कीटाहारी जंतु: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
नवनीत कुमार (talk | contribs) ('==कीटाहारी जंतु== '''कीटाहारी जंतु''' इस वर्ग के अंतर्गत ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
'''कीटाहारी जंतु''' अति प्राचीन स्वरूप के, कुछ आदियुग कि प्राणियों के अनुरूप तथा कुछ अत्यधिक विशेष प्रकार के जंतु होते हैं। ये छोटे छोटे जीव कदाचित् अनादि काल से अपनी शारीरिक रचना में बिना किसी बड़े परिवर्तन के चले आ रहे हैं। कीटभक्षकों की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि इनकी श्रेणी में अनगिनत प्रकार के प्राणी हैं। आजकल जो कीटभक्षक पाए जाते हैं, उनमें स्तनधारी वर्ग के कतिपय ऐसे प्राणी हैं, जिनकी या तो शारीरिक रचना अद्भूत है, अथवा स्वभाव सर्वथा विचित्र है। इन्हीं कारणों से कीटाहारी वर्ग के जंतु प्राणिशास्त्रियों के लिए विशेष अध्ययन के विषय रहे हैं। [[मंगोलिया]] का फ़ासिल कीटभक्षी, डेल्टाथीरिडियम <ref>Deltatheridium</ref>, इस वर्ग का [[सफ़ेद रंग|श्वेत रंग]] का एक अति प्राचीन जंतु था। इसकी लंबे आकार की आगे निकली हुई खोपड़ी दो इंच से कम लंबी होती थी, किंतु आधुनिक युग के कीटाहारी जंतुओं के समान इसको विशेष नासिका नहीं थीं। | |||
'''कीटाहारी जंतु''' | |||
{{tocright}} | {{tocright}} | ||
कीटाहारियों की पहले चार श्रेणियाँ मानी जाती थीं, किंतु अब | ==श्रेणियाँ== | ||
कीटाहारियों की पहले चार श्रेणियाँ मानी जाती थीं, किंतु अब तीन ही मुख्य श्रेणियाँ हैं। इन श्रेणियाँ के अंतर्गत अब डरमेप्टरा<ref>Dermaptera</ref> वर्ग नहीं गिना जाता। कीटाहारियों के वर्गीकरण में अत्यधिक विविधता और असमानता पाई जाती है। जहाँ दो श्रेणियाँ के जंतुओं में अत्यधिक समानता पाई जाती है, वहाँ तीसरी श्रेणी इनसे बिल्कुल अलग और भिन्न प्रकार की प्रतीत होती हैं। इस दृष्टि से मैडागास्कर द्वीप के अनोखे टेनरेक<ref>Tenrec</ref>, पश्चिमी अफ्रीका के श्रू<ref>Soricidae shrew</ref> नामक कीटाहारी तथा द्वीपसमूह के सोलेनॉडान्स<ref>Solenodons</ref> से सर्वथा भिन्न हैं। इसके विपरीत साही तथा लघु आकार का एलिफैंट श्रू<ref>Elephant shrew</ref>, जिनको मैक्रोस्केलिड्स<ref>Macroscelides</ref> कहते हैं, अत्यधिक सजातीय मालूम होते हैं। | |||
कीटभक्षकों की श्रेणी का कोई जंतु बड़े अथवा मध्यम आकार तक के स्तनधारी जंतुओं के रूप में विकसित नहीं हुआ, फलत: इस श्रेणी के अधिकांश जंतु छोटे आकार के ही रहे हैं। फिर भी मैडागास्कर के सेंटीटेस जंतु, जो केवल दो फुट लंबे होते हैं, इस श्रेणी के सबसे बड़े जानवर हैं। साधारणत श्रू (छछूँदर) सबसे छोटा स्तनधारी प्राणी है। कदाचित् अपने छिपे रहने के स्वभाव तथा छोटे आकार के कारण ही ये कीटाहारी क्रिटेशस युग | कीटभक्षकों की श्रेणी का कोई जंतु बड़े अथवा मध्यम आकार तक के स्तनधारी जंतुओं के रूप में विकसित नहीं हुआ, फलत: इस श्रेणी के अधिकांश जंतु छोटे आकार के ही रहे हैं। फिर भी मैडागास्कर के सेंटीटेस जंतु, जो केवल दो फुट लंबे होते हैं, इस श्रेणी के सबसे बड़े जानवर हैं। साधारणत श्रू (छछूँदर) सबसे छोटा स्तनधारी प्राणी है। कदाचित् अपने छिपे रहने के स्वभाव तथा छोटे आकार के कारण ही ये कीटाहारी क्रिटेशस युग<ref>Crataceous period</ref> से लेकर अब तक अपनी लंबी अवधि में भी समाप्त नहीं हुए। | ||
==विशेषताएँ== | |||
अनुमानत: सब प्रकार के कीटाहारियों का [[मस्तिष्क]] छोटा तथा अपने पूर्वजों की भाँति होता था। इन स्तनधारी जंतुओं के पूरे संक्रमण काल में [[दाँत]] तथा [[खोपड़ी]] की बनावट भी अधिकांशत: उनके पूर्वजों के आकार की ही भाँति चली आ रही हैं। खोपड़ी से उनकी बहुत-सी आदिकालीन विशेषताओं का पता चलता हैं, जैसे अपूर्ण मांसविहीन कनपटी की हड्डी और कान का खुला हुआ छिद्र, जिसमें कान की हड्डी केवल आंशिक वृत्त बनाती हैं। आदिकालीन कीटाहारियों के ढाँचे के सामान्यत: अनुरूप ही इस वर्ग के प्राणियों के ढाँचों की रचना अब भी चल रही हैं, किंतु कुछ समूहों में जो थोड़ा सा अंतर दृष्टिगोचर होता है, वह उस जीव की किस विशेष आवश्यकता की पूर्ति के लिए हुआ प्रतीत होता है। उदाहरणार्थ, छछूँदर के समान मोल<ref>Mole</ref> के हाथ और पैर जमीन खोदने के लिए बड़े सशक्त होते हैं। अन्यथा उसकी रहन सहन, शरीर पर मुलायम बाल के स्थान पर काँटे होना, छिपकर सोना, छोटे आकार का होना और खतरा पड़ने पर अपने शरीर को मोड़कर गेंद के आकार का बना लेना, ये सारी विशेषताएँ उसके पूर्वजों की विशेषताओं की ही ओर संकेत करती हैं। | |||
आजकल पाए जानेवाले अधिकांश कीटाहारी निशाचर होते हैं, जो प्राचीनयुग से अपरिवर्तित रूप से चली आ रही स्तनधारी जीवों की विशेषताओं को धारण करते हैं। यही कारण है कि साही में काँटे होते हैं और मोल में छिपे रहने का स्वभाव होता हैं। बहुत से कीटाहारी शीतकाल में सो जाते हैं। इसीलिए उनके शरीर में चर्बी की अधिकता होती हैं। इस श्रेणी में सर्वाधिक महत्व के प्राणी श्रू होते हैं। | आजकल पाए जानेवाले अधिकांश कीटाहारी निशाचर होते हैं, जो प्राचीनयुग से अपरिवर्तित रूप से चली आ रही स्तनधारी जीवों की विशेषताओं को धारण करते हैं। यही कारण है कि साही में काँटे होते हैं और मोल में छिपे रहने का स्वभाव होता हैं। बहुत से कीटाहारी शीतकाल में सो जाते हैं। इसीलिए उनके शरीर में चर्बी की अधिकता होती हैं। इस श्रेणी में सर्वाधिक महत्व के प्राणी श्रू होते हैं। | ||
==वर्गीकरण== | ==वर्गीकरण== | ||
कीटाहारियों का वर्गीकरण अत्यंत कठिन हैं, क्योंकि इसके अंतर्गत कीटाहारी जंतु कभी किसी वर्ग में रखा जाता है और कभी किसी में। दाँत, खोपड़ी और [[मस्तिष्क]] की रचना के अनुसार तो यह कर-पक्ष-वर्ग के चमगादड़ जैसे अन्य प्राणियों के समान हैं। इसके अतिरिक्त इनके अवशेषों का अध्ययन करने से, विशेषज्ञों के अनुसार, से कीटाहारी लेमूर | कीटाहारियों का वर्गीकरण अत्यंत कठिन हैं, क्योंकि इसके अंतर्गत कीटाहारी जंतु कभी किसी वर्ग में रखा जाता है और कभी किसी में। दाँत, खोपड़ी और [[मस्तिष्क]] की रचना के अनुसार तो यह कर-पक्ष-वर्ग के चमगादड़ जैसे अन्य प्राणियों के समान हैं। इसके अतिरिक्त इनके [[अवशेष|अवशेषों]] का अध्ययन करने से, विशेषज्ञों के अनुसार, से कीटाहारी लेमूर<ref>Lemur</ref> जाति के [[बंदर|बंदरों]] के अनुरूप प्रतीत होते हैं तथा कुछ के अनुसार से द्विद्वंत के ही समीप हैं। पेड़ पर रहने वाले श्रू की परिगणना इसी कीटाहारी श्रेणी में होती थी, परंतु अब स्थिति भिन्न है, और श्रू प्राइमेटा<ref>Primate</ref> वर्ग में रखे गए हैं। इस प्रकार कीटाहारी जंतुओं और प्राइमेट वर्ग के बंदरों में भी निकटता देखी जाती हैं। | ||
कुछ विशेषज्ञों के अनुसार कीटाहारियों के ज़ालैंडोडांटा | कुछ विशेषज्ञों के अनुसार कीटाहारियों के ज़ालैंडोडांटा<ref>Golambdodota</ref> तथा डाइलैंडोडॉण्टा उपवर्गों के विभाजन से उनकी पारस्परिक जातीयता तथा संबंध होने का आभास नहीं होता। कीटाहारियों का सर्वाधिक न्यायसंगत वर्गीकरण तभी संभव होगा जब उनके अनेक समूहों को कीटाहारी स्वीकार किया जाए। सिंपसन ने सुपर फ़ैमिलीज के रूप में इनका वर्णन किया हैं। इस प्रकार सिंपसन के अनुसार कीटाहारियों का वर्गीकरण निम्नलिखित है- | ||
==टालपिडी== | ====टालपिडी==== | ||
टालपिडी | टालपिडी<ref>Talpidae</ref> कुल-इस कुल में छछूँदर के समान मोल नामक जंतु है। यह श्रू की अपेक्षा रूप रंग में भिन्न होता है तथा पूर्वी देशों को छोड़कर सभी जगह पाया जाता है। इसमें 3143/3143 की संपूर्ण दंतावली पाई जाती है। | ||
==सोरसिडी== | ====सोरसिडी==== | ||
सोरसिडी | सोरसिडी<ref>Soricidae</ref> कुल-इस श्रेणी में श्रू जैसे जंतु सम्मिलित हैं। विशेषज्ञों के मतानुसार यह कुल पर्याप्त प्राचीन है। इसके अंतर्गत पाए जाने वाले जंतु व्यापक रूप से तथा [[पृथ्वी]] के प्रत्येक भाग में बहुत अधिक संख्या में पाए जाते हैं। भूख अधिक लगने के कारण ये जंतु हर समय भोजन करते रहते हैं। फलत: ये एक दिन में अपने से दूने भार से भी अधिक [[पदार्थ]] उदरस्थ कर लेते हैं। श्रू की दंत रचना 3 (1) 2 (1) 3/2,0 1,3 होती है जो मोल की दंतरचना से भिन्न है। ये प्राणी समस्त यूरेशिया, [[उत्तरी अमरीका]] तथा [[अफ्रीका]] में पाए जाते हैं। | ||
==एरीनेसाइडी == | ====एरीनेसाइडी==== | ||
एरीनेसाइडी | एरीनेसाइडी<ref>Erinaceidae</ref> कुल-इस श्रेणी का प्रतिनिधित्व साही करते हैं। इस परिवार में भी कीटाहारी दो प्रकार के होते हैं, जिनका वर्गीकरण इस प्रकार हैं- | ||
#साही<ref>हेजहाग्स, Hedgehogs</ref> | |||
#जिमन्यूरा<ref>Gymnura</ref> | |||
देखने में ये दोनों एक दूसरे से सर्वथा भिन्न होते हुए भी परस्पर निकट संबंधी हैं। इन कीटहारियों की | देखने में ये दोनों एक दूसरे से सर्वथा भिन्न होते हुए भी परस्पर निकट संबंधी हैं। इन कीटहारियों की शरीर रचना में उन आदिकाल स्तनधारी प्राणियों की विशेषताएँ विद्यमान हैं, जो डाइनोसार<ref>Dinosaur</ref> के समकालीन थे। साही की पाँच जातियाँ हैं। ये दूसरे स्तनधारी प्राणियों की अपेक्षा अधिक छोटे आकार के जंतु होते हैं। इनके हाथ-पैर भी छोटे-छोटे होते हैं, जिनमें पतले ओर तीक्ष्ण पंजों वाली छोटी और पतली उँगलियाँ तथा अँगूठे होते हैं। साही का स्वभाव जाति, जलवायु तथा निवास स्थान के अनुसार भिन्न प्रकार का होता हैं। अत्यधिक शीत, [[ताप]] तथा शुष्क मौसम में, जब अन्न की कमी हो जाती हैं, ये जंतु निष्क्रिय हो जाते हैं। उदारणार्थ, [[भारत]] में साही स्वभावत: रात में ही निकलता है, परंतु अफ्रीका में वह दिन में भी चलता-फिरता दिखाई पड़ता है। इनके एक बार में चार से लेकर छह तक बच्चे होते हैं। नवजात शिशु कुछ समय तक दृष्टिविहीन होते हैं। उनके नग्न शरीर पर श्वेत और छोटे काँटे दिखाई देते हैं, जो आरंभ में मुलायम होते हैं। इनकी दंत रचना भी कुछ कीटाहारी जंतुओं की दंतरचना से भिन्न अर्थात् 3133/2123 होती है। | ||
==डरमॉप्टरा== | ====डरमॉप्टरा==== | ||
डरमॉप्टरा | डरमॉप्टरा<ref>Dermoptera</ref> कुल-कुछ समय पहले इस वर्ग के प्राणी मूलत: कीटाहारी वर्ग के अंतर्गत माने जाते थे। सच तो यह है कि डरमॉप्टरा का वर्गीकरण सदैव ही मतभेद का विष बना रहा है। यह कभी किसी जाति में कभी किसी में रखा गया हैं। आधुनिकतम वर्गीकरण के फलस्वरूप डरमॉप्टरा को कीटाहारी वर्ग से अलग कद अब स्वतंत्र स्थान दिया गया हैं। ये कीटाहारी जंतु [[दक्षिण अमेरिका]], [[ऑस्ट्रेलिया]], ध्रुव देशों और [[मरुस्थल|मरुस्थलों]] के अतिरिक्त संसार में सब स्थानों पर पाए जाते हैं। | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
{{लेख प्रगति|आधार= | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{जीव जन्तु}} | |||
[[Category: | [[Category:जीव विज्ञान]][[Category:प्राणि विज्ञान]][[Category:प्राणि विज्ञान कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 05:29, 28 May 2015
कीटाहारी जंतु अति प्राचीन स्वरूप के, कुछ आदियुग कि प्राणियों के अनुरूप तथा कुछ अत्यधिक विशेष प्रकार के जंतु होते हैं। ये छोटे छोटे जीव कदाचित् अनादि काल से अपनी शारीरिक रचना में बिना किसी बड़े परिवर्तन के चले आ रहे हैं। कीटभक्षकों की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि इनकी श्रेणी में अनगिनत प्रकार के प्राणी हैं। आजकल जो कीटभक्षक पाए जाते हैं, उनमें स्तनधारी वर्ग के कतिपय ऐसे प्राणी हैं, जिनकी या तो शारीरिक रचना अद्भूत है, अथवा स्वभाव सर्वथा विचित्र है। इन्हीं कारणों से कीटाहारी वर्ग के जंतु प्राणिशास्त्रियों के लिए विशेष अध्ययन के विषय रहे हैं। मंगोलिया का फ़ासिल कीटभक्षी, डेल्टाथीरिडियम [1], इस वर्ग का श्वेत रंग का एक अति प्राचीन जंतु था। इसकी लंबे आकार की आगे निकली हुई खोपड़ी दो इंच से कम लंबी होती थी, किंतु आधुनिक युग के कीटाहारी जंतुओं के समान इसको विशेष नासिका नहीं थीं।
श्रेणियाँ
कीटाहारियों की पहले चार श्रेणियाँ मानी जाती थीं, किंतु अब तीन ही मुख्य श्रेणियाँ हैं। इन श्रेणियाँ के अंतर्गत अब डरमेप्टरा[2] वर्ग नहीं गिना जाता। कीटाहारियों के वर्गीकरण में अत्यधिक विविधता और असमानता पाई जाती है। जहाँ दो श्रेणियाँ के जंतुओं में अत्यधिक समानता पाई जाती है, वहाँ तीसरी श्रेणी इनसे बिल्कुल अलग और भिन्न प्रकार की प्रतीत होती हैं। इस दृष्टि से मैडागास्कर द्वीप के अनोखे टेनरेक[3], पश्चिमी अफ्रीका के श्रू[4] नामक कीटाहारी तथा द्वीपसमूह के सोलेनॉडान्स[5] से सर्वथा भिन्न हैं। इसके विपरीत साही तथा लघु आकार का एलिफैंट श्रू[6], जिनको मैक्रोस्केलिड्स[7] कहते हैं, अत्यधिक सजातीय मालूम होते हैं।
कीटभक्षकों की श्रेणी का कोई जंतु बड़े अथवा मध्यम आकार तक के स्तनधारी जंतुओं के रूप में विकसित नहीं हुआ, फलत: इस श्रेणी के अधिकांश जंतु छोटे आकार के ही रहे हैं। फिर भी मैडागास्कर के सेंटीटेस जंतु, जो केवल दो फुट लंबे होते हैं, इस श्रेणी के सबसे बड़े जानवर हैं। साधारणत श्रू (छछूँदर) सबसे छोटा स्तनधारी प्राणी है। कदाचित् अपने छिपे रहने के स्वभाव तथा छोटे आकार के कारण ही ये कीटाहारी क्रिटेशस युग[8] से लेकर अब तक अपनी लंबी अवधि में भी समाप्त नहीं हुए।
विशेषताएँ
अनुमानत: सब प्रकार के कीटाहारियों का मस्तिष्क छोटा तथा अपने पूर्वजों की भाँति होता था। इन स्तनधारी जंतुओं के पूरे संक्रमण काल में दाँत तथा खोपड़ी की बनावट भी अधिकांशत: उनके पूर्वजों के आकार की ही भाँति चली आ रही हैं। खोपड़ी से उनकी बहुत-सी आदिकालीन विशेषताओं का पता चलता हैं, जैसे अपूर्ण मांसविहीन कनपटी की हड्डी और कान का खुला हुआ छिद्र, जिसमें कान की हड्डी केवल आंशिक वृत्त बनाती हैं। आदिकालीन कीटाहारियों के ढाँचे के सामान्यत: अनुरूप ही इस वर्ग के प्राणियों के ढाँचों की रचना अब भी चल रही हैं, किंतु कुछ समूहों में जो थोड़ा सा अंतर दृष्टिगोचर होता है, वह उस जीव की किस विशेष आवश्यकता की पूर्ति के लिए हुआ प्रतीत होता है। उदाहरणार्थ, छछूँदर के समान मोल[9] के हाथ और पैर जमीन खोदने के लिए बड़े सशक्त होते हैं। अन्यथा उसकी रहन सहन, शरीर पर मुलायम बाल के स्थान पर काँटे होना, छिपकर सोना, छोटे आकार का होना और खतरा पड़ने पर अपने शरीर को मोड़कर गेंद के आकार का बना लेना, ये सारी विशेषताएँ उसके पूर्वजों की विशेषताओं की ही ओर संकेत करती हैं।
आजकल पाए जानेवाले अधिकांश कीटाहारी निशाचर होते हैं, जो प्राचीनयुग से अपरिवर्तित रूप से चली आ रही स्तनधारी जीवों की विशेषताओं को धारण करते हैं। यही कारण है कि साही में काँटे होते हैं और मोल में छिपे रहने का स्वभाव होता हैं। बहुत से कीटाहारी शीतकाल में सो जाते हैं। इसीलिए उनके शरीर में चर्बी की अधिकता होती हैं। इस श्रेणी में सर्वाधिक महत्व के प्राणी श्रू होते हैं।
वर्गीकरण
कीटाहारियों का वर्गीकरण अत्यंत कठिन हैं, क्योंकि इसके अंतर्गत कीटाहारी जंतु कभी किसी वर्ग में रखा जाता है और कभी किसी में। दाँत, खोपड़ी और मस्तिष्क की रचना के अनुसार तो यह कर-पक्ष-वर्ग के चमगादड़ जैसे अन्य प्राणियों के समान हैं। इसके अतिरिक्त इनके अवशेषों का अध्ययन करने से, विशेषज्ञों के अनुसार, से कीटाहारी लेमूर[10] जाति के बंदरों के अनुरूप प्रतीत होते हैं तथा कुछ के अनुसार से द्विद्वंत के ही समीप हैं। पेड़ पर रहने वाले श्रू की परिगणना इसी कीटाहारी श्रेणी में होती थी, परंतु अब स्थिति भिन्न है, और श्रू प्राइमेटा[11] वर्ग में रखे गए हैं। इस प्रकार कीटाहारी जंतुओं और प्राइमेट वर्ग के बंदरों में भी निकटता देखी जाती हैं।
कुछ विशेषज्ञों के अनुसार कीटाहारियों के ज़ालैंडोडांटा[12] तथा डाइलैंडोडॉण्टा उपवर्गों के विभाजन से उनकी पारस्परिक जातीयता तथा संबंध होने का आभास नहीं होता। कीटाहारियों का सर्वाधिक न्यायसंगत वर्गीकरण तभी संभव होगा जब उनके अनेक समूहों को कीटाहारी स्वीकार किया जाए। सिंपसन ने सुपर फ़ैमिलीज के रूप में इनका वर्णन किया हैं। इस प्रकार सिंपसन के अनुसार कीटाहारियों का वर्गीकरण निम्नलिखित है-
टालपिडी
टालपिडी[13] कुल-इस कुल में छछूँदर के समान मोल नामक जंतु है। यह श्रू की अपेक्षा रूप रंग में भिन्न होता है तथा पूर्वी देशों को छोड़कर सभी जगह पाया जाता है। इसमें 3143/3143 की संपूर्ण दंतावली पाई जाती है।
सोरसिडी
सोरसिडी[14] कुल-इस श्रेणी में श्रू जैसे जंतु सम्मिलित हैं। विशेषज्ञों के मतानुसार यह कुल पर्याप्त प्राचीन है। इसके अंतर्गत पाए जाने वाले जंतु व्यापक रूप से तथा पृथ्वी के प्रत्येक भाग में बहुत अधिक संख्या में पाए जाते हैं। भूख अधिक लगने के कारण ये जंतु हर समय भोजन करते रहते हैं। फलत: ये एक दिन में अपने से दूने भार से भी अधिक पदार्थ उदरस्थ कर लेते हैं। श्रू की दंत रचना 3 (1) 2 (1) 3/2,0 1,3 होती है जो मोल की दंतरचना से भिन्न है। ये प्राणी समस्त यूरेशिया, उत्तरी अमरीका तथा अफ्रीका में पाए जाते हैं।
एरीनेसाइडी
एरीनेसाइडी[15] कुल-इस श्रेणी का प्रतिनिधित्व साही करते हैं। इस परिवार में भी कीटाहारी दो प्रकार के होते हैं, जिनका वर्गीकरण इस प्रकार हैं-
देखने में ये दोनों एक दूसरे से सर्वथा भिन्न होते हुए भी परस्पर निकट संबंधी हैं। इन कीटहारियों की शरीर रचना में उन आदिकाल स्तनधारी प्राणियों की विशेषताएँ विद्यमान हैं, जो डाइनोसार[18] के समकालीन थे। साही की पाँच जातियाँ हैं। ये दूसरे स्तनधारी प्राणियों की अपेक्षा अधिक छोटे आकार के जंतु होते हैं। इनके हाथ-पैर भी छोटे-छोटे होते हैं, जिनमें पतले ओर तीक्ष्ण पंजों वाली छोटी और पतली उँगलियाँ तथा अँगूठे होते हैं। साही का स्वभाव जाति, जलवायु तथा निवास स्थान के अनुसार भिन्न प्रकार का होता हैं। अत्यधिक शीत, ताप तथा शुष्क मौसम में, जब अन्न की कमी हो जाती हैं, ये जंतु निष्क्रिय हो जाते हैं। उदारणार्थ, भारत में साही स्वभावत: रात में ही निकलता है, परंतु अफ्रीका में वह दिन में भी चलता-फिरता दिखाई पड़ता है। इनके एक बार में चार से लेकर छह तक बच्चे होते हैं। नवजात शिशु कुछ समय तक दृष्टिविहीन होते हैं। उनके नग्न शरीर पर श्वेत और छोटे काँटे दिखाई देते हैं, जो आरंभ में मुलायम होते हैं। इनकी दंत रचना भी कुछ कीटाहारी जंतुओं की दंतरचना से भिन्न अर्थात् 3133/2123 होती है।
डरमॉप्टरा
डरमॉप्टरा[19] कुल-कुछ समय पहले इस वर्ग के प्राणी मूलत: कीटाहारी वर्ग के अंतर्गत माने जाते थे। सच तो यह है कि डरमॉप्टरा का वर्गीकरण सदैव ही मतभेद का विष बना रहा है। यह कभी किसी जाति में कभी किसी में रखा गया हैं। आधुनिकतम वर्गीकरण के फलस्वरूप डरमॉप्टरा को कीटाहारी वर्ग से अलग कद अब स्वतंत्र स्थान दिया गया हैं। ये कीटाहारी जंतु दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ध्रुव देशों और मरुस्थलों के अतिरिक्त संसार में सब स्थानों पर पाए जाते हैं।
|
|
|
|
|