जेतवन श्रावस्ती: Difference between revisions

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[[बुद्ध]] के जीवन-काल में [[श्रावस्ती]] के दक्षिण में स्थित जेतवन एवं पुब्बाराम दो प्रसिद्ध वैहारिक अधिष्ठान एवं बौद्धमत के प्रभावशाली केंद्र थे। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार जेतवन का आरोपण, संवर्धन तथा परिपालन जेत नामक एक राजकुमार द्वारा किया गया था।<ref>तंहि जेतेन राजकुमारेन रोपितं संवर्द्धिंत परिपालित। सो च तस्सि सामी अहोसि, तस्मा, जेतवने ति वुच्चति॥ पपंचसूदनी, भाग 1, पृष्ठ 60</ref> [[राजगृह]] मे वेणुवन और [[वैशाली]] के महावन के ही भाँति जेतवन का भी विशेष महत्त्व था।<ref>उदयनारायण राय, प्राचीन भारत में नगर तथा नगर जीवन, पृष्ठ 118</ref> इस नगर में निवास करने वाले अनाथपिंडक ने जेतवन में विहार<ref> भिक्षु विश्राम स्थल</ref>, परिवेण<ref> आँगनयुक्त घर</ref>, उपस्थान शालाएँ<ref> सभागृह</ref>, कापिय कुटी<ref> भंडार</ref>, चंक्रम<ref> टहलने के स्थान</ref>, पुष्करणियाँ और मंडप बनवाए।<ref>विनयपिटक (हिन्दी अनुवाद), पृष्ठ 462; बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृष्ठ 240; तुल. विशुद्धानन्द पाठक, हिस्ट्री आफ कोशल, (मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी, 1963), पृष्ठ 61</ref> अनाथपिंडक के निमंत्रण पर भगवान बुद्ध श्रावस्ती स्थित जेतवन पहुँचे। अनाथापिण्डक ने उन्हें खाद्य भोज्य अपने हाथों से अर्पित कर जेतवन को बौद्ध संघ को दान कर दिया। इसमें अनाथ पिंडक को 18 करोड़ मुद्राओं को व्यय करना पड़ा था। उल्लेखनीय है कि इस घटना का अंकन '''भरहुत कला''' में भी हुआ है।<ref>बरुआ, भरहुत, भाग 2, पृष्ठ 31</ref> [[तथागत]] ने जेतवन में प्रथम वर्षावास बोधि के चौदहवें वर्ष में किया था। इससे यह निश्चित होता है कि जेतवन का निर्माण इसी [[वर्ष]] (514-513 ई. वर्ष पूर्व) में हुआ होगा। उल्लेखनीय है कि जेतवन के निर्माण के पश्चात अनाथपिण्डक ने तथागत को निमंत्रित किया था।
'''जेतवन''' तथा [[पुब्बाराम]] भगवान [[बुद्ध]] के जीवन-काल में [[श्रावस्ती]] के दक्षिण में स्थित दो प्रसिद्ध वैहारिक अधिष्ठान एवं बौद्धमत के प्रभावशाली केंद्र थे। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार जेतवन का आरोपण, संवर्धन तथा परिपालन जेत नामक एक राजकुमार द्वारा किया गया था।<ref>तंहि जेतेन राजकुमारेन रोपितं संवर्द्धिंत परिपालित। सो च तस्सि सामी अहोसि, तस्मा, जेतवने ति वुच्चति॥ पपंचसूदनी, भाग 1, पृष्ठ 60</ref> [[राजगृह]] मे वेणुवन और [[वैशाली]] के महावन के ही भाँति जेतवन का भी विशेष महत्त्व था।<ref>उदयनारायण राय, प्राचीन भारत में नगर तथा नगर जीवन, पृष्ठ 118</ref> इस नगर में निवास करने वाले अनाथपिंडक ने जेतवन में विहार<ref> भिक्षु विश्राम स्थल</ref>, परिवेण<ref> आँगनयुक्त घर</ref>, उपस्थान शालाएँ<ref> सभागृह</ref>, कापिय कुटी<ref> भंडार</ref>, चंक्रम<ref> टहलने के स्थान</ref>, पुष्करणियाँ और मंडप बनवाए।<ref>विनयपिटक (हिन्दी अनुवाद), पृष्ठ 462; बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृष्ठ 240; तुल. विशुद्धानन्द पाठक, हिस्ट्री आफ कोशल, (मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी, 1963), पृष्ठ 61</ref> अनाथपिंडक के निमंत्रण पर भगवान बुद्ध श्रावस्ती स्थित जेतवन पहुँचे। अनाथापिण्डक ने उन्हें खाद्य भोज्य अपने हाथों से अर्पित कर जेतवन को बौद्ध संघ को दान कर दिया। इसमें अनाथ पिंडक को 18 करोड़ मुद्राओं को व्यय करना पड़ा था। उल्लेखनीय है कि इस घटना का अंकन '''भरहुत कला''' में भी हुआ है।<ref>बरुआ, भरहुत, भाग 2, पृष्ठ 31</ref> [[तथागत]] ने जेतवन में प्रथम वर्षावास बोधि के चौदहवें वर्ष में किया था। इससे यह निश्चित होता है कि जेतवन का निर्माण इसी [[वर्ष]] (514-513 ई. वर्ष पूर्व) में हुआ होगा। उल्लेखनीय है कि जेतवन के निर्माण के पश्चात अनाथपिण्डक ने तथागत को निमंत्रित किया था।
==जेतवन विहार==
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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Revision as of 06:24, 19 May 2012

[[चित्र:Jetavana.jpg|thumb|जेतवन, श्रावस्ती]] जेतवन तथा पुब्बाराम भगवान बुद्ध के जीवन-काल में श्रावस्ती के दक्षिण में स्थित दो प्रसिद्ध वैहारिक अधिष्ठान एवं बौद्धमत के प्रभावशाली केंद्र थे। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार जेतवन का आरोपण, संवर्धन तथा परिपालन जेत नामक एक राजकुमार द्वारा किया गया था।[1] राजगृह मे वेणुवन और वैशाली के महावन के ही भाँति जेतवन का भी विशेष महत्त्व था।[2] इस नगर में निवास करने वाले अनाथपिंडक ने जेतवन में विहार[3], परिवेण[4], उपस्थान शालाएँ[5], कापिय कुटी[6], चंक्रम[7], पुष्करणियाँ और मंडप बनवाए।[8] अनाथपिंडक के निमंत्रण पर भगवान बुद्ध श्रावस्ती स्थित जेतवन पहुँचे। अनाथापिण्डक ने उन्हें खाद्य भोज्य अपने हाथों से अर्पित कर जेतवन को बौद्ध संघ को दान कर दिया। इसमें अनाथ पिंडक को 18 करोड़ मुद्राओं को व्यय करना पड़ा था। उल्लेखनीय है कि इस घटना का अंकन भरहुत कला में भी हुआ है।[9] तथागत ने जेतवन में प्रथम वर्षावास बोधि के चौदहवें वर्ष में किया था। इससे यह निश्चित होता है कि जेतवन का निर्माण इसी वर्ष (514-513 ई. वर्ष पूर्व) में हुआ होगा। उल्लेखनीय है कि जेतवन के निर्माण के पश्चात अनाथपिण्डक ने तथागत को निमंत्रित किया था।

जेतवन विहार

[[चित्र:Jetavan-Monastery-Temple-2.jpg|thumb|जेतवन मठ, श्रावस्ती|250px]]

  • जेतवन विहार से उत्तर-पश्चिम चार ली की दूरी पर ‘चक्षुकरणी’ नामक एक वन है, जहाँ जन्मांध लोगों को श्री बुद्धदेव की कृपा से ज्योति प्राप्त हुई थी। जेतवन संघाराम के श्रमण भोजनांतर प्राय: इस वन में बैठकर ध्यान लगाया करते थे। फाह्यान के अनुसार जेतवन विहार के पूर्वोत्तर 6.7 ली की दूरी पर माता विशाखा द्वारा निर्मित एक विहार था।[10]
  • फाह्यान पुन: लिखता है कि जेतवन विहार के प्रत्येक कमरे में, जहाँ कि भिक्षु रहते है, दो-दो दरवाजे हैं; एक उत्तर और दूसरा पूर्व की ओर। वाटिका उस स्थान पर बनी है जिसे सुदत्त ने सोने की मुहरें बिछाकर ख़रीदा था। बुद्धदेव इस स्थान पर बहुत समय तक रहे और उन्होंने लोगों को धर्मोपदेश दिया। बुद्ध ने जहाँ चक्रमण किया, जिस स्थान पर बैठे, सर्वत्र स्तूप बने हैं, और उनके अलग-अलग नाम है। यहीं पर सुंदरी ने एक मनुष्य का वध करके श्री बुद्धदेव पर दोषारोपण किया था।[11] फाह्यान आगे उस स्थान को इंगित करता है जहाँ पर श्री बुद्धदेव और विधर्मियों के बीच शास्त्रार्थ हुआ था। यहाँ एक 60 फुट ऊँचा विहार बना हुआ था।
  • ह्वेनसांग के अनुसार जेतवन मठ के पूर्वी प्रदेश-द्वार पर दो 70 फुट ऊँचे प्रस्तर स्तंभ थे। इन स्तंभों का निर्माण अशोक ने करवाया था। बाएँ खंभे में विजय प्रतीक स्वरूप चक्र तथा दाएँ खम्भे पर बैल की आकृति बनी हुई थी।[102] ह्वेनसांग आगे लिखता है कि अनाथपिंडाद विहार के उत्तर-पूर्व एक स्तूप है, वह यह वह स्थान है जहाँ भगवान बुद्ध ने एक रोगी भिक्षु को स्नान कराकर रोग-निवृत्त किया था।


चित्र:Seealso.gifजेतवन श्रावस्ती का उल्लेख इन लेखों में भी है: श्रावस्ती, ललितविस्तर, गहड़वाल वंश एवं फ़ाह्यान


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तंहि जेतेन राजकुमारेन रोपितं संवर्द्धिंत परिपालित। सो च तस्सि सामी अहोसि, तस्मा, जेतवने ति वुच्चति॥ पपंचसूदनी, भाग 1, पृष्ठ 60
  2. उदयनारायण राय, प्राचीन भारत में नगर तथा नगर जीवन, पृष्ठ 118
  3. भिक्षु विश्राम स्थल
  4. आँगनयुक्त घर
  5. सभागृह
  6. भंडार
  7. टहलने के स्थान
  8. विनयपिटक (हिन्दी अनुवाद), पृष्ठ 462; बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृष्ठ 240; तुल. विशुद्धानन्द पाठक, हिस्ट्री आफ कोशल, (मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी, 1963), पृष्ठ 61
  9. बरुआ, भरहुत, भाग 2, पृष्ठ 31
  10. जेम्स लेग्गे, दि ट्रेवल्स आफ फाह्यान, पृष्ठ 59
  11. जेम्स लेग्गे, दि ट्रैवेल्स आफ फाह्यान, पृष्ठ 60

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