घनाक्षरी: Difference between revisions
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चलो आज सारा नशा, उनका उतारने। | चलो आज सारा नशा, उनका उतारने। | ||
Latest revision as of 11:36, 5 July 2017
घनाक्षरी एक वार्णिक छन्द है। इसे कवित्त भी कहा जाता है। हिन्दी साहित्य में घनाक्षरी छन्द के प्रथम दर्शन भक्तिकाल में होते हैं।
- निश्चित रूप से यह कहना कठिन है कि हिन्दी में घनाक्षरी वृत्तों का प्रचलन कब से हुआ।
- घनाक्षरी छन्द में मधुर भावों की अभिव्यक्ति उतनी सफलता के साथ नहीं हो सकती, जितनी ओजपूर्ण भावों की हो सकती है।
- उदाहरण-1
आठ आठ तीन बार, और सात एक बार,
इकतीस अक्षरों का योग है घनाक्षरी।
सोलह-पंद्रह पर, यति का विधान मान
शान जो बढाए वो सु-योग है घनाक्षरी।
वर्ण इकतीसवां सदा ही दीर्घ लीजिएगा
काव्य का सुहावना प्रयोग है घनाक्षरी।
आदि काल से लिखा है लगभग सब ने ही
छंदों में तो जैसे राजभोग है घनाक्षरी॥
- उदाहरण-2
नैनों में अंगार भरो, कर में कटार धरो,
बढ़ चलो बेटों तुम, बैरियों को मारने।
धरती भी कहती है, गगन भी कहता है,
अब तो हवा भी जैसे, लगी है पुकारने॥
भलमानसत को वो, कमज़ोरी बूझते है,
चलो आज सारा नशा, उनका उतारने।
मनुजों के वेश में वो, दनुजों के वंशज हैं,
दौड़ पड़ो पापियों के, वंश को संहारने॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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