Difference between revisions of "आदिलशाही वंश"

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आदिलशाही राजवंश की स्थापना [[बीजापुर]] में 1489 ई. में [[यूसुफ़ आदिल ख़ाँ]] ने की थी। वह जार्जिया निवासी ग़ुलाम था जो अपनी योग्यता के कारण बहमनी सुल्तान महमूद (1482-1518 ई.) के यहाँ ऊँचे पद पर पहुँचा था और उसको बीजापुर का सूबेदार बनाया गया था। बाद में उसने बीजापुर को राजधानी बनाकर स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। उसके राजवंश ने बीजापुर में 1489 से 1685 ई.  तक राज्य किया। अन्तिम आदिलशाही सुल्तान सिकंदर को [[औरंगज़ेब]] ने पराजित करके गिरफ्तार कर लिया।  
 
आदिलशाही राजवंश की स्थापना [[बीजापुर]] में 1489 ई. में [[यूसुफ़ आदिल ख़ाँ]] ने की थी। वह जार्जिया निवासी ग़ुलाम था जो अपनी योग्यता के कारण बहमनी सुल्तान महमूद (1482-1518 ई.) के यहाँ ऊँचे पद पर पहुँचा था और उसको बीजापुर का सूबेदार बनाया गया था। बाद में उसने बीजापुर को राजधानी बनाकर स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। उसके राजवंश ने बीजापुर में 1489 से 1685 ई.  तक राज्य किया। अन्तिम आदिलशाही सुल्तान सिकंदर को [[औरंगज़ेब]] ने पराजित करके गिरफ्तार कर लिया।  
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
1686 में औरंगज़ेब द्वारा बीजापुर को परास्त किए जाने से पहले इस वंश ने 17वीं शताब्दी में मुग़लों के दक्षिण की ओर बढ़ने का जमकर विरोध किया। इस सल्तनत का नाम युसुफ़ आदिल शाह के नाम पर पड़ा, जिन्हें ऑटोमन सुल्तान मुराद द्वितीय का बेटा कहा जाता है। उन्होंने वहां शिया संप्रदाय का प्रचलन शुरु किया, मगर वह दूसरे मतों के प्रति सहिष्णु थे। उनके शासन के अंतिम दिनों में [[गोवा]] पुर्तग़ालियों द्वारा जीत (1510) लिया गया। लगातार चलने वाली लड़ाइयों के बाद बीजापुर और अन्य तीन दक्कनी मुस्लिम राज्यों, [[गोलकुंडा]], [[बीदर]] और [[अहमदनगर]], ने मिलकर 1565 में तालिकोटा की लड़ाई में विजयनगर के हिंदू साम्राज्य को हरा दिया।  
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1686 में औरंगज़ेब द्वारा बीजापुर को परास्त किए जाने से पहले इस वंश ने 17वीं शताब्दी में मुग़लों के दक्षिण की ओर बढ़ने का जमकर विरोध किया। इस सल्तनत का नाम युसुफ़ आदिल शाह के नाम पर पड़ा, जिन्हें ऑटोमन सुल्तान मुराद द्वितीय का बेटा कहा जाता है। उन्होंने वहां शिया संप्रदाय का प्रचलन शुरू किया, मगर वह दूसरे मतों के प्रति सहिष्णु थे। उनके शासन के अंतिम दिनों में [[गोवा]] पुर्तग़ालियों द्वारा जीत (1510) लिया गया। लगातार चलने वाली लड़ाइयों के बाद बीजापुर और अन्य तीन दक्कनी मुस्लिम राज्यों, [[गोलकुंडा]], [[बीदर]] और [[अहमदनगर]], ने मिलकर 1565 में तालिकोटा की लड़ाई में विजयनगर के हिन्दू साम्राज्य को हरा दिया।  
 
==कुशल शासक==
 
==कुशल शासक==
इब्राहीम आदिल शाह द्वितीय (1579-1626) का दौर इस राजवंश का महानतम काल था, जिन्होंने अपने राज्य की सीमाओं का दक्षिण में [[मैसूर]] तक विस्तार किया। आदिल शाह एक कुशल प्रशासक और कलाओं के उदार संरक्षक थे। वह इस्लाम के सुन्नी मत की ओर वापस लौटे, मगर ईसाई धर्म सहित दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णु बने रहे। बाद में आदिलशाही वंश की बढ़ती कमज़ोरियों के कारण मुग़लों को उनका राज्य हथियाने का मौक़ा मिल गया और मराठा प्रमुख [[शिवाजी]] ने अपने सफल विद्रोह में बीजापुर के सेनापति [[अफ़ज़ल ख़ाँ]] को मारकर सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया।
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इब्राहीम आदिल शाह द्वितीय (1579-1626) का दौर इस राजवंश का महानतम काल था, जिन्होंने अपने राज्य की सीमाओं का दक्षिण में [[मैसूर]] तक विस्तार किया। आदिल शाह एक कुशल प्रशासक और कलाओं के उदार संरक्षक थे। वह इस्लाम के [[सुन्नी]] मत की ओर वापस लौटे, मगर ईसाई धर्म सहित दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णु बने रहे। बाद में आदिलशाही वंश की बढ़ती कमज़ोरियों के कारण मुग़लों को उनका राज्य हथियाने का मौक़ा मिल गया और मराठा प्रमुख [[शिवाजी]] ने अपने सफल विद्रोह में बीजापुर के सेनापति [[अफ़ज़ल ख़ाँ]] को मारकर सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया।
 
==शासकों के नाम==
 
==शासकों के नाम==
 
इस राजवंश में—
 
इस राजवंश में—
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इस वंश के सुल्तानों ने दक्षिण में अनेक लड़ाइयाँ लड़ीं। 1585 ई. में जब मुसलमानों ने संयुक्त रूप से [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] पर हमला किया और [[तालीकोट का युद्ध]] जीत कर विजयनगर राज्य को नष्ट कर दिया तो उसमें आदिलशाही सुल्तान भी शामिल थे।  
 
इस वंश के सुल्तानों ने दक्षिण में अनेक लड़ाइयाँ लड़ीं। 1585 ई. में जब मुसलमानों ने संयुक्त रूप से [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] पर हमला किया और [[तालीकोट का युद्ध]] जीत कर विजयनगर राज्य को नष्ट कर दिया तो उसमें आदिलशाही सुल्तान भी शामिल थे।  
 
==भव्य इमारतें==
 
==भव्य इमारतें==
बीजापुर शहर के चारों ओर शहरपनाह, बीजापुर की ख़ास मस्जिद, गगन महल, इब्राहीम द्वितीय (1580-1626 ई.) का मक़बरा और उसके उत्तराधिकारी मुहम्मद (1626-56 ई.) का मक़बरा भव्य इमारतें हैं। जिन्हें कुशल कारीगरों से बनवाया गया था। कुछ सुल्तान, खासतौर से छठा सुल्तान इब्राहीम द्वितीय योग्य और उदार शासक था। वह साहित्य प्रेमी था। प्रसिद्ध इतिहासकार मुहम्मद कासिम उर्फ फ़रिश्ता ने आदिलशाही संरक्षण में रहकर अपना प्रसिद्ध इतिहास ग्रंथ 'तारीख़-ए-फ़रिश्ता' लिखा था।  
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बीजापुर शहर के चारों ओर शहरपनाह, बीजापुर की ख़ास मस्जिद, गगन महल, इब्राहीम द्वितीय (1580-1626 ई.) का मक़बरा और उसके उत्तराधिकारी मुहम्मद (1626-56 ई.) का मक़बरा भव्य इमारतें हैं। जिन्हें कुशल कारीगरों से बनवाया गया था। कुछ सुल्तान, ख़ासतौर से छठा सुल्तान इब्राहीम द्वितीय योग्य और उदार शासक था। वह साहित्य प्रेमी था। प्रसिद्ध इतिहासकार मुहम्मद कासिम उर्फ फ़रिश्ता ने आदिलशाही संरक्षण में रहकर अपना प्रसिद्ध इतिहास ग्रंथ 'तारीख़-ए-फ़रिश्ता' लिखा था।  
  
  
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{भारत के राजवंश}}
 
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{{दक्कन सल्तनत}}
 
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[[Category:दक्कन_सल्तनत]][[Category:इतिहास_कोश]]
 
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[[Category:भारत के राजवंश]]
 
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Latest revision as of 09:54, 24 April 2011

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adilashahi rajavansh ki sthapana bijapur mean 1489 ee. mean yoosuf adil khaan ne ki thi. vah jarjiya nivasi gulam tha jo apani yogyata ke karan bahamani sultan mahamood (1482-1518 ee.) ke yahaan ooanche pad par pahuancha tha aur usako bijapur ka soobedar banaya gaya tha. bad mean usane bijapur ko rajadhani banakar svatantr rajy sthapit kiya. usake rajavansh ne bijapur mean 1489 se 1685 ee. tak rajy kiya. antim adilashahi sultan sikandar ko aurangazeb ne parajit karake giraphtar kar liya.

itihas

1686 mean aurangazeb dvara bijapur ko parast kie jane se pahale is vansh ne 17vian shatabdi mean mugaloan ke dakshin ki or badhane ka jamakar virodh kiya. is saltanat ka nam yusuf adil shah ke nam par p da, jinhean aautoman sultan murad dvitiy ka beta kaha jata hai. unhoanne vahaan shiya sanpraday ka prachalan shuroo kiya, magar vah doosare matoan ke prati sahishnu the. unake shasan ke aantim dinoan mean gova purtagaliyoan dvara jit (1510) liya gaya. lagatar chalane vali l daiyoan ke bad bijapur aur any tin dakkani muslim rajyoan, golakuanda, bidar aur ahamadanagar, ne milakar 1565 mean talikota ki l daee mean vijayanagar ke hindoo samrajy ko hara diya.

kushal shasak

ibrahim adil shah dvitiy (1579-1626) ka daur is rajavansh ka mahanatam kal tha, jinhoanne apane rajy ki simaoan ka dakshin mean maisoor tak vistar kiya. adil shah ek kushal prashasak aur kalaoan ke udar sanrakshak the. vah islam ke sunni mat ki or vapas laute, magar eesaee dharm sahit doosare dharmoan ke prati sahishnu bane rahe. bad mean adilashahi vansh ki badhati kamazoriyoan ke karan mugaloan ko unaka rajy hathiyane ka mauqa mil gaya aur maratha pramukh shivaji ne apane saphal vidroh mean bijapur ke senapati afazal khaan ko marakar sena ko chhinn-bhinn kar diya.

shasakoan ke nam

is rajavansh mean—

yuddh

is vansh ke sultanoan ne dakshin mean anek l daiyaan l dian. 1585 ee. mean jab musalamanoan ne sanyukt roop se vijayanagar par hamala kiya aur talikot ka yuddh jit kar vijayanagar rajy ko nasht kar diya to usamean adilashahi sultan bhi shamil the.

bhavy imaratean

bijapur shahar ke charoan or shaharapanah, bijapur ki khas masjid, gagan mahal, ibrahim dvitiy (1580-1626 ee.) ka maqabara aur usake uttaradhikari muhammad (1626-56 ee.) ka maqabara bhavy imaratean haian. jinhean kushal karigaroan se banavaya gaya tha. kuchh sultan, khasataur se chhatha sultan ibrahim dvitiy yogy aur udar shasak tha. vah sahity premi tha. prasiddh itihasakar muhammad kasim urph farishta ne adilashahi sanrakshan mean rahakar apana prasiddh itihas granth 'tarikh-e-farishta' likha tha.


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panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

sanbandhit lekh

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