिस आने पर देखता है की जहाज़ तो जा चूका है। वह द्वीप पर घूमता रहता है, रात्रि होने पर उसकी मुलाक़ात एक तांत्रिक कापालिक से होती है। कापालिक उसे रहने के लिए छत और खाने को भोजन देता है। कापालिक अगली रात्रि नवकुमार को अपने तंत्र स्थल पर उसकी बलि देने के लिए ले जाता है। लेकिन बलि दे पाने से पहले ही एक नवयुवती द्वारा वह बचा लिया जाता है। नवयुवती नवकुमार को एक भैरव मंदिर में ले जाकर छुपा देती है, जहाँ उसकी माँ नवयुवती कपालकुंडला के भविष्य की चिंता करती है। कपालकुंडला की माँ बताती है कि "अब कापालिक कपालकुंडला की बलि देगा।" उसकी माँ इसका हल दोनों के विवाह से निकाल लेती है। कपालकुंडला और नवकुमार विवाह करके तत्क्षण द्वीप से निकल जाते हैं।

रास्ते में नवकुमार मोतीबाई नामक एक महिला की सहायता करता है, जिसके काफ़िले को डाकुओं ने लूट लिया था। मोतीबाई नवकुमार का परिचय पाती है तो खुश हो जाती है। मोतीबाई फिर वहां से आगरा को रवाना हो जाती है और अपने आभूषण कपालकुंडला को दे देती है। नवकुमार अपने गाँव सप्तग्राम पहुँचता है, जहाँ उसके माता-पिता उसको जीवित देखकर खुश होते हैं और कपालकुंडला को अपनी बहु के रूप में अपना लेते हैं। अब कपालकुंडला एक साध्वी जीवन से पारिवारिक जीवन में कदम रखती है, लेकिन वह पारिवारिक जीवन के साथ अपने आप को अभ्यस्त नहीं कर पाती। नवकुमार की बहन उसकी इस कार्य में सहायता करती है। कपालकुंडला पारिवारिक जीवन में आनंद तो लेती है, पर समाज की बंदिशों को नहीं मानती।[1]

कुछ समय बाद मोतीबाई सप्तग्राम आती है। वह नवकुमार को अपना असली परिचय देती है। लेकिन नवकुमार उसे स्वीकार करने से मना कर देता है। मोतीबाई इसी उधेड़बुन में नदी के किनारे बैठ जाती है, जहाँ कापालिक की उससे मुलाक़ात होती है। कापालिक उसे बताता है कि उसे कपालकुंडला चाहिए और मोतीबाई को नवकुमार। दोनों एक साजिश रचते हैं। मोतीबाई कपालकुंडला को मिलने का संदेशा भिजवाती है। कपालकुंडला जब मिलने के लिए निकलती है तो नवकुमार उससे प्रश्न पूछता है; लेकिन वह सही से जवाब नहीं दे पाती। नवकुमार को कपालकुंडला पर विश्वास नहीं रहता और वह भी उसके पीछे पीछे चला जाता है। नवकुमार को बीच रास्ते में कापालिक मिलता है, जो नवकुमार को बताता है कि कपालकुंडला ने उसके साथ विश्वासघात किया है और वह किसी पराये पुरुष से मिलने गयी है। वहां कपालकुंडला मिलने के तय स्थान पर जाती है, जहाँ मोतीबाई उसे कापालिक के बारे में बताती है और उसके पति के अविश्वास के बारे में भी बताती है। यह बात सुनकर कपालकुंडला स्वयं को देवी को समर्पित करने की प्रतिज्ञा लेती है। तभी कापालिक नवकुमार को नशे की दवाई पिलाता है और कपालकुंडला को तंत्र स्थान तक ले जाने की आज्ञा देता है। नवकुमार नशे की हालत में कपालकुंडला का हाथ पकड़कर समुद्र के किनारे ले जाता है, जहाँ कापालिक ने अपना तंत्र-मंत्र का कार्य पहले से ही शुरू किया होता है। कापालिक नवकुमार को आज्ञा देता है कि कपालकुंडला को स्नान करवा लाये। जब नवकुमार कपालकुंडला को समुद्र में हाथ पकड़ कर स्नान के लिए ले जाता है, तभी नवकुमार को होश आता है कि वह क्या अनर्थ कर रहा है। पर कपालकुंडला अपना निश्चय और प्रतिज्ञा भी बताती है और समुद्र में छलांग लगा देती है। नवकुमार भी उसे खोजने के लिए समुद्र में छलांग लगता है, पर कपालकुंडला नहीं मिलती। एक स्त्री को नवकुमार पा चूका था, लेकिन उस पर वह विश्वास न कर सका। चूंकि कपालकुंडला ने साध्वी जीवन बिताया था, इसलिए वह पारिवारिक क्रियाकलापों में भाग नहीं ले पाती। अविश्वास ने नवकुमार के परिवार को बर्बाद कर दिया। शायद मोतीबाई को बाद में अहसास हो गया था कि कापालिक के साथ नवकुमार को धोखा देने की जो वह बात सोच रही है, वह गलत है।[1]

नारी चरित्र की प्रधानता

नदी तट का वह क्षण, जब कापालिक नवकुमार को नशे की दवा पिलाता है, उस समय का दृश्य और घटना क्रम बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने ऐसा लिखा है कि एक पल को ऐसा लगता है कि जैसे कोई भूत की कहानी पढ़ रहे हों। लेकिन इस दृश्य के प्रसंग में ऐसी सार्थकता और सादगी है कि पाठक सहज ही इसमें खो जायेंगे। नवकुमार और कपालकुंडला की प्रथम मुलाक़ात में ऐसा लगता है कि कपालकुंडला कोई आत्मा है, जो नवकुमार की रक्षा कर रही है। कापालिक का चरित्र इतना सुदृढ़ है कि कपालकुंडला के पश्चात् कहानी में वही छाया हुआ है। बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय स्त्री चरित्र का कितना सुन्दर वर्णन करते हैं, इस पुस्तक से जान सकते हैं। बंकिम दा ने एक ही पुस्तक में स्त्री के विभिन्न रूपों को प्रदर्षित किया है। बंकिम दा ने अपने कई उपन्यासों में नारी चरित्र को गहरा स्थान दिया है। सिमित किरदार को लेकर इस उपन्यास की कहानी इतने सुन्दर रूप से सिर्फ बंकिम दा ही बढ़ा सकते थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 कपालकुंडला (हिन्दी) फेवरीड्स। अभिगमन तिथि: 19 मार्च, 2015।

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