चुनार क़िला: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
Line 21: Line 21:
|शोध=
|शोध=
}}
}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>

Revision as of 09:09, 21 March 2011

उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर ज़िले में विंध्याचल की पहाड़ियों में गंगा तट पर चुनार क़िला स्थित है। चुनार का प्राचीन नाम चरणाद्रि था। चौदहवीं शताब्दी में यह दुर्ग चंदेलों के अधिकार में था। सोलहवीं शताब्दी में चुनार को बिहार तथा बंगाल को जीतने के किए पहला बड़ा नाका समझा जाता था।

क़िले का आधिपत्य

शेरशाह सूरी ने 1530 ई. में चुनार के क़िलेदार ताज ख़ाँ की विधवा 'लाड मलिका' से विवाह करके चुनार के शाक्तिशाली क़िले पर अधिकार कर लिया। उसे यहाँ मलिका का काफ़ी सम्पत्ति भी मिली।

रक्षक दुर्ग

1532 ई. में हुमायूँ ने चुनार का घेरा डाला परंतु चार महीने के घेरे के बाद भी सफ़लता हाथ न लगी। अंत में हुमायूँ ने सन्धि कर ली और चुनार का क़िला शेरशाह के पास ही रहने दिया। 1538 ई. में हुमायूँ ने तोपखाने की सहायता से तथा चालाक़ी से छह महीनों के प्रयास के बाद चुनारगढ़ पर अधिकार कर लिया। अगस्त, 1561ई. में अकबर ने चुनार को अफ़्गानों से जीता और इसके बाद यह दुर्ग मुग़ल साम्राज्य का पूर्व में रक्षक दुर्ग बन गया।

तहखाने एवं सुरंगें

चुनार का दुर्ग सातवीं सदी का निर्मित बताया जाता है। यह एक विशाल और सुदृढ़ दुर्ग है। इसके दो ओर गंगा बहती है तथा एक गहरी खाई है। दुर्ग चुनार के प्रसिद्ध बलुआ पत्थर का बना हुआ है और भूमि तल से काफ़ी ऊँची पहाड़ी पर बना है। मुख्य द्वार लाल रंग के पत्थर का है, जिस पर काफ़ी नक्काशी की गयी है। क़िले में गहरे तहखाने एवं सुरंगें बनी हैं।

स्मारक

चुनार के क़िले में कई स्मारक आज भी हैं। इनमें कामाक्षा मन्दिर, भर्तहरि का मन्दिर, दुर्गाकुण्ड आदि प्रसिद्ध हैं। यहाँ की प्रसिद्ध मस्जिद मुअज्जिन है, जिसमें मुग़ल सम्राट फ़र्रुखसियर के समय में मक्का से लाये हसन-हुसैन के पहने हुए वस्त्र सुरक्षित हैं।

मौर्यकालीन स्तम्भ

गुप्तकाल से लेकर अठारहवीं सदी तक के अनेक अभिलेख यहाँ से प्राप्त हुए हैं। मौर्यकालीन स्तम्भ चुनार के भूरे बलुआ पत्थर को तराशकर बनाये गये थे। अनुमान किया जाता है कि चुनार के आस-पास मौर्यकाल में एक कला केन्द्र था, जो मौर्य सरकार के सरंक्षण में काम करता था। चुनार में मिट्टी की सुन्दर वस्तुएँ बनती थीं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख