द्रोणगिरि: Difference between revisions

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<blockquote>'गत्वापरमध्वानमुपर्युपरिसागरम्, हिमवंतं नगश्रेष्ठं हनुमान गंतुमर्हसि, तत: कांचनमत्युग्रमृषभं पर्वतोत्ततम् कैलासशिखरं चात्र द्रक्ष्यस्यरिनिषूदन'<ref>[[वाल्मीकि रामायण]], युद्ध. 74, 29-30.</ref></blockquote>
<blockquote>'गत्वापरमध्वानमुपर्युपरिसागरम्, हिमवंतं नगश्रेष्ठं हनुमान गंतुमर्हसि, तत: कांचनमत्युग्रमृषभं पर्वतोत्ततम् कैलासशिखरं चात्र द्रक्ष्यस्यरिनिषूदन'<ref>[[वाल्मीकि रामायण]], युद्ध. 74, 29-30.</ref></blockquote>


*अध्यात्म रामायण, युद्धकाण्ड<ref>अध्यात्म रामायण, युद्धकाण्ड 5, 72</ref> में इसका नाम द्रोणगिरि है-
*[[अध्यात्म रामायण]], युद्धकाण्ड<ref>अध्यात्म रामायण, युद्धकाण्ड 5, 72</ref> में इसका नाम द्रोणगिरि है-
'तत्र द्रोणगिरिर्नामदिव्यौषधि समुद्भव: तमानय द्रुतं गत्वा संजीवय महामते'
'तत्र द्रोणगिरिर्नामदिव्यौषधि समुद्भव: तमानय द्रुतं गत्वा संजीवय महामते'



Latest revision as of 14:02, 23 June 2014

द्रोणगिरि अथवा 'द्रोण पर्वत' विष्णु पुराण[1] में उल्लिखित शाल्मल द्वीप का एक पर्वत है।

'कुमुदश्चोन्नतश्चैव तृतीयश्च बलाहृक: द्रोणो यत्र महौषध्य: स चतुर्थो महीधर:'।

पौराणिक किंवदंती

यहाँ द्रोण पर्वत पर महौषधियों का उल्लेख किया गया है। पौराणिक किंवदंती में कहा जाता है कि लक्ष्मण को लंका के युद्ध में शक्ति लगने पर हनुमान द्रोणाचल पर्वत से ही औषधियाँ लाए थे। वाल्मीकि रामायण, युद्धकाण्ड 74 में हनुमान को जिस पर्वत से औषधियाँ लानी थी, जामवन्त ने उसे हिमालय के कैलास और ऋषभ पर्वतों के बीच में बताया है-

'गत्वापरमध्वानमुपर्युपरिसागरम्, हिमवंतं नगश्रेष्ठं हनुमान गंतुमर्हसि, तत: कांचनमत्युग्रमृषभं पर्वतोत्ततम् कैलासशिखरं चात्र द्रक्ष्यस्यरिनिषूदन'[2]

'तत्र द्रोणगिरिर्नामदिव्यौषधि समुद्भव: तमानय द्रुतं गत्वा संजीवय महामते'

अर्थात् रामचन्द्र जी ने वानर सेना के मूर्छित हो जाने पर कहा, "हे हनुमान, क्षीर सागर के निकट द्रोणगिरि नामक दिव्यौषधि समूह है, तुम वहाँ शीघ्र जाकर उसे ले आओ और वानर सेना को जीवित करो।" इससे पहले श्लोक 71 में इसे क्षीर सागर के निकट बताया गया है।

जनश्रुति

जनश्रुतियों के आधार पर द्रोण पर्वत का अभिज्ञान तहसील रानीखेत ज़िला अल्मोड़ा में स्थित दूनागिरि से किया जाता है।[4] दूनागिरि पर आजकल भी अनेक औषधियाँ उत्पन्न होती हैं। किन्तु वाल्मीकि रामायण के उद्धरण से ज्ञात होता है कि यह पहाड़ कैलास और ऋषभ पर्वतों के बीच में स्थित था।[5] बदरीनाथ और तुंगनाथ से जो द्रोणाचल दिखाई देता है, संभवत: वाल्मीकि रामायण में उसी का निर्देश है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 456 |

  1. विष्णु पुराण 2, 4, 26
  2. वाल्मीकि रामायण, युद्ध. 74, 29-30.
  3. अध्यात्म रामायण, युद्धकाण्ड 5, 72
  4. देहरादून के पर्वतों को भी 'द्रोणाचल' कहा जाता है।
  5. वाल्मीकि ने इस पर्वत का नाम 'महोदय' बताया है।

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