Difference between revisions of "मकर संक्रांति"

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मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष [[जनवरी]] महीने में समस्त [[भारत]] में मनाया जाता है। इस दिन से [[सूर्य देवता|सूर्य]] उत्तरायण होता है, जब उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। परम्परा से यह विश्वास किया जाता है कि इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह वैदिक उत्सव है। इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़–तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है।
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[[संस्कृत]] प्रार्थना के अनुसार "हे सूर्यदेव, आपका दण्डवत प्रणाम, आप ही इस जगत की आँखें हो। आप सारे संसार के आरम्भ का मूल हो, उसके जीवन व नाश का कारण भी आप ही हो।"  
 
[[संस्कृत]] प्रार्थना के अनुसार "हे सूर्यदेव, आपका दण्डवत प्रणाम, आप ही इस जगत की आँखें हो। आप सारे संसार के आरम्भ का मूल हो, उसके जीवन व नाश का कारण भी आप ही हो।"  
सूर्य का प्रकाश जीवन का प्रतीक है। चन्द्रमा भी सूर्य के प्रकाश से आलोकित है। वैदिक युग में सूर्योपासना दिन में तीन बार की जाती थी। पितामह भीष्म ने भी सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपना प्राणत्याग किया था। हमारे मनीषी इस समय को बहुत ही श्रेष्ठ मानते हैं। इस अवसर पर लोग पवित्र नदियों एवं तीर्थस्थलों पर स्नान कर आदिदेव भगवान सूर्य से जीवन में सुख व समृद्धि हेतु प्रार्थना व याचना करते हैं।
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सूर्य का प्रकाश जीवन का प्रतीक है। [[चन्द्रमा]] भी सूर्य के प्रकाश से आलोकित है। [[वैदिक काल|वैदिक युग]] में सूर्योपासना दिन में तीन बार की जाती थी। पितामह [[भीष्म]] ने भी सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपना प्राणत्याग किया था। हमारे मनीषी इस समय को बहुत ही श्रेष्ठ मानते हैं। इस अवसर पर लोग पवित्र नदियों एवं तीर्थस्थलों पर स्नान कर आदिदेव भगवान सूर्य से जीवन में सुख व समृद्धि हेतु प्रार्थना व याचना करते हैं।
  
रंग-बिरंगा त्योहार मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष [[जनवरी]] महीने में समस्त [[भारत]] में मनाया जाता है। इस दिन से [[सूर्य देवता|सूर्य]] उत्तरायण होता है, जब उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। परम्परा से यह विश्वास किया जाता है कि इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह वैदिक उत्सव है। इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़–तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है।
 
 
==मान्यता==
 
==मान्यता==
 
यह विश्वास किया जाता है कि इस अवधि में देहत्याग करने वाले व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। [[महाभारत]] महाकाव्य में वयोवृद्ध योद्धा पितामह [[भीष्म]] [[पाण्डव|पांडवों]] और [[कौरव|कौरवों]] के बीच हुए [[कुरुक्षेत्र]] युद्ध में सांघातिक रूप से घायल हो गये थे। उन्हें इच्छा-मृत्यु का वरदान प्राप्त था। पांडव वीर [[अर्जुन]] द्वारा रचित बाणशैया पर पड़े वे उत्तरायण अवधि की प्रतीक्षा करते रहे। उन्होंने सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर ही अंतिम सांस ली जिससे उनका पुनर्जन्म न हो।
 
यह विश्वास किया जाता है कि इस अवधि में देहत्याग करने वाले व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। [[महाभारत]] महाकाव्य में वयोवृद्ध योद्धा पितामह [[भीष्म]] [[पाण्डव|पांडवों]] और [[कौरव|कौरवों]] के बीच हुए [[कुरुक्षेत्र]] युद्ध में सांघातिक रूप से घायल हो गये थे। उन्हें इच्छा-मृत्यु का वरदान प्राप्त था। पांडव वीर [[अर्जुन]] द्वारा रचित बाणशैया पर पड़े वे उत्तरायण अवधि की प्रतीक्षा करते रहे। उन्होंने सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर ही अंतिम सांस ली जिससे उनका पुनर्जन्म न हो।
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माघ मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को 'मकर संक्रान्ति' पर्व मनाया जाता है। जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को "[[सौर वर्ष]]" कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना "क्रान्तिचक्र" कहलाता है। इस "परिधि चक्र" को बाँटकर बारह राशियाँ बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना "संक्रान्ति" कहलाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को "मकरसंक्रान्ति" कहते हैं।  
 
माघ मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को 'मकर संक्रान्ति' पर्व मनाया जाता है। जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को "[[सौर वर्ष]]" कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना "क्रान्तिचक्र" कहलाता है। इस "परिधि चक्र" को बाँटकर बारह राशियाँ बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना "संक्रान्ति" कहलाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को "मकरसंक्रान्ति" कहते हैं।  
  
सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायन है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक इसके विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मकर–संक्रान्ति के दिन [[यज्ञ]] में दिये हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं। इसी मार्ग से पुण्यात्माएँ शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं। इसलिए यह आलोक का अवसर माना जाता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्त्व है और सौ गुणा फलदायी होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष प्रायः 14 जनवरी को पड़ती है।  
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सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायन है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक इसके विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। [[वैदिक काल]] में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मकर–संक्रान्ति के दिन [[यज्ञ]] में दिये हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं। इसी मार्ग से पुण्यात्माएँ शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं। इसलिए यह आलोक का अवसर माना जाता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्त्व है और सौ गुणा फलदायी होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष प्रायः 14 जनवरी को पड़ती है।  
 
==आभार प्रकट करने का दिन==
 
==आभार प्रकट करने का दिन==
 
[[पंजाब]], [[बिहार]] व [[तमिलनाडु]] में यह समय फ़सल काटने का होता है। कृषक मकर संक्रान्ति को आभार दिवस के रूप में मनाते हैं। पके हुए गेहूँ और धान को स्वर्णिम आभा उनके अथक मेहनत और प्रयास का ही फल होती है और यह सम्भव होता है, भगवान व प्रकृति के आशीर्वाद से। विभिन्न परम्पराओं व रीति–रिवाज़ों के अनुरूप पंजाब एवं [[जम्मू और कश्मीर|जम्मू–कश्मीर]] में "[[लोहड़ी]]" नाम से "मकर संक्रान्ति" पर्व मनाया जाता है। सिन्धी समाज एक दिन पूर्व ही मकर संक्रान्ति को "लाल लोही" के रूप में मनाता है। तमिलनाडु में मकर संक्रान्ति [[पोंगल]] के नाम से मनाया जाता है, तो [[उत्तर प्रदेश]] और [[बिहार]] में खिचड़ी के नाम से मकर संक्रान्ति मनाया जाता है। इस दिन कहीं खिचड़ी तो कहीं चूड़ादही का भोजन किया जाता है तथा तिल के लड्डु बनाये जाते हैं। ये लड्डू मित्र व सगे सम्बन्धियों में बाँटें भी जाते हैं।
 
[[पंजाब]], [[बिहार]] व [[तमिलनाडु]] में यह समय फ़सल काटने का होता है। कृषक मकर संक्रान्ति को आभार दिवस के रूप में मनाते हैं। पके हुए गेहूँ और धान को स्वर्णिम आभा उनके अथक मेहनत और प्रयास का ही फल होती है और यह सम्भव होता है, भगवान व प्रकृति के आशीर्वाद से। विभिन्न परम्पराओं व रीति–रिवाज़ों के अनुरूप पंजाब एवं [[जम्मू और कश्मीर|जम्मू–कश्मीर]] में "[[लोहड़ी]]" नाम से "मकर संक्रान्ति" पर्व मनाया जाता है। सिन्धी समाज एक दिन पूर्व ही मकर संक्रान्ति को "लाल लोही" के रूप में मनाता है। तमिलनाडु में मकर संक्रान्ति [[पोंगल]] के नाम से मनाया जाता है, तो [[उत्तर प्रदेश]] और [[बिहार]] में खिचड़ी के नाम से मकर संक्रान्ति मनाया जाता है। इस दिन कहीं खिचड़ी तो कहीं चूड़ादही का भोजन किया जाता है तथा तिल के लड्डु बनाये जाते हैं। ये लड्डू मित्र व सगे सम्बन्धियों में बाँटें भी जाते हैं।
  
==खिचड़ी संक्रान्ति==
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====खिचड़ी संक्रान्ति====
 
चावल व मूंग की दाल को पकाकर खिचड़ी बनाई जाती है। इस दिन खिचड़ी खाने का प्रचलन व विधान है। घी व मसालों में पकी खिचड़ी स्वादिष्ट, पाचक व ऊर्जा से भरपूर होती है। इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होनी प्रारम्भ हो जाती है। बसन्त के आगमन से स्वास्थ्य का विकास होना प्रारम्भ होता है।  
 
चावल व मूंग की दाल को पकाकर खिचड़ी बनाई जाती है। इस दिन खिचड़ी खाने का प्रचलन व विधान है। घी व मसालों में पकी खिचड़ी स्वादिष्ट, पाचक व ऊर्जा से भरपूर होती है। इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होनी प्रारम्भ हो जाती है। बसन्त के आगमन से स्वास्थ्य का विकास होना प्रारम्भ होता है।  
==तिल संक्रान्ति==
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====तिल संक्रान्ति====
 
मकर संक्रान्ति के दिन, खिचड़ी के साथ–साथ तिल का प्रयोग भी अति महत्त्वपूर्ण है। तिल के गोल–गोल लड्डू इस दिन बनाए जाते हैं। मालिश के लिए भी तिल के तेल का प्रयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान [[विष्णु]] के शरीर से हुई है तथा उपरोक्त उत्पादों का प्रयोग हमें सभी प्रकार के पापों से मुक्त करता है; गर्मी देता है और निरोग रखता है।  
 
मकर संक्रान्ति के दिन, खिचड़ी के साथ–साथ तिल का प्रयोग भी अति महत्त्वपूर्ण है। तिल के गोल–गोल लड्डू इस दिन बनाए जाते हैं। मालिश के लिए भी तिल के तेल का प्रयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान [[विष्णु]] के शरीर से हुई है तथा उपरोक्त उत्पादों का प्रयोग हमें सभी प्रकार के पापों से मुक्त करता है; गर्मी देता है और निरोग रखता है।  
  
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==पुण्यकाल के शुभारम्भ का प्रतीक==  
 
==पुण्यकाल के शुभारम्भ का प्रतीक==  
 
मकर संक्रान्ति के आगामी दिन जब सूर्य की गति उत्तर की ओर होती है, तो बहुत से पर्व प्रारम्भ होने लगते हैं। इन्हीं दिनों में ऐसा प्रतीत होता है कि वातावरण व पर्यावरण स्वयं ही अच्छे होने लगे हैं। कहा जाता है कि इस समय जन्मे शिशु प्रगतिशील विचारों के, सुसंस्कृत, विनम्र स्वभाव के तथा अच्छे विचारों से पूर्ण होते हैं। यही विशेष कारण है, जो सूर्य की उत्तरायण गति को पवित्र बनाते हैं और मकर संक्रान्ति का दिन सबसे पवित्र दिन बन जाता है।  
 
मकर संक्रान्ति के आगामी दिन जब सूर्य की गति उत्तर की ओर होती है, तो बहुत से पर्व प्रारम्भ होने लगते हैं। इन्हीं दिनों में ऐसा प्रतीत होता है कि वातावरण व पर्यावरण स्वयं ही अच्छे होने लगे हैं। कहा जाता है कि इस समय जन्मे शिशु प्रगतिशील विचारों के, सुसंस्कृत, विनम्र स्वभाव के तथा अच्छे विचारों से पूर्ण होते हैं। यही विशेष कारण है, जो सूर्य की उत्तरायण गति को पवित्र बनाते हैं और मकर संक्रान्ति का दिन सबसे पवित्र दिन बन जाता है।  
==पंजाब में लो़ढ़ी==
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==खगोल का गणित==
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*सन 2012 में मकर संक्रांति 15 जनवरी यानी [[रविवार]] की है।
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*अगले 68 साल तक यह पर्व 15 जनवरी को ही पड़ेगा।
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*राजा हर्षवर्द्धन के समय में यह पर्व 24 दिसंबर को पड़ा था।
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*अकबर के शासनकाल में 10 जनवरी को मकर संक्रांति थी।
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*शिवाजी के जीवनकाल में यह त्योहार 11 जनवरी को पड़ा था।
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====आखिर ऐसा क्यों?====
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सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने को मकर संक्रांति कहा जाता है। साल 2012 में यह 14 जनवरी की मध्यरात्रि में है। इसलिए उदय तिथि के अनुसार मकर संक्रांति 15 जनवरी को पड़ेगी। दरअसल हर साल सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश 20 मिनट की देरी से होता है। इस तरह हर तीन साल के बाद सूर्य एक घंटे बाद और हर 72 साल एक की देरी से मकर राशि में प्रवेश करता है। मतलब 1728 (72 गुणे 24) साल में फिर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश एक दिन की देरी से होगा और इस तरह 2080 के बाद मकर संक्रांति 16 जनवरी को पड़ेगी।   
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==विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति====
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मकर संक्रान्ति [[भारत]] के भिन्न-भिन्न लोगों के लिए भिन्न-भिन्न अर्थ रखती है। किन्तु सदा की भॉंति, नानाविधी उत्सवों को एक साथ पिरोने वाला एक सर्वमान्य सूत्र है, जो इस अवसर को अंकित करता है यदि [[दीपावली]] ज्योति का पर्व है तो संक्रान्ति शस्य पर्व है, नई फ़सल का स्वागत करने तथा समृद्धि व सम्पन्नता के लिए प्रार्थना करने का एक अवसर है।
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====पंजाब में लो़ढ़ी====
 
मकर संक्रान्ति [[भारत]] के अन्य क्षेत्रों में भी धार्मिक उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। [[पंजाब]] में इसे लो़ढ़ी कहते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में नई फ़सल की कटाई के अवसर पर मनाया जाता है। पुरुष और स्त्रियाँ गाँव के चौक पर उत्सवाग्नि के चारों ओर परम्परागत वेशभूषा में लोकप्रिय नृत्य भांगड़ा का प्रदर्शन करते हैं। स्त्रियाँ इस अवसर पर अपनी हथेलियों और पाँवों पर आकर्षक आकृतियों में मेहन्दी रचती हैं।
 
मकर संक्रान्ति [[भारत]] के अन्य क्षेत्रों में भी धार्मिक उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। [[पंजाब]] में इसे लो़ढ़ी कहते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में नई फ़सल की कटाई के अवसर पर मनाया जाता है। पुरुष और स्त्रियाँ गाँव के चौक पर उत्सवाग्नि के चारों ओर परम्परागत वेशभूषा में लोकप्रिय नृत्य भांगड़ा का प्रदर्शन करते हैं। स्त्रियाँ इस अवसर पर अपनी हथेलियों और पाँवों पर आकर्षक आकृतियों में मेहन्दी रचती हैं।
==बंगाल में मकर-सक्रांति==
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====बंगाल में मकर-सक्रांति====
 
[[पश्चिम बंगाल]] में मकर सक्रांति के दिन देश भर के तीर्थयात्री [[गंगासागर]] द्वीप पर एकत्र होते हैं , जहाँ [[गंगा नदी|गंगा]] [[बंगाल की खाड़ी]] में मिल जाती है। एक धार्मिक मेला, जिसे गंगासागर मेला कहते हैं, इस समारोह की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस संगम पर डुबकी लगाने से सारा पाप धुल जाता है।
 
[[पश्चिम बंगाल]] में मकर सक्रांति के दिन देश भर के तीर्थयात्री [[गंगासागर]] द्वीप पर एकत्र होते हैं , जहाँ [[गंगा नदी|गंगा]] [[बंगाल की खाड़ी]] में मिल जाती है। एक धार्मिक मेला, जिसे गंगासागर मेला कहते हैं, इस समारोह की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस संगम पर डुबकी लगाने से सारा पाप धुल जाता है।
==कर्नाटक में मकर-सक्रांति==
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====कर्नाटक में मकर-सक्रांति====
 
[[कर्नाटक]] में भी फ़सल का त्योहार शान से मनाया जाता है। बैलों और गायों को सुसज्जित कर उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। नये परिधान में सजे नर-नारी, ईख, सूखा नारियल और भुने चने के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। पंतगबाज़ी इस अवसर का लोकप्रिय परम्परागत खेल है।
 
[[कर्नाटक]] में भी फ़सल का त्योहार शान से मनाया जाता है। बैलों और गायों को सुसज्जित कर उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। नये परिधान में सजे नर-नारी, ईख, सूखा नारियल और भुने चने के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। पंतगबाज़ी इस अवसर का लोकप्रिय परम्परागत खेल है।
==गुजरात में मकर-सक्रांति==
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====गुजरात में मकर-सक्रांति====
 
[[गुजरात]] का क्षितिज भी संक्रान्ति के अवसर पर रंगबिरंगी पंतगों से भर जाता है। गुजराती लोग संक्रान्ति को एक शुभ दिवस मानते हैं और इस अवसर पर छात्रों को छात्रवृतियाँ और पुरस्कार बाँटते हैं।
 
[[गुजरात]] का क्षितिज भी संक्रान्ति के अवसर पर रंगबिरंगी पंतगों से भर जाता है। गुजराती लोग संक्रान्ति को एक शुभ दिवस मानते हैं और इस अवसर पर छात्रों को छात्रवृतियाँ और पुरस्कार बाँटते हैं।
==केरल में मकर-सक्रांति==
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====केरल में मकर-सक्रांति====
 
[[केरल]] में भगवान अयप्पा की निवास स्थली सबरीमाला की वार्षिक तीर्थयात्रा की अवधि मकर संक्रान्ति के दिन ही समाप्त होती है, जब सुदूर पर्वतों के क्षितिज पर एक दिव्य आभा ‘मकर ज्योति’ दिखाई पड़ती है।
 
[[केरल]] में भगवान अयप्पा की निवास स्थली सबरीमाला की वार्षिक तीर्थयात्रा की अवधि मकर संक्रान्ति के दिन ही समाप्त होती है, जब सुदूर पर्वतों के क्षितिज पर एक दिव्य आभा ‘मकर ज्योति’ दिखाई पड़ती है।
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मकर संक्रान्ति [[भारत]] के भिन्न-भिन्न लोगों के लिए भिन्न-भिन्न अर्थ रखती है। किन्तु सदा की भॉंति, नानाविधी उत्सवों को एक साथ पिरोने वाला एक सर्वमान्य सूत्र है, जो इस अवसर को अंकित करता है यदि [[दीपावली]] ज्योति का पर्व है तो संक्रान्ति शस्य पर्व है, नई फ़सल का स्वागत करने तथा समृद्धि व सम्पन्नता के लिए प्रार्थना करने का एक अवसर है।
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{पर्व और त्योहार}}
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{{पर्व और त्योहार}}{{व्रत और उत्सव}}
{{व्रत और उत्सव}}
 
 
[[Category:संस्कृति कोश]]
 
[[Category:संस्कृति कोश]]
 
[[Category:पर्व और त्योहार]]
 
[[Category:पर्व और त्योहार]]
 
[[Category:व्रत और उत्सव]]
 
[[Category:व्रत और उत्सव]]
 
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Revision as of 07:43, 12 January 2012

thumb|makar sankrati
Makar Sankrati|250px
makar sankranti pratyek varsh janavari mahine mean samast bharat mean manaya jata hai. is din se soory uttarayan hota hai, jab uttari golardh soory ki or mu d jata hai. parampara se yah vishvas kiya jata hai ki isi din soory makar rashi mean pravesh karata hai. yah vaidik utsav hai. is din khich di ka bhog lagaya jata hai. gu d–til, rev di, gajak ka prasad baanta jata hai.

sanskrit prarthana ke anusar "he sooryadev, apaka dandavat pranam, ap hi is jagat ki aankhean ho. ap sare sansar ke arambh ka mool ho, usake jivan v nash ka karan bhi ap hi ho." soory ka prakash jivan ka pratik hai. chandrama bhi soory ke prakash se alokit hai. vaidik yug mean sooryopasana din mean tin bar ki jati thi. pitamah bhishm ne bhi soory ke uttarayan hone par hi apana pranatyag kiya tha. hamare manishi is samay ko bahut hi shreshth manate haian. is avasar par log pavitr nadiyoan evan tirthasthaloan par snan kar adidev bhagavan soory se jivan mean sukh v samriddhi hetu prarthana v yachana karate haian.

manyata

yah vishvas kiya jata hai ki is avadhi mean dehatyag karane vale vyakti janm-maran ke chakr se mukt ho jate haian. mahabharat mahakavy mean vayovriddh yoddha pitamah bhishm paandavoan aur kauravoan ke bich hue kurukshetr yuddh mean saanghatik roop se ghayal ho gaye the. unhean ichchha-mrityu ka varadan prapt tha. paandav vir arjun dvara rachit banashaiya par p de ve uttarayan avadhi ki pratiksha karate rahe. unhoanne soory ke makar rashi mean pravesh karane par hi aantim saans li jisase unaka punarjanm n ho.

soory ke uttarayan hone ka parv

magh mas ke krishnapaksh ki pratipada ko 'makar sankranti' parv manaya jata hai. jitane samay mean prithvi soory ke charoan or ek chakkar lagati hai, us avadhi ko "saur varsh" kahate haian. prithvi ka golaee mean soory ke charoan or ghoomana "krantichakr" kahalata hai. is "paridhi chakr" ko baantakar barah rashiyaan bani haian. soory ka ek rashi se doosari rashi mean pravesh karana "sankranti" kahalata hai. isi prakar soory ke makar rashi mean pravesh karane ko "makarasankranti" kahate haian.

soory ka makar rekha se uttari kark rekha ki or jana uttarayan tatha kark rekha se dakshini makar rekha ki or jana dakshinayan hai. uttarayan mean din b de ho jate haian tatha ratean chhoti hone lagati haian. dakshinayan mean thik isake viparit hota hai. shastroan ke anusar uttarayan devataoan ka din tatha dakshinayan devataoan ki rat hoti hai. vaidik kal mean uttarayan ko devayan tatha dakshinayan ko pitriyan kaha jata tha. makar–sankranti ke din yajn mean diye havy ko grahan karane ke lie devata dharati par avatarit hote haian. isi marg se punyatmaean sharir chho dakar svarg adi lokoan mean pravesh karati haian. isalie yah alok ka avasar mana jata hai. is din puny, dan, jap tatha dharmik anushthanoan ka anany mahattv hai aur sau guna phaladayi hokar prapt hota hai. makar sankranti pratyek varsh prayah 14 janavari ko p dati hai.

abhar prakat karane ka din

panjab, bihar v tamilanadu mean yah samay fasal katane ka hota hai. krishak makar sankranti ko abhar divas ke roop mean manate haian. pake hue gehooan aur dhan ko svarnim abha unake athak mehanat aur prayas ka hi phal hoti hai aur yah sambhav hota hai, bhagavan v prakriti ke ashirvad se. vibhinn paramparaoan v riti–rivazoan ke anuroop panjab evan jammoo–kashmir mean "loh di" nam se "makar sankranti" parv manaya jata hai. sindhi samaj ek din poorv hi makar sankranti ko "lal lohi" ke roop mean manata hai. tamilanadu mean makar sankranti poangal ke nam se manaya jata hai, to uttar pradesh aur bihar mean khich di ke nam se makar sankranti manaya jata hai. is din kahian khich di to kahian choo dadahi ka bhojan kiya jata hai tatha til ke laddu banaye jate haian. ye laddoo mitr v sage sambandhiyoan mean baantean bhi jate haian.

khich di sankranti

chaval v mooang ki dal ko pakakar khich di banaee jati hai. is din khich di khane ka prachalan v vidhan hai. ghi v masaloan mean paki khich di svadisht, pachak v oorja se bharapoor hoti hai. is din se sharad rritu kshin honi prarambh ho jati hai. basant ke agaman se svasthy ka vikas hona prarambh hota hai.

til sankranti

makar sankranti ke din, khich di ke sath–sath til ka prayog bhi ati mahattvapoorn hai. til ke gol–gol laddoo is din banae jate haian. malish ke lie bhi til ke tel ka prayog kiya jata hai. aisa mana jata hai ki til ki utpatti bhagavan vishnu ke sharir se huee hai tatha uparokt utpadoan ka prayog hamean sabhi prakar ke papoan se mukt karata hai; garmi deta hai aur nirog rakhata hai.

is din ganga snan v sooryopasana ke bad brahmanoan ko gu d, chaval aur til ka dan bhi ati shreshth mana gaya hai. maharashtr mean aisa mana jata hai ki makar sankranti se soory ki gati til–til badhati hai, isilie is din til ke vibhinn mishthan banakar ek–doosare ka vitarit karate hue shubh kamanaean dekar yah tyohar manaya jata hai.

sankranti dan aur punyakarm ka din

sankranti kal ati puny mana gaya hai. is din ganga tat par snan v dan ka vishesh mahattv hai. is din kie ge achchhe karmoan ka phal ati shubh hota hai. vastroan v kambal ka dan, is janm mean nahian; apitu janm–janmaantar mean bhi punyaphaladayi mana jata hai. is din ghrit, til v chaval ke dan ka vishesh mahattv hai. isaka dan karane vala sampoorn bhogoan ko bhogakar moksh ko prapt karata hai - aisa shastroan mean kaha gaya hai.

uttar pradesh mean is din til dan ka vishesh mahattv hai. maharashtr mean navavivahita striyaan pratham sankranti par tel, kapas, namak adi vastuean saubhagyavati striyoan ko bheant karati haian. bangal mean bhi is din til dan ka mahattv hai. rajasthan mean saubhagyavati striyaan is din til ke laddoo, ghevar tatha motichoor ke laddoo adi par rupaye rakhakar, "vayan" ke roop mean apani sas ko pranam karake deti hai tatha kisi bhi vastu ka chaudah ki sankhya mean sankalp karake chaudah brahmanoan ko dan karati hai.

patang u dane ka din

yah din sundar patangoan ko u dane ka din bhi mana jata hai. log b de utsah se patangean u dakar patangabazi ke daanv–pechoan ka maza lete haian. b de–b de shaharoan mean hi nahian, ab gaanvoan mean bhi patangabazi ki pratiyogitaean hoti haian.

gangasnan v soory pooja

thumb|makar sankrati ke avasar par gangasnan karate shraddhalu|220px pavitr ganga mean nahana v soory upasana sankranti ke din atyant pavitr karm mane ge haian. sankranti ke pavan avasar par hazaroan log ilahabad ke triveni sangam, varanasi mean gangaghat, hariyana mean kurukshetr, rajasthan mean pushkar, maharashtr ke nasik mean godavari nadi mean snan karate haian. gu d v shvet til ke pakavan soory ko arpit kar sabhi mean baantean jate haian. gangasagar mean pavitr snan ke lie in dinoan shraddhaluoan ki ek b di bhi d um d p dati hai.

punyakal ke shubharambh ka pratik

makar sankranti ke agami din jab soory ki gati uttar ki or hoti hai, to bahut se parv prarambh hone lagate haian. inhian dinoan mean aisa pratit hota hai ki vatavaran v paryavaran svayan hi achchhe hone lage haian. kaha jata hai ki is samay janme shishu pragatishil vicharoan ke, susanskrit, vinamr svabhav ke tatha achchhe vicharoan se poorn hote haian. yahi vishesh karan hai, jo soory ki uttarayan gati ko pavitr banate haian aur makar sankranti ka din sabase pavitr din ban jata hai.

khagol ka ganit

  • san 2012 mean makar sankraanti 15 janavari yani ravivar ki hai.
  • agale 68 sal tak yah parv 15 janavari ko hi p dega.
  • raja harshavarddhan ke samay mean yah parv 24 disanbar ko p da tha.
  • akabar ke shasanakal mean 10 janavari ko makar sankraanti thi.
  • shivaji ke jivanakal mean yah tyohar 11 janavari ko p da tha.

akhir aisa kyoan?

soory ke dhanu rashi se makar rashi mean pravesh karane ko makar sankraanti kaha jata hai. sal 2012 mean yah 14 janavari ki madhyaratri mean hai. isalie uday tithi ke anusar makar sankraanti 15 janavari ko p degi. darasal har sal soory ka dhanu rashi se makar rashi mean pravesh 20 minat ki deri se hota hai. is tarah har tin sal ke bad soory ek ghante bad aur har 72 sal ek ki deri se makar rashi mean pravesh karata hai. matalab 1728 (72 gune 24) sal mean phir soory ka makar rashi mean pravesh ek din ki deri se hoga aur is tarah 2080 ke bad makar sankraanti 16 janavari ko p degi.

vibhinn rajyoan mean makar sankraanti==

makar sankranti bharat ke bhinn-bhinn logoan ke lie bhinn-bhinn arth rakhati hai. kintu sada ki bh aauanti, nanavidhi utsavoan ko ek sath pirone vala ek sarvamany sootr hai, jo is avasar ko aankit karata hai yadi dipavali jyoti ka parv hai to sankranti shasy parv hai, nee fasal ka svagat karane tatha samriddhi v sampannata ke lie prarthana karane ka ek avasar hai.

panjab mean lo़dhi

makar sankranti bharat ke any kshetroan mean bhi dharmik utsah aur ullas ke sath manaya jata hai. panjab mean ise lo़dhi kahate haian jo gramin kshetroan mean nee fasal ki kataee ke avasar par manaya jata hai. purush aur striyaan gaanv ke chauk par utsavagni ke charoan or paramparagat veshabhoosha mean lokapriy nrity bhaang da ka pradarshan karate haian. striyaan is avasar par apani hatheliyoan aur paanvoan par akarshak akritiyoan mean mehandi rachati haian.

bangal mean makar-sakraanti

pashchim bangal mean makar sakraanti ke din desh bhar ke tirthayatri gangasagar dvip par ekatr hote haian , jahaan ganga bangal ki kha di mean mil jati hai. ek dharmik mela, jise gangasagar mela kahate haian, is samaroh ki mahattvapoorn visheshata hai. aisa vishvas kiya jata hai ki is sangam par dubaki lagane se sara pap dhul jata hai.

karnatak mean makar-sakraanti

karnatak mean bhi fasal ka tyohar shan se manaya jata hai. bailoan aur gayoan ko susajjit kar unaki shobha yatra nikali jati hai. naye paridhan mean saje nar-nari, eekh, sookha nariyal aur bhune chane ke sath ek doosare ka abhivadan karate haian. pantagabazi is avasar ka lokapriy paramparagat khel hai.

gujarat mean makar-sakraanti

gujarat ka kshitij bhi sankranti ke avasar par rangabirangi pantagoan se bhar jata hai. gujarati log sankranti ko ek shubh divas manate haian aur is avasar par chhatroan ko chhatravritiyaan aur puraskar baantate haian.

keral mean makar-sakraanti

keral mean bhagavan ayappa ki nivas sthali sabarimala ki varshik tirthayatra ki avadhi makar sankranti ke din hi samapt hoti hai, jab sudoor parvatoan ke kshitij par ek divy abha ‘makar jyoti’ dikhaee p dati hai.

sanbandhit lekh

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