आनन्द (बौद्ध): Difference between revisions
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'''आनन्द''' भगवान [[गौतम बुद्ध]] के दस सर्वश्रेष्ठ शिष्यों में से एक थे। ये देवदत्त के [[भाई]] थे। आनन्द लगातार बीस [[वर्ष|वर्षों]] तक बुद्ध की संगत में रहे थे। वे सदा भगवान बुद्ध की निजी सेवाओं में तल्लीन रहे। इन्हें गुरु का सर्वप्रिय शिष्य माना जाता था। | '''आनन्द''' भगवान [[गौतम बुद्ध]] के दस सर्वश्रेष्ठ शिष्यों में से एक थे। ये देवदत्त के [[भाई]] थे। आनन्द लगातार बीस [[वर्ष|वर्षों]] तक बुद्ध की संगत में रहे थे। वे सदा भगवान बुद्ध की निजी सेवाओं में तल्लीन रहे। इन्हें गुरु का सर्वप्रिय शिष्य माना जाता था। | ||
आनंद को बुद्ध के निर्वाण के पश्चात प्रबोधन प्राप्त हुआ था। अपनी स्मरण शक्ति के लिए आनन्द बहुत प्रसिद्ध थे। जिस समय भगवान बुद्ध [[मथुरा]] आये, तब उन्होंने आनन्द से कहा था कि- "यह आदि राज्य है, जिसने अपने लिये राजा (महासम्मत) चुना था।" | आनंद को बुद्ध के निर्वाण के पश्चात प्रबोधन प्राप्त हुआ था। अपनी स्मरण शक्ति के लिए आनन्द बहुत प्रसिद्ध थे। जिस समय भगवान बुद्ध [[मथुरा]] आये, तब उन्होंने आनन्द से कहा था कि- "यह आदि राज्य है, जिसने अपने लिये राजा (महासम्मत) चुना था।" | ||
आनंद अपनी तीव्र स्मृति, बहुश्रुतता तथा देशानुकुशलता के लिए सारे भिक्षुसंघ में अग्रगण्य थे। महापरिनिर्वाण के बाद उन्होंने ध्यानाभ्यास कर अर्हत् पद का लाभ किया और जब बुद्धवचन का संग्रह करने के लिए वैभार पर्वत की | आनंद अपनी तीव्र स्मृति, बहुश्रुतता तथा देशानुकुशलता के लिए सारे भिक्षुसंघ में अग्रगण्य थे। महापरिनिर्वाण के बाद उन्होंने ध्यानाभ्यास कर अर्हत् पद का लाभ किया और जब बुद्धवचन का संग्रह करने के लिए वैभार पर्वत की [[सप्तपर्णि गुहा]] के द्वार पर भिक्षुसंघ बैठा, तब स्थविर आनंद अपने योगबल से, मानो [[पृथ्वी]] से उद्भूत हो, अपने आसन पर प्रकट हो गए। बद्धोपदिष्ट धर्म का संग्रह करने में आनन्द का नेतृत्व सर्वप्रथम था।<ref>{{cite book | last = त्रिपाठी | first = कमलापति | title = हिन्दी विश्वकोश | edition = 1973 | publisher = नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी | location = भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language = [[हिन्दी]] | pages = पृष्ठ सं 373 | chapter = खण्ड 1 }}</ref> | ||
;प्रिय शिष्य | ;प्रिय शिष्य | ||
आनन्द बुद्ध का निजी शरीर परिचायक और परमप्रिय शिष्य था। यह महात्मा बुद्ध का संभवत: चचेरा भाई था। इसकी कर्मठता, श्रद्धा और लगन से प्रभावित होकर बुद्ध ने इसे अपने संघ में दीक्षित कर लिया था। यह बुद्ध के अत्यंत निकट था। बुद्ध ने जो भी उपदेश दिये हैं, अधिकांश आनंद को सम्बोधित करके दिए हैं। आनंद से पहले बुद्ध के जो भी परिचायक थे, वे सब अविश्वसनीय तथा अव्यक्त थे। एक बार नाग समाल नामक परिचायक बुद्ध के निर्देश के बिना दूसरी ओर चला गया तथा उनके पात्र और [[चीवर]] वहीं फेंक दिए, जिन्हें लुटेरे उठाकर ले गये। एक दूसरे परिचायक ने बुद्ध के आदेश की अवहेलना करके आम्रोद्यान में ध्यानस्थ होना चाहा तथा अपने दुष्ट विचारों के कारण वह कहीं नहीं टिक सका। ऐसी स्थिति में बुद्ध को एक परम विश्वासी शिष्य चाहिए था। इसके लिए आनंद ने अपने को अर्पित किया, जिसे बुद्ध ने तुरंत स्वीकार कर लिया। आनंद ने कुछ बातें बुद्ध से कहीं, - सूक्ष्म वस्त्र, विशेष भिक्षा, गंधकुटी आदि वस्तुएँ जो बुद्ध को दी जाएंगी, उन्हें उसने स्वीकार करने के लिए कहा; बुद्ध से मिलने आये व्यक्त्तियों को उन के पास वह पहुँचाएगा तथा बुद्ध जो उपदेश उसकी उपस्थिति में देंगे उन्हें वह उनकी सान्निध्य में दुहरा सकेगा। वह अपने शास्ता के विभिन्न कार्यों और सुख दु:ख में सबसे अधिक सम्मिलित था। बुद्ध के मरने पर वह शोकाकुल हो उठा तथा बिलख बिलखकर रो पड़ा। [[बौद्ध धर्म]] और संघ में उसका सबसे प्रमुख योगदान है, स्त्रियों को संघ की सदस्य के रूप में भिक्षुणी बनाना। यह भावना उसके सरल विचार, उदार मनोवृत्ति और स्त्रियों के प्रति उसके अभिराम दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करती है।<ref>{{cite book | last = | first =चंद्रमौली मणि त्रिपाठी | title =दीक्षा की भारतीय परम्पराएँ | edition = | publisher = | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिंदी | pages =86 | chapter =}}</ref> | आनन्द बुद्ध का निजी शरीर परिचायक और परमप्रिय शिष्य था। यह महात्मा बुद्ध का संभवत: चचेरा भाई था। इसकी कर्मठता, श्रद्धा और लगन से प्रभावित होकर बुद्ध ने इसे अपने संघ में दीक्षित कर लिया था। यह बुद्ध के अत्यंत निकट था। बुद्ध ने जो भी उपदेश दिये हैं, अधिकांश आनंद को सम्बोधित करके दिए हैं। आनंद से पहले बुद्ध के जो भी परिचायक थे, वे सब अविश्वसनीय तथा अव्यक्त थे। एक बार नाग समाल नामक परिचायक बुद्ध के निर्देश के बिना दूसरी ओर चला गया तथा उनके पात्र और [[चीवर]] वहीं फेंक दिए, जिन्हें लुटेरे उठाकर ले गये। एक दूसरे परिचायक ने बुद्ध के आदेश की अवहेलना करके आम्रोद्यान में ध्यानस्थ होना चाहा तथा अपने दुष्ट विचारों के कारण वह कहीं नहीं टिक सका। ऐसी स्थिति में बुद्ध को एक परम विश्वासी शिष्य चाहिए था। इसके लिए आनंद ने अपने को अर्पित किया, जिसे बुद्ध ने तुरंत स्वीकार कर लिया। आनंद ने कुछ बातें बुद्ध से कहीं, - सूक्ष्म वस्त्र, विशेष भिक्षा, गंधकुटी आदि वस्तुएँ जो बुद्ध को दी जाएंगी, उन्हें उसने स्वीकार करने के लिए कहा; बुद्ध से मिलने आये व्यक्त्तियों को उन के पास वह पहुँचाएगा तथा बुद्ध जो उपदेश उसकी उपस्थिति में देंगे उन्हें वह उनकी सान्निध्य में दुहरा सकेगा। वह अपने शास्ता के विभिन्न कार्यों और सुख दु:ख में सबसे अधिक सम्मिलित था। बुद्ध के मरने पर वह शोकाकुल हो उठा तथा बिलख बिलखकर रो पड़ा। [[बौद्ध धर्म]] और संघ में उसका सबसे प्रमुख योगदान है, स्त्रियों को संघ की सदस्य के रूप में भिक्षुणी बनाना। यह भावना उसके सरल विचार, उदार मनोवृत्ति और स्त्रियों के प्रति उसके अभिराम दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करती है।<ref>{{cite book | last = | first =चंद्रमौली मणि त्रिपाठी | title =दीक्षा की भारतीय परम्पराएँ | edition = | publisher = | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिंदी | pages =86 | chapter =}}</ref> |
Revision as of 13:34, 20 September 2014
- आनन्द एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें: आनन्द
आनन्द भगवान गौतम बुद्ध के दस सर्वश्रेष्ठ शिष्यों में से एक थे। ये देवदत्त के भाई थे। आनन्द लगातार बीस वर्षों तक बुद्ध की संगत में रहे थे। वे सदा भगवान बुद्ध की निजी सेवाओं में तल्लीन रहे। इन्हें गुरु का सर्वप्रिय शिष्य माना जाता था। आनंद को बुद्ध के निर्वाण के पश्चात प्रबोधन प्राप्त हुआ था। अपनी स्मरण शक्ति के लिए आनन्द बहुत प्रसिद्ध थे। जिस समय भगवान बुद्ध मथुरा आये, तब उन्होंने आनन्द से कहा था कि- "यह आदि राज्य है, जिसने अपने लिये राजा (महासम्मत) चुना था।" आनंद अपनी तीव्र स्मृति, बहुश्रुतता तथा देशानुकुशलता के लिए सारे भिक्षुसंघ में अग्रगण्य थे। महापरिनिर्वाण के बाद उन्होंने ध्यानाभ्यास कर अर्हत् पद का लाभ किया और जब बुद्धवचन का संग्रह करने के लिए वैभार पर्वत की सप्तपर्णि गुहा के द्वार पर भिक्षुसंघ बैठा, तब स्थविर आनंद अपने योगबल से, मानो पृथ्वी से उद्भूत हो, अपने आसन पर प्रकट हो गए। बद्धोपदिष्ट धर्म का संग्रह करने में आनन्द का नेतृत्व सर्वप्रथम था।[1]
- प्रिय शिष्य
आनन्द बुद्ध का निजी शरीर परिचायक और परमप्रिय शिष्य था। यह महात्मा बुद्ध का संभवत: चचेरा भाई था। इसकी कर्मठता, श्रद्धा और लगन से प्रभावित होकर बुद्ध ने इसे अपने संघ में दीक्षित कर लिया था। यह बुद्ध के अत्यंत निकट था। बुद्ध ने जो भी उपदेश दिये हैं, अधिकांश आनंद को सम्बोधित करके दिए हैं। आनंद से पहले बुद्ध के जो भी परिचायक थे, वे सब अविश्वसनीय तथा अव्यक्त थे। एक बार नाग समाल नामक परिचायक बुद्ध के निर्देश के बिना दूसरी ओर चला गया तथा उनके पात्र और चीवर वहीं फेंक दिए, जिन्हें लुटेरे उठाकर ले गये। एक दूसरे परिचायक ने बुद्ध के आदेश की अवहेलना करके आम्रोद्यान में ध्यानस्थ होना चाहा तथा अपने दुष्ट विचारों के कारण वह कहीं नहीं टिक सका। ऐसी स्थिति में बुद्ध को एक परम विश्वासी शिष्य चाहिए था। इसके लिए आनंद ने अपने को अर्पित किया, जिसे बुद्ध ने तुरंत स्वीकार कर लिया। आनंद ने कुछ बातें बुद्ध से कहीं, - सूक्ष्म वस्त्र, विशेष भिक्षा, गंधकुटी आदि वस्तुएँ जो बुद्ध को दी जाएंगी, उन्हें उसने स्वीकार करने के लिए कहा; बुद्ध से मिलने आये व्यक्त्तियों को उन के पास वह पहुँचाएगा तथा बुद्ध जो उपदेश उसकी उपस्थिति में देंगे उन्हें वह उनकी सान्निध्य में दुहरा सकेगा। वह अपने शास्ता के विभिन्न कार्यों और सुख दु:ख में सबसे अधिक सम्मिलित था। बुद्ध के मरने पर वह शोकाकुल हो उठा तथा बिलख बिलखकर रो पड़ा। बौद्ध धर्म और संघ में उसका सबसे प्रमुख योगदान है, स्त्रियों को संघ की सदस्य के रूप में भिक्षुणी बनाना। यह भावना उसके सरल विचार, उदार मनोवृत्ति और स्त्रियों के प्रति उसके अभिराम दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करती है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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