दांडी मार्च: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Dandi-March-1.jpg|thumb|250px|दांडी मार्च का एक दृश्य]]
[[चित्र:Dandi-March-1.jpg|thumb|250px|दांडी मार्च का एक दृश्य]]
'''दांडी मार्च''' से अभिप्राय उस पैदल यात्रा से है, जो [[गाँधी जी]] और उनके स्वयं सेवकों द्वारा [[12 मार्च]], [[1930]] ई. को प्रारम्भ की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] द्वारा बनाये गए 'नमक क़ानून को तोड़ना'। गाँधी जी ने अपने 78 स्वयं सेवकों, जिनमें वेब मिलर भी एक था, के साथ साबरमती आश्रम से 358 कि.मी. दूर स्थित दांडी के लिए प्रस्थान किया। लगभग 24 दिन बाद [[6 अप्रैल]], 1930 ई. को दांडी पहुँचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक क़ानून को तोड़ा।
'''दांडी मार्च''' से अभिप्राय उस पैदल यात्रा से है, जो [[गाँधी जी]] और उनके स्वयं सेवकों द्वारा [[12 मार्च]], [[1930]] ई. को प्रारम्भ की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] द्वारा बनाये गए 'नमक क़ानून को तोड़ना'। गाँधी जी ने अपने 78 स्वयं सेवकों, जिनमें वेब मिलर भी एक था, के साथ [[साबरमती आश्रम]] से 358 कि.मी. दूर स्थित दांडी के लिए प्रस्थान किया। लगभग 24 दिन बाद [[6 अप्रैल]], 1930 ई. को दांडी पहुँचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक क़ानून को तोड़ा।
==क़ानून तोड़ने का कारण==
==क़ानून तोड़ने का कारण==
नमक क़ानून [[भारत]] के और भी कई भागों में तोड़ा गाया। [[सी. राजगोपालाचारी]] ने [[त्रिचनापल्ली]] से वेदारण्यम तक की यात्रा की। [[असम]] में लोगों ने सिलहट से नोआखली तक की यात्रा की। '[[वायकोम सत्याग्रह]]' के नेताओं ने के. केलप्पन एवं टी.के. माधवन के साथ [[कालीकट]] से पयान्नूर तक की यात्रा की। इन सभी ने लोगों ने नमक क़ानून को तोड़ा। नमक क़ानून इसलिए तोड़ा जा रहा था, क्योंकि सरकार द्वारा नमक कर बढ़ा दिया गया था, जिससे रोजमर्रा की ज़रूरत के लिए [[नमक]] की क़ीमत बढ़ गई थी।
नमक क़ानून [[भारत]] के और भी कई भागों में तोड़ा गाया। [[सी. राजगोपालाचारी]] ने [[त्रिचनापल्ली]] से वेदारण्यम तक की यात्रा की। [[असम]] में लोगों ने सिलहट से नोआखली तक की यात्रा की। '[[वायकोम सत्याग्रह]]' के नेताओं ने के. केलप्पन एवं टी.के. माधवन के साथ [[कालीकट]] से पयान्नूर तक की यात्रा की। इन सभी ने लोगों ने नमक क़ानून को तोड़ा। नमक क़ानून इसलिए तोड़ा जा रहा था, क्योंकि सरकार द्वारा नमक कर बढ़ा दिया गया था, जिससे रोजमर्रा की ज़रूरत के लिए [[नमक]] की क़ीमत बढ़ गई थी।
Line 17: Line 17:
[[1930]] ई. के '[[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]]' के समय ही उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त के कबायली लोगों ने [[गाँधी जी]] को 'मलंग बाबा' कहा। आन्दोलन क्रमशः व्यापक रूप से पूरे [[भारत]] में फैल गया। महिलाओं ने पर्दे से बाहर आकर [[सत्याग्रह]] में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। विदेशी कपड़ों की अनेक स्थानों पर होलियाँ जलाई गयीं। महिला वर्ग ने शराब की दुकानों पर धरना दिया तथा कृषकों ने कर अदायगी से इंकार कर दिया। 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' की मुख्य विशेषता थी- बड़े पैमाने पर पहली बार किसी आन्दोलन में महिलाओं की मुख्य सहभागिता। इसके पूर्व बहुत कम औरतों ने सार्वजनिक किस्म के राजनैतिक प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था। उनमें से भी अधिकतक या तो [[चितरंजन दास]] या [[मोतीलाल नेहरू]] जैसे राष्ट्रीय नेताओं के परिवारों से संबंद्ध थीं या कॉलेज की छात्रायें थीं।
[[1930]] ई. के '[[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]]' के समय ही उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त के कबायली लोगों ने [[गाँधी जी]] को 'मलंग बाबा' कहा। आन्दोलन क्रमशः व्यापक रूप से पूरे [[भारत]] में फैल गया। महिलाओं ने पर्दे से बाहर आकर [[सत्याग्रह]] में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। विदेशी कपड़ों की अनेक स्थानों पर होलियाँ जलाई गयीं। महिला वर्ग ने शराब की दुकानों पर धरना दिया तथा कृषकों ने कर अदायगी से इंकार कर दिया। 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' की मुख्य विशेषता थी- बड़े पैमाने पर पहली बार किसी आन्दोलन में महिलाओं की मुख्य सहभागिता। इसके पूर्व बहुत कम औरतों ने सार्वजनिक किस्म के राजनैतिक प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था। उनमें से भी अधिकतक या तो [[चितरंजन दास]] या [[मोतीलाल नेहरू]] जैसे राष्ट्रीय नेताओं के परिवारों से संबंद्ध थीं या कॉलेज की छात्रायें थीं।
====सरकार की झल्लाहट====
====सरकार की झल्लाहट====
चारों तरफ़ फैली इस असहयोग की नीति से [[अंग्रेज़]] ब्रिटिश हुकूमत बुरी तरह से झल्ला गयी। [[5 मई]], 1930 ई. को गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया। आन्दोलन की प्रचण्डता का अहसास कर तत्कालीन [[वायसराय]] [[लॉर्ड इरविन]] ने गाँधा जी से समझौता करना चाहा।
चारों तरफ़ फैली इस असहयोग की नीति से [[अंग्रेज़]] ब्रिटिश हुकूमत बुरी तरह से झल्ला गयी। [[5 मई]], 1930 ई. को गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया। आन्दोलन की प्रचण्डता का अहसास कर तत्कालीन [[वायसराय]] [[लॉर्ड इरविन]] ने गाँधी जी से समझौता करना चाहा।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

Revision as of 12:02, 25 April 2012

thumb|250px|दांडी मार्च का एक दृश्य दांडी मार्च से अभिप्राय उस पैदल यात्रा से है, जो गाँधी जी और उनके स्वयं सेवकों द्वारा 12 मार्च, 1930 ई. को प्रारम्भ की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था अंग्रेज़ों द्वारा बनाये गए 'नमक क़ानून को तोड़ना'। गाँधी जी ने अपने 78 स्वयं सेवकों, जिनमें वेब मिलर भी एक था, के साथ साबरमती आश्रम से 358 कि.मी. दूर स्थित दांडी के लिए प्रस्थान किया। लगभग 24 दिन बाद 6 अप्रैल, 1930 ई. को दांडी पहुँचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक क़ानून को तोड़ा।

क़ानून तोड़ने का कारण

नमक क़ानून भारत के और भी कई भागों में तोड़ा गाया। सी. राजगोपालाचारी ने त्रिचनापल्ली से वेदारण्यम तक की यात्रा की। असम में लोगों ने सिलहट से नोआखली तक की यात्रा की। 'वायकोम सत्याग्रह' के नेताओं ने के. केलप्पन एवं टी.के. माधवन के साथ कालीकट से पयान्नूर तक की यात्रा की। इन सभी ने लोगों ने नमक क़ानून को तोड़ा। नमक क़ानून इसलिए तोड़ा जा रहा था, क्योंकि सरकार द्वारा नमक कर बढ़ा दिया गया था, जिससे रोजमर्रा की ज़रूरत के लिए नमक की क़ीमत बढ़ गई थी।

अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ाँ का योगदान

उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत में ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान, जिन्हें 'सीमांत गाँधी' भी कहा जाता है, के नेतृत्व में 'खुदाई खिदमतगार' संगठन के सदस्यों ने सरकार का विरोध किया। उन्होंने पठानों की क्षेत्रीय राष्ट्रवादिता के लिए तथा उपविनेशवाद और हल्तशिल्प के कारीगरों को ग़रीब बनाने के विरुद्ध आवाज़ उठायी। 'लाल कुर्ती दल' के गफ़्फ़ार ख़ाँ को 'फ़ख़्र-ए-अफ़ग़ान' की उपाधि दी गयी। इन्होंने पश्तों भाषा में 'पख़्तून' नामक एक पत्रिका निकाली, जो बाद में 'देशरोजा' नाम से प्रकाशित हुई। गफ़्फ़ार ख़ाँ को 'बादशाह ख़ाँ' भी कहा जाता है। पेशावर में गढ़वाल राइफल के सैनिकों ने अपने साथी चंद्रसिंह गढ़वाली के अनुरोध पर सविनय अवज्ञा आन्दोलन कर रहे आन्दोलनकारियों की भीड़ पर गोली चलाने के आदेश का विरोध किया। नमक क़ानून भंग होने के साथ ही सारे भारत में सविनय अवज्ञा आन्दोलन ने जोर पकड़ा।

रानी गाइदिनल्यू

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

नागाओं ने मदोनांग के नेतृत्व मे आन्दोलन किया। इस आन्दोलन को 'जियालरंग आन्दोलन' के नाम से जाना जाता है। मदोनांग पर हत्या का आरोप लगाकर फांसी दे दी गई। इसके बाद उसकी बहन 'गाइदिनल्यू' ने नागा विद्रोह की बागडोर संभाली। इसे गिरफ्तार कर आजीवन कारावास दे दिया गया। जवाहरलाल नेहरू ने 'गाइदिनल्यू' को 'रानी' की उपाधि प्रदान की। इसके बारे में जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है कि "एक दिन ऐसा आयेगा, जब भारत इन्हें स्नेहपूर्ण स्मरण करेगा।"

बम्बई के इस आन्दोलन का केंन्द्र 'धरासना' था, जहाँ पर सरकार दमन चक्र का सबसे भयानक रूप देखने का मिला। सरोजनी नायडू, इमाम साहब और मणिलाल के नेतृत्व में लगभग 25 हज़ार स्वयं सेवकों को धरासना नामक कारखाने पर धावा बोलने से पूर्व ही लाठियों से पीटा गया। धरासना के भयानक रूप का उल्लेख करते हुए अमेरिका के न्यू फ़्रीमैन अख़बार के पत्रकार मिलर ने लिखा है कि "संवाददाता के रूप में पिछले 18 वर्ष में असंख्य नागरिक विद्रोह देखें हैं, दंगें, गली कूचों में मार-काट एवं विद्रोह देखे हैं, लेकिन धरासना जैसा भयानक दृश्य मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा।"

अन्य गतिविधियाँ

'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के दौरान, मुख्य रूप से बिहार में 'कर न अदायगी' का आन्दोलन चलाया गया। बिहार के सारन, मुंगेर तथा भागलपुर के ज़िलों में 'चौकीदारी कर न अदा करने' का आन्दोलन चलाया गया। मुंगेर के बहरी नामक स्थान पर सरकार का शासन समाप्त हो गया। इस समय मध्य प्रान्त, महाराष्ट्र और कर्नाटक में कड़े वन नियमों के विरुद्व 'वन सत्याग्रह' चलाया गया। 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के समय ही लड़कियों ने 'माजेरी सेना' तथा बच्चों ने 'वानर सेना' का गठन किया।

नेताजी का कथन

गाँधी जी की दांडी यात्रा के बारे में सुभाषचन्द्र बोस ने लिखा है- "महात्मा जी की दांडी मार्च की तुलना 'इल्बा' से लौटने पर नेपालियन के 'पेरिस मार्च' और राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के लिए मुसोलिनी के 'रोम मार्च' से की जा सकती है।"

आन्दोलन की व्यापकता

1930 ई. के 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के समय ही उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त के कबायली लोगों ने गाँधी जी को 'मलंग बाबा' कहा। आन्दोलन क्रमशः व्यापक रूप से पूरे भारत में फैल गया। महिलाओं ने पर्दे से बाहर आकर सत्याग्रह में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। विदेशी कपड़ों की अनेक स्थानों पर होलियाँ जलाई गयीं। महिला वर्ग ने शराब की दुकानों पर धरना दिया तथा कृषकों ने कर अदायगी से इंकार कर दिया। 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' की मुख्य विशेषता थी- बड़े पैमाने पर पहली बार किसी आन्दोलन में महिलाओं की मुख्य सहभागिता। इसके पूर्व बहुत कम औरतों ने सार्वजनिक किस्म के राजनैतिक प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था। उनमें से भी अधिकतक या तो चितरंजन दास या मोतीलाल नेहरू जैसे राष्ट्रीय नेताओं के परिवारों से संबंद्ध थीं या कॉलेज की छात्रायें थीं।

सरकार की झल्लाहट

चारों तरफ़ फैली इस असहयोग की नीति से अंग्रेज़ ब्रिटिश हुकूमत बुरी तरह से झल्ला गयी। 5 मई, 1930 ई. को गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया। आन्दोलन की प्रचण्डता का अहसास कर तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने गाँधी जी से समझौता करना चाहा।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख