प्रयोग:कविता बघेल 7: Difference between revisions

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'''संजय ख़ान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sanjay Khan'', जन्म: [[3 जनवरी]], [[1941]] [[बैंगलोर]]) भारतीय फ़िल्म [[अभिनेता]], निर्माता-निर्देशक और टेलीविजन निर्देशक है। अब्बास ख़ान निर्देशित [[चेतन आनंद]] की फ़िल्म (1964) 'हकीकत' से अपने कॅरियर की शुरुआत की थी। 1960 और 1970 के दशक में, ख़ान ने कई हिट फ़िल्मों में अभिनय किया, जैसे 'दो लाख', 'एक फूल दो माली', 'इंतकाम' आदि। संजय ख़ान ने 30 से अधिक फ़िल्मों में अभिनय किया है। 1990 में उन्हें प्रसिद्ध ऐतिहासिक कथा टेलीविजन श्रृंखला ‘द स्वॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ नाम के टी.वी. सीरियल में अभिनय किया जिसमें उनका किरदार टीपू काफी लोकप्रिय रहा था।
'''शम्मी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shammi'', मूल नाम- नरगिस रबाड़ी, जन्म: [[24 अप्रैल]], [[1929]], [[गुजरात]]) भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री है, जो दो सौ से अधिक [[हिंदी]] फ़िल्मों में अभिनय कर चुकी है। क़रीब साढ़े छह दशक पहले उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा था। शुरुआती दौर में कई फ़िल्मों में नायिका और सहनायिका के तौर पर नज़र आने के बाद उन्होंने चरित्र भूमिकाओं की ओर रुख किया। इस लम्बे अंतराल में उनकी अभिनय यात्रा बिना किसी विराम के लगातार जारी रही। ये उनके जादुई व्यक्तित्व और मधुर व्यवहार का ही असर है कि आज समूचा सिने जगत उन्हें प्यार और सम्मान से 'शम्मी आंटी' कहकर बुलाता है।<ref>{{cite web |url=http://beetehuedin.blogspot.in/2015/12/ |title=शम्मी |accessmonthday=13 जून |accessyear= 2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=beetehuedin.blogspot.in |language= हिंदी}}</ref>
==परिचय==
==परिचय==
{{मुख्य| संजय ख़ान का जीवन परिचय}}
{{मुख्य|शम्मी का जीवन परिचय}}
संजय ख़ान का जन्म 3 जनवरी, 1941 में बैंगलोर (अब [[कर्नाटक]]) में एक गजनीवी पठान मुस्लिम उदारवादी परिवार में हुआ था। इन्हें आज भी नई चीजों को सीखने और अपनी जिंदगी में आजमाने का शौक बरकरार है। इन्होंने बिशप कॉटन बॉयज़ स्कूल, बैंगलोर और सेंट जर्मेन हाई स्कूल, बैंगलोर में शिक्षा प्राप्त की। संजय ख़ान की दूसरी पहचान [[फिरोज ख़ान]] और अकबर ख़ान जैसे अभिनेताओं के भाई के तौर पर भी होती है। इसके साथ, उनकी फैमिली के कई दूसरे सदस्य भी फ़िल्म इंडस्ट्री में रहे हैं। उनके दो और भाई शाहरुख़ शाह अली ख़ान और सेमीर ख़ान हैं। उनकी बहनें खुर्शीद शाहनवाड़ और दिलशाद बेगम शेख हैं, जिन्हें दिलशाद बीबी के नाम से जाना जाता है। बैंगलोर में स्कूली शिक्षा के बाद, वह मुंबई गए जहां उन्होंने अपने भाई फिरोज ख़ान से जुड़कर अपनी फ़िल्मों के निर्देशकों की सहायता की।
शम्मी का 24 अप्रैल, 1929 को गुजरात के नारगोल संजान में अपने नाना के घर हुआ था। पारसी माता-पिता की संतान शम्मी आंटी कुछ ही महिनों की थीं जब उनके पिता [[परिवार]] को साथ लेकर [[मुम्बई]] चले आए थे। बकौल शम्मी आंटी, फ़िल्मी दुनिया से उनके परिवार का दूर-दूर तक का सम्बन्ध नहीं था। घर में पारसी-पुरोहित पिता और गृहिणी मां के अलावा एक बड़ी बहन मणि रबाड़ी थीं जिन्होंने आगे चलकर न सिर्फ़ फ़ैशन डिज़ाईनिंग की दुनिया में नाम कमाया, बल्कि अपनी कला के दम पर उस ज़माने में राष्ट्रपति-पुरस्कार भी हासिल किया था।
====विवाह====
====विवाह====
संजय ख़ान का विवाह ज़रीन कटराक, जो एक प्रसिद्ध मॉडल थी, से हुआ था। [[1963]] में जरीन ने फ़िल्म 'तेरे घर के सामने' में [[देवानंद]] के सचिव के रूप में अभिनय किया। [[1966]] में संजय से शादी करने के बाद, उन्होंने अभिनय छोड़ दिया। संजय ख़ान और जरीन ख़ान का रिश्ता ज्यादा समय तक टिक ना सका और उनका तलाक हो गया। उसके बाद संजय ख़ान ने जीनत अमान से दूसरा विवाह कर लिया, पर यह विवाह भी ज़्यादा दिनों तक सफल ना हो सका।
साल 1970 में शम्मी आंटी ने निर्माता-निर्देशक सुल्तान अहमद से [[विवाह]] कर लिया था। लेकिन कुछ ख़ास वज़हों से महज़ सात साल बाद उन्हें पति से अलग हो जाना पड़ा। सात साल के वैवाहिक जीवन के दौरान उन्हें सुल्तान अहमद के छोटे भाई के बेटे इक़बाल रिज़वी से इतना प्यार और लगाव था कि इक़बाल आज भी उन्हें को मां का दर्जा देते हैं। इक़बाल रिज़वी टेलिविज़न के सफल निर्देशकों में जाने जाते हैं।
====बच्चे====
====भक्ति भाव====
संजय खान पहली पत्नी ज़रीन खान से उन्हें तीन बेटियां और एक बेटा है। बड़ी बेटी फराह का जन्म [[28 दिसंबर]], [[1969]], जिसने डीजे अकील से विवाह किया, दूसरी बेटी सिमोन का जन्म [[12 फरवरी]], [[1971]], जिसका विवाह अजय अरोड़ा के प्रबंध निदेशक और डी 'सज्जा के मालिक से हुआ, और उनकी सबसे छोटी बेटी सुज़ान ख़ान का जन्म [[26 अक्टूबर]], [[1978]] को हुआ था, जो अभिनेता रितिक रोशन की पूर्व पत्नी थीं।  इनका एक पुत्र जायद ख़ान जिसका जन्म [[5 जुलाई]], [[1980]] को हुआ। अभिनेता फरदीन ख़ान इनके भतीजे है।<ref>{{cite web |url=http://days.jagranjunction.com/2013/01/03/%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%B8%E0%A4%AC%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE/ |title=Sanjay Khan Profile : इन्होंने जीनत को सबके सामने चांटा मारा था |accessmonthday=10 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=days.jagranjunction.com |language=हिंदी}}</ref>
शम्मी आंटी को संगीत सुनने और पढ़ने का हमेशा से शौक़ रहा जिसका अंदाज़ा किताबों और सी.डी. के उनके संग्रह को देखकर ही लगाया जा सकता था। आध्यात्म और पूजापाठ की तरफ़ भी शुरु से ही उनका झुकाव रहा। [[गणेश|भगवान गणेश]] की भक्त शम्मी आंटी के संग्रह में विभिन्न आकार-प्रकार की सैकड़ों गणेश-मूर्तियां मौजूद हैं। शम्मी आंटी के अनुसार उनकी सुबह ललिता सहस्रनाम और [[हनुमान चालीसा |हनुमान चालीसा]] के पाठ से होती है और वो जब भी घर पर होती हैं तो घर में हमेशा ही [[विष्णु]] सहस्रनाम स्त्रोतम की सी.ड़ी. बजती रहती है। जीवन को लेकर उनका का नज़रिया पूरी तरह से स्पष्ट है। वो कहती हैं, “मैंने जिंदगी को हमेशा अपनी शर्तों पर जिया और जो कुछ पाया, उसे ईश्वर का प्रसाद समझा। मैं खुश हूं कि मुझे लोगों का भरपूर प्यार और इक़बाल जैसा क़ाबिल बेटा मिला। अपने जीवन से मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूं।“
==फ़िल्मी सफ़र==
==फ़िल्मी सफ़र==
{{मुख्य| संजय ख़ान का फ़िल्मी कॅरियर}}
{{मुख्य|शम्मी का फ़िल्मी सफ़ल}}
संजय ख़ान ने फिल्मों के निर्माता और निर्देशक बने, जिसमें उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई और चंडी सोना (1977), अब्दुल्ला (1980) और कल ढांडा गोरो लॉग (1986) जैसी लोकप्रिय फिल्मों के लेख लिखें।
फ़िल्मों में शम्मी आंटी का आना सिर्फ़ एक संयोग था, हालांकि रिश्तेदारी-बिरादरी में उनके इस क़दम का उस वक़्त विरोध भी बहुत हुआ था। जब वो तीन सिर्फ़ तीन साल की थीं तभी उनके पिता का देहांत हो गया। आय का कोई साधन था नहीं, इसलिए दोनों बेटियों के पालन-पोषण के लिए उनकी मां को बहुत तक़लीफ़ें सहनी पड़ीं। जब वो दोनों थोड़ी बड़ी हुईं तो उन्हें अपनी पढ़ाई का ख़र्च ख़ुद उठाने के लिए टाटा की खिलौना फैक्ट्री में काम करना पड़ा। बड़ी बहन पीपुल्स थिएटर की सक्रिय सदस्या थीं इसलिए उनके साथ नाटकों की रिहर्सल में शम्मी आंटी का भी अक्सर आना-जाना होता था, जहां उनकी मुलाक़ात [[महबूब ख़ान]] के सहायक चिमनकांत गांधी से हुई थी।
;पहली फ़िल्म
चिमनकांत गांधी ने उन्हें न सिर्फ़ फ़िल्मों में काम करने के लिए प्रेरित किया, बल्कि निर्माता-निर्देशक-अभिनेता शेख़ मुख़्तार से भी मिलवाया जो उन दिनों फ़िल्म ‘उस्ताद पेड्रो’ में सहनायिका की भूमिका के लिए किसी नई लड़की की तलाश में थे। शेख़ मुख़्तार के घर पर उनसे मुलाक़ात हुई तो उनका पहला सवाल था, [[हिन्दी]] बोल लेती हो? इस पर उन्होंने कहा, “आपसे बात कर रही हूं तो बोल ही लेती हूँ।“ उनका ये बेबाक अंदाज़ शेख़ मुख़्तार को इतना पसन्द आया कि उन्होंने उसी वक़्त उन्हें फ़िल्म ‘उस्ताद पेड्रो’ की दूसरी नायिका की भूमिका के लिए साईन कर लिया।“ क़रीब डेढ़ साल में तैयार हुई ‘उस्ताद पेड्रो’ साल [[1951]] में प्रदर्शित हुई थी। इस फ़िल्म की मुख्य भूमिकाओं में ख़ुद शेख़ मुख़्तार, एन.ए.अंसारी और बेगम पारा थे और संगीतकार थे [[सी.रामचन्द्र]]। शम्मी आंटी ने इस फ़िल्म में एन.ए.अंसारी की नायिका की भूमिका निभायी थी।


[[1990]] में उन्होंने अभिनय किया और उसी नाम के उपन्यास के आधार पर [[भारत]] की पहली मेगा ऐतिहासिक कथा टेलीविजन श्रृंखला ‘द स्वॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ का निर्देशन किया। उन्होंने मराठा जनरल महाद जी सिंधिया के जीवन पर आधारित मेगा भारतीय टीवी श्रृंखला का निर्माण और निर्देशन किया। 'द ग्रेट मराठा' यह तीसरे पानीपत युद्ध को मराठों के साहस और दृढ़ता को दर्शाता है, जो 1769 में अफगान हमलावर अहमद शाह अब्दाली की एक ताकतवर सेना का सामना कर रहे थे। 1990 के दशक के दौरान उन्होंने 'जय-हनुमान', '1857 क्रांति' और 'महारथी कर्ण' जैसी टीवी-सीरीज का निर्माण और निर्देशन किया।
फ़िल्म ‘उस्ताद पेड्रो’ के निर्देशक तारा हरीश उन दिनों गायक [[मुकेश]] द्वारा निर्मित फ़िल्म ‘मल्हार’ का भी निर्देशन कर रहे थे। फ़िल्म ‘उस्ताद पेड्रो’ में शम्मी आंटी की लगन और मेहनत को देखकर तारा हरीश ने फ़िल्म ‘मल्हार’ की नायिका की भूमिका भी शम्मी आंटी को ही दे दी। इस फ़िल्म में शम्मी आंटी के नायक थे अर्जुन।  ये फ़िल्म भी साल [[1951]] में ही प्रदर्शित हुई थी। शम्मी आंटी का असली नाम नरगिस रबाड़ी है, लेकिन चूंकि नरगिस उस जमाने की एक बहुत बड़ी स्टार थीं इसलिए तारा हरीश ने उन्हें ये नया नाम ‘शम्मी आंटी’ दिया जो फ़िल्म ‘मल्हार’ के चरित्र का नाम था।“ साल [[1952]] में [[दिलीप कुमार]] और [[मधुबाला]] के साथ फ़िल्म ‘संगदिल’ में शम्मी आंटी सहनायिका की भूमिका में नज़र आयीं। इस फ़िल्म से दिलीप कुमार के साथ हुई उनकी दोस्ती आज भी बरकरार है।
==मुख्य फ़िल्में==
;फ़िल्म निर्माण के रूप में
संजय ख़ान ने ‘द स्वॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ नाम के टी.वी. सीरियल में अभिनय किया। जिसमें उनका किरदार टीपू काफी लोकप्रिय रहा। फिर बाद में आई उनकी कुछ सुपरहिट फ़िल्में 1975 में ‘जिंदगी और तूफान’, 1977 ‘मेरा वचन गीता की कसम’, 1971 ‘मेला’, 1972 ‘सबका साथी’, दोस्ती, बेटी, सोने के हाथ, नागिन, वो दिन याद करो, एक फूल दो माली, हैं। इतना ही नहीं संजय ख़ान ने ‘जय हनुमान’, ‘मर्यादावाद पुरुषोत्तम’ जैसे टी.वी. सीरियल करके निर्देशन की दुनिया में अपनी नई पहचान बनाई।
शम्मी आंटी अपने पति निर्माता-निर्देशक सुल्तान अहमद के साथ मिलकर फ़िल्म ‘हीरा’ (1973) और ‘गंगा की सौगंध’ (1978) का निर्माण किया, जिनका निर्देशन ख़ुद सुल्तान अहमद ने किया था। इसके साथ ही शम्मी आंटी बाहर की फ़िल्मों में अभिनय भी करती रहीं। लेकिन कुछ ख़ास वजहों से महज़ सातसाल बाद उन्हें पति से अलग हो जाना पड़ा। पति से अलगाव के बाद शम्मी आंटी ने संगीतकार [[कल्याणजी (संगीतकार)|कल्याण जी]] के बेटे रमेश शाह के साथ मिलकर फ़िल्म ‘पिघलता आसमान’ का निर्माण किया था। साल [[1985]] में प्रदर्शित हुई इस फ़िल्म की मुख्य भूमिकाओं में [[शशि कपूर]], [[राखी]] और रति अग्निहोत्री थे। इस फ़िल्म के संगीतकार थे कल्याण जी आनंद जी।
==पुरस्कार एवं उपलब्धियां==
====धारावाहिक निर्माण====
{{मुख्य| संजय ख़ान को मिले पुरस्कार एवं उपलब्धियां}}
[[आशा पारेख]] के साथ मिलकर शम्मी आंटी ने ‘बाजे पायल’, ‘कोरा क़ागज़’, ‘कंगन’ और ‘कुछ पल साथ तुम्हारा’ जैसे धारावाहिकों का निर्माण भी किया और आज भी दोनों अभिनेत्रियां बहुत अच्छी दोस्त हैं। अपने अब तक के कॅरियर में क़रीब दो सौ फ़िल्मों में छोटी-बड़ी भूमिकाएं निभाने के साथ ही उन्हें ‘देख भाई देख’,
*उत्तर प्रदेश फ़िल्म पत्रकार एसोसिएशन अवार्ड (1981)
‘श्रीमान श्रीमती’, ‘कभी ये कभी वो’ जैसे कई टी. वी. धारावाहिकों में भी अभिनय किया। ‘सहारा वन’ चैनल के धारावाहिक ‘घर एक सपना’ में वो आलोक नाथ की मां की भूमिका में नज़र आयी थीं।
*आंध्र प्रदेश पत्रकार पुरस्कार (1986)
==मुख्य फ़िल्म==
*[[भारत रत्न]] का पुरस्कार (1993)
{{मुख्य|शम्मी की प्रमुख फ़िल्में}}
1950 के दशक में शम्मी आंटी ने ‘बाग़ी’, ‘आग का दरिया’, ‘मुन्ना’, ‘रुखसाना’, ‘पहली झलक’, ‘लगन’, ‘बंदिश’, 'मुसाफ़िरखाना', ‘आज़ाद’ और 'दिल अपना और प्रीत परायी' जैसी कई फ़िल्मों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभायीं। अब तक की उनकी अन्तिम फ़िल्म ‘शिरीन फ़रहाद की तो निकल पड़ी’ है जो साल [[2012]] में प्रदर्शित हुई थी।
====चरित्र अभिनेत्री====
शम्मी ने अपने कॅरियर को न तो कभी प्लान किया और न ही बहुत ज़्यादा महत्वाकांक्षाएं पालीं। बस जो भी काम उन्हें मिलता रहा, बिना ना-नुकुर किए करती चली गयी। यही वजह है कि जल्द ही उनकी पहचान महज़ एक चरित्र अभिनेत्री के रूप में ही रह गयी। नायिका के तौर पर भले ही वो ज़्यादा काम नहीं कर पायी लेकिन चरित्र अभिनेत्री बनने का उन्हें ये फ़ायदा हुआ कि उन्हें बिना काम के कभी बैठना नहीं पड़ा।
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{शम्मी विषय सूची}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
{{फ़िल्म निर्माता और निर्देशक}}{{अभिनेत्री}}
[[Category:अभिनेत्री]] [[Category:फ़िल्म निर्देशक]][[Category:फ़िल्म निर्माता]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:कला कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:सिनेमा कोश]]
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Revision as of 12:48, 13 June 2017

शम्मी विषय सूची
कविता बघेल 7
पूरा नाम नरगिस रबाड़ी (वास्तविक नाम)
प्रसिद्ध नाम शम्मी आंटी
जन्म 24 अप्रैल, 1929
जन्म भूमि गुजरात
पति/पत्नी सुल्तान अहमद
कर्म भूमि अभिनेत्री
कर्म-क्षेत्र मुम्बई
मुख्य फ़िल्में ‘बाग़ी’, ‘आग का दरिया’, ‘मुन्ना’, ‘रुखसाना’, ‘पहली झलक’, ‘लगन’, ‘बंदिश’, 'मुसाफ़िरखाना', ‘आज़ाद’ और 'दिल अपना और प्रीत परायी', 'ये रास्ते है प्यार के', 'हम हो गये आपके', 'क्या दिल ने कहा'
प्रसिद्धि अभिनेत्री
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी शम्मी आंटी का जीवन को लेकर नज़रिया पूरी तरह से स्पष्ट है। वो कहती हैं, मैंने जिंदगी को हमेशा अपनी शर्तों पर जिया और जो कुछ पाया, उसे ईश्वर का प्रसाद समझा है। मैं खुश हूं कि मुझे लोगों का भरपूर प्यार और इक़बाल जैसा क़ाबिल बेटा मिला। अपने जीवन से मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूं।

शम्मी (अंग्रेज़ी: Shammi, मूल नाम- नरगिस रबाड़ी, जन्म: 24 अप्रैल, 1929, गुजरात) भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री है, जो दो सौ से अधिक हिंदी फ़िल्मों में अभिनय कर चुकी है। क़रीब साढ़े छह दशक पहले उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा था। शुरुआती दौर में कई फ़िल्मों में नायिका और सहनायिका के तौर पर नज़र आने के बाद उन्होंने चरित्र भूमिकाओं की ओर रुख किया। इस लम्बे अंतराल में उनकी अभिनय यात्रा बिना किसी विराम के लगातार जारी रही। ये उनके जादुई व्यक्तित्व और मधुर व्यवहार का ही असर है कि आज समूचा सिने जगत उन्हें प्यार और सम्मान से 'शम्मी आंटी' कहकर बुलाता है।[1]

परिचय

शम्मी का 24 अप्रैल, 1929 को गुजरात के नारगोल संजान में अपने नाना के घर हुआ था। पारसी माता-पिता की संतान शम्मी आंटी कुछ ही महिनों की थीं जब उनके पिता परिवार को साथ लेकर मुम्बई चले आए थे। बकौल शम्मी आंटी, फ़िल्मी दुनिया से उनके परिवार का दूर-दूर तक का सम्बन्ध नहीं था। घर में पारसी-पुरोहित पिता और गृहिणी मां के अलावा एक बड़ी बहन मणि रबाड़ी थीं जिन्होंने आगे चलकर न सिर्फ़ फ़ैशन डिज़ाईनिंग की दुनिया में नाम कमाया, बल्कि अपनी कला के दम पर उस ज़माने में राष्ट्रपति-पुरस्कार भी हासिल किया था।

विवाह

साल 1970 में शम्मी आंटी ने निर्माता-निर्देशक सुल्तान अहमद से विवाह कर लिया था। लेकिन कुछ ख़ास वज़हों से महज़ सात साल बाद उन्हें पति से अलग हो जाना पड़ा। सात साल के वैवाहिक जीवन के दौरान उन्हें सुल्तान अहमद के छोटे भाई के बेटे इक़बाल रिज़वी से इतना प्यार और लगाव था कि इक़बाल आज भी उन्हें को मां का दर्जा देते हैं। इक़बाल रिज़वी टेलिविज़न के सफल निर्देशकों में जाने जाते हैं।

भक्ति भाव

शम्मी आंटी को संगीत सुनने और पढ़ने का हमेशा से शौक़ रहा जिसका अंदाज़ा किताबों और सी.डी. के उनके संग्रह को देखकर ही लगाया जा सकता था। आध्यात्म और पूजापाठ की तरफ़ भी शुरु से ही उनका झुकाव रहा। भगवान गणेश की भक्त शम्मी आंटी के संग्रह में विभिन्न आकार-प्रकार की सैकड़ों गणेश-मूर्तियां मौजूद हैं। शम्मी आंटी के अनुसार उनकी सुबह ललिता सहस्रनाम और हनुमान चालीसा के पाठ से होती है और वो जब भी घर पर होती हैं तो घर में हमेशा ही विष्णु सहस्रनाम स्त्रोतम की सी.ड़ी. बजती रहती है। जीवन को लेकर उनका का नज़रिया पूरी तरह से स्पष्ट है। वो कहती हैं, “मैंने जिंदगी को हमेशा अपनी शर्तों पर जिया और जो कुछ पाया, उसे ईश्वर का प्रसाद समझा। मैं खुश हूं कि मुझे लोगों का भरपूर प्यार और इक़बाल जैसा क़ाबिल बेटा मिला। अपने जीवन से मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूं।“

फ़िल्मी सफ़र

फ़िल्मों में शम्मी आंटी का आना सिर्फ़ एक संयोग था, हालांकि रिश्तेदारी-बिरादरी में उनके इस क़दम का उस वक़्त विरोध भी बहुत हुआ था। जब वो तीन सिर्फ़ तीन साल की थीं तभी उनके पिता का देहांत हो गया। आय का कोई साधन था नहीं, इसलिए दोनों बेटियों के पालन-पोषण के लिए उनकी मां को बहुत तक़लीफ़ें सहनी पड़ीं। जब वो दोनों थोड़ी बड़ी हुईं तो उन्हें अपनी पढ़ाई का ख़र्च ख़ुद उठाने के लिए टाटा की खिलौना फैक्ट्री में काम करना पड़ा। बड़ी बहन पीपुल्स थिएटर की सक्रिय सदस्या थीं इसलिए उनके साथ नाटकों की रिहर्सल में शम्मी आंटी का भी अक्सर आना-जाना होता था, जहां उनकी मुलाक़ात महबूब ख़ान के सहायक चिमनकांत गांधी से हुई थी।

पहली फ़िल्म

चिमनकांत गांधी ने उन्हें न सिर्फ़ फ़िल्मों में काम करने के लिए प्रेरित किया, बल्कि निर्माता-निर्देशक-अभिनेता शेख़ मुख़्तार से भी मिलवाया जो उन दिनों फ़िल्म ‘उस्ताद पेड्रो’ में सहनायिका की भूमिका के लिए किसी नई लड़की की तलाश में थे। शेख़ मुख़्तार के घर पर उनसे मुलाक़ात हुई तो उनका पहला सवाल था, हिन्दी बोल लेती हो? इस पर उन्होंने कहा, “आपसे बात कर रही हूं तो बोल ही लेती हूँ।“ उनका ये बेबाक अंदाज़ शेख़ मुख़्तार को इतना पसन्द आया कि उन्होंने उसी वक़्त उन्हें फ़िल्म ‘उस्ताद पेड्रो’ की दूसरी नायिका की भूमिका के लिए साईन कर लिया।“ क़रीब डेढ़ साल में तैयार हुई ‘उस्ताद पेड्रो’ साल 1951 में प्रदर्शित हुई थी। इस फ़िल्म की मुख्य भूमिकाओं में ख़ुद शेख़ मुख़्तार, एन.ए.अंसारी और बेगम पारा थे और संगीतकार थे सी.रामचन्द्र। शम्मी आंटी ने इस फ़िल्म में एन.ए.अंसारी की नायिका की भूमिका निभायी थी।

फ़िल्म ‘उस्ताद पेड्रो’ के निर्देशक तारा हरीश उन दिनों गायक मुकेश द्वारा निर्मित फ़िल्म ‘मल्हार’ का भी निर्देशन कर रहे थे। फ़िल्म ‘उस्ताद पेड्रो’ में शम्मी आंटी की लगन और मेहनत को देखकर तारा हरीश ने फ़िल्म ‘मल्हार’ की नायिका की भूमिका भी शम्मी आंटी को ही दे दी। इस फ़िल्म में शम्मी आंटी के नायक थे अर्जुन। ये फ़िल्म भी साल 1951 में ही प्रदर्शित हुई थी। शम्मी आंटी का असली नाम नरगिस रबाड़ी है, लेकिन चूंकि नरगिस उस जमाने की एक बहुत बड़ी स्टार थीं इसलिए तारा हरीश ने उन्हें ये नया नाम ‘शम्मी आंटी’ दिया जो फ़िल्म ‘मल्हार’ के चरित्र का नाम था।“ साल 1952 में दिलीप कुमार और मधुबाला के साथ फ़िल्म ‘संगदिल’ में शम्मी आंटी सहनायिका की भूमिका में नज़र आयीं। इस फ़िल्म से दिलीप कुमार के साथ हुई उनकी दोस्ती आज भी बरकरार है।

फ़िल्म निर्माण के रूप में

शम्मी आंटी अपने पति निर्माता-निर्देशक सुल्तान अहमद के साथ मिलकर फ़िल्म ‘हीरा’ (1973) और ‘गंगा की सौगंध’ (1978) का निर्माण किया, जिनका निर्देशन ख़ुद सुल्तान अहमद ने किया था। इसके साथ ही शम्मी आंटी बाहर की फ़िल्मों में अभिनय भी करती रहीं। लेकिन कुछ ख़ास वजहों से महज़ सातसाल बाद उन्हें पति से अलग हो जाना पड़ा। पति से अलगाव के बाद शम्मी आंटी ने संगीतकार कल्याण जी के बेटे रमेश शाह के साथ मिलकर फ़िल्म ‘पिघलता आसमान’ का निर्माण किया था। साल 1985 में प्रदर्शित हुई इस फ़िल्म की मुख्य भूमिकाओं में शशि कपूर, राखी और रति अग्निहोत्री थे। इस फ़िल्म के संगीतकार थे कल्याण जी आनंद जी।

धारावाहिक निर्माण

आशा पारेख के साथ मिलकर शम्मी आंटी ने ‘बाजे पायल’, ‘कोरा क़ागज़’, ‘कंगन’ और ‘कुछ पल साथ तुम्हारा’ जैसे धारावाहिकों का निर्माण भी किया और आज भी दोनों अभिनेत्रियां बहुत अच्छी दोस्त हैं। अपने अब तक के कॅरियर में क़रीब दो सौ फ़िल्मों में छोटी-बड़ी भूमिकाएं निभाने के साथ ही उन्हें ‘देख भाई देख’, ‘श्रीमान श्रीमती’, ‘कभी ये कभी वो’ जैसे कई टी. वी. धारावाहिकों में भी अभिनय किया। ‘सहारा वन’ चैनल के धारावाहिक ‘घर एक सपना’ में वो आलोक नाथ की मां की भूमिका में नज़र आयी थीं।

मुख्य फ़िल्म

1950 के दशक में शम्मी आंटी ने ‘बाग़ी’, ‘आग का दरिया’, ‘मुन्ना’, ‘रुखसाना’, ‘पहली झलक’, ‘लगन’, ‘बंदिश’, 'मुसाफ़िरखाना', ‘आज़ाद’ और 'दिल अपना और प्रीत परायी' जैसी कई फ़िल्मों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभायीं। अब तक की उनकी अन्तिम फ़िल्म ‘शिरीन फ़रहाद की तो निकल पड़ी’ है जो साल 2012 में प्रदर्शित हुई थी।

चरित्र अभिनेत्री

शम्मी ने अपने कॅरियर को न तो कभी प्लान किया और न ही बहुत ज़्यादा महत्वाकांक्षाएं पालीं। बस जो भी काम उन्हें मिलता रहा, बिना ना-नुकुर किए करती चली गयी। यही वजह है कि जल्द ही उनकी पहचान महज़ एक चरित्र अभिनेत्री के रूप में ही रह गयी। नायिका के तौर पर भले ही वो ज़्यादा काम नहीं कर पायी लेकिन चरित्र अभिनेत्री बनने का उन्हें ये फ़ायदा हुआ कि उन्हें बिना काम के कभी बैठना नहीं पड़ा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शम्मी (हिंदी) beetehuedin.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 13 जून, 2017।

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