बरसाना: Difference between revisions
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|अन्य जानकारी=बरसाना [[कृष्ण]] की प्रेयसी [[राधा]] की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। इस स्थान को, जो एक बृहत पहाड़ी की तलहटी में बसा है, प्राचीन समय में 'बृहत्सानु' कहा जाता था। | |अन्य जानकारी=बरसाना [[कृष्ण]] की प्रेयसी [[राधा]] की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। इस स्थान को, जो एक बृहत पहाड़ी की तलहटी में बसा है, प्राचीन समय में 'बृहत्सानु' कहा जाता था। | ||
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'''बरसाना''' [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह [[मथुरा|मथुरा ज़िले]] की छाता तहसील के [[नन्दगाँव]] ब्लॉक स्थित एक क़स्बा और नगर पंचायत है। प्राचीन समय में इसे 'वृषभानुपुर' के नाम से जाना जाता था। बरसाना मथुरा से 42 कि.मी. तथा [[कोसी]] से 21 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह [[राधा]] के [[पिता]] [[वृषभानु]] का निवास स्थान था। यहाँ '[[राधा रानी मंदिर बरसाना|लाड़ली जी]]' का बहुत बड़ा मंदिर है। यहाँ की अधिकांश पुरानी इमारत 300 [[वर्ष]] पुरानी है। राधा को लोग यहाँ प्यार से 'लाड़लीजी' कहते हैं। बरसाना गांव के पास दो पहाड़ियां मिलती हैं। उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है। मान्यता है कि [[गोपी|गोपियां]] इसी मार्ग से [[दही]]-[[माखन|मक्खन]] बेचने जाया करती थी। यहीं पर कभी-कभी [[कृष्ण]] उनकी मटकी छीन लिया करते थे। बरसाना का पुराना नाम 'ब्रह्मासरिनि' भी कहा जाता है। '[[राधाष्टमी]]' के अवसर पर प्रतिवर्ष यहाँ मेला लगता है। | '''बरसाना''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Barsana'') [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह [[मथुरा|मथुरा ज़िले]] की छाता तहसील के [[नन्दगाँव]] ब्लॉक में स्थित एक क़स्बा और नगर पंचायत है। प्राचीन समय में इसे 'वृषभानुपुर' के नाम से जाना जाता था। बरसाना मथुरा से 42 कि.मी. तथा [[कोसी]] से 21 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह [[राधा]] के [[पिता]] [[वृषभानु]] का निवास स्थान था। यहाँ '[[राधा रानी मंदिर बरसाना|लाड़ली जी]]' का बहुत बड़ा मंदिर है। यहाँ की अधिकांश पुरानी इमारत 300 [[वर्ष]] पुरानी है। राधा को लोग यहाँ प्यार से 'लाड़लीजी' कहते हैं। बरसाना गांव के पास दो पहाड़ियां मिलती हैं। उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है। मान्यता है कि [[गोपी|गोपियां]] इसी मार्ग से [[दही]]-[[माखन|मक्खन]] बेचने जाया करती थी। यहीं पर कभी-कभी [[कृष्ण]] उनकी मटकी छीन लिया करते थे। बरसाना का पुराना नाम 'ब्रह्मासरिनि' भी कहा जाता है। '[[राधाष्टमी]]' के अवसर पर प्रतिवर्ष यहाँ मेला लगता है। | ||
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==राधा की जन्मस्थली== | ==राधा की जन्मस्थली== | ||
बरसाना [[कृष्ण]] की प्रेयसी [[राधा]] की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। इस स्थान को, जो एक बृहत पहाड़ी की तलहटी में बसा है, प्राचीन समय में 'बृहत्सानु' कहा जाता था।<ref>बृहत् सानु=पर्वत शिखर</ref> इसका प्राचीन नाम 'ब्रहत्सानु', 'ब्रह्मसानु' अथवा 'व्रषभानुपुर' है। इसके अन्य नाम 'ब्रह्मसानु' या 'वृषभानुपुर'<ref>वृषभानु, राधा के पिता का नाम है।</ref> भी कहे जाते हैं। बरसाना प्राचीन समय में बहुत समृद्ध नगर था। राधा का प्राचीन मंदिर मध्यकालीन है, जो लाल और पीले पत्थर का बना है। यह अब परित्यक्तावस्था में हैं। इसकी मूर्ति अब पास ही स्थित विशाल एवं परम भव्य संगमरमर के बने मंदिर में प्रतिष्ठापित की हुई है। ये दोनों मंदिर ऊंची पहाड़ी के शिखर पर हैं। थोड़ा आगे चलकर जयपुर-नरेश का बनवाया हुआ दूसरा विशाल मंदिर पहाड़ी के दूसरे शिखर पर बना है। कहा जाता है कि | बरसाना [[कृष्ण]] की प्रेयसी [[राधा]] की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। इस स्थान को, जो एक बृहत पहाड़ी की तलहटी में बसा है, प्राचीन समय में 'बृहत्सानु' कहा जाता था।<ref>बृहत् सानु=पर्वत शिखर</ref> इसका प्राचीन नाम 'ब्रहत्सानु', 'ब्रह्मसानु' अथवा 'व्रषभानुपुर' है। इसके अन्य नाम 'ब्रह्मसानु' या 'वृषभानुपुर'<ref>वृषभानु, राधा के पिता का नाम है।</ref> भी कहे जाते हैं। बरसाना प्राचीन समय में बहुत समृद्ध नगर था। राधा का प्राचीन मंदिर मध्यकालीन है, जो लाल और पीले पत्थर का बना है। यह अब परित्यक्तावस्था में हैं। इसकी मूर्ति अब पास ही स्थित विशाल एवं परम भव्य संगमरमर के बने मंदिर में प्रतिष्ठापित की हुई है। ये दोनों मंदिर ऊंची पहाड़ी के शिखर पर हैं। थोड़ा आगे चलकर जयपुर-नरेश का बनवाया हुआ दूसरा विशाल मंदिर पहाड़ी के दूसरे शिखर पर बना है। कहा जाता है कि [[औरंगज़ेब]] जिसने [[मथुरा]] व निकटवर्ती स्थानों के मंदिरों को क्रूरतापूर्वक नष्ट कर दिया था, बरसाने तक न पहुंच सका था। | ||
====पुण्यस्थली==== | ====पुण्यस्थली==== | ||
[[राधा]] [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] की आह्लादिनी शक्ति एवं निकुंजेश्वरी मानी जाती हैं। इसलिए राधा किशोरी के उपासकों का यह अतिप्रिय तीर्थ है। बरसाना की पुण्यस्थली बड़ी हरी-भरी तथा रमणीक है। इसकी पहाड़ियों के पत्थर श्याम तथा गौरवर्ण के हैं, जिन्हें यहाँ के निवासी कृष्ण तथा राधा के अमर प्रेम का प्रतीक मानते हैं। बरसाना से 4 मील पर [[नन्दगाँव|नन्दगांव]] है, जहां श्रीकृष्ण के पिता [[नंद]] का घर था। बरसाना-नंदगांव मार्ग पर संकेत नामक स्थान है, जहां किंवदंती के अनुसार कृष्ण और राधा का प्रथम मिलन हुआ था।<ref>संकेत का शब्दार्थ है- 'पूर्वनिर्दिष्ट मिलने का स्थान'</ref> यहाँ भाद्र, शुक्ल अष्टमी<ref>राधाष्टमी</ref> से चतुर्दशी तक बहुत सुन्दर मेला होता है। इसी प्रकार [[फाल्गुन]], [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[अष्टमी]], [[नवमी]] एवं [[दशमी]] को आकर्षक लीला होती है। | [[राधा]] [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] की आह्लादिनी शक्ति एवं निकुंजेश्वरी मानी जाती हैं। इसलिए राधा किशोरी के उपासकों का यह अतिप्रिय तीर्थ है। बरसाना की पुण्यस्थली बड़ी हरी-भरी तथा रमणीक है। इसकी पहाड़ियों के पत्थर श्याम तथा गौरवर्ण के हैं, जिन्हें यहाँ के निवासी कृष्ण तथा राधा के अमर प्रेम का प्रतीक मानते हैं। बरसाना से 4 मील पर [[नन्दगाँव|नन्दगांव]] है, जहां श्रीकृष्ण के पिता [[नंद]] का घर था। बरसाना-नंदगांव मार्ग पर संकेत नामक स्थान है, जहां [[किंवदंती]] के अनुसार कृष्ण और राधा का प्रथम मिलन हुआ था।<ref>संकेत का शब्दार्थ है- 'पूर्वनिर्दिष्ट मिलने का स्थान'</ref> यहाँ भाद्र, शुक्ल अष्टमी<ref>राधाष्टमी</ref> से चतुर्दशी तक बहुत सुन्दर मेला होता है। इसी प्रकार [[फाल्गुन]], [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[अष्टमी]], [[नवमी]] एवं [[दशमी]] को आकर्षक लीला होती है। | ||
==होली तथा समाज गायन== | ==होली तथा समाज गायन== | ||
'[[बसंत पंचमी]]' से बरसाना [[होली]] के रंग में सरोबार हो जाता है। टेसू ([[पलाश वृक्ष|पलाश]]) के फूल तोड़कर और उन्हें | '[[बसंत पंचमी]]' से बरसाना [[होली]] के रंग में सरोबार हो जाता है। टेसू ([[पलाश वृक्ष|पलाश]]) के फूल तोड़कर और उन्हें सुखाकर रंग और गुलाल तैयार किया जाता है। गोस्वामी समाज के लोग गाते हुए कहते हैं- "नन्दगाँव को पांडे बरसाने आयो रे।" शाम को 7 बजे चौपाई निकाली जाती है, जो लाड़ली मन्दिर होते हुए सुदामा चौक रंगीली गली होते हुए वापस मन्दिर आ जाती है। सुबह 7 बजे बाहर से आने वाले कीर्तन मंडल कीर्तन करते हुए गहवर वन की परिक्रमा करते हैं। बारहसिंगा की खाल से बनी ढाल को लिए पीली पोखर पहुंचते हैं। बरसानावासी उन्हें रुपये और [[नारियल]] भेंट करते हैं, फिर नन्दगाँव के हुरियारे भांग-ठंडाई छानकर मद-मस्त होकर पहुंचते हैं। राधा-कृष्ण की झांकी के सामने समाज गायन करते हैं। | ||
[[चित्र:barsana-holi-1.jpg|लट्ठामार होली, बरसाना|thumb|left|250px]] | [[चित्र:barsana-holi-1.jpg|लट्ठामार होली, बरसाना|thumb|left|250px]] | ||
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ब्रह्मगिरी पर्वत स्थित ठाकुर | ब्रह्मगिरी पर्वत स्थित ठाकुर लाड़लीजी महाराज मन्दिर के प्रांगण में जब [[नंदगाँव]] से होली का न्योता देकर [[वृषभानु|महाराज वृषभानजी]] का पुरोहित लौटता है तो यहाँ के ब्रजवासी ही नहीं देश भर से आये श्रृद्धालु ख़ुशी से झूम उठते हैं। पांडे का स्वागत करने के लिए लोगों में होड़ लग जाती है। स्वागत देखकर पांडे ख़ुशी से नाचने लगते हैं। [[राधा]]-[[कृष्ण]] की [[भक्ति]] में सब अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं। लोगों द्वारा लाये गये लड्डुओं को नन्दगाँव के हुरियारे फगुआ के रूप में बरसाना के गोस्वामी समाज को होली खेलने के लिए बुलाते हैं। कान्हा के घर [[नन्दगाँव]] से चलकर उनके सखा स्वरूप आते हैं। बरसानावासी राधा पक्ष वाले समाज गायन में भक्तिरस के साथ चुनौती पूर्ण पंक्तियाँ प्रस्तुत करके विपक्ष को मुक़ाबले के लिए ललकारते हैं और मुक़ाबला रोचक हो जाता है। | ||
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लट्ठमार होली से पूर्व नन्दगाँव व बरसाना के गोस्वामी समाज के बीच ज़ोरदार मुक़ाबला होता है। नन्दगाँव के हुरियारे सर्वप्रथम पीली पोखर पर जाते हैं। यहाँ स्थानीय गोस्वामी समाज अगवानी करता है। मेहमान-नवाजी के बाद मन्दिर परिसर में दोनों पक्षों द्वारा समाज गायन का मुक़ाबला होता है। गायन के बाद रंगीली गली में हुरियारे लट्ठ झेलते हैं। यहाँ सुघड़ हुरियारी अपने लठ लिए स्वागत को खड़ी मिलती हैं। दोंनों तरफ कतारों में खड़ी हंसी ठिठोली करती हुई हुरियानों को जी भर-कर छेड़ते हैं। ऐसा लगता है जैसे असल में इनकी सुसराल यहाँ है। इसी अवसर पर जो भूतकाल में हुआ, उसे जिया जाता है। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। निश्छल प्रेम भरी गालियां और लाठियां इतिहास को दोबारा दोहराते हुए नज़र आते हैं। बरसाना और नन्दगाँव में इस स्तर की होली होने के बाद भी आज तक कोई एक-दूसरे के यहाँ वास्तव में आपसी रिश्ता नहीं हुआ। आजकल भी यहाँ टेसू के फूलों से [[होली]] खेली जाती है, रसायनों से अपवित्रता के कारण बाज़ारू रंगों से परहेज़ किया जाता है। अगले दिन [[नन्द|नन्दबाबा]] के गाँव में छटा होती है। | |||
Revision as of 10:17, 8 February 2018
बरसाना
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विवरण | 'बरसाना' ब्रजमण्डल के प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में गिना जाता है। श्रीकृष्ण की प्रेयसी राधा जी का विख्यात 'राधा रानी मन्दिर' यहीं अवस्थित है। | ||
राज्य | उत्तर प्रदेश | ||
ज़िला | मथुरा | ||
प्रसिद्धि | 'राधा रानी मन्दिर' और 'लट्ठमार होली' के लिए प्रसिद्ध है। | ||
कब जाएँ | फाल्गुन माह में शुक्ल अष्टमी, नवमी एवं दशमी तिथि को और भाद्रपद माह में शुक्ल अष्टमी को। | ||
रेलवे स्टेशन | मथुरा जंक्शन | ||
यातायात | कार, ऑटो, रिक्शा आदि | ||
क्या देखें | राधा रानी मन्दिर, लट्ठमार होली | ||
कहाँ ठहरें | होटल, धर्मशालाएँ आदि। | ||
संबंधित लेख | श्रीकृष्ण, राधा, वृषभानु, नन्दगाँव, गोकुल, महावन, वृन्दावन | यह भी देखें | बरसाना होली चित्र वीथिका, मथुरा होली चित्र वीथिका, बलदेव होली चित्र वीथिका |
अन्य जानकारी | बरसाना कृष्ण की प्रेयसी राधा की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। इस स्थान को, जो एक बृहत पहाड़ी की तलहटी में बसा है, प्राचीन समय में 'बृहत्सानु' कहा जाता था। | ||
अद्यतन | 15:47, 8 फ़रवरी 2018 (IST)
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बरसाना (अंग्रेज़ी: Barsana) हिन्दुओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मथुरा ज़िले की छाता तहसील के नन्दगाँव ब्लॉक में स्थित एक क़स्बा और नगर पंचायत है। प्राचीन समय में इसे 'वृषभानुपुर' के नाम से जाना जाता था। बरसाना मथुरा से 42 कि.मी. तथा कोसी से 21 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह राधा के पिता वृषभानु का निवास स्थान था। यहाँ 'लाड़ली जी' का बहुत बड़ा मंदिर है। यहाँ की अधिकांश पुरानी इमारत 300 वर्ष पुरानी है। राधा को लोग यहाँ प्यार से 'लाड़लीजी' कहते हैं। बरसाना गांव के पास दो पहाड़ियां मिलती हैं। उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है। मान्यता है कि गोपियां इसी मार्ग से दही-मक्खन बेचने जाया करती थी। यहीं पर कभी-कभी कृष्ण उनकी मटकी छीन लिया करते थे। बरसाना का पुराना नाम 'ब्रह्मासरिनि' भी कहा जाता है। 'राधाष्टमी' के अवसर पर प्रतिवर्ष यहाँ मेला लगता है। जयपुर मंदिर, बरसाना|thumb|250px|left
राधा की जन्मस्थली
बरसाना कृष्ण की प्रेयसी राधा की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। इस स्थान को, जो एक बृहत पहाड़ी की तलहटी में बसा है, प्राचीन समय में 'बृहत्सानु' कहा जाता था।[1] इसका प्राचीन नाम 'ब्रहत्सानु', 'ब्रह्मसानु' अथवा 'व्रषभानुपुर' है। इसके अन्य नाम 'ब्रह्मसानु' या 'वृषभानुपुर'[2] भी कहे जाते हैं। बरसाना प्राचीन समय में बहुत समृद्ध नगर था। राधा का प्राचीन मंदिर मध्यकालीन है, जो लाल और पीले पत्थर का बना है। यह अब परित्यक्तावस्था में हैं। इसकी मूर्ति अब पास ही स्थित विशाल एवं परम भव्य संगमरमर के बने मंदिर में प्रतिष्ठापित की हुई है। ये दोनों मंदिर ऊंची पहाड़ी के शिखर पर हैं। थोड़ा आगे चलकर जयपुर-नरेश का बनवाया हुआ दूसरा विशाल मंदिर पहाड़ी के दूसरे शिखर पर बना है। कहा जाता है कि औरंगज़ेब जिसने मथुरा व निकटवर्ती स्थानों के मंदिरों को क्रूरतापूर्वक नष्ट कर दिया था, बरसाने तक न पहुंच सका था।
पुण्यस्थली
राधा भगवान श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति एवं निकुंजेश्वरी मानी जाती हैं। इसलिए राधा किशोरी के उपासकों का यह अतिप्रिय तीर्थ है। बरसाना की पुण्यस्थली बड़ी हरी-भरी तथा रमणीक है। इसकी पहाड़ियों के पत्थर श्याम तथा गौरवर्ण के हैं, जिन्हें यहाँ के निवासी कृष्ण तथा राधा के अमर प्रेम का प्रतीक मानते हैं। बरसाना से 4 मील पर नन्दगांव है, जहां श्रीकृष्ण के पिता नंद का घर था। बरसाना-नंदगांव मार्ग पर संकेत नामक स्थान है, जहां किंवदंती के अनुसार कृष्ण और राधा का प्रथम मिलन हुआ था।[3] यहाँ भाद्र, शुक्ल अष्टमी[4] से चतुर्दशी तक बहुत सुन्दर मेला होता है। इसी प्रकार फाल्गुन, शुक्ल अष्टमी, नवमी एवं दशमी को आकर्षक लीला होती है।
होली तथा समाज गायन
'बसंत पंचमी' से बरसाना होली के रंग में सरोबार हो जाता है। टेसू (पलाश) के फूल तोड़कर और उन्हें सुखाकर रंग और गुलाल तैयार किया जाता है। गोस्वामी समाज के लोग गाते हुए कहते हैं- "नन्दगाँव को पांडे बरसाने आयो रे।" शाम को 7 बजे चौपाई निकाली जाती है, जो लाड़ली मन्दिर होते हुए सुदामा चौक रंगीली गली होते हुए वापस मन्दिर आ जाती है। सुबह 7 बजे बाहर से आने वाले कीर्तन मंडल कीर्तन करते हुए गहवर वन की परिक्रमा करते हैं। बारहसिंगा की खाल से बनी ढाल को लिए पीली पोखर पहुंचते हैं। बरसानावासी उन्हें रुपये और नारियल भेंट करते हैं, फिर नन्दगाँव के हुरियारे भांग-ठंडाई छानकर मद-मस्त होकर पहुंचते हैं। राधा-कृष्ण की झांकी के सामने समाज गायन करते हैं। लट्ठामार होली, बरसाना|thumb|left|250px
लट्ठमार होली
- REDIRECTसाँचा:मुख्य
ब्रह्मगिरी पर्वत स्थित ठाकुर लाड़लीजी महाराज मन्दिर के प्रांगण में जब नंदगाँव से होली का न्योता देकर महाराज वृषभानजी का पुरोहित लौटता है तो यहाँ के ब्रजवासी ही नहीं देश भर से आये श्रृद्धालु ख़ुशी से झूम उठते हैं। पांडे का स्वागत करने के लिए लोगों में होड़ लग जाती है। स्वागत देखकर पांडे ख़ुशी से नाचने लगते हैं। राधा-कृष्ण की भक्ति में सब अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं। लोगों द्वारा लाये गये लड्डुओं को नन्दगाँव के हुरियारे फगुआ के रूप में बरसाना के गोस्वामी समाज को होली खेलने के लिए बुलाते हैं। कान्हा के घर नन्दगाँव से चलकर उनके सखा स्वरूप आते हैं। बरसानावासी राधा पक्ष वाले समाज गायन में भक्तिरस के साथ चुनौती पूर्ण पंक्तियाँ प्रस्तुत करके विपक्ष को मुक़ाबले के लिए ललकारते हैं और मुक़ाबला रोचक हो जाता है।
लट्ठमार होली से पूर्व नन्दगाँव व बरसाना के गोस्वामी समाज के बीच ज़ोरदार मुक़ाबला होता है। नन्दगाँव के हुरियारे सर्वप्रथम पीली पोखर पर जाते हैं। यहाँ स्थानीय गोस्वामी समाज अगवानी करता है। मेहमान-नवाजी के बाद मन्दिर परिसर में दोनों पक्षों द्वारा समाज गायन का मुक़ाबला होता है। गायन के बाद रंगीली गली में हुरियारे लट्ठ झेलते हैं। यहाँ सुघड़ हुरियारी अपने लठ लिए स्वागत को खड़ी मिलती हैं। दोंनों तरफ कतारों में खड़ी हंसी ठिठोली करती हुई हुरियानों को जी भर-कर छेड़ते हैं। ऐसा लगता है जैसे असल में इनकी सुसराल यहाँ है। इसी अवसर पर जो भूतकाल में हुआ, उसे जिया जाता है। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। निश्छल प्रेम भरी गालियां और लाठियां इतिहास को दोबारा दोहराते हुए नज़र आते हैं। बरसाना और नन्दगाँव में इस स्तर की होली होने के बाद भी आज तक कोई एक-दूसरे के यहाँ वास्तव में आपसी रिश्ता नहीं हुआ। आजकल भी यहाँ टेसू के फूलों से होली खेली जाती है, रसायनों से अपवित्रता के कारण बाज़ारू रंगों से परहेज़ किया जाता है। अगले दिन नन्दबाबा के गाँव में छटा होती है।
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वीथिका
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राधा रानी मंदिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana -
राधा रानी मंदिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana -
होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Holi, Radha Rani Temple, Barsana -
राधा रानी मंदिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana -
होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Holi, Radha Rani Temple, Barsana -
जयपुर मंदिर, बरसाना
Jaipur Temple, Barsana -
राधा रानी मंदिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana -
होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Holi, Radha Rani Temple, Barsana -
राधा रानी मंदिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana -
जयपुर मंदिर, बरसाना
Jaipur Temple, Barsana -
होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Holi, Radha Rani Temple, Barsana -
होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Holi, Radha Rani Temple, Barsana -
होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Holi, Radha Rani Temple, Barsana -
होली, राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Holi, Radha Rani Temple, Barsana -
राधा रानी मन्दिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana -
राधा रानी मंदिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana -
राधा रानी मंदिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana
टीका टिप्पणी और सन्दर्भ
संबंधित लेख